
Monday, March 9, 2009
Sunday, March 8, 2009
फार्मूला नम्बर सिक्स/सिक्स
आपने कभी न कभी ट्रेन से सफर जरुर किया होगा। आपका सामना हिजरों से जरुर हुआ होगा। इनका आतंक इस कदर हावी होता है की कुछ लोग तो पहले से ही दस पॉँच रुपये का नोट निकालकर रख लेते हैं। कई बार रुपये नहीं देने पर ये आपको इस कदर बेइज्जत करते हैं की आप कुछ भी नही कर सकते। अगर आप जवान हैं तो मैं आज आपको बता रहा हूँ फार्मूला नम्बर सिक्स/सिक्स। यह बहुत ही हिट फार्मूला है। बिल्कुल ही आजमाया हुआ हंड्रेड परसेंट खरा।
हिजरों का एक मनोविज्ञान है। ये स्टूडेंट्स को परेशान नही करते हैं। जैसे ही आप इनके पंचरे में फंसे तुंरत ही बोल दें, अजी हम तो स्टूडेंट्स हैं आपको क्या दे सकते हैं। विश्वास करें ये आपको कुछ नही कहेंगे। कुछ लेने की जगह आपको बहूत सारी दुआ देकर जायेंगे। ये फार्मूला मैंने कई बार आपनाया। कई बार बचा मैं इनके चंगुल से इसी फार्मूले से। लेकिन इस बार मैं फँस गया।
मैं लास्ट वीक जम्मू गया था। माँ के दरबार में हाजरी लगाने। हर साल जाता हूँ। इस बार रूट नया था। सहारनपुर से ट्रेन थी। सहारनपुर से ट्रेन जालंधर होते हुए जम्मू जाती है। जालंधर तक तो ट्रेन में काफी लोग थे। जालंधर से ट्रेन जैसे ही आगे बढ़ी हिजरों की एक टोली ने ट्रेन पर कब्जा कर लिया। मैं तो अपने हिट फार्मूला को लेकर आराम से बैठा था। जैसे ही मेरे पास वह आया। मैंने आपना मुखार्बिंदु खोला और बोला। देखो भाई हम तो है स्टुडेंट आपको क्या देंगे। बस फिर क्या था लगा वह हिजरा मुझे दुआ देने। तभी पीछे से दूसरा हिजरा पंहुच गया। उसने अपने अंदाज में ताली बजाई और कहा हाय... हाय इतनी बरी बरी मूछें रखता है और कहता है स्टुडेंट है। मैं तुंरत सावधान हो गया। आपने आप से कहा। बेटा आज कोई तुम्हे नही बचा सकता। तभी पहले वाला बोला, अरे रहने भी दे स्टुडेंट ही है। लेकिन दुसरे वाला तन गया। कहता है ऐसा नही हो सकता आजकल के स्टूडेंट्स इतनी बरी मूछें नही रखते। मैंने तुंरत कहा मनो या न मनो मैं आज भी स्टुडेंट हूँ। आज भी पढ़ रहा हूँ। मैं तो समझ ही चुका था आज जान नही छुटने वाली। मैंने तुंरत आपना पर्स निकाला और दस का नोट उससे देने लगा। हिजरे ने कहा चल स्टुडेंट है तो तुझे छूट दे देते हैं। पॉँच रुपये ही दे। मेरे पास पॉँच का सिक्का भी था, मैंने तुंरत ही निकला और उसे देकर जान बचाई।
ये तो मेरा अनुभव है। इनसे बचने का आपके पास भी कोई फार्मूला है तो शेयर करें।
Wednesday, February 11, 2009
बर्फ की आगोश में

Friday, February 6, 2009
dosti ki ibadat

Sunday, February 1, 2009
tanhai
Saturday, January 31, 2009
Wednesday, January 28, 2009
celebration
Thursday, January 22, 2009
नए ज़माने का शहर है
Friday, January 16, 2009
kuch dil se
Apni marji se kahan apne safar ke hum hain
rukh hawaon ka jidhar ka hai udhar ke hum hain!!
pahle har chej the apni magar ab lagta hain
apne hi ghar me kisi dusre ghar ke hum hain!!
waqt ke sath hai mitti ka safar sadion tak
kisko maloom hai kahan ke hain kidhar ke hum hain!!
chalte rahte hain ki chalna hai MUSAFFIR ka nasib
sonchte rahte hain ki kis rahgujar ke hum hain!!
gintiyon me hi gine jate hain har daour me hum
har kalamkar ki benam khabar ds hum hain!!
::::Nida Fazli