मेरे कॉलेज का मित्र है रोहन सिंह। कॉलेज के दिनों से ही समाज सेवा में रुचि कुछ ज्यादा ही थी। कई बार इस समाज सेवा ने उसे परेशानी में डाला। किस्मत का खेल देखिए उसे नौकरी भी मिली तो एक ऐसे मिशन में जो समाज सेवा से भी बढ़कर है। बिहार के अररिया जिले में वह भारत सरकार के अब तक के सबसे बड़े सेनिटेशन अभियान से जुड़ा है। यह अभियान वैसे तो कांग्रेस के शासन काल में 2005 में ही शुरू हो चुका था, पर वक्त के साथ-साथ इसने अब तक अपने तीन नामाकरण करवा लिए हैं। फिलहाल मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान (ग्रामीण) के तौर पर इसे हम देख और समझ रहे हैं। निर्मल भारत अभियान, संपूर्ण स्वच्छता अभियान से होता हुआ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारा दिया स्वच्छ भारत का। नाम चाहे जो हो, पर उद्देश्य सिर्फ एक था भारत को स्वच्छ बनाना। स्वच्छता चाहे सड़क और गली मोहल्ले की हो, या फिर भारत के लोगों को शौचालय उपलब्ध कराने की।
आज भी हमारे देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें शौचालय उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण इलाकों की तो बात छोड़िए राष्टÑीय राजधानी नई दिल्ली में भी सुबह के वक्त आप रेलवे ट्रैक पर आसानी से इन आंकड़ों से दो चार हो सकते हैं। यह हालात तब है जब संपूर्ण स्चछता अभियान की शुुरुआत हुए दस साल हो चुके हैं। हर साल करोड़ों रुपए का बजट जारी हो रहा है। हर साल करोड़ों रुपए खर्च भी हो रहे हैं। पर दस साल में हर साल की दर से सिर्फ दस करोड़ रुपए ही ईमानदारी से नई दिल्ली के ऊपर खर्च कर दिए गए होते तो सुबह के समय ट्रेन से आते वक्त हमें शर्मिंदा न होना पड़ता। ट्रेन से दिल्ली पहुंचने वाले विदेशी जब अपने कैमरे से इस नजारे को कैद करते हैं तो ट्रेन में मौजूद हर एक भारतीय का सिर शर्म से झुक जाता है। आज भी नई दिल्ली के बाहरी इलाकों में रेलवे ट्रैक के किनारे रहने वाले हजारों लोगों की जिंदगी ट्रैक पर शौच से ही शुरू होती है।
बहुत लोगों को शायद पता न हो, पर यह सच है कि टोटल सेनिटेशन प्रोग्राम के तहत बनने वाले शौचालय की लागत मात्र बारह हजार रुपए आती है। ग्रामीण भाषा में शौचालय की इस तकनीक को सोखता शौचालय और पेपर वर्क में इसे दो गड्ढे वाला शौचालय कहते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो दस साल के अरबों रुपयों के बजट में से सिर्फ दस करोड़ में नई दिल्ली में इतने सार्वजनिक शौचालय बनाए जा सकते हैं, जिससे घर-घर में शौचालय उपलब्ध हो जाए। पर बात आती है शौच के लिए उत्पन्न होने वाले सोच की।
पूरे भारत में केंद्र सरकार के अभियान के अलावा भी राज्य स्तर की भी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। कई राज्यों में राज्य सरकार की योजना को केंद्र सरकार की योजना में समाहित कर काम चलाया जा रहा है। उद्देश्य सिर्फ एक है कि पूरे भारत के लोगों को कम से कम शौचालय की सुविधा मिले। पर दिक्कत इस बात की है कि आज भी न तो इसकी प्रॉपर मॉनिटरिंग को चैनलाइज किया गया है और न ही समय पर बजट रिलीज किया जा रहा है। । मॉनिटरिंग सिस्टम सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। सबसे अधिक दिक्कत मैन पॉवर की है। मनरेगा को भी इसमें सम्मिलत कर लिया गया है, पर बावजूद इसके शौचालय बनाने वाले मजदूरों की कमी है।
दोस्त रोहन से एक दिन बात हो रही थी। मैंने ऐसे ही पूछ लिया, दोस्त तुम तो एक ऐसे मिशन में लगे हो जिसके बारे में सार्वजनिक तौर पर बातचीत करने में भी शर्मिंदगी होती है। शर्मिंदगी से बचने के लिए जहां एक नंबर और दो नंबर, अमेरिका और पाकिस्तान जैसे कोडवर्ड का उपयोग होता है, वैसी स्थिति में तुम कैसे काम कर लेते हो। इस सवाल पर मंथन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अगर ग्रामीण इलाकों में शौचालय बना भी दिए जाएं तो उस सोच को कैसे विकसित किया जाएगा, जिससे लोगों को वहां जाने के लिए प्रेरित किया जाए। रोहन ने बताया कि जिले स्तर पर, ब्लॉक स्तर पर इसके लिए व्यवस्था की गई है। वॉलेंटियर्स गांव-गांव में जाते हैं और लोगों को शौच के प्रति जागरूक करने का काम करते हैं। उन्हें बताया जाता है कि खुले में शौच के कितने नुकसान हैं। पर इस काम में भी जबदसर््त दिक्कत आती है। जब शहर के सभ्य और पढ़े लिखे लोगों को इस मुद्दे पर बात करने में संकोच होता है, तो ग्रामीण इलाकों का स्थिति का अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है।
पूरे भारत में अब तक स्चछता अभियान के तहत लाखों शौचालय बनाए जा चुके हैं, पर सोच के आभाव में इनमें से आधे से अधिक अभी तक लोगों की बाट जोह रहे हैं। गांव में आज भी लोग खेतों में लोटा लेकर जाना पसंद करते हैं। ऐसे में इस प्रोग्राम की सार्थकता कैसे सिद्ध होगी यह यक्ष प्रश्न है। हां यह जरूर है कि हमें शौच के प्रति पहले सोच विकसित करवाने पर ध्यान देने की जरूरत है। टीवी पर शौचालय के प्रति जागरूकता के विज्ञापन जरूर टेलिकास्ट हो रहे हैं, पर जमीनी स्तर पर इस सोच को विकसित करने के लिए व्यापक अभियान की जरूरत है। और हां गांव को इस अभिषाप से मुक्ति दिलाने से पहले शहरों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। स्मार्ट सिटी की परिकल्पना से पहले शौच मुक्त सिटी की परिकल्पना पर फोकस किया जाए तो बेहतर होगा।
चलते-चलते
करोगे शौच, तो लगेगा जुर्माना
केंद्र सरकार अब स्वच्छ भारत अभियान को कानूनी अधिकार देने जा रही है। संसद के मानसून सत्र में सरकार एक ऐसा विधेयक लाने जा रही है, जिसमें खुले में शौच करने को लघु अपराध की श्रेणी में माना जाएगा। अगर कोई व्यक्ति खुले में शौच करते पकड़ा जाता है तो मौके पर ही उसे आर्थिक जुर्माना लगाया जाएगा।
आज भी हमारे देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्हें शौचालय उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण इलाकों की तो बात छोड़िए राष्टÑीय राजधानी नई दिल्ली में भी सुबह के वक्त आप रेलवे ट्रैक पर आसानी से इन आंकड़ों से दो चार हो सकते हैं। यह हालात तब है जब संपूर्ण स्चछता अभियान की शुुरुआत हुए दस साल हो चुके हैं। हर साल करोड़ों रुपए का बजट जारी हो रहा है। हर साल करोड़ों रुपए खर्च भी हो रहे हैं। पर दस साल में हर साल की दर से सिर्फ दस करोड़ रुपए ही ईमानदारी से नई दिल्ली के ऊपर खर्च कर दिए गए होते तो सुबह के समय ट्रेन से आते वक्त हमें शर्मिंदा न होना पड़ता। ट्रेन से दिल्ली पहुंचने वाले विदेशी जब अपने कैमरे से इस नजारे को कैद करते हैं तो ट्रेन में मौजूद हर एक भारतीय का सिर शर्म से झुक जाता है। आज भी नई दिल्ली के बाहरी इलाकों में रेलवे ट्रैक के किनारे रहने वाले हजारों लोगों की जिंदगी ट्रैक पर शौच से ही शुरू होती है।
बहुत लोगों को शायद पता न हो, पर यह सच है कि टोटल सेनिटेशन प्रोग्राम के तहत बनने वाले शौचालय की लागत मात्र बारह हजार रुपए आती है। ग्रामीण भाषा में शौचालय की इस तकनीक को सोखता शौचालय और पेपर वर्क में इसे दो गड्ढे वाला शौचालय कहते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो दस साल के अरबों रुपयों के बजट में से सिर्फ दस करोड़ में नई दिल्ली में इतने सार्वजनिक शौचालय बनाए जा सकते हैं, जिससे घर-घर में शौचालय उपलब्ध हो जाए। पर बात आती है शौच के लिए उत्पन्न होने वाले सोच की।
पूरे भारत में केंद्र सरकार के अभियान के अलावा भी राज्य स्तर की भी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। कई राज्यों में राज्य सरकार की योजना को केंद्र सरकार की योजना में समाहित कर काम चलाया जा रहा है। उद्देश्य सिर्फ एक है कि पूरे भारत के लोगों को कम से कम शौचालय की सुविधा मिले। पर दिक्कत इस बात की है कि आज भी न तो इसकी प्रॉपर मॉनिटरिंग को चैनलाइज किया गया है और न ही समय पर बजट रिलीज किया जा रहा है। । मॉनिटरिंग सिस्टम सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। सबसे अधिक दिक्कत मैन पॉवर की है। मनरेगा को भी इसमें सम्मिलत कर लिया गया है, पर बावजूद इसके शौचालय बनाने वाले मजदूरों की कमी है।
दोस्त रोहन से एक दिन बात हो रही थी। मैंने ऐसे ही पूछ लिया, दोस्त तुम तो एक ऐसे मिशन में लगे हो जिसके बारे में सार्वजनिक तौर पर बातचीत करने में भी शर्मिंदगी होती है। शर्मिंदगी से बचने के लिए जहां एक नंबर और दो नंबर, अमेरिका और पाकिस्तान जैसे कोडवर्ड का उपयोग होता है, वैसी स्थिति में तुम कैसे काम कर लेते हो। इस सवाल पर मंथन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अगर ग्रामीण इलाकों में शौचालय बना भी दिए जाएं तो उस सोच को कैसे विकसित किया जाएगा, जिससे लोगों को वहां जाने के लिए प्रेरित किया जाए। रोहन ने बताया कि जिले स्तर पर, ब्लॉक स्तर पर इसके लिए व्यवस्था की गई है। वॉलेंटियर्स गांव-गांव में जाते हैं और लोगों को शौच के प्रति जागरूक करने का काम करते हैं। उन्हें बताया जाता है कि खुले में शौच के कितने नुकसान हैं। पर इस काम में भी जबदसर््त दिक्कत आती है। जब शहर के सभ्य और पढ़े लिखे लोगों को इस मुद्दे पर बात करने में संकोच होता है, तो ग्रामीण इलाकों का स्थिति का अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है।
पूरे भारत में अब तक स्चछता अभियान के तहत लाखों शौचालय बनाए जा चुके हैं, पर सोच के आभाव में इनमें से आधे से अधिक अभी तक लोगों की बाट जोह रहे हैं। गांव में आज भी लोग खेतों में लोटा लेकर जाना पसंद करते हैं। ऐसे में इस प्रोग्राम की सार्थकता कैसे सिद्ध होगी यह यक्ष प्रश्न है। हां यह जरूर है कि हमें शौच के प्रति पहले सोच विकसित करवाने पर ध्यान देने की जरूरत है। टीवी पर शौचालय के प्रति जागरूकता के विज्ञापन जरूर टेलिकास्ट हो रहे हैं, पर जमीनी स्तर पर इस सोच को विकसित करने के लिए व्यापक अभियान की जरूरत है। और हां गांव को इस अभिषाप से मुक्ति दिलाने से पहले शहरों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। स्मार्ट सिटी की परिकल्पना से पहले शौच मुक्त सिटी की परिकल्पना पर फोकस किया जाए तो बेहतर होगा।
चलते-चलते
करोगे शौच, तो लगेगा जुर्माना
केंद्र सरकार अब स्वच्छ भारत अभियान को कानूनी अधिकार देने जा रही है। संसद के मानसून सत्र में सरकार एक ऐसा विधेयक लाने जा रही है, जिसमें खुले में शौच करने को लघु अपराध की श्रेणी में माना जाएगा। अगर कोई व्यक्ति खुले में शौच करते पकड़ा जाता है तो मौके पर ही उसे आर्थिक जुर्माना लगाया जाएगा।
6 comments:
Bahut badiyaa. Baat chhoti hain. Lkin mudda badha hain. Sarkaar ka jurmana wala plan toh bdiyaa hai. Lkin isse pehle suvidhao k prati logo ko jgruk krne ki jarurat hai. Baaki inhe piku.dikhao taaki motion se emotion ka connection samjh aaye. Heehee. Maja aaya.
@ Rashmi Khati.....
haha...motion se emotion ke chakkar pe phir kabhi likhunga....
Yeh thik hai ki sarkar iske liy vidheyak layge shayad tabhi logo ke shoch ke liy soch viksit ho payge
sahi kaha Prachi
Agreed yaar, jab tak upar se danda na pade aur char logo me sharmindgi wali feeling na aaye tab tak India nahi sudharega.
Sahi Kaha Rashmi
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