उत्तर प्रदेश के नगर विकास मंत्री आजम खान हमेशा ऐसी हरकतें करते हैं जिससे भारत में रहने वाले मुसलमानों के प्रति गलत अवधारणा बनती है। धर्म के नाम पर राजनीति की रोटी सेंकने वाले आजम खान ने शायद कभी इस बात पर गौर नहीं किया कि वह एक ऐसे लोकतांत्रिक देश में रहते हैं जहां मुसलमानों को भी वह सभी संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं जो अन्य धर्म, जाति और संप्रदाय को दिए गए हैं। खुद को मुसलमानों के स्वयंभू और सर्वोपरि नेता समझने वाले आजम खान ने हमेशा जाति और संप्रदाय की राजनीति करके मुसलमानों के चेहरे को बदनाम करने का ही प्रयास किया है। शायद यही कारण है कि असद्दुदीन ओवैसी ने भी आजम को हद में रहने की चेतावनी दे डाली है। आजम खान द्वारा दादरी कांड पर यूएन महासचिव को लिखे पत्र पर प्रतिक्रिया देते हुए ओवैशी ने आजम खान की हरकत को खतरनाक बताया है। कहा है कि ऐसी ही हरकतों से ही भारत में मुस्लिमों के प्रति सोच बदलती जा रही है।
दादरी के बिसाहड़ा में हुई वारदात को लेकर आजम खान ने संयुक्त राष्टÑ संघ के महासचिव बान की मून को पत्र लिखकर एक ऐसी हरकत की है जिसने पूरे भारत के लोगों को न केवल चौंका दिया है, बल्कि शर्मिंदा भी कर दिया। आजम खान चाहते हैं कि यूएन महासचिव इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करें। संघ एक गोलमेज कॉन्फे्रंस बुलाए, जिसमें भारत में मुसलमानों और ईसाइयों की खराब दशा पर बात हो। शायद आजम खान इस बात को भूल गए हैं कि जिस लोकतंत्र ने उन्हें लोगों का नुमाइंदा बनाया है, उसी लोकतंत्र में न्यायपालिका भी बैठी है। क्या आजम खान को अपनी न्यायपालिका पर जरा भी विश्वास नहीं है, जो एक भीड़तंत्र द्वारा की गई घिनौनी हरकत को अंतरराष्टÑीय स्तर पर सुलझाना चाहते हैं।
दादरी में अखलाक की मौत ने निश्चित तौर पर भारत की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुंचाया है, पर जिस तरह आजम खान ने यूएन महासचिव को पत्र लिखकर अपने घर की बातों को अंतरराष्टÑीय स्तर पर उछाला है, वह सरासर निंदनीय है। आजम खान ने पत्र लिखकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत को कभी दिल से अपना घर स्वीकार नहीं कर सकते हैं। चाहे यहां की जनता उन्हें कितना भी प्यार कर ले। आजम खान इस तरह की हरकत या ऊटपटांग सांप्रदायिक बयानबाजी करते हुए यह बात हमेशा भूल जाते हैं कि इसी लोकतंत्र की बदौलत वो मंत्री पद पर बैठे हैं। इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था और न्यायपालिका की बदौलत उन्हें भी न्याय प्राप्त है। नहीं तो जितने बड़े और गंभीर आरोप उन पर लगे हैं, उनमें वह किसी जेल की कोठरी में सड़ रहे होते। अगर इसी भारत में मुस्लिम होते हुए उन्हें न्याय मिला है तो वह कैसे अपने आधार पर अनुमान लगा सकते हैं कि अखलाक के परिवार को न्याय नहीं मिलेगा और इस परिवार के न्याय के लिए वह यूएन महासचिव को पत्र लिख दें। इससे बड़ी शर्मसार कर देनी वाली हरकत कोई दूसरी नहीं हो सकती।
अखिलेश यादव ने जब युवा मुख्यमंत्री के रूप में उत्तरप्रदेश की कमान संभाली तो पूरा विश्व उनकी ओर देख रहा था। उद्योग घरानों से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों को भी एक उम्मीद बंधी थी कि उत्तरप्रदेश जैसे फर्टिलाइज स्टेट में निवेश करेंगे। पर आजम खान जैसे स्वयंभू मुस्लिम नेताओं के कारण अखिलेश यादव जैसा पढ़ा-लिखा युवा मुख्यमंत्री भी कुछ नहीं कर सका। हर वक्त उत्तरप्रदेश का कोई न कोई जिला दंगों की आग में जल ही रहा है। समाजवादी सरकार की पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस को भी दंगों की आग में झोंकने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। जिस तरह वहां गणेश मूर्ति विसर्जन को लेकर धरने पर बैठे साधु-संतों पर लाठियां बरसाई गर्इं, उसे पूरे विश्व ने देखा है। यह किसके इशारे पर हुआ बताने की नहीं, सिर्फ समझने की जरूरत है। आज बनारस सुलग रहा है। कई थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा है। क्या अखिलेश यादव की सरकार इतनी निकम्मी है कि गंगा में मूर्ति विसर्जन की जिद पर अड़े साधु-संतों से बातचीत के जरिए मनाया न जा सके। जिस तरह साधु-संतों पर अपराधियों की तरह लाठियां बरसाई गई थीं, उसी दिन वहां हिंसा की चिंगारी को हवा दे दी गई थी। बनारस में विकास के लिए निवेश करने वाले उद्योग घरानों में अब इस हिंसा के बाद क्या संदेश जाएगा कहा नहीं जा सकता, पर जिस उद्देश्य से उत्तरप्रदेश पुलिस ने वहां काम किया उसका रिजल्ट सामने है।
आजम खान की शर्मनाक हरकत को आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी खतरनाक बताया है। ओवैसी ने कहा कि दादरी में जो भी हुआ, वो हमारे घर का मामला है। उसे अंतरराष्टÑीय स्तर पर उठाना सरासर गलत है। यूपी सरकार आम लोगों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है और इसी वजह से उत्तरप्रदेश बदनाम हो रहा है। ओवैसी ने जो कुछ भी कहा उसे भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। क्यों आजम खान जैसे नेताओं के बहकावे में आकर भारत के मुसलमान खुद को दूसरे देश का वासी मानने लगे हैं। इसी देश में जब मुंबई में गणेश पूजा होती है तो नमाजियों को नमाज पढ़ने के लिए गणेश पंडाल में जगह मुहैया कराई जाती है। इसी देश में जब एक मुस्लिम महिला को लेबर पेन होता है तो हिंदू महिलाओं द्वारा मंदिर के अंदर उसकी डिलिवरी कराई जाती है। इसी देश में उस मुस्लिम महिला द्वारा अपने बच्चे का नाम गणेश रख दिया जाता है। इसी देश के सभी प्रमुख पदों पर मुस्लिम धर्म के लोग अपनी शोभा बढ़Þाते हैं। इसी देश के लोग एलओसी पर अपनी जान की बाजी लगाते हैं। इसी देश के खिलाड़ी को इंडियन टीम का कप्तान बनाया जाता है। पर यह अफसोस जनक है कि इसी देश का एक मंत्री अपने घर की बातों को लेकर विदेशों में अपनी छाती पीटता है।
प्रदेश में लॉ एंड आॅर्डर बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। फिर इसमें केंद्र सरकार क्या करेगी, यह समझ से परे है। बनारस में लाठियां बरसाकर अपनी दादागिरी दिखाने वाली यूपी पुलिस दादरी की वारदात पर मौन क्यों रही। क्यों नहीं समय पर सूचना मिलने के बावजूद दादरी के भीड़तंत्र को नियंत्रित करने के लिए लाठियां बरसाई गर्इं। क्यों इतनी शर्मनाक वारदात होने दी गई। पूरा देश यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सवाल कर रहा है। अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना आजम खान जैसे नेताओं को बखूबी आता है। अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने कई बार सार्वजनिक मंच से बेटे अखिलेश को इशारा किया है कि अपने अगल-बगल वालों से सावधान रहो। ज्यादा तवज्जो मत दो। विकास का काम करो। कड़े फैसले लो। अपने पिता मुलायम सिंह की बातों को देर से ही सही पर अखिलेश यादव को आज गंभीरता से सोचने की जरूरत है। आजम खान की शर्मनाक हरकत पर उन्हें मंत्रिमंडल से निकालने की बात भी उठने लगी है। अखिलेश यादव से ऐसे किसी कड़े फैसले की उम्मीद पूरा राष्टÑ कर रहा है, क्योंकि जो व्यक्ति भारत को अपना घर, अपना राष्टÑ नहीं समझ सकता, वह उत्तरप्रदेश और समाजवादी सरकार का भला कैसे कर सकता है।
दादरी के बिसाहड़ा में हुई वारदात को लेकर आजम खान ने संयुक्त राष्टÑ संघ के महासचिव बान की मून को पत्र लिखकर एक ऐसी हरकत की है जिसने पूरे भारत के लोगों को न केवल चौंका दिया है, बल्कि शर्मिंदा भी कर दिया। आजम खान चाहते हैं कि यूएन महासचिव इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करें। संघ एक गोलमेज कॉन्फे्रंस बुलाए, जिसमें भारत में मुसलमानों और ईसाइयों की खराब दशा पर बात हो। शायद आजम खान इस बात को भूल गए हैं कि जिस लोकतंत्र ने उन्हें लोगों का नुमाइंदा बनाया है, उसी लोकतंत्र में न्यायपालिका भी बैठी है। क्या आजम खान को अपनी न्यायपालिका पर जरा भी विश्वास नहीं है, जो एक भीड़तंत्र द्वारा की गई घिनौनी हरकत को अंतरराष्टÑीय स्तर पर सुलझाना चाहते हैं।
दादरी में अखलाक की मौत ने निश्चित तौर पर भारत की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुंचाया है, पर जिस तरह आजम खान ने यूएन महासचिव को पत्र लिखकर अपने घर की बातों को अंतरराष्टÑीय स्तर पर उछाला है, वह सरासर निंदनीय है। आजम खान ने पत्र लिखकर यह स्पष्ट कर दिया है कि वह भारत को कभी दिल से अपना घर स्वीकार नहीं कर सकते हैं। चाहे यहां की जनता उन्हें कितना भी प्यार कर ले। आजम खान इस तरह की हरकत या ऊटपटांग सांप्रदायिक बयानबाजी करते हुए यह बात हमेशा भूल जाते हैं कि इसी लोकतंत्र की बदौलत वो मंत्री पद पर बैठे हैं। इसी लोकतांत्रिक व्यवस्था और न्यायपालिका की बदौलत उन्हें भी न्याय प्राप्त है। नहीं तो जितने बड़े और गंभीर आरोप उन पर लगे हैं, उनमें वह किसी जेल की कोठरी में सड़ रहे होते। अगर इसी भारत में मुस्लिम होते हुए उन्हें न्याय मिला है तो वह कैसे अपने आधार पर अनुमान लगा सकते हैं कि अखलाक के परिवार को न्याय नहीं मिलेगा और इस परिवार के न्याय के लिए वह यूएन महासचिव को पत्र लिख दें। इससे बड़ी शर्मसार कर देनी वाली हरकत कोई दूसरी नहीं हो सकती।
अखिलेश यादव ने जब युवा मुख्यमंत्री के रूप में उत्तरप्रदेश की कमान संभाली तो पूरा विश्व उनकी ओर देख रहा था। उद्योग घरानों से लेकर कॉरपोरेट कंपनियों को भी एक उम्मीद बंधी थी कि उत्तरप्रदेश जैसे फर्टिलाइज स्टेट में निवेश करेंगे। पर आजम खान जैसे स्वयंभू मुस्लिम नेताओं के कारण अखिलेश यादव जैसा पढ़ा-लिखा युवा मुख्यमंत्री भी कुछ नहीं कर सका। हर वक्त उत्तरप्रदेश का कोई न कोई जिला दंगों की आग में जल ही रहा है। समाजवादी सरकार की पुलिस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस को भी दंगों की आग में झोंकने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। जिस तरह वहां गणेश मूर्ति विसर्जन को लेकर धरने पर बैठे साधु-संतों पर लाठियां बरसाई गर्इं, उसे पूरे विश्व ने देखा है। यह किसके इशारे पर हुआ बताने की नहीं, सिर्फ समझने की जरूरत है। आज बनारस सुलग रहा है। कई थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लगा है। क्या अखिलेश यादव की सरकार इतनी निकम्मी है कि गंगा में मूर्ति विसर्जन की जिद पर अड़े साधु-संतों से बातचीत के जरिए मनाया न जा सके। जिस तरह साधु-संतों पर अपराधियों की तरह लाठियां बरसाई गई थीं, उसी दिन वहां हिंसा की चिंगारी को हवा दे दी गई थी। बनारस में विकास के लिए निवेश करने वाले उद्योग घरानों में अब इस हिंसा के बाद क्या संदेश जाएगा कहा नहीं जा सकता, पर जिस उद्देश्य से उत्तरप्रदेश पुलिस ने वहां काम किया उसका रिजल्ट सामने है।
आजम खान की शर्मनाक हरकत को आॅल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी खतरनाक बताया है। ओवैसी ने कहा कि दादरी में जो भी हुआ, वो हमारे घर का मामला है। उसे अंतरराष्टÑीय स्तर पर उठाना सरासर गलत है। यूपी सरकार आम लोगों को सुरक्षा देने में नाकाम रही है और इसी वजह से उत्तरप्रदेश बदनाम हो रहा है। ओवैसी ने जो कुछ भी कहा उसे भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। क्यों आजम खान जैसे नेताओं के बहकावे में आकर भारत के मुसलमान खुद को दूसरे देश का वासी मानने लगे हैं। इसी देश में जब मुंबई में गणेश पूजा होती है तो नमाजियों को नमाज पढ़ने के लिए गणेश पंडाल में जगह मुहैया कराई जाती है। इसी देश में जब एक मुस्लिम महिला को लेबर पेन होता है तो हिंदू महिलाओं द्वारा मंदिर के अंदर उसकी डिलिवरी कराई जाती है। इसी देश में उस मुस्लिम महिला द्वारा अपने बच्चे का नाम गणेश रख दिया जाता है। इसी देश के सभी प्रमुख पदों पर मुस्लिम धर्म के लोग अपनी शोभा बढ़Þाते हैं। इसी देश के लोग एलओसी पर अपनी जान की बाजी लगाते हैं। इसी देश के खिलाड़ी को इंडियन टीम का कप्तान बनाया जाता है। पर यह अफसोस जनक है कि इसी देश का एक मंत्री अपने घर की बातों को लेकर विदेशों में अपनी छाती पीटता है।
प्रदेश में लॉ एंड आॅर्डर बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। फिर इसमें केंद्र सरकार क्या करेगी, यह समझ से परे है। बनारस में लाठियां बरसाकर अपनी दादागिरी दिखाने वाली यूपी पुलिस दादरी की वारदात पर मौन क्यों रही। क्यों नहीं समय पर सूचना मिलने के बावजूद दादरी के भीड़तंत्र को नियंत्रित करने के लिए लाठियां बरसाई गर्इं। क्यों इतनी शर्मनाक वारदात होने दी गई। पूरा देश यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सवाल कर रहा है। अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ना आजम खान जैसे नेताओं को बखूबी आता है। अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव ने कई बार सार्वजनिक मंच से बेटे अखिलेश को इशारा किया है कि अपने अगल-बगल वालों से सावधान रहो। ज्यादा तवज्जो मत दो। विकास का काम करो। कड़े फैसले लो। अपने पिता मुलायम सिंह की बातों को देर से ही सही पर अखिलेश यादव को आज गंभीरता से सोचने की जरूरत है। आजम खान की शर्मनाक हरकत पर उन्हें मंत्रिमंडल से निकालने की बात भी उठने लगी है। अखिलेश यादव से ऐसे किसी कड़े फैसले की उम्मीद पूरा राष्टÑ कर रहा है, क्योंकि जो व्यक्ति भारत को अपना घर, अपना राष्टÑ नहीं समझ सकता, वह उत्तरप्रदेश और समाजवादी सरकार का भला कैसे कर सकता है।
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