उफ ये डिब्बे और बेशकीमती एहसास
तस्वीर में दिख रहे इन छोटे-छोटे दो डिब्बों को देखकर इसे मामूली समझने की भूल आप कदापि न करें। ये डिब्बे न केवल अमूल्य हैं, बल्कि इन्होंने कई अच्छे और बुरे दिन देखे हैं। जब से इसे मैंने देखा है हिस्ट्री चैनल पर आने वाले पॉन स्टार शॉप पर जाने का मन करने लगा है। आज नहीं तो कल, जब कभी भी उस शॉप की ब्रांच इंडिया में खुलेगी मैं इन डिब्बों को वहां जरूर लेकर जाऊंगा। बताऊंगा कि कैसे इन छोटे डिब्बों ने करीब तीन दसकों से सांप्रदायिक सौहार्द की बेहतरीन मिसाल पेश की है। इसी के कारण यह अमूल्य धरोहर है।
चलिए आपको बताता हूं आखिर क्यों इतनी महत्वपूर्ण हैं ये डिब्बियां। दरअसल इस बार की रांची यात्रा के दौरान अनायास ही इन डिब्बों पर मेरी नजर पड़ी। रांची में मेरे दो मामा रहते हैं। छोटका मामा और मंटू मामा। दोनों के घरों के ड्राइंग रूम में ये दो डिब्बे न जाने कितने सालों से एक शो-पीस की तरह रखे हैं। पिछले करीब बीस वर्षों से मैं इन डिब्बों को इसी तरह ड्राइंग रूम में मौजूद सेंटर टेबल पर देखता रहा हूं। हालांकि पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं इनकी उम्र इससे भी कहीं ज्यादा है। पर मैं इसे बीस साल ही कोट कर रहा हूं। इन बीस सालों में घर में बहुत कुछ बदल गया। परिवार में बहुत कुछ बदल गया। कई अपने हमसे बहुत दूर अनंत यात्रा पर चले गए। पर इन दो डिब्बों की न अहमियत कम हुई और न हैसियत। कभी यह सेंटर टेबल के ऊपर रहते हैं और कभी नीचे वाले स्पेस में। ड्रांइग रूम में आने वाले हर एक शख्स की नजर इन बदरंग हो चुके डिब्बों पर जरूर पड़ती होगी, पर आज तक किसी ने इसके बारे में नहीं पूछा होगा कि आखिर ये डिब्बे ड्राइंग रूम के सेंटर टेबल पर क्यों रखे रहते हैं।
एक उम्र पूरी हो जाने के बाद घर के बुजुर्ग भी एक कोने में सिमट जाते हैं। उनकी अहमियत और हैसियत भी कम हो जाती है। कोई खास मेहमान आने के दौरान उन्हें भी ड्राइंग रूम से घर के दूसरे कमरों में शिफ्ट कर दिया जाता है, पर डिब्बे इतने पुराने होने के बावजूद अपने पूरे रंग में हैं। ब्ल्यू रंग में दिख रहा छोटा डिब्बा संभवत: विक्स का ट्रेडमार्क डिब्बा है। मुझे याद है जब मेरी नानी मां जिंदा थी इस तरह विक्स से लदलख डिब्बा हमेशा उनके पास रहता था। शरीर के किसी अंग में चोट लग गई हो, कोई अंग जल गया हो, खुजली हो रही हो, सर्दी हो गई हो, सिर दर्द कर रहा हो, नानी तुरंत विक्स लगा देती थी। उनके अनुसार सभी बीमारियों का रामबाण उपाय इसी नीले रंग के डिब्बे में है। चोट पर भी विक्स लगाकर वह हमें कहती थी अब ठीक हो जाएगा। यह उनका टोटका था या हमें बहलाने वाला प्यार, पर विश्वास किजिए वह दर्द दूर हो जाता था। नानी मां के सिराहने के नीचे और कुछ मिले या न मिले यह नीले रंग की डिब्बी जरूर मिलती थी। शायद उन्हीं डिब्बीयों में से यह डिब्बी एक हो।
काफी कोशिश करने के बावजूद भी दूसरी डिब्बी का पहचान हासिल नहीं कर सका। उस पर लिखा हर एक शब्द अपना वजूद खो चुका है। पर अनुमान के आधार पर कह सकता हूं कि यह किसी आयुर्वेद दवाई की खाली डिब्बी है। मेरे नाना जी आयुर्वेद की दवाई बहुत खाते थे। त्रिफला चूर्ण, कायम चूर्ण और न जाने कितने चूर्ण उनकी जिंदगी के अहम अंग थे। यह डिब्बा भी संभवत: उन्हीं में से एक होगा। आज न मेरी नानी मां जिंदा हैं और नाना जी। दोनों हमसे काफी दूर जा चुके हैं। अब आप समझ चुके होंगे कि यह डिब्बी क्यों इतनी महत्वपूर्ण है।
पर ठहरिए अभी एक और राज से परदा उठाना बांकि है। आखिर इस डिब्बी में अब रहता क्या है? क्योंकि न तो विक्स इतने दिनों तक रह सकता है और न आयुर्वेद की दवा। दरअसल इन दोनों डिब्बों का अस्तित्व एक दूसरे के बिना अधूरा है। नीले डिब्बे में उजले रंग वाला चूना रहता है और सफेद डिब्बे में भूरे रंग वाली खैनी। वैसे भी खैनी सर्व धर्म संभाव की प्रतीक मानी जाती है। जाति, धर्म, ऊंच, नीच की सारी सीमाओं को तोड़ने वाली खैनी को हमारे भारतीय समाज में एक अलग मुकाम हासिल है। बड़े से बड़े व्यक्ति को भी किसी रिक्शे वाले या मजदूर से खैनी मांग कर खाते हुए देखा जा सकता है। शोले वाला गब्बर सिंह भी जब खैनी चबाते हुए पूछता है कि कितने आदमी थे, तब भी खैनी का एक अलग अंदाज सामने आता है। लालू यादव भी जब अपनी पोटली से खैनी निकालकर होंठों के नीचे दबाते हैं तो एक उनका एक अलग अंदाज सामने आता है।
पर इन सबसे अधिक जब एक ही डिब्बे में कोई खैनी और चूना बीस वर्षों से अधिक की यात्रा कर लेता है तो उसका भी अपना ही रंग है। मैंने अपने दोनों मामाओं से कहा है कि इन डिब्बों को संभाल कर रखिएगा। एक तो यह आपके आपसी सौहार्द के प्रतीक भी बना रहेगा। दूसरा कहीं न कहीं यह नाना और नानी की मौजूदगी का भी एहसास कराता रहेगा। दोनों मामा जब भी एक दूसरे के ड्राइंग रूम में बैठते हैं बेहिचक, बेपरवाह चूने और खैनी का बेधड़क मेल कराते हुए एक दूसरे से जुड़े होने का बेहद बेशकीमती एहसास कराते हैं।
तो बताइए है न यह दोनों डिब्बे अमूल्य।
तस्वीर में दिख रहे इन छोटे-छोटे दो डिब्बों को देखकर इसे मामूली समझने की भूल आप कदापि न करें। ये डिब्बे न केवल अमूल्य हैं, बल्कि इन्होंने कई अच्छे और बुरे दिन देखे हैं। जब से इसे मैंने देखा है हिस्ट्री चैनल पर आने वाले पॉन स्टार शॉप पर जाने का मन करने लगा है। आज नहीं तो कल, जब कभी भी उस शॉप की ब्रांच इंडिया में खुलेगी मैं इन डिब्बों को वहां जरूर लेकर जाऊंगा। बताऊंगा कि कैसे इन छोटे डिब्बों ने करीब तीन दसकों से सांप्रदायिक सौहार्द की बेहतरीन मिसाल पेश की है। इसी के कारण यह अमूल्य धरोहर है।
चलिए आपको बताता हूं आखिर क्यों इतनी महत्वपूर्ण हैं ये डिब्बियां। दरअसल इस बार की रांची यात्रा के दौरान अनायास ही इन डिब्बों पर मेरी नजर पड़ी। रांची में मेरे दो मामा रहते हैं। छोटका मामा और मंटू मामा। दोनों के घरों के ड्राइंग रूम में ये दो डिब्बे न जाने कितने सालों से एक शो-पीस की तरह रखे हैं। पिछले करीब बीस वर्षों से मैं इन डिब्बों को इसी तरह ड्राइंग रूम में मौजूद सेंटर टेबल पर देखता रहा हूं। हालांकि पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं इनकी उम्र इससे भी कहीं ज्यादा है। पर मैं इसे बीस साल ही कोट कर रहा हूं। इन बीस सालों में घर में बहुत कुछ बदल गया। परिवार में बहुत कुछ बदल गया। कई अपने हमसे बहुत दूर अनंत यात्रा पर चले गए। पर इन दो डिब्बों की न अहमियत कम हुई और न हैसियत। कभी यह सेंटर टेबल के ऊपर रहते हैं और कभी नीचे वाले स्पेस में। ड्रांइग रूम में आने वाले हर एक शख्स की नजर इन बदरंग हो चुके डिब्बों पर जरूर पड़ती होगी, पर आज तक किसी ने इसके बारे में नहीं पूछा होगा कि आखिर ये डिब्बे ड्राइंग रूम के सेंटर टेबल पर क्यों रखे रहते हैं।
एक उम्र पूरी हो जाने के बाद घर के बुजुर्ग भी एक कोने में सिमट जाते हैं। उनकी अहमियत और हैसियत भी कम हो जाती है। कोई खास मेहमान आने के दौरान उन्हें भी ड्राइंग रूम से घर के दूसरे कमरों में शिफ्ट कर दिया जाता है, पर डिब्बे इतने पुराने होने के बावजूद अपने पूरे रंग में हैं। ब्ल्यू रंग में दिख रहा छोटा डिब्बा संभवत: विक्स का ट्रेडमार्क डिब्बा है। मुझे याद है जब मेरी नानी मां जिंदा थी इस तरह विक्स से लदलख डिब्बा हमेशा उनके पास रहता था। शरीर के किसी अंग में चोट लग गई हो, कोई अंग जल गया हो, खुजली हो रही हो, सर्दी हो गई हो, सिर दर्द कर रहा हो, नानी तुरंत विक्स लगा देती थी। उनके अनुसार सभी बीमारियों का रामबाण उपाय इसी नीले रंग के डिब्बे में है। चोट पर भी विक्स लगाकर वह हमें कहती थी अब ठीक हो जाएगा। यह उनका टोटका था या हमें बहलाने वाला प्यार, पर विश्वास किजिए वह दर्द दूर हो जाता था। नानी मां के सिराहने के नीचे और कुछ मिले या न मिले यह नीले रंग की डिब्बी जरूर मिलती थी। शायद उन्हीं डिब्बीयों में से यह डिब्बी एक हो।
काफी कोशिश करने के बावजूद भी दूसरी डिब्बी का पहचान हासिल नहीं कर सका। उस पर लिखा हर एक शब्द अपना वजूद खो चुका है। पर अनुमान के आधार पर कह सकता हूं कि यह किसी आयुर्वेद दवाई की खाली डिब्बी है। मेरे नाना जी आयुर्वेद की दवाई बहुत खाते थे। त्रिफला चूर्ण, कायम चूर्ण और न जाने कितने चूर्ण उनकी जिंदगी के अहम अंग थे। यह डिब्बा भी संभवत: उन्हीं में से एक होगा। आज न मेरी नानी मां जिंदा हैं और नाना जी। दोनों हमसे काफी दूर जा चुके हैं। अब आप समझ चुके होंगे कि यह डिब्बी क्यों इतनी महत्वपूर्ण है।
पर ठहरिए अभी एक और राज से परदा उठाना बांकि है। आखिर इस डिब्बी में अब रहता क्या है? क्योंकि न तो विक्स इतने दिनों तक रह सकता है और न आयुर्वेद की दवा। दरअसल इन दोनों डिब्बों का अस्तित्व एक दूसरे के बिना अधूरा है। नीले डिब्बे में उजले रंग वाला चूना रहता है और सफेद डिब्बे में भूरे रंग वाली खैनी। वैसे भी खैनी सर्व धर्म संभाव की प्रतीक मानी जाती है। जाति, धर्म, ऊंच, नीच की सारी सीमाओं को तोड़ने वाली खैनी को हमारे भारतीय समाज में एक अलग मुकाम हासिल है। बड़े से बड़े व्यक्ति को भी किसी रिक्शे वाले या मजदूर से खैनी मांग कर खाते हुए देखा जा सकता है। शोले वाला गब्बर सिंह भी जब खैनी चबाते हुए पूछता है कि कितने आदमी थे, तब भी खैनी का एक अलग अंदाज सामने आता है। लालू यादव भी जब अपनी पोटली से खैनी निकालकर होंठों के नीचे दबाते हैं तो एक उनका एक अलग अंदाज सामने आता है।
पर इन सबसे अधिक जब एक ही डिब्बे में कोई खैनी और चूना बीस वर्षों से अधिक की यात्रा कर लेता है तो उसका भी अपना ही रंग है। मैंने अपने दोनों मामाओं से कहा है कि इन डिब्बों को संभाल कर रखिएगा। एक तो यह आपके आपसी सौहार्द के प्रतीक भी बना रहेगा। दूसरा कहीं न कहीं यह नाना और नानी की मौजूदगी का भी एहसास कराता रहेगा। दोनों मामा जब भी एक दूसरे के ड्राइंग रूम में बैठते हैं बेहिचक, बेपरवाह चूने और खैनी का बेधड़क मेल कराते हुए एक दूसरे से जुड़े होने का बेहद बेशकीमती एहसास कराते हैं।
तो बताइए है न यह दोनों डिब्बे अमूल्य।
8 comments:
वाकई सर। ये डिब्बे अनमोल हैं।
वाकई सर। ये डिब्बे अनमोल हैं।
Thanks sunil
गजब भाई, जहां बैठ जाते हो वहीं से खबरें बना लेते हो। वैसे,इस खैनी को चौधरी चरण सिंह बीबीसी कहते थे यानि बुद्धि वर्धक चूर्ण।।।
thanks Gyanu
हाहाहाहा......सचमुच, इस पोस्ट को पढ़ने के बाद लोगों को इन डिब्बों से जुड़ाव जरूर महसूस होगा, कम से कम मुझे तो हो रहा है। वैसे, सर! एक कहावत है न कि beauty lies in the eyes of the beholder इस पोस्ट में वही खूबसूरती है।
Sahi kaha Himanshu...
very interesting sir
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