आज मंथन से पहले मैं आप लोगों को एक छोटी सी सच्ची कहानी बता रहा हूं। 28 मई की रात करीब डेढ़ बजे मैं अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन पर था। दीदी आर्इं थी। वापसी की ट्रेन गोल्डन टेंपल रात दो बजे के करीब थी। गाड़ी से सामान उतारकर कुली को खोजने लगा। पास में ही दो कुली मिले। एक सो रहा था, दूसरा लेटा हुआ आसमान को निहार रहा था। मैंने उसे चलने को कहा। सामान के पास आया निरीक्षण किया। बोला तीनों बैग के डेढ़ सौ रुपए लूंगा। मैंने हामी भरी। इतने में वह सोए हुए कुली के पास चला गया और उसे उठाने लगा। मैंने सोचा तीनों बैग उठाने के लिए वह एक और कुली लेकर आ गया। अब वह तीन सौ चार्ज करेगा। मैंने तत्काल उसे बोला, भाई मुझे एक ही कुली चाहिए। उसने तत्काल मेरी मनोदशा भांप ली और बोला सर आपसे डेढ़ सौ ही लूंगा। खैर दोनों ने मिलकर सामान उठा लिया। मेरे हाथ में छोटा सा हैंड बैग था, उसने वह भी मुझसे ले लिया। कहा आप बच्चों का हाथ पकड़ लीजिए। प्लेटफॉर्म नंबर दो पर ट्रेन थी। हम वहां पहुंचकर वेट करने लगे। दोनों कुली भी आस पास ही टहलने लगे। रात दो बजकर दस मिनट पर ट्रेन आई। दोनों ने बड़े ही शालीन तरीके से सामान बोगी के अंदर पहुंचाया। सामान को सीट के नीचे तसल्लीबख्श रखा और ट्रेन से उतर आए। नीचे आने पर एक कुली को डेढ़ सौ रुपया थमाया। दोनों चले गए। ट्रेन भी करीब पांच मिनट रूक कर चली गई।
ट्रेन तो रुख्सत हो गई, पर जो सवाल मेरे मन में थे वो कहीं से भी रुख्सत होने का नाम नहीं ले रहे थे। सवाल एक ही था, आखिर ऐसा क्या था कि उस कुली ने इतने कम सामान के लिए एक और कुली किया। फिर अपने डेढ़ सौ रुपए में से मजदूरी भी शेयर की होगी। इसी उधेड़बुन में प्लेटफॉर्म से बाहर आ गया। मेरी नजरें चारों तरफ उसी दोनों कुली को खोज रही थी। गाड़ी स्टार्ट करने के बाद भी मैंने बढ़ाई नहीं। गाड़ी बंद कर फिर से उन दोनों को खोजने निकल गया। जहां उन दोनों को मैंने पहली बार देखा था, वहीं पहले वाला कुली मिल गया। मेरे सामने आते ही वह चौंक गया। बोला क्या हुआ बाबूजी आप गए नहीं। मैंने उससे पूछा क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूं। उसने कहा, पूछिए क्या पूछना है। सबसे पहले उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम टोनी बताया। मैंने कहा टोनी यह बताओ मेरे पास सामान भी अधिक नहीं था, फिर भी तुमने अपने साथी को क्यों बुलाया। अपनी आधी मजदूरी भी उसे दे दी। टोनी की आंखें डबडबा गई। बोला सर दरअसल हमारा टर्म रात का है। आधी रात गुजर गई थी, हम दोनों की बोहनी (मजदूरी की शुरुआत) तक नहीं हुई थी। आप पहले पैसेंजर थे, जिन्हें कुली की जरूरत महसूस हुई थी। मेरा साथी तो हताश होकर सो गया था। मैंने उसे इसलिए साथ कर लिया चलो 75-75 रुपए तो दोनों को मिलेंगे। कहीं पूरी रात कोई पैसेंजर नहीं मिलता तो मेरे दोस्त को भी खाली हाथ ही घर जाना पड़ता। सुबह बच्चे भी इंतजार करते हैं हमारे घर आने का। अब आंखे डबडबाने की बारी मेरी थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या आज कुलियों की स्थिति ऐसी हो गई है। बार-बार यह खबरें सुनने में आती हैं कि अपनी मांगों को लेकर कुली हड़ताल कर रहे हैं। पर आज उनकी हड़ताल का असली मतलब और दर्द समझ में आया।
भारत में कुलियों का अस्तित्व तब से है जब भारत में रेल का पदार्पण हुआ। 164 वर्ष पुरानी रेल की व्यवस्था में बहुत कुछ बदला। कुलियों की वर्दी बदली। व्यवस्थाएं बदली। लाइसेंस सिस्टम शुरू हुआ। पर नहीं बदले तो सिर्फ कुलियों के हालात। जो मुफलिसी के हालात वर्षों पहले कायम थे आज भी उसी हालात में हैं भारतीय कुली। टोनी और उसके साथियों से हुई चर्चा के बाद कई ऐसे पहलू सामने आए जो आपको भी मंथन करने को मजबूर कर देंगे। स्टेशन पर सुविधाएं बढ़ती गर्इं। यात्रियों के आवागमन के लिए स्वचालित सीढ़ियां आ गर्इं। ट्रॉली वाले बैग ने भी यात्रियों को सुविधाएं दीं। बैट्री वाली गाड़ियों ने पैसेंजर्स को आराम दिया। ऐसे में सबसे अधिक प्रभावित कुली हुए। वर्षों से उनके मजदूरी के रेट रिवाइज नहीं हुए। लाइसेंस भी अधिक संख्या में दिए जाने लगे। ऐसे में कुलियों की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन उनकी कमाई बेहद कम होती गई। कमाई घटने के कारण ही कई स्टेशनों पर कुली कई दूसरे तरह के कामों में भी व्यस्त हो गए हैं। सीटों की अवैध बिक्री, जनरल डिब्बों में चढ़ाने के लिए पैसे लेना जैसे कुछ ऐसे काम भी कुली करने लगे हैं जो अपराध की श्रेणी में आते हैं। पर पेट की मजबूरी उन्हें इस तरह के अपराध करने को विवश करने लगी है।
हर रेलवे बजट से कुलियों को अपने उत्थान के लिए बहुत उम्मीदें रहती हैं। पर उन्हें हर बार निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे में कुलियों ने पिछले साल से अपनी मांगों के लिए देशव्यापी आंदोलन शुरू कर रखा है। उनकी एक प्रमुख मांग कुलियों को रेलवे में गु्रप डी में शामिल करना है। साथ ही मेडिकल की सुविधा और बच्चों की पढ़ाई भी प्रमुख मांगों में से है। केंद्र सरकार जहां एक तरफ सबसे उपेक्षित वर्गों के कल्याण के लिए तमाम योजनाओं का संचालन करती है, वहीं अगर कुलियों की तरफ नजर उठाएं तो उनके लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसमें वे अपना जीवन सुरक्षित कर सकें। बड़े स्टेशनों पर तो कुलियों की स्थिति थोड़ी बहुत ठीक भी है, लेकिन छोटे स्टेशनों पर इनकी स्थिति बेहद चिंताजनक है। पूरे देश के कुली एक बार फिर से दिल्ली में जुटने की तैयारी में हैं। संभवत: जुलाई में इनकी राष्टÑव्यापी हड़ताल हो, ताकि वो अपनी मांगों के प्रति केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करवा सकें।
कुलियों के स्टेशन पर न होने की स्थिति में होने वाली परेशानियों से रेलवे पूरी तरह वाकिफ है। बावजूद इसके उनके विकास और उत्थान के लिए कोई कारगर कदम उठाने के प्रति संवेदनहीन बनी हुई है। मंथन करने का समय है कि क्या वह हमारे समाज का हिस्सा नहीं हैं। जब सामान्य मजदूरों की भी न्यूनतम मजदूरी और सौ दिन काम जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। मनरेगा जैसी स्कीम लागू की जा सकती है, तो क्यों नहीं कुलियों के लिए भी कोई सार्थक कदम उठाया जाए।
चलते-चलते
फिल्मी दुनिया के दो महानायक हैं जिन्होंने रीयल और रील लाइफ में कुली का किरदार निभाया है। अपनी मुफलिसी के दिनों में रजनीकांत ने कुली तक का काम किया, जबकि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने फिल्म कुली में अपना ऐतिहासिक किरदार निभाया। इसी फिल्म में शायद पहली बार कुलियों की जिंदगी पर कोई गाना लिखा गया, जिसके बोल थे.. सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं लोग जाते हैं हम यहीं पर खड़े रह जाते हैं। यह बोल आज भी प्रासंगिक हैं। लोग आए गए, सरकारें आई गई पर कुली आज वहीं खड़े हैं जहां 164 साल पहले खड़े थे। उसी मुफलिसी और बेकदरी के आलम में।
ट्रेन तो रुख्सत हो गई, पर जो सवाल मेरे मन में थे वो कहीं से भी रुख्सत होने का नाम नहीं ले रहे थे। सवाल एक ही था, आखिर ऐसा क्या था कि उस कुली ने इतने कम सामान के लिए एक और कुली किया। फिर अपने डेढ़ सौ रुपए में से मजदूरी भी शेयर की होगी। इसी उधेड़बुन में प्लेटफॉर्म से बाहर आ गया। मेरी नजरें चारों तरफ उसी दोनों कुली को खोज रही थी। गाड़ी स्टार्ट करने के बाद भी मैंने बढ़ाई नहीं। गाड़ी बंद कर फिर से उन दोनों को खोजने निकल गया। जहां उन दोनों को मैंने पहली बार देखा था, वहीं पहले वाला कुली मिल गया। मेरे सामने आते ही वह चौंक गया। बोला क्या हुआ बाबूजी आप गए नहीं। मैंने उससे पूछा क्या मैं तुमसे बात कर सकता हूं। उसने कहा, पूछिए क्या पूछना है। सबसे पहले उसका नाम पूछा। उसने अपना नाम टोनी बताया। मैंने कहा टोनी यह बताओ मेरे पास सामान भी अधिक नहीं था, फिर भी तुमने अपने साथी को क्यों बुलाया। अपनी आधी मजदूरी भी उसे दे दी। टोनी की आंखें डबडबा गई। बोला सर दरअसल हमारा टर्म रात का है। आधी रात गुजर गई थी, हम दोनों की बोहनी (मजदूरी की शुरुआत) तक नहीं हुई थी। आप पहले पैसेंजर थे, जिन्हें कुली की जरूरत महसूस हुई थी। मेरा साथी तो हताश होकर सो गया था। मैंने उसे इसलिए साथ कर लिया चलो 75-75 रुपए तो दोनों को मिलेंगे। कहीं पूरी रात कोई पैसेंजर नहीं मिलता तो मेरे दोस्त को भी खाली हाथ ही घर जाना पड़ता। सुबह बच्चे भी इंतजार करते हैं हमारे घर आने का। अब आंखे डबडबाने की बारी मेरी थी। मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या आज कुलियों की स्थिति ऐसी हो गई है। बार-बार यह खबरें सुनने में आती हैं कि अपनी मांगों को लेकर कुली हड़ताल कर रहे हैं। पर आज उनकी हड़ताल का असली मतलब और दर्द समझ में आया।
भारत में कुलियों का अस्तित्व तब से है जब भारत में रेल का पदार्पण हुआ। 164 वर्ष पुरानी रेल की व्यवस्था में बहुत कुछ बदला। कुलियों की वर्दी बदली। व्यवस्थाएं बदली। लाइसेंस सिस्टम शुरू हुआ। पर नहीं बदले तो सिर्फ कुलियों के हालात। जो मुफलिसी के हालात वर्षों पहले कायम थे आज भी उसी हालात में हैं भारतीय कुली। टोनी और उसके साथियों से हुई चर्चा के बाद कई ऐसे पहलू सामने आए जो आपको भी मंथन करने को मजबूर कर देंगे। स्टेशन पर सुविधाएं बढ़ती गर्इं। यात्रियों के आवागमन के लिए स्वचालित सीढ़ियां आ गर्इं। ट्रॉली वाले बैग ने भी यात्रियों को सुविधाएं दीं। बैट्री वाली गाड़ियों ने पैसेंजर्स को आराम दिया। ऐसे में सबसे अधिक प्रभावित कुली हुए। वर्षों से उनके मजदूरी के रेट रिवाइज नहीं हुए। लाइसेंस भी अधिक संख्या में दिए जाने लगे। ऐसे में कुलियों की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन उनकी कमाई बेहद कम होती गई। कमाई घटने के कारण ही कई स्टेशनों पर कुली कई दूसरे तरह के कामों में भी व्यस्त हो गए हैं। सीटों की अवैध बिक्री, जनरल डिब्बों में चढ़ाने के लिए पैसे लेना जैसे कुछ ऐसे काम भी कुली करने लगे हैं जो अपराध की श्रेणी में आते हैं। पर पेट की मजबूरी उन्हें इस तरह के अपराध करने को विवश करने लगी है।
हर रेलवे बजट से कुलियों को अपने उत्थान के लिए बहुत उम्मीदें रहती हैं। पर उन्हें हर बार निराशा ही हाथ लगती है। ऐसे में कुलियों ने पिछले साल से अपनी मांगों के लिए देशव्यापी आंदोलन शुरू कर रखा है। उनकी एक प्रमुख मांग कुलियों को रेलवे में गु्रप डी में शामिल करना है। साथ ही मेडिकल की सुविधा और बच्चों की पढ़ाई भी प्रमुख मांगों में से है। केंद्र सरकार जहां एक तरफ सबसे उपेक्षित वर्गों के कल्याण के लिए तमाम योजनाओं का संचालन करती है, वहीं अगर कुलियों की तरफ नजर उठाएं तो उनके लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसमें वे अपना जीवन सुरक्षित कर सकें। बड़े स्टेशनों पर तो कुलियों की स्थिति थोड़ी बहुत ठीक भी है, लेकिन छोटे स्टेशनों पर इनकी स्थिति बेहद चिंताजनक है। पूरे देश के कुली एक बार फिर से दिल्ली में जुटने की तैयारी में हैं। संभवत: जुलाई में इनकी राष्टÑव्यापी हड़ताल हो, ताकि वो अपनी मांगों के प्रति केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करवा सकें।
कुलियों के स्टेशन पर न होने की स्थिति में होने वाली परेशानियों से रेलवे पूरी तरह वाकिफ है। बावजूद इसके उनके विकास और उत्थान के लिए कोई कारगर कदम उठाने के प्रति संवेदनहीन बनी हुई है। मंथन करने का समय है कि क्या वह हमारे समाज का हिस्सा नहीं हैं। जब सामान्य मजदूरों की भी न्यूनतम मजदूरी और सौ दिन काम जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। मनरेगा जैसी स्कीम लागू की जा सकती है, तो क्यों नहीं कुलियों के लिए भी कोई सार्थक कदम उठाया जाए।
चलते-चलते
फिल्मी दुनिया के दो महानायक हैं जिन्होंने रीयल और रील लाइफ में कुली का किरदार निभाया है। अपनी मुफलिसी के दिनों में रजनीकांत ने कुली तक का काम किया, जबकि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने फिल्म कुली में अपना ऐतिहासिक किरदार निभाया। इसी फिल्म में शायद पहली बार कुलियों की जिंदगी पर कोई गाना लिखा गया, जिसके बोल थे.. सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं, लोग आते हैं लोग जाते हैं हम यहीं पर खड़े रह जाते हैं। यह बोल आज भी प्रासंगिक हैं। लोग आए गए, सरकारें आई गई पर कुली आज वहीं खड़े हैं जहां 164 साल पहले खड़े थे। उसी मुफलिसी और बेकदरी के आलम में।
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