Tuesday, July 3, 2018

अफवाहों के व्हाट्सएप युग में हत्याओं का दौर


मंथन से पहले आप इन खबरों पर एक नजर दौड़ाएं।
असम (30 जून 2018) : राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बच्चा चोर की अफवाह ने तीन लोगों की जान ले ली। भीड़ ने त्रिपुरा सूचना एवं संस्कृति विभाग के एक सदस्य सहित दो लोगों की पीट पीटकर हत्या कर दी। हद तो यह कि सूचना एवं संस्कृति विभाग के कर्मचारी सुकांत चक्रवर्ती उस टीम के सदस्य थे जो अफवाहों को रोकने के खिलाफ अभियान चला रहे थे।
कर्नाटक (24 मई 2018) : यहां बेंगलुरु की एक मलिन बस्ती में सोशल मीडिया के जरिए अफवाह फैली कि वहां बच्चे चुराने वाले घूम रहे हैं। इस अफवाह का शिकार राजस्थान से वहां काम करने पहुंचे मजदूर कालू राम बन गए। भीड़ ने उन्हें सिर्फ इसलिए मार दिया, क्योंकि वे कथित तौर पर, कुछ बच्चों को चॉकलेट और मिठाई देते देखे गए थे।
तमिलनाडु (9 मई 2018) : यहां के अथिमूर गांव में एक वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में दो बाइक सवार लोग एक बच्चे को छीनकर ले जा रहे थे। वह वीडियो पाकिस्तान का था जो लोगों को ऐसी घटनाओं से बचाने के लिए सावधान करने के लिए बनाया गया था, लेकिन उसे ऐसे पेश किया गया कि जैसे वह सचमुच तमिलनाडु का ही है। इसका शिकार एक परिवार बन गया, जिन्हें लोगों ने कुछ बच्चों को चॉकलेट देते देखा था। घटना में रुकमणी नाम की महिला को लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला था। उनके परिवार के अन्य कुछ लोग भी जख्मी हुए थे।
झारखंड (18 मई 2017) : यहां अफवाह फैली कि राज्य में बच्चा चोरों के गिरोह का बोलबाला हो गया है। 8 लोग सावधान करते इस मैसेज की भेंट चढ़ गए थे। वहां अलग-अलग जगहों पर हुर्इं घटनाओं में ये लोग मारे गए थे। भीड़ में मौजूद लोगों ने बताया था कि उन्हें फोन पर मैसेज मिला था कि बच्चा चोरों को पकड़ा गया है, जिसे पढ़कर वे बताई गई जगहों पर एकत्रित हो गए।
मंथन करिए हम व्हॉट्सएप के किस युग में जी रहे हैं। क्या इस युग की किसी ने कल्पना की थी कि सूचना के आदान प्रदान करने का सबसे बेहतर साधन बनने के साथ-साथ हम हत्याओं के दौर तक पहुंच जाएंगे। वह भी एक अदद अफवाह वाले बे सिर पैर के मैसेज से।
त्रिपुरा की घटना ने एक ऐसा संदेश दे दिया है कि अगर अभी हम नहीं संभले तो आने वाले समय में स्थिति और भी भयावह होती जाएगी। त्रिपुरा में जिस तरह सूचना और संस्कृति विभाग के कर्मचारी सुकांत को मार दिया गया वह बेहद अफसोस जनक है। वह उस टीम का हिस्सा थे जो गांव-गांव जाकर लोगों को अफवाहों से बचने का संदेश दे रहे थे। उन्हें क्या पता था कि जिस अफवाह को रोकने के लिए वो दिन रात एक कर रहे हैं वही अफवाह उनके लिए काल बन जाएगी। लोगों ने एक वायरल मैसेज को सच मानते हुए सुकांत चक्रवर्ती को बच्चा चोर मान लिया। उनके साथ दो अन्य लोग भी इसी तरह की झूठी अफवाह की बलि चढ़ गए। फिलहाल त्रिपुरा सरकार ने राज्य में इंटरनेट सेवा को पूरी तरह बंद कर रखा है ताकि अफवाह और न फैले।
पर मंथन का वक्त है कि सूचना के इस युग में क्या सिर्फ इंटरनेट बंद कर देने से सरकार की जिम्मेदारियां पूरी हो जाती हैं। क्या सिर्फ इंटरनेट बंद कर देने से लोगों की मानसिकता में बदलाव लाया जा सकता है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हमारे देश में सूचना क्रांति का नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है। कश्मीर में सूचना क्रांति और इंटरनेट की सुलभता ने आतंकवादियों और दहशतगर्दों को एक ऐसा हथियार मुहैया करा दिया है जो एके 47 से भी घातक है। वो अपने वायरल मैसेजेज के जरिए बेरोजगार युवकों के दिलो दिमाग पर कब्जा कर रहे हैं। हर तरफ हिंदु-मस्लिम का एक ऐसा कॉकटेल प्रस्तुत किया जा रहा है जिसने पूरे देश को सांप्रदायिकता के नशे में डूबो रखा है। सोशल मीडिया पर हरेक दूसरा मैसेज सांप्रदायिक ही दिखता है। शायद इसी नशे का नतीजा है कि त्रिपुरा के ही मोहनपुर में उत्तर प्रदेश के तीन लोगों पर भीड़ ने बच्चा चोरी का आरोप लगाकर हमला कर दिया। यहां बताना जरूरी है कि इन तीनों पर हमला इसलिए भी हुआ क्योंकि वे सभी मुस्लिम समुदाय से आते थे। भीड़ ने जहीर खान को पीट पीटकर मार दिया, जबकि उसके दो साथी गुलजार और खुर्शीद जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। कुछ दिन पहले ही गुजरात के अहमदाबाद में करीब 700 लोगों की भीड़ ने एक 45 वर्षीय महिला भिखारी को पीट पीटकर मार डाला। भीड़ को शक था कि यह महिला बच्चों की चोरी करती है।
फर्जी खबरों या अफवाहों को सोशल मीडिया के आने से जैसे पंख लग गए हैं। पलभर में कोई खबर ऐसी वायरल होती है कि लोगों को सोचने समझने का भी मौका नहीं मिलता और वे रिएक्ट करने लगते हैं। इंटरनेट की सुलभता ने इस सूचना क्रांति में जबर्दस्त योगदान दिया है। हद तो यह है कि विदेशों में बने वीडियो भी लोग अपने अपने तरीके से फैलाते हैं। चाहे वह छेड़छाड़ का वीडियो हो या फिर अन्य किसी घटना का। अफवाह फैलाने वालों के मकसद को समझने की जरूरत है।
भारत में सोशल मीडिया के प्रति लोगों का रुझान जिस तरह पिछले तीन सालों में बढ़ा है वह हैरान करने वाला है। पर विडंबना यह है कि इस सोशल मीडिया के एडिकेट्स लोगों को नहीं पता हैं। यह कहने में गुरेज नहीं कि हमने इसके लिए कोई एडिकेट्स ही तय नहीं किए हैं। अपनी समझदारी के अनुसार हम लाइक, शेयर, कमेंट्स करते हैं। हद तो यह है कि अगर किसी ने अपने परिजन के मौत की खबर भी सोशल मीडिया में डाल दी तो लोग उसे धड़ाधड़ लाइक करते मिल जाएंगे। सोशल मीडिया के दौर में अब समय आ चुका है कि हम इसके एडिकेट्स तय करें। हम सभी को मिलकर इसके एडिकेट्स तय करने होंगे। हो सकता है इन एडिकेट्स को लेकर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं मिलें, पर बिना इसकी परवाह किए हम अपने-अपने अनुसार एडिकेट्स तय करें और इसे सोशल मीडिया में डालें। इस विश्वास के साथ कि आने वाले समय में हमारा यह छोटा सा प्रयास किसी बड़ी क्रांति को जन्म देगा।
मुख्यधारा की मीडिया ने एक अच्छी पहल करते हुए सोशल मीडिया के कंटेंट्स को रिव्यू करना शुरू किया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लगभग सभी चैनल्स ने वायरल मैसेज और वीडियो की छानबीन शुरू कर दी है, ताकि लोगों को अफवाहों से बचाया जा सके। इस तरह का प्रयास हमें भी शुरू करना चाहिए। हमारे पास भी अगर कोई बिना सिर पैर के मैसेज वीडिया या सूचना आती है तो लाइक शेयर और कमेंटस से पहले उस पर विचार जरूर करें। सिर्फ एक दूसरे की देखा-देखी करके उसे आगे बढ़ाने से बचें। सांप्रदायिकता फैलाने वाले मैसेज को पाते ही डिलिट करें। जिस संदेश में भी आपको अफवाह लगे उसे आगे बढ़ाने से रोकें। पूरे देश में व्हाट्सएप के इस युग में हत्याओं का दौर सिर्फ इसलिए शुरू हो गया है क्योंकि हम अनजान बने बैठे हैं। हो सकता है अगली बारी हमारी भी हो। इसलिए अभी से मंथन करें और आने वाले खतरे को हल्के में मत लें।
चलते चलते
महाराष्ट के धुले जिले में रविवार को अफवाह पर ही पांच लोगों की हत्या कर दी गई। कुछ दिन से अफवाह थी कि जिले के रैनपाड़ा इलाके में बच्चा चोर सक्रिय है। रविवार को भी इलाके में बच्चा चोरी होने की अफवाह फैल गई। ग्रामीणों को उन पांच लोगों पर शक हुआ और उन्होंने पांचों को र्इंटों से पीट-पीटकर मार डाला।

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