Monday, May 15, 2017

कश्मीरी युवाओं को संदेश देकर अमर हो गए उमर


कश्मीर की घाटियों में जहां मांओं की कोख से कई आतंकी जन्म ले रहे हैं, वहीं इन मांओं ने एक से बढ़कर एक सूरवीर दिए हैं। उन्हीं में से एक वीर का नाम था शहीद लेफ्टिनेंट उमर फैयाज। उमर फैयाज से जुड़ी कई इनसाइड स्टोरी है, लेकिन सबसे बड़ी कहानी यही है कि तमाम धमकियों के बावजूद उन्होंने भारत मां की सेवा का रास्ता अख्तियार किया। आज भले ही उमर फैयाज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी शहादत ने कश्मीर के युवाओं को बड़ा संदेश देकर उमर को अमर कर दिया है। साथ ही सियासतजदांओं को मंथन करने पर मजबूर कर दिया है कि कश्मीर को सिर्फ एक नजर से देखने की जरूरत नहीं है।
आज से 26 साल पहले भी उमर फैयाज की तरह एक अधिकारी की हत्या आतंकियों ने की थी। वह साल 1991 का था। उस वक्त हालात इतने खराब नहीं थे। फिर भी आतंकी संदेश देना चाहते थे कि अगर कश्मीर के युवाओं ने सेना या पुलिस का साथ दिया तो उनका क्या हाल होगा। बड़गाम में लेफ्टिनेंट कर्नल और उनके भतीजे को अगवा कर लिया गया था, बाद में उनकी हत्या कर दी गई। इस वारदात के 26 साल बाद आतंकियों ने वही स्ट्रेटजी अपनाई है। युवा लेफ्टिनेंट को शादी के घर से अगवा कर लिया गया। रात भर प्रताड़ना देने के बाद सुबह काफी नजदीक से उन्हें गोली मार दी गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि उमर की हत्या से पहले से उसे काफी प्रताड़ित किया गया था।
उमर की हत्या से बड़ा सवाल पैदा हुआ है। सवाल है कि आखिर आतंकी क्या चाहते हैं? आखिर 26 साल बाद किसी सैन्य अधिकारी को अगवा कर मार कर वे क्या संदेश देना चाहते हैं। वह भी उस सैन्य अधिकारी को जो उनके ही गांव का था। उनकी ही कौम का था। उनके ही बीच से निकला हुआ था। दरअसल यह बदलते कश्मीर का सच है। आज जम्मू कश्मीर में दो तरह के हालात हैं। पहला हालात वह है जो आए दिन टीवी चैनलों पर दिखाया जाता है। पत्थरबाज लड़के और लड़कियों की वीडियो धड़ाधड़ वायरल की जा रही हैं। क्या वहां पत्थर पहले नहीं फेंके जाते थे? पर इस तरह वीडियो वायरल नहीं होते थे। हाल के महीनों में देखा जाए तो इस तरह के वीडियो से सोशल मीडिया अटा पड़ा है। टीवी पर भी इस तरह के वीडियो दिखाकर लंबी-लंबी बहसों का दौरा शुरू हो जाता है। आखिर ऐसा कैसे हो गया। क्या यह सब अचानक है या फिर प्लांड तरीके से यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि कश्मीर में स्थितियां लगातार और अधिक खराब हो रही हैं।

पर यह अर्द्धसत्य है। लेफ्टिनेंट उमर की हत्या ने साबित कर दिया है कि तस्वीर का दूसरा पहलू और भी बड़ा है, जो बहस का मुद्दा नहीं बन पा रहा है। न ही यह सोशल मीडिया और टीवी मीडिया पर नजर आ रहा है। दरअसल हाल के दिनों में जिस तरह सेना की भर्ती और पुलिस भर्ती में स्थानीय युवाओं की भीड़ उमड़ रही है उसने आतंकियों के होश उड़ा रखे हैं। इतनी अधिक तादात में युवाओं की उमड़ रही भीड़ ने काफी बड़ा संदेश दे दिया है। लेफ्टिनेंट उमर की हत्या इसी का परिणाम है। आतंकी यह संदेश देना चाह रहे हैं कि अगर यहां के युवाओं ने सेना में जाने की सोची तो उनके साथ भी यही होगा। शहीद लेफ्टिनेंट को भी सेना में जाने से रोका गया था। उसे धमकी दी गई थी।
अब सवाल यह है कि क्यों नहीं भारत सरकार कश्मीर के उस पक्ष को मीडिया में बहस का मुद्दा बनने देना चाह रही है। क्यों नहीं वैसी वीडियो को वायरल करवा दिया जा रहा है जिसमें पूरी दुनिया देखे की यहां के युवा सिर्फ पत्थर फेंकना नहीं जानते हैं, वे भारत के लिए जान देने को भी तैयार हैं। क्यों नहीं सेना भर्ती और पुलिस भर्ती के लिए घंटों लाइन में लगे युवाओं की तस्वीरें सोशल मीडिया में आ रही हैं। दहशतगर्त और अलगाववादी अगर पत्थरबाज लड़के और लड़कियों के वीडियो वायरल कर यह दिखाने की कोशिश कर हैं कि देखिए यहां के युवा सरकार, प्रशासन, पुलिस और सेना से कितने नाराज हैं। तो ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता कि सरकार उन युवाओं की भीड़ के वीडियो वायरल करे जिसमें पूरी दुनिया उन्हें रोजगार और बेहतर जिंदगी के लिए लाइन में घंटों खड़ा देखे। सरकार को मंथन करना चाहिए। 

मंथन इस बात पर भी होना चाहिए कि कश्मीर की लड़ाई अब बंदूक और गोलियों से अधिक मनोवैज्ञानिक बन चुकी है। कश्मीर में अगर एक तरफ गोलियों और बमों के धमाकों में कमी आई है तो कैसे पत्थरबाजों का गुट सामने आ गया। जिस तरह मूंह पर कपड़े बांधे कश्मीरी लड़कियों की तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं यह और भी अधिक चिंताजनक स्थिति है। अब इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि वहां के दहशतगर्त कश्मीर को लेकर मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ने की स्थिति में हैं। पूरी दुनिया को वह दिखाना चाह रहे हैं कि कश्मीर में हालात बहुत खराब हैं। युवा नाराज हैं। स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं नाराज हैं।
कश्मीर को लेकर सरकार को फिर से नए नजरिए से सोचने की जरूरत है। कश्मीर में हालात काबू में हैं इसीलिए लाल चौक पर पिछली बार धमाका कब हुआ था यह किसी को याद नहीं, लेकिन मनौवैज्ञानिक तौर पर हम कश्मीर से दूर होते जा रहे हैं। भावनात्मक तौर पर भी पूरी दुनिया में कश्मीरी युवाओं की बेहद कू्रर तस्वीर उभर रही है। पर शहीद उमर फैयाज ने खुद को बलिदान कर कश्मीर के युवाओं को बड़ा संदेश दे दिया है। यह वह संदेश है जिसे लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

Monday, May 8, 2017

अगर तू दोस्त है तो फिर खंजर क्यूं है हाथों में

यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जिस आम आदमी पार्टी को दिल्ली फतह के बाद देश में तीसरे राजनीतिक विकल्प के रूप में देखा जाना लगा था, वह चंद दिनों में ही अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने को मजबूर हो रही है। हाल के दिनों में हर तरफ मिली करारी हार के बाद पार्टी के अपने ही लोग एक दूसरे के खिलाफ खंजर निकाल कर खड़े हैं। एक तरफ दोस्त और दोस्ती की दुहाई देकर एक दूसरे को बचाने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बगावती तेवर भी सबको सोचने पर मजबूर कर रहा है। जिस तरह शनिवार को आप के कभी विश्वासपात्र रहे कपिल मिश्रा ने आम आदमी पार्टी के सर्वे सर्वा के खिलाफ मोर्चा खोला है उसने मंथन करने पर मजबूर कर दिया है कि क्या इन्हीं दिनों के लिए दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिया था?
यह सर्वविदित था कि पंजाब चुनाव और उसके बाद दिल्ली नगर निगम चुनाव के बाद आप के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगेंगे। पर यह प्रश्नचिह्न इतनी जल्दी लगेगा इसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। पार्टी की नकारात्मक और आरोप-प्रत्यारोप वाली राजनीति ने पहले की इसकी छवि को जोरदार नुकसान पहुंचाया था। रही सही कसर दिल्ली नगर निगम चुनाव में निकल गई। पूरी तरह हिटलरशाही का तमगा हासिल कर चुके पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह चुनाव प्रचार में दिल्ली के लोगों को हड़काने वाले अंदाज में वोट देने की अपील की थी, उसी दिन तय हो गया था कि आने वाले दिनों में आप का भविष्य क्या होगा। आप की छवि देश को बांटने वाली राजनीति और अवसरवादी राजनीति का पर्याय बन चुकी है। इन सभी को दरकिनार भी कर दिया जाए तो जिस भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी ने राजनीतिक गद्दी मांगी थी अब उसी पार्टी पर भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबने के आरोप लग रहे हैं।
कभी आम आदमी पार्टी के सबसे विश्वासपात्र लोगों में गिने जाने वाले कपिल मिश्रा को जैसे ही उनके पद से हटाने का ऐलान हुआ उन्होंने अपनी भड़ास ट्वीट से निकाली। टैंकर घोटाले में शनिवार को उन्होंने बड़ा खुलासा करने की बात कही थी। रविवार को उनके खुलासे ने राजनीति में भूचाल ला दिया। कपिल मिश्रा ने सीधे-सीधे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर नगद रुपए लेने का आरोप जड़ दिया है। कपिल ने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल ने उनके सामने सतेंद्र जैन से दो करोड़ रुपए लिए। अब इस आरोप में कितना दम है यह तो आने वाला वक्त तय करेगा, लेकिन इस आरोप ने दिल्ली की राजनीति को अंदर से हिला कर रख दिया है। सबसे ज्यादा झटका तो दिल्ली की जनता को लगा है, क्योंकि इसी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए उन्होंने आम आदमी पार्टी को सिर आंखों पर बैठाया था।
वर्ष 2015 और 2017 के बीच सिर्फ दो साल में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ने दिल्ली में अपना करीब पचास प्रतिशत जनाधार खो दिया है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जहां 54.3 प्रतिशत मतों के साथ आप प्रचंड वेड से सत्ता में आई थी, वहीं 2017 के निगम चुनाव में यह प्रतिशत मात्र 26.2 प्रतिशत पर आकर रूक गया है। ऐसे में मंथन करना जरूरी है कि आखिर ऐसा क्या किया है आम आदमी पार्टी ने कि दिल्ली की जनता का उन्होंने विश्वास खो दिया है।
दरअसल यह एक दिन की कहानी नहीं है। इस पतन की कहानी उसी दिन शुरू हो गई थी जब अरविंद केजरीवाल ने अघोषित रूप से खुद को सबसे बड़ा ईमानदार व्यक्ति प्रचारित और प्रसारित करवाते हुए पार्टी पर कब्जा कर लिया था। पार्टी बनने से पूर्व इस युवा संगठन में जितने भी बड़े चेहरे थे सभी को एक-एक कर बाहर निकालकर केजरीवाल ने पार्टी में हिटलरशाही के एक नए युग की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने अपने आसपास चाटुकारों की ऐसी फौज खड़ी कर ली, जो अच्छे और बूरे की पहचान न कर सके। अन्ना हजारे के साथ राष्टÑवाद के नाम पर देश को आंदोलित करने वाले लोगों ने जब भारत मां तेरे हजार टुकड़े होंगे का समर्थन किया तब लगने लगा कि पार्टी अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। सेना के जिस सर्जिकल स्ट्राइक पर पूरा देश गर्व कर रहा था उस सर्जिकल स्ट्राइक पर पहला सवालिया निशान लगाने वाले केजरीवाल ही थे। केजरीवाल ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा होने वाला एक मात्र व्यक्ति के रूप में देखना शुरू कर दिया। यही कारण था कि मोदी के नाम पर उनकी राजनीति शुरू होती थी और मोदी के नाम पर उनकी राजनीति खत्म होती थी। पंजाब और गोवा चुनाव में इसकी परिणति सामने आई। इससे पहले मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में केजरीवाल बनारस तक पहुंच गए थे। सवाल उठना लाजिमी था कि केजरीवाल को दिल्ली की जनता ने दिल्ली संभालने के लिए गद्दी सौंपी है, न कि मोदी को हराने की सुपारी लेने के लिए।
लोकसभा चुनाव के बाद थोड़ा संभलने के बाद एक बार फिर केजरीवाल ने मोदी मंत्र का जाप शुरू किया। इस बात निशाना बने दिल्ली के एलजी। केंद्र सरकार के खिलाफ सीधा युद्ध छेड़ दिया गया। ऐसा अहसास करवाने लगे कि केजरीवाल के पहले न कोई दिल्ली का मुख्यमंत्री बना है और न बनेगा। 2013 में राजनीतिक अवसरवादिता का सबसे बड़ा एग्जांपल सेट करते हुए केजरीवाल ने जिस तरह 49 दिनों की सरकार चलाई थी, उसमें वह भूल बैठे थे कि दस साल दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी। इस दौरान कभी एलजी से टकराहट नहीं हुई। बिना टकराहट दिल्ली का विकास ही हुआ। 

अवसरवादी राजनीति का ही परिणाम कहा जाएगा कि भ्रष्टचार के खिलाफ खड़ी हुई एक पार्टी आज खुद की भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोपों से जूझ रही है। सिर्फ दो सालों के अंदर दिल्ली में एंबुलेंस घोटाला, आॅटो परमिट घोटाला, टैंकर घोटाला, प्रीमियम बस सर्विस घोटाला और वीआईपी नंबर प्लेट घोटाला दुनिया के सामने है। सभी में भ्रष्चार के बड़े आरोप लगे हैं। अंगुली सीधे अरविंदर केजरीवाल की तरफ है। सभी में जांच जारी है, ऐसे में केजरीवाल के सबसे विश्वासपात्र रहे कपिल मिश्रा के आरोपोें ने बड़ा सवाल पैदा कर दिया है। केजरीवाल के करीबी कुमार विश्वास हों या कपिल मिश्रा सभी एक दूसरे को भाई-भाई बता रहे हैं। ऐसे में कुमार विश्वास का कुछ दिन पहले किया गया एक ट्वीट काफी प्रासंगिक बन जाता है। यह ट्वीट उन्होंने केजरीवाल से मनमुटाव की खबर बाहर आने के बाद किया था। विश्वास ने लिखा था...
‘‘अगर तू दोस्त है तो फिर ये खंजर क्यूं है हाथों में,
अगर दुश्मन है तो आखिर मेरा सर क्यूं नहीं जाता? ’’