Wednesday, June 26, 2019

ताराकोट मार्ग से मां वैष्णव देवी की यात्रा


जिस धार्मिक स्थल पर करीब एक करोड़ से अधिक लोग हर साल पहुंचते हैं, वहां अगर कोई नई सुविधा मिल जाए तो यह किसी सौगात से कम नहीं है। कुछ ऐसा ही वैष्णव देवी जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए खुला नया मार्ग है। इस नए मार्ग का नाम है ताराकोट मार्ग। 20 जून को मैंने परिवार के साथ इसी मार्ग से यात्रा की। आइए आपको भी लेकर चलता हूं इसी मार्ग से माता के दरबार तक।

दरअसल वैष्णव देवी भवन तक पहुंचने के लिए बेस कैंप कटरा है। यहां से आप तमाम तरीके से 13 किलोमीटर ऊपर त्रिकुटा पर्वत स्थित माता वैष्णव देवी भवन तक पहुंच सकते हैं। सबसे पुराना मार्ग बाणगंगा की तरफ से है। कटरा बस स्टेशन से बाणगंगा तक आप आॅटो के जरिए पहुंच सकते हैं। यहीं से आपको घोड़ा, पालकी और पिठ्ठू की सुविधा मिलती है। श्राइन बोर्ड ने प्री-पेड बूथ स्थापित कर रखे हैं जहां से आप तय राशि देकर कोई सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि भवन पहुंचने वाले करीब अस्सी प्रतिशत लोग पैदल ही भवन तक की 13 किलोमीटर यात्रा पूरी करते हैं। बाणगंगा से अर्द्धकुंवारी तक की दूरी छह किलोमीटर है। फिर यहां से आगे सात किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है, जिसे हाथी मत्था की चढ़ाई कहते हैं। अर्द्धकुंवारी से ही एक नया रास्ता भी बना है जिसे हिमकोटी मार्ग कहते हैं। जिन यात्रियों को हाथी मत्था की खड़ी चढ़ाई नहीं करनी है वह हिमकोटी मार्ग से जा सकते हैं। हिमकोटी मार्ग से घोड़े और खच्चड़ नहीं जाते हैं। वह पुराने मार्ग यानि हाथी मत्था होकर ही जाते हैं। जो सांझी छत की तरफ से जाता है।
अगर आप कटरा से हेलिकॉप्टर सुविधा लेते हैं तो वह हेलिकॉप्टर भी आपको सांझी छत तक ही छोड़ता है। वहां से करीब ढ़ाई किलोमीटर तक आपको पैदल चलना पड़ता है। हालांकि अब सांझी छत से आपको घोड़ा और पालकी की सुविधा भी मिलनी शुरू हो गई है।
ये तो हुई पुराने रास्तों और सुविधाओं की बात। पर अब वैष्णव देवी के श्रद्धालुओं के लिए श्राइन बोर्ड ने नए रास्ते की सौगात दी है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रास्ते का उद्घाटन किया था। यह रास्ता ताराकोट गांव की तरफ से जाता है, जिसे ताराकोट मार्ग कहा जाता है।
यह मार्ग उन यात्रियों के लिए सबसे बेहतर है जो भवन तक की यात्रा पैदल पूरी करना चाहते हैं। कटरा बस स्टैंड से आॅटो जिसमें चार लोग बैठ सकते हैं, दो सौ पांच रुपए देकर आप ताराकोट मार्ग के एंट्री प्वाइंट तक पहुंच सकते हैं। इंट्री गेट तक आॅटो की सुविधा मौजूद है। यहीं से आपको पिठ्ठू मिल जाएगा। इन पिठ्ठुओं के पास अब बच्चों के लिए आधुनिक प्रैंप भी मौजूद रहती है।  पिठ्ठू के रेट भी श्राइन बोर्ड ने तय कर रखे हैं। रेट डिस्पले भी है और प्री-पेड काउंटर भी मौजूद है।
आधुनिक तरीके से तैयार ताराकोट मार्ग
जो यात्री पहली बार वैष्णव देवी की यात्रा कर रहे हैं उनके लिए यह मार्ग बेहद निरस लगेगा। ऐसे में मेरी सलाह है कि वो बाणगंगा होकर पुराना रास्ता ही लें, जिसमें उन्हें बाणगंगा के दर्शन, चरण पादुका मंदिर के दर्शन, अर्द्धकुंवारी के दर्शन होंगे। साथ ही उस मार्ग पर चारों तरफ मौजूद चहल पहल भी देखने को मिलेगी। अगर आप ताराकोट मार्ग से जाते हैं तो आपको थोड़ी निराशा हाथ लगेगी।
ताराकोट मार्ग बेहद आधुनिक तरीके से तैयार किया गया है। यह रास्ता अर्द्धकुंवारी तक सात किलोमीटर तक का है। बता दूं कि बाणगंगा होकर जाने पर दूरी छह किलोमीटर है। अर्द्धकुंवारी से यह मार्ग हिमकोटी वाले मार्ग से जुड़ गया है। जहां से भवन की दूरी सात किलोमीटर है। ताराकोर्ट मार्ग पर न तो घोड़े-खच्चर और न पालकी की सुविधा है। यहां सिर्फ पिठ्ठू ही मौजूद मिलेंगे। जैसा की मैंने बताया कि यह रास्ता बेहद आधुनिक तरीके से बनाया गया है। यह  7 किमी लंबा ये रास्ता बालिनी ब्रिज से अर्द्धकुंवारी को जोड़ता है।
पुराने रास्ते पर कहीं-कहीं ही आपको शेड मिलेंगे, जबकि इस नए रास्ते को 95 प्रतिशत अत्याधुनिक शेड से ठंका गया है। जिससे आप गर्मी, बारिश और बर्फबारी में भी आराम से पैदल यात्रा कर सकते हैं। यह रास्ता काफी चौड़ा है जिससे महिंद्रा पिकअप और एंबूलेंस भी आसानी से आ जा सकती है। इस रास्ते पर अत्याधुनिक एंटी स्किड टाइल्स भी लगाई गई है, जिससे पैदल यात्रियों को काफी सुविधा होती है। साथ ही इस मार्ग पर स्लोप स्टैबेलाइजेशन टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया गया है, ताकि चढ़ाई सरल रहे। सीधे शब्दों में कहें तो चढ़ाई बिल्कुल सामान्य है, खड़ी चढ़ाई नहीं है। बाणगंगा होकर जाने पर आपको बिल्कुल खड़ी चढ़ाई मिलेगी।
ताराकोट मार्ग पर हर दो सौ मीटर पर वॉटर कुलर एटीएम लगाए गए हैं, जहां आरओ का स्वच्छ पानी आपके लिए मुफ्त उपलब्ध है। पूरे रास्ते को मल्टीपर्पज आॅडियो सिस्टम से लैस किया गया है। इस रास्ते में बाणगंगा की तरह आपको जगह-जगह खाने पीने के स्टॉल नहीं मिलेंगे। आधुनिक रूप से तैयार व्यू प्वॉइंट पर आपको कैफेटएरिया मिलेंगे। इस रास्ते में आपको करीब छह व्यू प्वाइंट और कैफेटएरिया मिलेंगे।

ताराकोट में तैयार किया गया पार्क।
रास्ते के मिड प्वाइंट जहां ताराकोट गांव स्थित है वहां पहुंचकर आपको बेहद सुकून मिलेगा। ताराकोट प्वाइंट को बेहद आकर्षक तरीके से सजाया और संवारा गया है। यहां पार्क के अलावा फव्वारे भी लगाए गए हैं। यहीं श्राइन बोर्ड की तरफ से 24 घंटे का फ्री लंगर भी स्थापित किया गया है। लंगर हॉल छोटा है, लेकिन बेहद साफ सुथरा और व्यवस्थित है। इसी लंगर हॉल की साइड में शौचालय भी बनाया गया है। हालांकि लोगों की भीड़ को देखें तो और अधिक शौचालय की जरूरत महसूस होती है।शौचालयों का प्रबंधन भी ठीक नहीं है। फिलहाल यहां साफ सफाई की बेहद कमी है, जबकि रास्ते में पड़ने वाले तमाम शौचायल बेहद साफ सुथरे नजर आए।  यहां से घाटियों का बेहद खूबसूरत नजारा आप देख सकते हैं। यहां पहुंचकर आपकी सारी थकावट दूर हो जाएगी।
तारोकोट में श्राइन बोर्ड का लंगर हॉल।
यहां से अर्द्धकुंवारी की दूरी अधिक नहीं है। अर्द्धकुंवारी से जाने वाले हिमकोटी के नए रास्ते में इस रास्ते को मिला दिया गया है। अर्द्धकुंवारी में अगर आपको दर्शन करना है या रुकना है तो आपको करीब तीन सौ मीटर दूसरी तरफ चलना होगा। यहीं से आपको बैटरी आॅपरेटेड आॅटो की सुविधा भी मिलेगी। पहले सिर्फ बुर्जुगों और दिव्यांगजनों के लिए ही यह सुविधा थी। पर अब कोई भी व्यक्ति यह सुविधा ले सकता है। प्रतिव्यक्ति 357 रुपए का टिकट है। आॅटो सुविधा लेने के लिए आपको लंबा इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि आॅटो सीमित है, जबकि यात्रियों की भीड़ काफी अधिक है। आॅटो भी हिमकोटी वाले पैदल रास्ते से ही संचालित होती है। इसलिए आपको सावधानी के साथ पैदल चलना होता है। अर्द्धकुंवारी से करीब 7 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर आप भवन तक पहुंचते हैं।
भवन से भैरव स्थान जाने के लिए रोपवे की सुविधा।

रोपवे की सुविधा
भवन में मां वैष्णव देवी का दर्शन करने के बाद यात्री भैरव स्थान जाते हैं। भैरव स्थान जाने के लिए बेहद खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती थी, पर अब भवन के पास से ही रोपवे की सुविधा मिल गई है। निर्धारित टिकट प्राप्त कर आप रोपवे से सीधे भैरव स्थान पहुंच सकते हैं। आप रोपवे से या तो दोबारा नीचे आकर हिमकोटी के रास्ते नीचे उतर सकते हैं। या फिर भैरव घाटी होते हुए, पुराने रास्ते हाथी मत्था, अर्द्धकुंवारी होते हुए बाणगंगा तक पहुंच सकते हैं। भैरव घाटी से से आपको नीचे उतरने के लिए घोड़े भी मिल जाएंगे। श्राइन बोर्ड ने यात्रियों की सुविधा के लिए सबसे अधिक ध्यान तमाम चीजों के रोट्स पर दिया है। पहले रेट्स को लेकर यात्री बेहद कंफ्यूज रहते थे। अब सभी के रेट्स निर्धारित हैं। जगह-जगह बोर्ड भी लगे हैं और प्री-पेड काउंटर्स भी हैं।
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Sunday, June 23, 2019

इस एक फल ने सभी को ‘फेल’ कर दिया


कल मैंने फेसबुक पर इस फल की एक तस्वीर डालकर इसके बारे में आप सभी से पूछा था। जबर्दस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली। साथ ही एक साथ इतने सारे फलों के नाम भी जानने को मिले। सभी ने अपनी-अपनी जानकारी के अनुसार नाम सही बताए, क्योंकि इस तरह के मिलते जुलते फल भारत के सभी इलाकों में पाए जाते हैं। खासकर उत्तर भारत में इस तरह के फल देखने को मिलते हैं।

पर यह फल उन सभी फलों में सबसे अलग है। यह राजस्थान का स्पेशल फल ‘काचर’ है। तमाम लोगों ने इस फल को कोहड़ा, कोहड़, काढ़ला, कदिमा, पतिसा, कुम्हड़ा, खबहा, छहुआ कोहड़ा, बरिया कोहणा, ककड़ी बताया। जिन लोगों ने इस फल के नाम बताए वो उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखते हैं। सभी ने एक से बढ़कर एक नए नाम बताए, जो वहां के स्थानीय बोली में प्रचलित हैं। पर जितने भी नाम बताए गए उनमें से अधिकतर का आशय पेठा बनाने वाले फल से था।
पर यह काचर फल उन सभी में से अलग है। यह राजस्थान के रेतिले और बेहद गर्म वाली जगह में पैदा होता है। यह खरबूजे की प्रजाति का ही फल है। पर यह खाने में थोड़ा खट्टापन लिए होता है। जिस तरह आप पपीता को काटते हैं, ठीक उसी तरह जब आप इसे काटेंगे तो आपको पहली झलक में पपीता ही नजर आएगा। पपीते की तरह की बीच में दो भाग होते हैं जिसमें बीज भरा होता है। 
राजस्थान के इलाकों में इस फल को सुखाकर आमचूर की तरह भी प्रयोग में लाया जाता है। स्थानीय लोग इसे सुखाकर इसका पाउडर बनाते हैं और बेचते हैं। जब यह फल होता है तब इसका नाम काचर होता है, लेकिन जब पाउडर बन जाता है तो यह काचरी के नाम से जाना जाता है।
काचर के साथ सबसे मजेदार बात यह है कि काचर को आप कच्चे में सब्जी बनाकर खा सकते हैं। थोड़ा पक जाए तो छिलका उतारकर इसे सलाद के रूप में खा सकते हैं। या फिर आप तरबूज या खरबूज की तरह कभी भी हल्के नमक के साथ खा सकते हैं।  इस फल को लगाने के लिए कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती है। इसकी बेल खेतों में अपने आप उग आती है। जिस तरह पपीते में बीच की बहुतायत होती है और उसके बीज कहीं फेंक दिए जाए तो पेड़ उग आता है। ठीक उसी तरह काचर के साथ भी है। काचर जब कच्चा रहे तो इसकी मसालेदार सब्जी बनाई जाती है। हमारे बिहार में सिलौटी पर लहसून, लाल मिर्च और पीली सरसों पीस कर जो मसाला तैयार होता है उसी तरह के मसाले में अगर इस काचर को बनाया जाए तो मेरे जैसे चटोरों की चांदी हो जाए।

राजस्थान के मेरे मित्र कल अपने फॉर्म हाउस से इसे लेकर आए थे। उन्होंने पिछले दो साल से इस फल का वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन शुरू किया है। बताते हैं कि अभी इस पर रिसर्च भी चल रहा है, इस फल में औषधिय गुण भी प्रचुर मात्रा में है। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में इससे देसी उपचार भी होता है। पेट के लिए यह रामबाण उपाय है। जिनके कब्ज की शिकायत है, या फिर जिनकी पाचन शक्ति कम हो गई। वो अगर रोज सुबह इसका सेवन करें तो चमत्कारिक फायदा होता है। इस फल को खाने के समय सिर्फ एक सावधानी बरतनी होती है कि आप इसे खाने के बाद पानी का सेवन बिल्कुल न करें। हो सके तो आधे घंटे तक पानी न पीएं।
तो अगली बार जब आप राजस्थान की यात्रा पर निकलें तो काचर का स्वाद जरूर लें। भीषण गर्मी में ही आप इसका स्वाद ले सकते हैं।