Friday, September 28, 2018

मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड की इनसाइड स्टोरी -4, एक गद्दार ने की भुटकुन शुक्ला की हत्या





बिहार विधानसभा के 1995 के चुनाव से पहले उत्तर बिहार पर राज करने वाले दो बड़े अंडरवर्ल्ड डॉन मारे जा चुके थे। छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी, जबकि अशोक्र सम्राट को नौ साल सस्पेंड रहे एक इंस्पेक्टर द्वारा किए गए रहस्यमयी पुलिस इनकाउंटर में मार दिया गया था। इन दोनों की हत्या ने एक बात तो स्पष्ट कर दी थी कि बिहार में अंडरवर्ल्ड का राजनीति में प्रवेश आसान नहीं है।

दरअसल 1995 के बिहार विधानसभा से पहले की राजनीतिक पृष्ठभुमि कुछ ऐसी थी कि तमाम बड़े नेता अपराधियों को पालते थे। चुनाव के दौरान इन अपराधियों की सहायता से बूथ कैपचरिंग करवाई जाती थी। लोगों को धमकाया जाता था। बात न मानने वालों की हत्या कर दी जाती थी। उम्मीदवारों तक को धमका कर नामांकन वापस करवा दिया जाता था। उत्तर बिहार इसके लिए सबसे अधिक बदनाम रहा था। अपराधियों के लिए भी राजनीतिक सेल्टर बेहद जरूरी बन गया था, क्योंकि इसी की छत्रछाया में उन्हें ठेकदारी मिलती थी। टेंडर मिलता था। रुपए कमाने का जरिया मिलता था। पर 1995 तक आते-आते सभी राजनीतिक समीकरण बदल चुके थे। बिहार में बहुत तेजी से अपराधी छवि वाले लोग राजनीति में आ रहे थे। उन्होंने यह सोच लिया था कि बहुत हुआ दूसरे के लिए वोट की व्यवस्था करना। जब दूसरे के लिए धन और बल से वोट का जुगाड़ किया जा सकता है तो खुद के लिए क्यों नहीं। अंडरवर्ल्ड की यही बात बड़े राजनेताओं को रास नहीं आ रही थी। यही वो दौर था जब अशोक सम्राट, रामा सिंह, छोटन शुक्ला, तसलिमुद्दीन, देवेंद्र दुबे, सुनील पांडे, सतीश पांडे, अखिलेश सिंह, अवधेश मंडल, अशोक महतो, शहाबुद्दीन, सूरजभान सिंह, दिलीप सिंह, सुरेन्द्र यादव, राजन तिवारी, सुनील पांडे, कौशल यादव, बबलू देव, धूमल सिंह, अखिलेश सिंह, दिलीप यादव जैसे बाहूबली लोग नेता बनने की दौड़ में शामिल हो गए थे। इनमें से अधिकतर को जनता का भरपूर समर्थन हासिल था। जातिगत राजनीति ने इन्हें विधानसभा तक पहुंचा दिया और बिहार की राजनीति की पूरी तस्वीर बदल गई। इन सबके सुपर बॉस बने थे लालू प्रसाद यादव और उनका सगा साला साधु यादव। यहीं से वह दौर शुरू हुआ जिसे मीडिया ने जंगलराज का तमगा दिया।

लौटते हैं मुजफ्फरपुर की कहानी की तरफ...
दोनों बड़े डॉन की हत्या के बाद मुजफ्फरपुर की फिजाओं में एक अनजाना सा भय समा गया था। डीएम की हत्या के बाद आनंद मोहन और लवली आनंद सहित शुक्ला ब्रदर्श के भी दिन बदल गए थे। पर इन सबके बीच सबसे अधिक आक्रमक हुआ था छोटन शुक्ला का छोटा भाई भुटकुन शुक्ला। बडेÞ भाई की हत्या का बदला लेने की आग में उसने अपने सारे घोड़े खोल दिए थे। यही वो दौर था जब उत्तरप्रदेश का सबसे बड़े डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला की तिरहूत में इंट्री हो चुकी थी। रेलवे के ठेकों पर उसका वर्चस्व था, जबकि पीडब्ल्यू के ठेकों पर भुटकुन शुक्ला और उसके साथियों का। श्री प्रकाश शुक्ला भुटकुन शुक्ला के जरिए हाजीपुर और सोनपुर के रेलवे ठेकों पर वर्चस्व चाहता था।

भुटकुन का भय बृजबिहारी प्रसाद को भी था। उसने अपना सुरक्षा दायरा जबर्दस्त तरीके से बढ़ा दिया था। बिहार पुलिस के अलावा उसने अपने सुरक्षा घेरे में प्राइवेट गार्ड्स या कहें कि अत्याधुनिक हथियार से लैस गुंडों की फौज खड़ी कर दी थी। भुटकुन शुक्ला के भय से उस वक्त पूरा शहर कांपता था। मैंने पहले कि पोस्ट में बताया था कि भुटकुन शुक्ला के बारे में किस तरह की किंवदंतियां मुजफ्फपुर की फिजाओं में तैरती थी। इसमें कितनी सत्यता थी और कितना झूठ, इसका दावा तो कोई कर नहीं सकता, लेकिन इतना तय है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता है।

बड़े भाई की हत्या के बाद भुटकुन शुक्ला का खुला ऐलान था खून के बदले खून। उसका एक मात्र मकसद बन गया था बृजबिहारी प्रसाद की हत्या। कुछ महीनों बाद ही भुटकुन शुक्ला ने बदला लिया। बृजबिहारी तो हाथ नहीं आया, लेकिन भुटकुन के हाथ लगा बृजबिहारी प्रसाद का सबसे खास गुर्गा ओंकार सिंह। भुटकुन शुक्ला के लोगों की सटीक मुखबिरी काम आई। मुजफ्फरपुर के जीरो माइल पर खून की होली खेलने की प्लानिंग की गई। सुबह सबेरे चारों तरफ से घेरकर शॉर्प शूटर ओंकार सिंह सहित सहित सात लोगों की हत्या कर दी गई। ये सभी बृजबिहारी के सबसे खास गुर्गों में से थे। जीरो माइल से ही सीतामढ़ी और दरभंगा जाने का रास्ता है। यहीं गोलंबर के पास चारों तरफ से घेर कर एके-47 की नली खोल दी गई। बताते हैं कि उस वक्त एक नहीं, दो नहीं, बल्कि एक दर्जन से अधिक एके-47 से करीब पांच से छह सौ राउंड फायर झोंक दिए गए थे। इस हत्या के बाद भुटकुन शुक्ला ने स्पष्ट कर दिया था कि बृजबिहारी प्रसाद को भी छोड़ा नहीं जाएगा।

जीरो माइल पर अपने सात खास लोगों की हत्या से बृजबिहारी प्रसाद भी सकते में आ गया। ओंकार सिंह उस वक्त मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड का बड़ा नाम बनता जा रहा था। मुजफ्फरपुर के आउट साइड एरिया में जितने भी ठेके थे उसमें ओंकार सिंह का सीधा हस्तक्षेप था। बृजबिहारी प्रसाद का खास होने का भी उसे फायदा मिला था। तिरहूत के अंडरवर्ल्ड में इस बात के पुख्ता प्रमाण थे कि संजय सिनेमा ओवरब्रीज के पास बृजबिहारी गली के करीब छोटन शुक्ला की दिसंबर 1994 में एके-47 से हत्या करने वालों में शार्प शूटर ओंकार सिंह और उसके ही लोग शामिल थे। भुटकुन शुक्ला ने आेंकार सिंह को उसी की स्टाइल में चारों तरफ से घेरकर गोलियों की बौछार कर अपने भाई की हत्या बदला ले लिया था। पर अब भी उसका इंतकाम बांकि था। यह इंतकाम था बृजबिहारी प्रसाद से।

अंडरवर्ल्ड में गद्दारी की पहली स्क्रिप्ट
शॉर्प शूटर ओंकार सिंह की हत्या के बाद बृजबिहारी प्रसाद को अपनी हत्या का भी भय समा गया था। हर तरीके से खुद को सुरक्षित करने के बावजूद भुटकुन शुक्ला के गुस्से से वह वाकिफ था। अंडरवर्ल्ड के सूत्र बताते हैं कि ओंकार सिंह की हत्या के बाद बृजबिहारी प्रसाद ने अंदरुनी तौर पर भुटकुन शुक्ला से समझौते का प्रयास भी किया था, लेकिन भुटकुन ने किसी भी कीमत पर समझौता स्वीकार नहीं किया। अपने बड़े भाई छोटन शुक्ला से भुटकुन शुक्ला का प्यार जग जाहिर था। वह अपने भाई की हत्या को कभी भुला नहीं पा रहा था।

ऐसे में मुजफ्फरपुर या यूं कहें कि बिहार के अंडरवर्ल्ड की अब तक की सबसे बड़ी साजिश को अंजाम दिया गया। अंडरवर्ल्ड में गद्दारी की पहली स्क्रिप्ट लिखी गई। बताते हैं कि इस स्क्रिप्ट को लिखा बेहद शातिर दिमाग वाले बृजबिहारी प्रसाद ने। साजिश थी भुटकुन शुक्ला को उसके ही घर में अपनों के बीच ही मार देने की। बिहार के अंडरवर्ल्ड के इतिहास में इस वक्त तक जातिगत भावना उछाल मारने लगी थी। पर अब तक किसी ने यह नहीं सोचा था कोई अपना ही खास अपना दुश्मन बन जाएगा।

कहा जाता है कि बृजबिहारी प्रसाद ने भुटकुन शुक्ला को मारने की स्क्रिप्ट काफी पहले लिख दी थी। इसके लिए उसने दीपक सिंह नाम के युवा शूटर को भुटकुन शुक्ला के गैंग में शामिल करवा दिया था। दीपक सिंह चंद समय में ही भुटकुन शुक्ला का विश्वासपात्र बन गया था। वह भुटकुन शुक्ला के बॉडीगॉर्ड के रूप में हमेशा साये की तरह उसके साथ रहता था। भुटकुन शुक्ला को मारने के मौके तलाशे जाने लगे, लेकिन भुटकुन को मारना इतना आसान काम भी नहीं था। अपनी कमर में हमेशा आॅटोमेटिक जर्मनी मेड रिवॉल्वर रखने वाला भुटकुन शुक्ला मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड का सबसे शातिर खिलाड़ी था। मूंह से बोलने से ज्यादा उसकी रिवॉल्वर बोलती थी। ऐसे में उस पर वार करना खुद को मौत को दावत देने के समान था।

घर में ही मारी गोली
शुक्ला ब्रदर्श का पुस्तैनी घर वैशाली के लालगंज के खंजाहाचक गांव में है। इस गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां आना आसान है, लेकिन निकलना मुश्किल। यह गांव ही भुटकुन शुक्ला का सबसे सुरक्षित ठिकाना भी था। यह गांव एक किले के समान था, जहां सिर्फ भुटकुन शुक्ला की मर्जी चलती थी। उसके आदेश के बिना वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। काफी हद तक गांव की भौगोलिक स्थित ने भुटकुन शुक्ला को लंबे समय तक पुलिस की पहुंच से दूर रखा था।

दरअसल गांव के ठीक बगल से नारायणी नदी बहती है। नारयणी नदी को को ही गंडकी या गंडक नदी भी कहते हैं। इस नदी को पार करते ही आप दूसरे जिले की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। नदी के उस पास छपरा जिले की सीमा लगती है। सारण प्रखंड का यह जिला अपने आप में अपराधियों का सबसे बड़ा गढ रहा था, क्योंकि इसके बाद आप सीधे उत्तरप्रदेश की सीमा में प्रवेश कर सकते हैं। गांव में कभी पुलिस ने दबिश भी दी तो आसानी से भुटकुन शुक्ला और उसके साथी नदी पार कर दूसरे जिले की सीमा में प्रवेश कर जाते थे। पर यही भौगोलिक सीमा भुटकुन शुक्ला की मौत की जिम्मेदार बनी।

भुटकुन शुक्ला के साथ रहते दीपक सिंह को गांव से निकलने के सभी चोर रास्तों का पता था। उसे यह भी पता था कि सुबह के समय भुटकुन शुक्ला अपने हथियारों को साफ करता है और उसकी पूजा करता है। चंद दिनों पहले ही भुटकुन शुक्ला ने अपने बड़े बेटा का जन्मदिन मनाया था। इसके बाद वह दोबारा अपने गांव पहुंचा था। साल 1997 के शायद अगस्त का महीना था। नदी में स्रान करने के बाद भुटकुन शुक्ला अपने घर में हथियारों को साफ कर रहा था। जैसे ही उसने अपनी आॅटोमेटिक रिवॉल्वर साफ करने के लिए खोली दीपक सिंह को मौका मिल गया। वह उस वक्त वहीं था। वह अच्छी तरह जानता था कि एक बार आॅटोमेटिक रिवॉल्वर के पार्ट खोलने के बाद तुरंत उसे लोड करना आसान नहीं। इसी मौके का फायदा उठाकर दीपक सिंह ने अपनी एके-47 का मूंह भुटकुन शुक्ला की तरफ खोल दिया। मौके पर ही भुटकुन शुक्ला की मौत हो गई। जिस सुरक्षित रास्ते का उपयोग कभी भुटकुन शुक्ला करता था, उसी रास्ते से दीपक सिंह फरार हो गया। गांव में कोहराम मच गया। जबतक कोई कुछ समझता अंडरवर्ल्ड का एक बड़ा डॉन मारा जा चुका था।

यह बिहार के अंडरवर्ल्ड में गद्दारी की शायद पहली और सबसे घिनौनी घटना थी। जो अंडरवर्ल्ड विश्वास की बुनियाद पर टिका था, उसमें बड़ी दरार पड़ गई। बृजबिहारी प्रसाद और उसके समर्थकों ने खूब जश्न मनाया। यहां यह बात बताना जरूरी है कि भुटकुन शुक्ला हत्याकांड के बाद यह बात जोर शोर से फैलाई गई कि हत्यारा दीपक सिंह जाति से राजपूत था। इस बात का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि यह बात इसलिए फैलाई गई क्योंकि इसका राजनीतिक फायदा मिल सके। क्योंकि उस वक्त तक राजपूत और भुमिहार जातिगत रूप से एकजुट थे। उस वक्त अगड़ी और पिछड़ी जाति की राजनीति चरम पर थी। ऐसे में भूमिहार और राजपूत में एक दूसरे के प्रति वैमनस्य फैलाने का इससे बड़ा मौका नहीं मिल सकता था। राजपूत जाति के ही ओंकार सिंह को भुटकुन शुक्ला ने मौत की नींद सुलाई थी।

अंडरवर्ल्ड में गद्दारी का यह खेल आगे भी चला। इसी तरह की गद्दारी करवाकर कैसे एक साल के अंदर बाहुबली नेता बृजबिहारी प्रसाद को दो दर्जन कमांडो के बीच में एक-47 से छलनी कर दिया, यह अगली और इस सीरिज की अंतिम कड़ी में।

आपको यह सीरिज कैसी लग रही है। कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। 

DISCLAIMER
मुजफ्फरपुर अंडरवर्ल्ड की कहानी किसी अपराधी के महिमा मंडन के लिए नहीं लिखी जा रही है। इसका उद्देश्य सिर्फ घटनाओं और तथ्यों की हकीकत के जरिए कहानी बयां करने का प्रयास है। इसमें कुछ घटनाओं को आप स्वीकार भी कर सकते हैं और अस्वीकार भी। किसी को अगर इन कहानियों से व्यक्तिगत अस्वीकृति है तो वो इस आलेख को इग्नोर करें।

1 comment:

Unknown said...

Good article , amazed to see no one has commented yet oh they all may be busy in trolling someone