Saturday, September 29, 2018

मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड की इनसाइड स्टोरी-5, जब एकजूट हुए अंडरवर्ल्ड के सभी अपर कास्ट के डॉन



मुजफ्फरपुर अंडरवर्ल्ड की इनसाइड स्टोरी के पार्ट चार में आपने पढ़ा था कि कैसे अंडरवर्ल्ड में गद्दारी ने अपना जाल बिछाया था। बिहार के अंडरवर्ल्ड की भी शायद यह पहली घटना थी जिसमें किसी अंडरवर्ल्ड डॉन की हत्या उसके अपने ही बॉडीगार्ड ने कर दी थी। इस घटना के बाद गद्दारी का सिलसिला लगातार चलता रहा।

पिछले कुछ अंकों के प्रकाशन के बाद कई लोगों ने कहा कि बाहूबली देवेंद्र दुबे के बारे में भी बताईए। अबतक देवेंद्र दुबे की चर्चा इसलिए नहीं कर रहा क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से मुजफ्फरपुर अंडरवर्ल्ड से उसका कोई लेना देना नहीं था। पर इस सीरिज में उसकी चर्चा जरूरी हो गई है, क्योंकि देवेंद्र दुबे की हत्या के तार मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड की इनसाइड स्टोरी से सीधे तौर पर जुड़ते हैं। इन सभी स्टोरी के केंद्र में बिहार सरकार के सबसे चर्चित मंत्री बाहूबली नेता बृजबिहारी प्रसाद ही हैं, क्योंकि बृजबिहारी की हत्या के साथ बिहार में बहुत कुछ बदल गया, खासकर मुजफ्फरपुर अंडरवर्ल्ड में।

देवेंद्र दुबे का खौफ 
नब्बे के दशक में जहां मुजफ्फरपुर सहित पूरे तिरहुत प्रमंडल में अशोक सम्राट, शुक्ला ब्रदर्श, बृजबिहारी प्रसाद आदि की तूती बोलती थी, वहीं स्वतंत्रता आंदोलन की धरती चंपारण के पूर्व से लेकर पश्चिम तक देवेंद्र दुबे का एकछत्र राज्य हुआ करता था। दूर-दूर तक उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था। करीब 35 हत्याओं सहित दर्जनों गंभीर अपराधों में उसकी सीधी भूमिका के कारण उस पर एफआईआर दर्ज थे।
मैंने पहले की सीरिज में बताया था कि 90 का दौर अपराध की दुनिया से राजनीति में आने का ट्रांजेक्शन का दौर था। देवेंद्र दुबे भी इसी ट्रांजेक्शन पीरियड से गुजर रहा था। राजनीति में उसने जातिगत बाहुबल के कारण अपनी अच्छी पैठ बना ली थी। देवेंद्र दुबे का पूरा नाम देवेंद्रनाथ दूबे था। अंडरवर्ल्ड उसे डीडी के नाम से जानता था। 1995 का विधानसभा चुनाव बिहार के माफियाओं के लिए कालजयी काल था। देवेंद्र दुबे भी मोतीहारी लोकसभा अंतर्गत आने वाले गोबिंदगंज विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ रहा था। बताया जाता है कि समाजवादी पार्टी से टिकट दिलवाने में देवेंद्र दुबे को सीधी मदद पहुंचाई थी उस वक्त के उत्तरप्रदेश में आतंक का पर्याय बन चुके अंडरवर्ल्ड डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला ने। और श्रीप्रकाश शुक्ला और डीडी के बीच मिलन करवाया था अंडरवर्ल्ड के एक और बड़े नाम राजन तिवारी ने। श्रीप्रकाश शुक्ला से डीडी की दोस्ती रेलवे ठेकों पर एकछत्र राज्य के कारण हुई थी। रक्सौल रेलप्रखंड उस वक्त परिर्वतन के दौर से गुजर रहा था। गोरखपुर से लेकर सोनपुर, मुजफ्फरपुर से लेकर रक्सौल, बेतिया तक के रेलवे ठेकों पर श्रीप्रकाश शुक्ला अपना एकछत्र राज चाहता था। इसीलिए उसने एक तरफ जहां भुटकुन शुक्ला से नजदीकी कायम की थी, वहीं चंपारण की तरफ उसका साथ मिला था डीडी का।

श्रीप्रकाश को पता था कि जबतक डीडी विधायक नहीं बनता, तबतक उसे पूरा फायदा नहीं मिल सकता। इसके लिए सबसे पहले समाजवादी पार्टी से टिकट दिलाने में उसकी मदद की, उसके बाद चुनाव जीताने में उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे होने के कारण चंपारण में भी श्रीप्रकाश शुक्ला तब तक बड़ा नाम बन चुका था। इसका सीधा फायदा मिला डीडी को। 1995 के चुनाव में डीडी ने जनता दल के योगेंद्र पांडे को करारी शिकस्त दी। योगेंद्र पांडे को हराना आसान नहीं था, वह पिछले दस साल से वहां के विधायक थे। योगेंद्र पांडे की हार ने सभी को हैरान कर दिया था, पर डीडी की जीत ने वहां की राजनीति को नया मोड़ दे दिया था। यहां बता दूं कि डीडी ने यह चुनाव जेल में रहते हुए जीत लिया था, क्योंकि चुनाव में नॉमिनेशन के दिन ही पुलिस ने उसे छह लोगों को जहर देकर मारने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। इसके अलावा 35 अन्य गंभीर आरोपों में भी वह वांछित था। राजन तिवारी की इस एरिया में दिलचस्पी काफी पहले से थी, क्योंकि यहां उसका ननिहाल था। उत्तरप्रदेश में उसके पैरेंट्स बस गए थे, लेकिन ननिहाल में उसका आना जाना लगा रहता था। इसी क्रम में वह देवेंद्र दुबे के संपर्क में आया था। श्रीप्रकाश शुक्ला और राजन तिवारी की जोड़ी ने देवेंद्र दुबे को चुनाव जीतने में अहम रोल निभाया।

देवेंद्र दुबे की हत्या 
देवेंद्र दुबे

विधानसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद देवेंद्र दुबे के कई विरोधी सामने आ गए थे। सबसे बड़े विरोधी बने बृजबिहारी प्रसाद और उनके समर्थित उम्मीदवार। बता दें कि 1998 के लोकसभा चुनाव में बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी ने इसी लोकसभा से चुनाव जीता था। 1995 का विधानसभा चुनाव भारी मतों से जीतने के बाद देवेंद्र दुबे जमानत पर बाहर आ चुके थे। बाहर आने के कुछ दिनों बाद ही उन पर हमला हुआ। गोली लगी पर डीडी बच गए। अंडरवर्ल्ड में इस हमले ने काफी चौंकाया। हलचल बिहार से लेकर उत्तरप्रदेश तक हुई। पर कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। क्योंकि डीडी ने अपना पूरा फोकस राजनीतिक कॅरियर पर कर लिया था। इसी बीच वर्ष 1998 में डीडी की हत्या ने बृजबिहारी प्रसाद की हत्या की पटकथा लिख दी।

गाड़ी पर मिले थे 65 गोलियों के निशान
25 फरवरी 1998 को डीडी अपने सहयोगियों के साथ पूर्वी चंपारण के अरेराज ब्लॉक के बरियरिया टोला में आने वाले थे। उनपर खतरा पहले से ही था, क्योंकि यह पूरा इलाका बृजबिहारी प्रसाद के प्रभुत्व वाला था। अंडरवर्ल्ड के सूत्र बताते हैं कि डीडी को उसके किसी खास व्यक्ति ने ही यहां लाने की प्लानिंग की थी। और यह प्लानिंग बनाई गई थी बृजबिहारी प्रसाद के इशारे पर। चंपारण रेंज के तत्कालीन डीआईजी वी नारायण ने एक इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि डीडी की हत्या में उसके एक सबसे खास व्यक्ति ने गद्दार की भूमिका निभाई थी। बैरिया गांव में सुबह के वक्त चारों तरफ से घेर कर देंवेद्र दूबे को एके-47 से छलनी कर दिया गया था। डीआईजी वी नारायण का कहना था कि जिस गाड़ी में डीडी सवार थे उसपर गोलियों के 65 निशान मिले थे। देवेंद्र दुबे के साथ उसके चार सबसे खास सहयोगी भी मारे गए थे।
इस हत्याकांड ने पूरे उत्तर बिहार को सुलगाने का मशाला दे दिया था। क्योंकि देवेंद्र दुबे उस वक्त अपने धन और बाहूबल से काफी शक्तिशाली नजर आने लगे थे। इस हत्या का सीधा आरोप लगा बृजबिहारी प्रसाद पर। डीआईजी चंपारण रेंज वी नारायण काफी तेज तर्रार अधिकारी माने जाते थे। डीडी की हत्या के बाद उन्होंने तत्काल एक स्पेशल टीम तैयार की। सबसे पहले इस टीम को चंपारण से सटे नेपाल बॉर्डर को सील करने का जिम्मा मिला। हत्या के दूसरे ही दिन वी नारायण की टीम ने हत्याकांड में शामिल तीन अपराधियों को 26 फरवरी को रामगढ़वा इलाके से धर दबोचा। ये सभी इसी रास्ते नेपाल भागने की फिराक में थे। इन्हीं तीन अपराधियों में शामिल था गैंगस्टर जितेंद्र सिंह। बताते हैं कि बाद में जितेंद्र सिंह ने पुलिस पूछताछ में इस बात को कबूला था कि डीडी की हत्या की सुपारी उसे बृजबिहारी प्रसाद ने ही दी थी। हालांकि इस बात का जिक्र पुलिस रिकॉर्ड में कहीं नहीं है। लेकिन डीडी के भाई की तहरीर पर बिहार सरकार में तत्कालीन ऊर्जा मंत्री बृजबिहारी प्रसाद और उनकी पत्नी रमा देवी को मुख्य आरोपी बनाया गया। बता दें कि रमा देवी उस वक्त 1998 के लोकसभा चुनाव में मोतिहारी सीट से आरजेडी की प्रत्याशी थीं। डीडी की हत्या के बाद हुए चुनाव में रमा देवी उसी सीट से सांसद बनीं। बताते हैं कि रमा देवी की जीत में सबसे बड़े बाधक डीडी ही थे, जिसके कारण उन्हें रास्ते से हटा दिया गया।

डीडी की हत्या में प्रसाद दंपत्ति के अलावा अन्य पांच के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। पर गैंगस्टर जितेंद्र सिंह और उसके दो सहयोगियों के अलावा पॉलिटिकल प्रेशर के कारण कोई गिरफ्तार नहीं किया जा सका। मोतिहारी गवर्नमेंट हॉस्पिटल में डीडी का पोस्टमार्टम हुआ। उसके शरीर से कई दर्जन गोलियां निकाली गई। इस विभत्स हत्याकांड ने डीडी के समर्थकों में आक्रोश भर दिया था। सीआईडी की रिपोर्ट कहती है कि दाह संस्कार के वक्त बिहार और उत्तरप्रदेश अंडरवर्ल्ड के करीबन सभी बड़े डॉन वहां मौजूद थे। बतातें चलें कि अंडरवर्ल्ड के ये सभी बड़े डॉन अगड़ी जाती का प्रतिनिधित्व करते थे। देवेंद्र दुबे की हत्या से पहले बृजबिहारी प्रसाद का नाम छोटन शुक्ला और भुटकुन शुक्ला की हत्या में भी आ चुका था।
यहीं दाहसंस्कार के वक्त डीडी का भतीजा मंटू तिवारी जो उक्त अंडरवर्ल्ड में अपनी एक अलग पहचान कायम कर चुका था, उसने कसम खाई। खुफिया विभाग की रिपोर्ट और तमाम मीडिया ने यह रिपोर्ट किया था कि मंटू तिवारी ने ऐलान किया है कि जब तक देवेंद्र दुबे की हत्या का बदला नहीं ले लेगा शादी नहीं करेगा। बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के बाद दर्ज एफआईआर में डीडी के इसी भतीजे मंटू तिवारी को मुख्य आरोपी के रूप में चिह्नित किया गया था। हत्याकांड के फर्स्ट एफआईआर में मंटू तिवारी का नाम सबसे ऊपर था।

एकजूट हुआ अंडरवर्ल्ड
लालू यादव के तथाकथित जंगलराज में अगड़ी जाती के कई अंडरवर्ल्ड डॉन और बाहूबलियों की हत्या हुई। यहां मैं सिर्फ तिरहूत और आसपास के इलाके की चर्चा कर रहा हूं, लेकिन बिहार के करीबन हर क्षेत्र में राजनीतिक हत्याओं का दौर चला था। हाल यह था कि पूर्णिया में अजीत सरकार की हत्या के बाद सेंट्रल गवर्नमेंट को अपनी एक उच्च स्तरीय टीम को बिहार भेजना पड़ गया था। डीडी की हत्या ने तिरहूत और उत्तरप्रदेश के अंडरवर्ल्ड को एकजूट कर दिया था। डीडी की हत्या के बाद अघोषित रूप से डीडी का पूरा अंडरवर्ल्ड साम्राज्य राजन तिवारी के पास आ गया था। उधर भुटकुन शुक्ला की हत्या के बाद मुजफ्फरपुर अंडरवर्ल्ड में अघोषित रूप से मुन्ना शुक्ला की इंट्री हो चुकी थी। पूरे साम्राज्य पर मुन्ना शुक्ला का राज था, हालांकि इस वक्त मुन्ना शुक्ला की राजनीति में भी दमदार इंट्री हो चुकी थी, इसलिए प्रत्यक्ष रूप से किसी अपराध में उसकी संलिप्तता का कोई रिकॉर्ड पुलिस डायरी में नहीं था। उत्तर बिहार में रेलवे और पीडब्ल्यूडी के ठेकों पर अगड़ी जाति के अंडरवर्ल्ड का पूरा दबदबा था। शुक्ला ब्रदर्श के अलावा, सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ला, राजन तिवारी सभी एक साथ मिलकर काम कर रहे थे। कहते हैं दुश्मन का दुश्मन एक दूसरे को दोस्त बना देता है। आपसी मतभेद भुलाकर सभी एक साथ थे। अब प्लानिंग हुई सभी दोस्तों के सबसे बड़े दुश्मन बृजबिहारी प्रसाद के हत्या की।

एक अहम किरदार जो देहरादून में था
बृजबिहारी प्रसाद की हत्या की इनसाइड स्टोरी से पहले आपको थोड़े समय के लिए देहरादून लेकर चलूंगा, क्योंकि अंडरवर्ल्ड के इस सबसे भयानक हत्याकांड का एक अहम किरदार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में था।


यह साल 2013 की बात है। उस वक्त मैं देहरादून में ही पोस्टेड था। उधर, बिहार में नितीश कुमार की सरकार थी। पूरा जोर सुशासन की तरफ था। स्पेशल टीम अपराधियों को खोज-खोजकर या तो मार रही थी या गिरफ्तार कर रही थी। इसी वक्त बिहार के आईजी आॅपरेशन थे अमित कुमार। बेहद तेज तर्रार आईपीएस अमित कुमार ने अपनी एक बेहतरीन टीम बनाई थी। इसी टीम को लीड मिला कि बिहार का मोस्ट वांटेड अपराधी उत्तराखंड की वादियों में छिपा बैठा है। इस मोस्ट वांटेट अपराधी पर बिहार सरकार ने दस लाख का ईनाम रखा था। नाम था शंकर शंभू। शंकर शंभू की चर्चा इसलिए कर रहा हूं क्योंकि यह भी मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज कैंपस की पैदाइश था। 90 के दशक में एलएस कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद वह कैंपस में वर्चस्व की जंग में शामिल था। कैंपस में वर्चस्व की जंग के दौरान ही वह भुटकुन शुक्ला के संपर्क में आया था और उसके खास लोगों में शामिल हो गया था। कम समय में ही शंकर शंभू ने मुजफ्फरपुर और तिरहूत के अंडरवर्ल्ड में शॉर्प शूटर के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। उत्तराखंड के एक सीनियर आईपीएएस अधिकारी जो मूल रूप से बिहार के ही हैं (नाम नहीं बता रहा) ने शंकर शंभू की गिरफ्तारी के बाद एक बड़ी बात बताई थी। उन्होंने बताया था कि शंकर शंभू ने भुटकुन शुक्ला की हत्या में बड़ी भुमिका निभाई थी। वह अपना अलग साम्राज्य खड़ा करना चाहता था जिसके कारण अंदर ही अंदर वह बृजबिहारी प्रसाद का खास बन चुका था। बताते हैं कि बृजबिहारी के कहने पर भुटकुन शुक्ला के मर्डर की सारी रूपरेखा उसी ने बनाई थी। भुटकुन शुक्ला के बाद मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड में शंकर शंभू ने अपनी पैठ कायम करनी चाही, लेकिन उस पर खतरा अधिक था। वह चुपचाप गंगा पार पटना चला गया। वहीं पटना में ही शंभू ने कुख्यात बदमाश मंटू सिंह के साथ मिलकर अपना अलग गैंग बना लिया। शंभू-मंटू गैंग ने कुछ ही महीने में सीपीडब्ल्यूडी और रेलवे के ठेके पर अपनी बादशाहत का लोहा मनवाया लिया।
शंकर शंभू पुलिस की गिरफ्त में

उधर, बृजबिहारी की हत्या की पूरी प्लानिंग में एक अहम किरदार का आना बांकि था। यह किरदार था शंकर शंभू। बृजबिहारी प्रसाद को उसी स्टाइल में मारने की प्लानिंग की गई थी। भुटकुन शुक्ला की हत्या में कहीं न कहीं उसकी भुमिका थी, इसलिए वह बृजबिहारी का अंदर खाने काफी खास बना बैठा था। इसी शंकर शंभू को बृजबिहारी की हत्या में इस्तेमाल किया गया। कैसे इस्तेमाल किया गया इसे भी बताने का प्रयास करूंगा।

1998 में बृजबिहारी की हत्या के बाद वह बिहार पुलिस के मोस्ट वांटेड क्रिमिनल की सूची में आ गया था। वह बिहार छोड़कर अंडरग्राउंड हो गया। हालांकि मंटू सिंह की मदद से उसने पटना और आसपास के ठेकों में अपना प्रभुत्व कायम रखा। दिल्ली और यूपी के तमाम शहरों में रहते हुए भी वह अपना गैंग चलाता रहा। बिहार पुलिस से बचते बचाते उसे सबसे सुरक्षित ठिकाना मिला उत्तराखंड की राजधानी देहरादून। यहां बसने का सबसे बड़ा कारण उसकी प्रेमिका थी, जो देहारादून की ही थी। साल 2002-03 में उसने अपनी प्रेमिका से शादी कर ली और देहरादून को अपना ठिकाना बना लिया। देहरादून के सबसे पॉश एरिया जीएमएस रोड पर उसने अपना मकान लिया और एक बिजनेसमैन के रूप में अपनी नई पहचान बनाई। पटना में सीपीडब्ल्यू का शायद ही ऐसा कोई ठेकेदार रहा होगा जिसमें शंभू का भय नहीं था। रंगदारी की मोटी रकम इस गैंग के पास पहुंचती थी। इसी बीच 14 अक्टूबर 2011 को बिहार की राजधानी के पुनाईचक में सीपीडब्ल्यू ठेकेदार बसंत सिंह की हत्या कर दी गई। शास्त्रीनगर थाना के अंतर्गत इंजीनियर के आॅफिस में हुई इस हत्या ने पूरे बिहार में सनसनी मचा दी। इस हत्याकांड में फिर नाम आया शंभू और मंटू का। बिहार पुलिस की स्पेशल टीम को इस गैंग के खात्मे में लगाया गया। कमान संभाली आईजी आॅपरेशन अमित कुमार ने। टीम को बड़ी सफलता मिली एक साल बाद जब दुर्गेश शर्मा और शिवशंकर शर्मा की गिरफ्तारी हुई। यह बड़ी लीड थी। चंद दिनों बाद ही लखनऊ के गोमती नगर से मंटू को बिहार एसटीएफ ने अरेस्ट कर लिया। मंटू की गिरफ्तारी के बाद इस गैंग के कई शूटर्स या तो इनकाउंटर में मार गिराए गए या दबोचे गए। पर शंकर शंभू अपने सुरक्षित ठिकाने पर मौज में था। बिहार एसटीएफ के लिए वह अबुझ पहले बन चुका था। दस लाख का इनाम तक घोषित था। शंकर शंभू लंगट सिंह कॉलेज में साइंस का छात्र था। टेक्निकली बेहद स्ट्रांग था। पुलिस के सबसे घातक हथियार मोबाइल सर्विलांस से वह पूरी तरह वाकिफ था, यही कारण है कि वह लंबे समय तक एसटीएफ और आईपीएस अमित कुमार के चंगुल में नहीं फंस रहा था। अमित कुमार के लिए शंकर शंभू एक चुनौती बन चुका था। शंभू एक वक्त में सिर्फ एक सिम और एक मोबाइल का उपयोग करता था। गैंग के सदस्य शंभू से तब ही बात कर सकते थे जब शंभू चाहे। हुलिया बदलने में भी वह माहिर था। मंटू की गिरफ्तारी ने आईपीएम अमित कुमार और उनकी टीम को बड़ी लीड दे रखी थी। इतना पता चल चुका था कि वह उत्तराखंड में ही है। देहरादून में गिरफ्तारी से पूर्व वह हरिद्वार में भी बिहार पुलिस की स्पेशल टीम के हाथ लगा था, लेकिन बेहद शातिराना अंदाज में वह एसटीएफ की जाल से बाहर आ गया था। देहरादून में उसकी गिरफ्तारी भी पुलिस ने उससे भी अधिक शातिराना अंदाज में की। बिहार पुलिस के इस बेहद शातिराना  अंदाज को यहां बताना उचित नहीं। पर इतना बता दूं कि आईपीएम अमित कुमार और उनकी टीम ने अप्रैल 2013 में वह कर दिखाया था, जिसके लिए बिहार पुलिस एक दशक से इंतजार कर रही थी।शंकर शंभू पुलिस की गिरफ्त में था।

दोस्तों शंकर शंभू और देवेंद्र दूबे की बात करते-करते कहानी काफी लंबी हो गई। इसलिए इसे यहीं समाप्त कर रहा हूं। इस सीरिज का एक और पार्ट लिखूंगा, जो शायद अंतिम भाग हो। इसमें बताऊंगा कि कैसे मुजफ्फपुर और तिरहूत के अंडरवर्ल्ड का और संगठित अपराध का खात्मा हुआ। 

DISCLAIMERमुजफ्फरपुर अंडरवर्ल्ड की कहानी किसी अपराधी के महिमा मंडन के लिए नहीं लिखी जा रही है। इसका उद्देश्य सिर्फ घटनाओं और तथ्यों की हकीकत के जरिए कहानी बयां करने का प्रयास है। इसमें कुछ घटनाओं को आप स्वीकार भी कर सकते हैं और अस्वीकार भी। किसी को अगर इन कहानियों से व्यक्तिगत अस्वीकृति है तो वो इस आलेख को इग्नोर करें।

2 comments:

Prabhat kumar said...

Sir muzaffarpur ke rambabu thakur ki khani bhi bataiye

Anonymous said...

Ji sir ram babu kawn tha