Thursday, November 21, 2019

हां तो.. लानत है ऐसे सेकुलरिज्म पर



बीएचयू पर जवाब ढूंढते मेरे कुछ सामान्य सवाल, आप भी मदद कीजिए

पहला सवाल : सेकुलर होने का मतलब क्या है? क्या सेकुलर होने का मतलब सिर्फ यह है कि दूसरे के धर्म या धार्मिक क्रिया कलापों को बेहुदा या अवैज्ञानिक करार दे दो...! क्या सेकुलर होने का मतलब यह है कि दूसरे के धर्म, धार्मिक क्रिया कलाप, कर्मकांड की हंसी उड़ाओ...! धार्मिक मान्यताओं को न मानो और इसकी खिचड़ी बना डालो।
अरे साहब, सेकुलरिज्म हमें यह नहीं सिखाता कि दूसरे के धर्म या संप्रदाय का अपमान करो। सेकुलरिज्म समझाता है कि दूसरे के धर्म का भी सम्मान करो।


दूसरा सवाल : बीएचयू में आखिर मुस्लिम प्रोफेसर पर नियुक्ति पर हंगामा क्यों?
क्या यह पहली बार हुआ है कि बीएचयू यानी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में किसी मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति हुई है?
इसका जवाब है, नहीं।
बीचएयू की स्थापना काल में ही कई मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने पंडित मदन मोहन मालविय जी का साथ दिया था। वहां से आज तक हजारों मुस्लिम छात्र पढ़कर निकले हैं, जिन्होंने पूरे विश्व में न केवल बीएचयू बल्कि पूरे भारत का मान बढ़ाया है। इसी बीएचयू में सैकड़ों मुस्लिम शिक्षकों ने लंबे समय तक बच्चों को पढ़ाया है।


तीसरा सवाल : फिर आज क्यों वहां एक मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति पर बवाल मचा है?
दरअसल, यह बवाल सिर्फ बीएचयू में नियुक्ति को लेकर नहीं है। सिर्फ एक मुस्लिम प्रोफेसर के संस्कृत पढ़ाने पर नहीं है। यह बवाल एक मुस्लिम प्रोफेसर के उस संकाय में पढ़ाने को लेकर है जहां आज तक के इतिहास में सिर्फ जनेऊधारी हिंदुओं का प्रवेश हुआ है।
इसे आप सबरीमाला मंदिर प्रकरण से जोड़ कर देख सकते हैं। क्यों वहां चंद महिलाएं जबर्दस्ती घुसने की कोशिश कर रही हैं। क्यों हिंदू धर्म उन महिलाओं को वहां जाने की इजाजत नहीं देता। साथ ही इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी भी पढ़े जाने की जरूरत है।
इसे ऐसे भी समझें कि मुस्लिम महिलाओं का मस्जिद या ईदगाह में जाना वर्जित है। पर क्या सेकुलरिज्म या जेंडर बायसनेस का झंडा बुलंद कर उन्हें वहां जाने की इजाजत दी जा सकती है?


दरअसल, बीएचयू के संस्कृत विभाग के अंतर्गत आने वाले संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में हिंदू धर्म, कर्मकांड, धार्मिक अनुष्ठान सहित हिंदू धर्म के वैज्ञानिक आधार पर शिक्षा-दीक्षा होती है। यहां से निकलने वाले छात्र पूरे विश्व में हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ बड़े-बड़े मंदिर में पुजारी के तौर पर मान्यता पाते हैं।
जो लोग प्रोफेसर फिरोज खान का समर्थन कर रहे हैं, वो अपनी जगह बिल्कुल सही हैं। संस्कृत एक भाषा है, जिसे हर कोई सीख सकता है, पढ़ सकता है। इसका शिक्षक बन सकता है। इन लोगों को समझने की जरूरत है संस्कृत भाषा है, यह धर्म नहीं है।

चौथा सवाल : फिर फिरोज खान को लेकर विरोध क्यों?
इसे आप इस प्रकार समझिए। जरा कल्पना कीजिए कि कोई हिंदू ब्राह्मण जिसे अरबी, फारसी और उर्दू का जबर्दस्त ज्ञान हो वह मदरसे में किसी मुस्लिम छात्र को मौलवी या इमाम बनने की शिक्षा दे सकता है।
या फिर कोई गुरुमुखी का ज्ञाता मुस्लिम व्यक्ति गुरुद्वारे में जाकर ग्रंथी बनने की शिक्षा दे सकता है। नहीं न!
फिर इसे कोई कैसे स्वीकार कर ले कि एक मुस्लिम प्रोफेसर जो संस्कृत का ज्ञाता है और वह बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त हो और वहां के बच्चों को हिंदू धर्म, मूर्ति पूजा सहित कर्मकांड, पुरोहिताई आदि की शिक्षा दे।

दरअसल, धर्म एक भाव है और धार्मिक शिक्षा अंतरभाव से उत्पन्न एक वेग। जिसे जिस धर्म में आस्था है वह उस धर्म की शिक्षा अंतरभाव से दे सकता है। किताबी ज्ञान लेकर ऐसी शिक्षा-दीक्षा नहीं दी जा सकती। बात विषय ज्ञान की नहीं बल्कि श्रद्धा, विश्वास और आस्था की है।

दिक्कत क्या है कि इन दिनों सेकुलरिज्म की व्याख्या करने वालों ने हमें धर्म, संप्रदाय में इस कदर बांट दिया है कि हम एक दूसरे के धर्म को सम्मान देने की जगह उसका अपमान करने में जुट गए हैं। सबरीमाला मंदिर प्रकरण हो या बीएचयू दोनों जगह ऐसा ही हो रहा है। धर्म और धार्मिक मान्यताओं पर प्रहार कर लोग खुद को बहुत बड़ा सेकुूलर घोषित करने में लगे हैं। खासकर जितना हिंदू धर्म और हिंदू धर्म की मान्यताओं का आप मजाक उड़ाएं आप उतने बड़े सेकुलरवादी कहलाएंगे। लानत है ऐसे सेकुलरिज्म पर।
हमें समझना होगा कि सेकुलर होने का मलतब यह नहीं कि आप दूसरे के धर्मों का मजाक बनाएं, उनकी मान्यताओं पर चोट करें। बल्कि सेकुलर का सही अर्थ यह है कि आप दूसरे के धर्म और मजहब का सम्मान करें।


और अंत में ....
मेरे मामा जी जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पासआउट हैं। यहां लंबे समय तक उन्होंने पढ़ाया भी। मध्यकालीन भारत उनका सब्जेक्ट था। जब इसमें एमफील कर रहे थे तो उन्हें अनुभव हुआ कि बिना उर्दू फारसी जाने मध्यकालीन भारत को ठीक से समझना कठिन है। उन्होंने बड़ी शिद्दत के साथ इसे सीखा, पढ़ा। जब जेएनयू से पीएचडी कर रहे थे तो रिसर्च वर्क में उन्हें इसी उर्दू फारसी के ज्ञान की बदौलत काफी मदद मिली। कुरान का एक-एक कलमा उन्हें रटा हुआ है। किसी उर्दू के शिक्षक से अच्छा उनका उर्दू-फारसी का ज्ञान है। क्या आप स्वीकार कर लेंगे कि वो किसी मदरसे में इमाम बनने की, कुरान की, या मौलवी बनने की शिक्षा-दीक्षा देने के लिए उपयुक्त हैं।
सिर्फ सेकुलर-सेकुलर मत रटिए। बल्कि सेकुलर बनने का प्रयास करिए। दूसरे के धर्म और मजहब का सम्मान करिए। सेकुलरिज्म की आड़ में बेवजह किसी दूसरे धर्म का मजाक मत बनाइए। धार्मिक आस्था और मान्यताओं को दरकिनार मत करिए। कुछ चीजें परदे में रहती हैं तो अच्छा लगता है। इस परदे को मत हटाइए।

Saturday, November 9, 2019

मुझे खबर नहीं मंदिर जले हैं या मस्जिद... मेरी निगाह के आगे तो सब धुंआ है मियां ...


मुझे खबर नहीं मंदिर जले हैं या मस्जिद.
मेरी निगाह के आगे तो सब धुंआ है मियां ...
शायर  डॉ. राहत इंदौरी ने जब इन पंक्तियों को लिखा होगा तो उनके मनएद में क्या चल रहा होगा यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन आज जब रामजन्म भूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और इसके बाद जिस तरह हिंदुस्तानियों ने संयम और सद्भाव का परिचय दिया, उसने एक नई इबारत जरूर लिख दी है। एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देकर न्याय की गरिमा बढ़ाई है, वहीं दूसरी तरफ भारत के लोगों ने आपसी प्रेम दिखाकर लोकतंत्र का मान बढ़ा दिया है। पूरे देश को पता है जब मंदिर या मस्जिद जलते हैं तो आम लोगों को सिर्फ धुुंआ ही नजर आता है। पर सियासतदानों के लिए जलते हुए मंदिर और मस्जिद बहुत उपयोगी होते हैं। शनिवार के पूरे दिन के घटनाक्रम पर गभीर मंथन करते हुए यह विचार आया कि हमें सियासती बाजीगरों से दूर रहने की ही जरूरत है।
अयोध्या मामले में जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली थी उसी दिन के बाद से पूरे देश में सांप्रदायिक माहौल को लेकर चिंता जताई जाने लगी थी। सभी राज्य अलर्ट मोड में आ गए थे। सबसे अधिक चिंता उत्तर प्रदेश को लेकर थी। फैसले के एक दिन पहले मुख्य न्यायाधीश ने भी यूपी के उच्च अधिकारियों को बुलाकर सुरक्षा व्यवस्था के पूरे निर्देश दिए थे। पर भारतीयों ने कहीं से भी इस बात का अहसास नहीं होने दिया था कि वो परेशान हैं। वो सामान्य तरीके से थे। फैसला आने के बाद भी लोगों ने इसे बेहद सामान्य तरीके से लिया। बधाई के पात्र हैं सोशल मीडिया के शूर वीर भी। इन शूर वीरों ने भी जिस संयम और सौहार्द का परिचय दिया वह एक नजीर बन गई है। भारतीय सोशल मीडिया आज तक इतना संयमित कभी नहीं रहा, जितना फैसला आने के बाद रहा। यही असली भारतीयता है। इसी आपसी भाईचारे ने हम भारतीयों को आज तक जिंदा रखा है। तमाम आक्रांताओं ने हिंदुस्तान को बर्बाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन वे न तो हिंदुस्तान को खत्म कर सके और न यहां के लोगों के अंदर के हिंदुस्तानियत को। इसमें भी दो राय नहीं कि सियासती लोगों ने अपने र्स्वाथों के कारण हिंदू-मुस्लिम के रूप में राजनीतिक रोटी को सेंकना जारी रखा। यही कारण है कि वैमनस्य भी बढ़ा। पर जिनके बीच वैमनस्व बढ़ा उन्हीं लोगों ने इसे दूर भी किया। वो कहते हैं न कि...
...हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है,
हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है।
गिले-शिकवे जरूरी हैं अगर सच्ची मुहब्बत है,
जहां पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है।

अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है। लंबे विवादों और तमाम सुलह के प्रयासों के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है उसने भी राजनीति के कर्णधारों को करारा तमाचा मारा है। राम मंदिर पिछले करीब चार दशकों से भारतीय राजनीति के केंद्र में रहा है। शायद ही ऐसी कोई राजनीतिक पार्टी हो जिसने इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा नहीं उठाया हो। खासकर 1992 के बाद राम मंदिर मुद्दे ने भारतीय राजनीति की धारा को ही बदल कर रख दिया था। सियासी सियारों ने अपनी राजनीति को धार देने के लिए हिंदू मुस्लिमों के बीच एक ऐसी विचारधारा को जन्म दे दिया था जिसमें लोग अपने विवेक का इस्तेमाल करना भूल गए थे। बहुत कुछ खोने के बाद जब इस भूल का अहसास हुआ तो हर तरफ न तो मंदिर जलते दिख रहे थे और न मस्जिद जलते, सिर्फ धुंआ ही दिख रहा था।
इस धुंए में लोगों ने अपने आप को देखा। अपनों को देखा। गंगा-यमुनी तहजीब देखी। फिर जाकर अहसास हुआ कि हम कहां हैं। हम क्या कर रहे हैं। शनिवार का दिन भी कुछ ऐसा ही था। शायद यही कारण था कि लोकतंत्र अपने सच्चे मायनों में सामने था। न्यायतंत्र अपनी जगह सही था और लोकतंत्र के छाते के नीचे हर कोई सिर्फ एक हिंदुस्तानी था। यह देखना कितना सुखद है। राम की जीत हुई और सियासी रावणों का आज अंत हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है कि आज के बाद किसी भी राजनीतिक दल के पास राम मंदिर मुद्दा नहीं होगा। कोई भी दल मंदिर मस्जिद के नाम पर राजनीति चमकाने से पहले चार बार सोचेगा। अगर किसी ने मंदिर मस्जिद के नाम पर बांटने की कोशिश भी की तो हमें एक हिंदुस्तानी बनकर उन्हें करारा जवाब देना होगा। जैसा अभी दिया है।
मंदिर मस्जिद के नाम पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने, देश की अखंडता, एकता, समरसता पर कुठाराघात करने वालों को हिंदुस्तानियों जो करारा जवाब दिया है वह एक नजीर बन गई है। फैसला चाहे जो आता, लेकिन उस फैसले से पहले ही तमाम हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों ने यह बात स्पष्ट कर दी थी कि किसी भी कीमत पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने नहीं दिया जाएगा।

जरा मंथन करिए और सोचिए कि जिस राम मंदिर की वर्षों से सेवा करने वाला एक मुसलमान है। जिस पुरातत्व विभाग के रिपोर्ट को आधार बनाकर कोर्ट ने अपना फैसला दिया है उस रिपोर्ट को बनाने वाला एक मुस्लिम अधिकारी है। मुस्लिम पक्ष का मुकदमा लड़ने वाला वकील एक हिंदू है। ऐसे हिंदुस्तान में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों की क्या हैसियत। यह हमारी और आपकी ही जिम्मेदारी है कि इस तहजीब और सद्भाव को बनाएं। सियासत का मूल मंत्र ही है कि लड़वाओ और शासन करो। हमेशा से ऐसा ही होता आ रहा है। पर जब-जब एक आम आदमी ने अपनी अक्ल से काम लिया है ऐसे सियासतदानों को करारा जवाब ही मिला है।
फैसले के बाद जिस तरह ओवैसी जैसे नेताओं ने तीखे बोल से प्रतिक्रिया दी और लोगों को भड़काने का काम किया वो बेहद निंदनीय है। पर लोगों ने जिस समझदारी का परिचय दिया उसका कोई मोल नहीं। मंथन करें कि क्यों नहीं इस अनमोल समझदारी को हर एक हिंदुस्तानी हमेशा दिल में रखे। हमें समझने की जरूरत है कि लोकतंत्र का आधार राजनीति है, पर राजनीति का आधार सांप्रदायिक नहीं हो सकता। अंत में चलते-चलते मेरे परम प्रिय शायर मुनव्वर राणा की इन चार पंक्तियों को जरूर पढ़ें और हमेशा गुनगुनाते रहें कि..
मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है,
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है।
तवायफ की तरह अपने गलत कामों के चेहरे पर,
हुकूमत मंदिरों-मस्जिद का पर्दा डाल देती है।

Thursday, October 24, 2019

मोदी मैजिक और भाजपा की "दुर्गति" के मायने


त्वरित टिप्पणी
चुनाव से पहले का दृश्य...सभी कहते रहे : आर्थिक मंदी है, लोग परेशान हैं। आॅटो सेक्टर की बैंड बजी है।

भाजपा के नेता कहते रहे : कहां मंदी है? गाड़ियों की एडवांस बुकिंग ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आॅनलाइन शॉपिंग बाजार ने करोड़ों का बिजनेस कर लिया है।

सभी कहते रहे : युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। सरकारी नौकरियों की भर्ती का रिकॉर्ड सबसे बुरे दौर में है।

भाजपा के नेता कहते रहे : हमने रिकॉर्ड नौकरी दी है। पुरानी सरकारों का रिकॉर्ड निकाल लो, फिर कहना।

मतदान के बाद का दृश्य

एग्जिट पोल कहते रहे : मोदी मैजिक फिर काम कर गया है। हरियाणा और महाराष्ट्र में रिकॉर्ड वोट से भाजपा सरकार बनाएगी।

वोटर्स ने कहा : सिर्फ मोदी मैजिक ही रटते रहोगे या जमीन स्तर पर काम करोगे, अभी टेलर दिखाया है। काम नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में दिल्ली, झारखंड सहित कई राज्यों में चुनाव है। पूरी फिल्म दिखाएंगे।

मोदी सरकार पार्ट-2 के बाद महाराष्ट्र और हरियाणा का विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना था। उम्मीद की जा रही थी कि दोनों ही राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहेगा। हरियाणा को लेकर तो स्थानीय नेतृत्व इतना उत्साह में था कि 75 प्लस से नीचे कोई बात ही नहीं करता था। पर वोटर तो वोटर ही है। उसने सभी नारों की ऐसी हवा निकाली कि सारा समीकरण ही उलट-पलट कर रख दिया। महाराष्ट्र में भी पिछले विधानसभा चुनाव से कम सीट भाजपा को मिली है। इसके अलावा 17 राज्यों में हुए उपचुनाव में भी भाजपा की स्थिति कमजोर हुई है। 52 में से सिर्फ 15 सीट मिलना ब हुत कुछ बयां कर रहा है। यहां तक कि गुजरात में भी भाजपा को वोटर्स ने स्पष्ट संदेश दे दिया है।


दरअसल, यह चुनाव जहां एकतरफ भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना हुआ था, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न था। कांग्रेस ने तो अपनी लाइफ को रिचार्ज करवा लिया, लेकिन भाजपा की प्रतिष्ठा को गहरा ठेस पहुंचा है। निश्चित तौर पर हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों ही जगह भाजपा सरकार बना लेगी, पर इसके साथ ही पार्टी के लिए आत्ममंथन का दौर जरूर शुरू होगा। आत्ममंथन इस बात पर किया जाना जरूरी है कि आखिर मजबूत स्थिति में रहते हुए पार्टी ने कहां गलती कर दी। कुछ ऐसी ही स्थिति गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार जैसे राज्यों की भी रही है। नागपुर जैसे घोर भाजपा और आरएसएस वाले क्षेत्र में आए चुनावी परिणाम ने कड़ा संदेश दिया है। आरएसएस के गढ़ में इस बार कांग्रेस ने सेंध लगा दी है। इससे पहले हुए 2014 के विधानसभा चुनाव में जहां नागपुर जिले की 12 सीटों में से 11 पर बीजेपी का कब्जा था, लेकिन इस बार यह फासला आधे से भी कम हो गया।
अगर हरियाणा की बात की जाए तो 1982 से लेकर 2009 तक भाजपा ने कुल 47 सीट हासिल की थी, पर 2014 में एक साथ 47 सीटें जीत कर रिकॉर्ड बना लिया। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी दस की दस सीट जीतकर भाजपा ने जता दिया था कि हरियाणा में भाजपा का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। पर अचानक से भाजपा का ग्राफ ऐसा गिरा कि चुनाव परिणाम ने सभी को वास्तविकता के धरातल पर लाकर पटक दिया।


ऐसा नहीं था कि भाजपा को हरियाणा में अपनी ग्राउंड रियलिटी का पता नहीं था, पर राज्य का कोई भी बड़ा नेता इसे स्वीकार नहीं कर रहा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सात बड़ी चुनावी रैलियों ने भी कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ा। हालात यहां तक खराब हुए कि सरकार के पांच कद्दावर मंत्री भी चुनाव हार गए हैं। हरियाणा में पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान भाजपा ने सिर्फ और सिर्फ राष्टÑीय मुद्दों पर ही फोकस किया। राष्टÑीय नेता अगर कश्मीर, धारा 370, पाकिस्तान, अमेरिका आदि पर चर्चा करें तो समझ में भी आता है, लेकिन हाल यह था कि स्थानीय नेता भी चुनावी मंच से केंद्र सरकार का ही राग अलापते रहे।

लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में जमीनी अंतर होता है। जनता राज्य के अंदर अपनी बातों को खोजती है। उसे इस बात से अधिक मतलब नहीं होता है कि कश्मीर में शांति है कि नहीं, वहां व्यापार चल रहा है कि नहीं। उसे इस बात से मतलब होता है कि हमारे राज्य में व्यापारियों का क्या हाल है। युवाओं को रोजगार मिला की नहीं। प्रदेश में महिलाएं और बेटियां सुरक्षित हैं या नहीं। सिर्फ बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ के नारे वोट में तब्दील नहीं हो सकते हैं।
महाराष्ट्र में भी भाजपा निश्चित तौर पर सत्ता में वापसी कर चुकी है। पर यहां भी मोदी मैजिक के भरोसे पार्टी रही है। हालांकि यह कहने में गुरेज नहीं कि यहां मोदी मैजिक फीका ही रहा है। पंकजा मुंडे के क्षेत्र में प्रधानमंत्री मोदी की भव्य रैली करवाई गई। पर हाल देखिए स्वयं पंकजा मुंडे ही चुनाव हार गई हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में भी भाजपा ने पूरी मनमानी की। शिवसेना बेबस और खामोश बनी रही। पर अब स्थिति दूसरी है। शिवसेना पूरी हनक के साथ अपनी शर्तों को मनवाने की तैयारी कर चुकी है। 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी दोनों अलग अलग चुनाव लड़े थे। तब बीजेपी ने 122 सीटें जीती थी और शिवसेना को 63 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस बार दोनों मिल कर चुनाव लड़े और शिवसेना फायदे में रही।
कांग्रेस ने निश्चित तौर पर तमाम झंझावतों को झेलते हुए अपना पुराना रंग दिखाया है। महाराष्ट्र, हरियाणा से लेकर भाजपा के गढ़ वाले इलाकों में भी अपनी शानदार धमक दिखाकर कांग्रेस ने जता दिया है कि अभी वह सिर्फ कमजोर हुई थी खत्म नहीं। हरियाणा में तो कांग्रेस ने इतने झंझावत झेले कि कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ही पार्टी छोड़ गए। पर सोनिया गांधी ने अपनी पुरानी टीम पर भरोसा दिखाया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा की जोड़ी ने टिकट बंटवारे से लेकर स्थानीय मुद्दों पर फोकस करते हुए चुनावी कैंपेन को संचालित किया। इसका परिणाम आज सामने है। भले ही अभी सत्ता तक पहुंचने में उसे काफी पापड़ बेलने पड़ जाएंगे, लेकिन एक बात तो तय है कि दमदार विपक्ष के साथ भी वह भारतीय जनता पार्टी को आने वाले समय में चैन से नहीं रहने देगी। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है। हरियाणा कांग्रेस भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करने में अपना सार्थक योगदान देगा इसकी उम्मीद की जाती है।
इस चुनाव के बाद निश्चित तौर पर भारतीय जनता पार्टी को आत्ममंथन करते हुए जनता से जुड़ी जमीनी दिक्कतों पर फोकस करना होगा। रोजगार, मंदी जैसे तमाम मुद्दों पर आंकड़ों की बाजीगरी से परे सरकार को ठोस काम करना होगा। नहीं तो मोदी मैजिक के भरोसे बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है।

Saturday, July 13, 2019

एंड्रायड फोन बम है और इंटरनेट इसका बारूद!


आज मंथन से पहले एक छोटी सी घटना का जिक्र कर रहा हूं। इसे पढ़िए फिर आगे की बात करेंगे। शनिवार सुबह मेरी सोसाइटी में ही रहने वाले मेरे मित्र अपनी पत्नी के साथ मेरे घर चाय पीने लिए आ गए। घूमने फिरने पर चर्चा होने लगी। उन्होंने कहा कि एक बार अंडमान निकोबार जाने की इच्छा हो रही है। मुझसे वहां के बारे में पूछने लगे। करीब 15 से बीस मिनट तक हम लोगों ने चाय की चुस्की के साथ अंडमान निकोबार के बारे में बातें की। बातों ही बातों में मेरे मित्र के मन में विचार आया कि क्यों न एक बार दिल्ली से अंडमान की फ्लाइट और उसके फेयर के बारे में चेक किया जाए। उन्होंने चर्चा की और अपना सैमसंग का बिल्कुल लेटेस्ट वाला मोबाइल आॅन कर लिया। पर जैसे ही उन्होंने फ्लाइट सर्च का आॅप्शन खोला वो चौंक गए। वो हैरान परेशान थे। उन्होंने कहा भाई साहब ये कैसे हो सकता है कि हम अभी अंडमान के बारे में चर्चा कर रहे हैं और जैसे ही मैंने फ्लाइट आॅप्शन खोला यहां आॅलरेडी दिल्ली टू अंडमान फ्लाइट की डिटेल फ्लैश हो रही है। उन्होंने बताया कि इससे पहले कभी भी उन्होंने दिल्ली टू अंडमान फ्लाइट की डिटेल सर्च नहीं की थी।
मेरे मित्र परेशान थे। पर क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है? क्या आपने कभी गौर किया है कि जिस चीज के बारे में आप कभी सोच रहे हैं, बात कर रहे हैं किसी से उन बातों को शेयर कर रहे हैं, वो अचानक से आपके मोबाइल स्क्रीन पर किसी वेबसाइट को खोलते ही क्यों फ्लैश होने लगता है? क्या कभी इस पर गौर किया है कि एक बार आपने कोई प्रोडक्ट लेने की बात सोची और किसी वेबसाइट पर विजीट कर लिया तो क्यों बार-बार किसी दूसरी वेबसाइट को खोलते ही सबसे पहले वही प्रोडक्ट फ्लैश होने लगता है। अगर अब तक गौर नहीं किया है तो गौर करना शुरू कर दीजिए। मंथन करना शुरू कर दीजिए कि आखिर आपके मन की बात पूरी दुनिया की कंपनी को क्यों पता चल जा रही है। दरअसल आप जितना ही गैजेट फ्रेंडली और टेक्नो फ्रेंडली हो रहे हैं उतना ही अधिक आपकी प्राइवेसी पर खतरा बढ़ता जा रहा है। आपको पता भी नहीं चल रहा है और लाखों वेबसाइट की निगाहें आपके बेडरूम और बाथरूम तक पहुंच जा रही हैं। दो दिन पहले ही अमेरिकी रेग्युलेटर फेडरल ट्रेड कमीशन (एफटीसी) ने डेटा लीक मामले में फेसबुक पर 5 अरब डॉलर (करीब 34 हजार करोड़ रुपए) के जुर्माने की सिफारिश की है। किसी टेक कंपनी पर यह अब तक की सबसे बड़ी पेनल्टी होगी। इससे पहले 2012 में गूगल पर प्राइवेट डेटा लीक मामले में 154 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया था। मार्च 2018 में फेसबुक के डेटा लीक का सबसे बड़ा मामला सामने आया था। एफटीसी ने फेसबुक को यूजर्स के डेटा की प्राइवेसी और सुरक्षा में चूक का दोषी पाया है।
यह मामला इसलिए मीडिया के जरिए हाईलाइटेड है क्योंकि यह मार्क जुगरबर्क और फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी से जुड़ा मामला है। पर आप सोचिए आपके एंड्रॉयड फोन में जितने तरह के ऐप हैं वह आपका कितना डाटा चोरी कर रहे हैं। कोई भी नया ऐप अगर आप इंस्टॉल करते हैं तो सबसे पहले वह आपके फोटो, वीडियो, एसएमएस, कैमरा आदि का एक्सेस मांगता है। आपको वह ऐप बताएगा कि अगर आपने एक्सेस परमिशन दिया तो आपको उस ऐप को यूज करने में और अधिक सुविधा होगी। पर क्या आपने कभी मंथन किया है कि अगर किसी होटल की जानकारी वाले ऐप को इंस्टॉल करते हैं तो क्यों वह आपके मोबाइल कैमरे के एक्सेस की परमिशन मांग रहा है। उसे भला क्या मतलब है कि वह आपके कैमरे या फोटो वीडियो की एक्सेस मांगे। पर आप दे दनादन एक्सेस परमिशन दे देते हैं। तमाम तरह के ऐप्स ने निश्चित तौर पर आपके जीवन को आसान बना दिया है, लेकिन यह आपके जीवन में कितने अंदर तक घुस चुका है इसका आपको अंदाजा भी नहीं है।
मेरे एक सीनियर हैं। वो रोज रात में करीब 12 से 15 किलोमीटर पैदल चलते हैं। उन्होंने अपने मोबाइल में आॅप्शन आॅन कर रखा है कि उनका मोबाइल इसका हिसाब किताब रखे कि वो कितना किलोमीटर चलें। मंथन करिए जरा, वो नाइट वॉक में मोबाइल यूज भी नहीं करते, लेकिन उनके मोबाइल के पास उनके एक-एक कदम का हिसाब है। अगर उन्होंने हेल्थ वॉक से जुड़ा कोई ऐप डाउनलोड कर लिया तो उनके कैलोरी से लेकर उनके ब्लड प्रेशर तक की सटीक जानकारी उनके मिल जाएगी। अब मंथन करिए जरा। सिर्फ मोबाइल अपने पास रखने से आपके हेल्थ और हर एक कदम की जानकारी जब किसी अननोन वेबसाइट के डाटा बेस में सेव हो रही है तो जब आप किसी वेबसाइट या ऐप को अपना सारा एक्सेस दे देते हैं तो वो क्या क्या नहीं कर सकता है आपके फोन के जरिए।
हाल ही में गूगल को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। इसमें बताया गया है कि कैसे स्मार्ट फोन, ऐलेक्सा जैसे होम स्पीकर्स और सिक्योरिटी कैमरे में दिए गए गूगल असिस्टेंड आपकी पर्सनल बातों को सुन रहे हैं। वो आपकी बातों को रिकॉर्ड कर रहे हैं और आपकी जरूरतों के अनुसार रिएक्ट कर रहे हैं। मैंने ऊपर अपने दोस्त के साथ अंडमान वाली बात का जो जिक्र किया था वो इसी गुगल असिस्टेंड का परिणाम था। आप मोबाइल पर क्या सुनते हैं, क्या सर्च करते हैं, आपकी जरूरतें क्या क्या हैं, आपने किन बातों के लिए गूगल सर्च किया है, हर बात का रिकॉर्ड गूगल अपने डाटा बेस में सेव करता रहता है। आपकी जरूरतों के मुताबिक जैसे ही आप कोई वेबसाइड एक्सेस करते हैं आपके द्वारा पूर्व में किए गए सारी बातों और रिएक्शन के जरिए आपको उससे संबंधित विज्ञापन दिखाए जाने लगते हैं। तमाम तरह के बैंकिंग ऐप, ई-मेल, यूट्यूब, शॉपिंग ऐप, ट्रैवलिंग ऐप के जरिए आपका मोबाइल फोन एक चलता फिरता बम है और इंटरनेट बारूद के समान है, जो कभी भी फट सकता है। आपके निजी फोटो, वीडियो, बातों की रिकॉर्डिंग कब गलत हाथों में चली जाए आपको पता भी नहीं चलेगा। याद करिए तीन से चार साल पहले जब एंड्रायड फोन का चलन अचानक से बढ़ गया था तो कैसे भारत में पोर्न साइट्स की बाढ़ आ गई थी। हालात यहां तक खराब हो गए थे कि भारत सरकार को हजारों पोर्न साइट्स बंद करनी पड़ी थी। क्या कभी आपने सोचा है कि इन पोर्न साइट्स पर इतने अधिक कंटेंट कहां से पहुंच गए थे। दरअसल वो सब आपके निजी फोन के बेडरूम और बाथरूम कंटेंट थे, जो बड़े मजे से पोर्न साइट्स पर देखे जा रहे थे।

भारत में एक तरफ जहां इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हो रही है, वहीं उसी रफ्तार में साइबर क्राइम भी बढ़ता जा रहा है। इस वक्त हमारी सरकार का पूरा जोर इंटरनेट यूजर्स को बढ़ाने और हर एक सरकारी व्यवस्था को डिजिटलाइज करने पर लगा है। पर साथ ही साथ मंथन करने का वक्त है कि वर्चुअल वर्ल्ड में हमारा पर्सनल डाटा कितना सुरक्षित है। हमारे भारत में मजबूत डाटा संरक्षण कानून की जरूरत लंबे वक्त से महसूस की जा रही है। पर अफसोस इस बात का है कि इतना लंबा वक्त गुजर जाने पर भी हम डाटा संरक्षण कानून को अब तक मूर्त रूप नहीं दे सके हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, चीन, जर्मनी, आॅस्ट्रेलिया सहित करीब चालीस देशों में मजबूत डाटा संरक्षण कानून मौजूद है। पड़ोसी देश चीन में तो इतना मजबूत कानून है कि वहां ट्विटर जैसा वैश्विक सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म तक प्रतिबंधित है। इन देशों ने इसलिए स्थिति पर नियंत्रण पा लिया है क्यों कि इनके पास इंटरनेट और डाटा संरक्षण को लेकर अपने कानून हैं, जबकि भारत में स्थिति विपरीत है।
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मौजूद समय में भारत में डाटा संरक्षण को लेकर कोई कानून ही नहीं है। न ही कोई संस्था है जो डाटा की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करती हो। हां इतना जरूर है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43-ए के तहत डाटा संरक्षण के लिए उचित दिशा निर्देश दिए गए हैं। पर ये निर्देश सिर्फ कागजों तक ही सीमित माने जाते हैं।
केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले दिनों राज्यसभा में बताया है कि भारत में डाटा संरक्षण कानून को लेकर अभी मंथन चल रहा है। यह अर्लामिंग सिचुएशन है। सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को इन मुद्दों पर कठघरे में खड़ा कर चुकी है। कई बार सवाल पूछे जा चुके हैं। पर अब तक डाटा संरक्षण कानून को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सरकार जल्द ही इस संबंध में आगे बढ़ेगी। फिलहाल अपनी सुरक्षा आपके अपने हाथों के भरोसे ही है। इंटरनेट को लेकर, अपने एंड्रायड फोन को लेकर, तमाम तरह के ऐप्स को लेकर मंथन करें। जागरूक बनें और खुद को बचाएं।

http://www.aajsamaaj.com/android-phone-is-bombs-and-the-internet-is-dynamite/70283

Wednesday, June 26, 2019

ताराकोट मार्ग से मां वैष्णव देवी की यात्रा


जिस धार्मिक स्थल पर करीब एक करोड़ से अधिक लोग हर साल पहुंचते हैं, वहां अगर कोई नई सुविधा मिल जाए तो यह किसी सौगात से कम नहीं है। कुछ ऐसा ही वैष्णव देवी जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए खुला नया मार्ग है। इस नए मार्ग का नाम है ताराकोट मार्ग। 20 जून को मैंने परिवार के साथ इसी मार्ग से यात्रा की। आइए आपको भी लेकर चलता हूं इसी मार्ग से माता के दरबार तक।

दरअसल वैष्णव देवी भवन तक पहुंचने के लिए बेस कैंप कटरा है। यहां से आप तमाम तरीके से 13 किलोमीटर ऊपर त्रिकुटा पर्वत स्थित माता वैष्णव देवी भवन तक पहुंच सकते हैं। सबसे पुराना मार्ग बाणगंगा की तरफ से है। कटरा बस स्टेशन से बाणगंगा तक आप आॅटो के जरिए पहुंच सकते हैं। यहीं से आपको घोड़ा, पालकी और पिठ्ठू की सुविधा मिलती है। श्राइन बोर्ड ने प्री-पेड बूथ स्थापित कर रखे हैं जहां से आप तय राशि देकर कोई सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि भवन पहुंचने वाले करीब अस्सी प्रतिशत लोग पैदल ही भवन तक की 13 किलोमीटर यात्रा पूरी करते हैं। बाणगंगा से अर्द्धकुंवारी तक की दूरी छह किलोमीटर है। फिर यहां से आगे सात किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है, जिसे हाथी मत्था की चढ़ाई कहते हैं। अर्द्धकुंवारी से ही एक नया रास्ता भी बना है जिसे हिमकोटी मार्ग कहते हैं। जिन यात्रियों को हाथी मत्था की खड़ी चढ़ाई नहीं करनी है वह हिमकोटी मार्ग से जा सकते हैं। हिमकोटी मार्ग से घोड़े और खच्चड़ नहीं जाते हैं। वह पुराने मार्ग यानि हाथी मत्था होकर ही जाते हैं। जो सांझी छत की तरफ से जाता है।
अगर आप कटरा से हेलिकॉप्टर सुविधा लेते हैं तो वह हेलिकॉप्टर भी आपको सांझी छत तक ही छोड़ता है। वहां से करीब ढ़ाई किलोमीटर तक आपको पैदल चलना पड़ता है। हालांकि अब सांझी छत से आपको घोड़ा और पालकी की सुविधा भी मिलनी शुरू हो गई है।
ये तो हुई पुराने रास्तों और सुविधाओं की बात। पर अब वैष्णव देवी के श्रद्धालुओं के लिए श्राइन बोर्ड ने नए रास्ते की सौगात दी है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रास्ते का उद्घाटन किया था। यह रास्ता ताराकोट गांव की तरफ से जाता है, जिसे ताराकोट मार्ग कहा जाता है।
यह मार्ग उन यात्रियों के लिए सबसे बेहतर है जो भवन तक की यात्रा पैदल पूरी करना चाहते हैं। कटरा बस स्टैंड से आॅटो जिसमें चार लोग बैठ सकते हैं, दो सौ पांच रुपए देकर आप ताराकोट मार्ग के एंट्री प्वाइंट तक पहुंच सकते हैं। इंट्री गेट तक आॅटो की सुविधा मौजूद है। यहीं से आपको पिठ्ठू मिल जाएगा। इन पिठ्ठुओं के पास अब बच्चों के लिए आधुनिक प्रैंप भी मौजूद रहती है।  पिठ्ठू के रेट भी श्राइन बोर्ड ने तय कर रखे हैं। रेट डिस्पले भी है और प्री-पेड काउंटर भी मौजूद है।
आधुनिक तरीके से तैयार ताराकोट मार्ग
जो यात्री पहली बार वैष्णव देवी की यात्रा कर रहे हैं उनके लिए यह मार्ग बेहद निरस लगेगा। ऐसे में मेरी सलाह है कि वो बाणगंगा होकर पुराना रास्ता ही लें, जिसमें उन्हें बाणगंगा के दर्शन, चरण पादुका मंदिर के दर्शन, अर्द्धकुंवारी के दर्शन होंगे। साथ ही उस मार्ग पर चारों तरफ मौजूद चहल पहल भी देखने को मिलेगी। अगर आप ताराकोट मार्ग से जाते हैं तो आपको थोड़ी निराशा हाथ लगेगी।
ताराकोट मार्ग बेहद आधुनिक तरीके से तैयार किया गया है। यह रास्ता अर्द्धकुंवारी तक सात किलोमीटर तक का है। बता दूं कि बाणगंगा होकर जाने पर दूरी छह किलोमीटर है। अर्द्धकुंवारी से यह मार्ग हिमकोटी वाले मार्ग से जुड़ गया है। जहां से भवन की दूरी सात किलोमीटर है। ताराकोर्ट मार्ग पर न तो घोड़े-खच्चर और न पालकी की सुविधा है। यहां सिर्फ पिठ्ठू ही मौजूद मिलेंगे। जैसा की मैंने बताया कि यह रास्ता बेहद आधुनिक तरीके से बनाया गया है। यह  7 किमी लंबा ये रास्ता बालिनी ब्रिज से अर्द्धकुंवारी को जोड़ता है।
पुराने रास्ते पर कहीं-कहीं ही आपको शेड मिलेंगे, जबकि इस नए रास्ते को 95 प्रतिशत अत्याधुनिक शेड से ठंका गया है। जिससे आप गर्मी, बारिश और बर्फबारी में भी आराम से पैदल यात्रा कर सकते हैं। यह रास्ता काफी चौड़ा है जिससे महिंद्रा पिकअप और एंबूलेंस भी आसानी से आ जा सकती है। इस रास्ते पर अत्याधुनिक एंटी स्किड टाइल्स भी लगाई गई है, जिससे पैदल यात्रियों को काफी सुविधा होती है। साथ ही इस मार्ग पर स्लोप स्टैबेलाइजेशन टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया गया है, ताकि चढ़ाई सरल रहे। सीधे शब्दों में कहें तो चढ़ाई बिल्कुल सामान्य है, खड़ी चढ़ाई नहीं है। बाणगंगा होकर जाने पर आपको बिल्कुल खड़ी चढ़ाई मिलेगी।
ताराकोट मार्ग पर हर दो सौ मीटर पर वॉटर कुलर एटीएम लगाए गए हैं, जहां आरओ का स्वच्छ पानी आपके लिए मुफ्त उपलब्ध है। पूरे रास्ते को मल्टीपर्पज आॅडियो सिस्टम से लैस किया गया है। इस रास्ते में बाणगंगा की तरह आपको जगह-जगह खाने पीने के स्टॉल नहीं मिलेंगे। आधुनिक रूप से तैयार व्यू प्वॉइंट पर आपको कैफेटएरिया मिलेंगे। इस रास्ते में आपको करीब छह व्यू प्वाइंट और कैफेटएरिया मिलेंगे।

ताराकोट में तैयार किया गया पार्क।
रास्ते के मिड प्वाइंट जहां ताराकोट गांव स्थित है वहां पहुंचकर आपको बेहद सुकून मिलेगा। ताराकोट प्वाइंट को बेहद आकर्षक तरीके से सजाया और संवारा गया है। यहां पार्क के अलावा फव्वारे भी लगाए गए हैं। यहीं श्राइन बोर्ड की तरफ से 24 घंटे का फ्री लंगर भी स्थापित किया गया है। लंगर हॉल छोटा है, लेकिन बेहद साफ सुथरा और व्यवस्थित है। इसी लंगर हॉल की साइड में शौचालय भी बनाया गया है। हालांकि लोगों की भीड़ को देखें तो और अधिक शौचालय की जरूरत महसूस होती है।शौचालयों का प्रबंधन भी ठीक नहीं है। फिलहाल यहां साफ सफाई की बेहद कमी है, जबकि रास्ते में पड़ने वाले तमाम शौचायल बेहद साफ सुथरे नजर आए।  यहां से घाटियों का बेहद खूबसूरत नजारा आप देख सकते हैं। यहां पहुंचकर आपकी सारी थकावट दूर हो जाएगी।
तारोकोट में श्राइन बोर्ड का लंगर हॉल।
यहां से अर्द्धकुंवारी की दूरी अधिक नहीं है। अर्द्धकुंवारी से जाने वाले हिमकोटी के नए रास्ते में इस रास्ते को मिला दिया गया है। अर्द्धकुंवारी में अगर आपको दर्शन करना है या रुकना है तो आपको करीब तीन सौ मीटर दूसरी तरफ चलना होगा। यहीं से आपको बैटरी आॅपरेटेड आॅटो की सुविधा भी मिलेगी। पहले सिर्फ बुर्जुगों और दिव्यांगजनों के लिए ही यह सुविधा थी। पर अब कोई भी व्यक्ति यह सुविधा ले सकता है। प्रतिव्यक्ति 357 रुपए का टिकट है। आॅटो सुविधा लेने के लिए आपको लंबा इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि आॅटो सीमित है, जबकि यात्रियों की भीड़ काफी अधिक है। आॅटो भी हिमकोटी वाले पैदल रास्ते से ही संचालित होती है। इसलिए आपको सावधानी के साथ पैदल चलना होता है। अर्द्धकुंवारी से करीब 7 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़कर आप भवन तक पहुंचते हैं।
भवन से भैरव स्थान जाने के लिए रोपवे की सुविधा।

रोपवे की सुविधा
भवन में मां वैष्णव देवी का दर्शन करने के बाद यात्री भैरव स्थान जाते हैं। भैरव स्थान जाने के लिए बेहद खड़ी चढ़ाई चढ़नी होती थी, पर अब भवन के पास से ही रोपवे की सुविधा मिल गई है। निर्धारित टिकट प्राप्त कर आप रोपवे से सीधे भैरव स्थान पहुंच सकते हैं। आप रोपवे से या तो दोबारा नीचे आकर हिमकोटी के रास्ते नीचे उतर सकते हैं। या फिर भैरव घाटी होते हुए, पुराने रास्ते हाथी मत्था, अर्द्धकुंवारी होते हुए बाणगंगा तक पहुंच सकते हैं। भैरव घाटी से से आपको नीचे उतरने के लिए घोड़े भी मिल जाएंगे। श्राइन बोर्ड ने यात्रियों की सुविधा के लिए सबसे अधिक ध्यान तमाम चीजों के रोट्स पर दिया है। पहले रेट्स को लेकर यात्री बेहद कंफ्यूज रहते थे। अब सभी के रेट्स निर्धारित हैं। जगह-जगह बोर्ड भी लगे हैं और प्री-पेड काउंटर्स भी हैं।
अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा तो इसे शेयर जरूर करें ताकि माता के दरबार में जाने वाले भक्तों के लिए सुविधा हो।  

Sunday, June 23, 2019

इस एक फल ने सभी को ‘फेल’ कर दिया


कल मैंने फेसबुक पर इस फल की एक तस्वीर डालकर इसके बारे में आप सभी से पूछा था। जबर्दस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली। साथ ही एक साथ इतने सारे फलों के नाम भी जानने को मिले। सभी ने अपनी-अपनी जानकारी के अनुसार नाम सही बताए, क्योंकि इस तरह के मिलते जुलते फल भारत के सभी इलाकों में पाए जाते हैं। खासकर उत्तर भारत में इस तरह के फल देखने को मिलते हैं।

पर यह फल उन सभी फलों में सबसे अलग है। यह राजस्थान का स्पेशल फल ‘काचर’ है। तमाम लोगों ने इस फल को कोहड़ा, कोहड़, काढ़ला, कदिमा, पतिसा, कुम्हड़ा, खबहा, छहुआ कोहड़ा, बरिया कोहणा, ककड़ी बताया। जिन लोगों ने इस फल के नाम बताए वो उत्तरप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखते हैं। सभी ने एक से बढ़कर एक नए नाम बताए, जो वहां के स्थानीय बोली में प्रचलित हैं। पर जितने भी नाम बताए गए उनमें से अधिकतर का आशय पेठा बनाने वाले फल से था।
पर यह काचर फल उन सभी में से अलग है। यह राजस्थान के रेतिले और बेहद गर्म वाली जगह में पैदा होता है। यह खरबूजे की प्रजाति का ही फल है। पर यह खाने में थोड़ा खट्टापन लिए होता है। जिस तरह आप पपीता को काटते हैं, ठीक उसी तरह जब आप इसे काटेंगे तो आपको पहली झलक में पपीता ही नजर आएगा। पपीते की तरह की बीच में दो भाग होते हैं जिसमें बीज भरा होता है। 
राजस्थान के इलाकों में इस फल को सुखाकर आमचूर की तरह भी प्रयोग में लाया जाता है। स्थानीय लोग इसे सुखाकर इसका पाउडर बनाते हैं और बेचते हैं। जब यह फल होता है तब इसका नाम काचर होता है, लेकिन जब पाउडर बन जाता है तो यह काचरी के नाम से जाना जाता है।
काचर के साथ सबसे मजेदार बात यह है कि काचर को आप कच्चे में सब्जी बनाकर खा सकते हैं। थोड़ा पक जाए तो छिलका उतारकर इसे सलाद के रूप में खा सकते हैं। या फिर आप तरबूज या खरबूज की तरह कभी भी हल्के नमक के साथ खा सकते हैं।  इस फल को लगाने के लिए कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ती है। इसकी बेल खेतों में अपने आप उग आती है। जिस तरह पपीते में बीच की बहुतायत होती है और उसके बीज कहीं फेंक दिए जाए तो पेड़ उग आता है। ठीक उसी तरह काचर के साथ भी है। काचर जब कच्चा रहे तो इसकी मसालेदार सब्जी बनाई जाती है। हमारे बिहार में सिलौटी पर लहसून, लाल मिर्च और पीली सरसों पीस कर जो मसाला तैयार होता है उसी तरह के मसाले में अगर इस काचर को बनाया जाए तो मेरे जैसे चटोरों की चांदी हो जाए।

राजस्थान के मेरे मित्र कल अपने फॉर्म हाउस से इसे लेकर आए थे। उन्होंने पिछले दो साल से इस फल का वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन शुरू किया है। बताते हैं कि अभी इस पर रिसर्च भी चल रहा है, इस फल में औषधिय गुण भी प्रचुर मात्रा में है। राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में इससे देसी उपचार भी होता है। पेट के लिए यह रामबाण उपाय है। जिनके कब्ज की शिकायत है, या फिर जिनकी पाचन शक्ति कम हो गई। वो अगर रोज सुबह इसका सेवन करें तो चमत्कारिक फायदा होता है। इस फल को खाने के समय सिर्फ एक सावधानी बरतनी होती है कि आप इसे खाने के बाद पानी का सेवन बिल्कुल न करें। हो सके तो आधे घंटे तक पानी न पीएं।
तो अगली बार जब आप राजस्थान की यात्रा पर निकलें तो काचर का स्वाद जरूर लें। भीषण गर्मी में ही आप इसका स्वाद ले सकते हैं।

Thursday, May 30, 2019

चुंबकीय आकर्षण की गोद में कसार देवी की अद्भुत यात्रा

कसार देवी का अद्भूत नजारा। 
पत्रकारिता से सन्यास लेकर ययावरी लेखन कर रहे विश्वनाथ गोकर्ण भैय्या का दो दिन पहले फोन आया। उन्होंने मुसाफिर पर मेरी गंगोत्री यात्रा और गुफा स्टे के बारे में पढ़ने के बाद फोन किया था। कहने लगे, तुम तो ऐसी यात्रा के बारे में बता दिए जहां जाने का मन कर रहा है। फिर चर्चा चलने लगी कि कुछ और ऐसी ही यात्रा के बारे में। पूछने लगे कि कुछ दिन के लिए पहाड़ में समय व्यतीत करना चाहता हूं। कुछ ऐसी ही जगह बताओ जहां सुकून के दो पल मिले। मैंने उन्हें उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कसार देवी जाने की सलाह दी। आइए आपको भी लेकर चलता हूं कसार देवी की यात्रा पर।
कसार देवी तक पहुंचने का एक मात्र जरिया सड़क मार्ग है। आप अगर उत्तराखंड के बाहर के हैं तो ट्रेन से आप हल्दवानी तक पहुंच सकते हैं। यहां से टैक्सी के जरिए आप पहले अल्मोड़ा फिर वहां से करीब 10-12 किलोमीटर ऊपर कसार गांव तक पहुंच सकते हैं। यहीं कसारदेवी का मंदिर स्थित है। जो विश्व भर के वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक रहस्य के समान है।


अल्मोड़ा का खतरनाक रास्ता और मेघा जी की डर वाली मुस्कुराहट।
फरवरी का महीना था। अचानक एक दिन आॅफिस के तनाव के बीच मैंने दो दिन ब्रेक लेने का मन बनाया। पहले नैनीताल जाने का प्लान था। हम लोग वहां के लिए निकल भी गए। देहरादून से मैं और मेघा अपनी कार से नैनिताल के लिए निकले। शाम का स्टे काशीपुर में था। गर्मी की आहट के बीच सर्दी का मजा कुछ और ही होता है। गेस्ट हाउस की लॉन में शाम की चाय पीते-पीते और वहां के केयर टेकर से बात करते हमने कसार देवी के बारे में जाना। नैनीताल पहले भी दो बार जा चुके थे। इसलिए चाय और नाश्ता खत्म करते करते हमने कसार देवी का प्लान कर लिया। चुंकि रास्ता वही था, इसलिए प्लान में कोई विशेष तब्दीली नहीं करनी पड़ी। हां, इतना जरूर था कि नैनीताल में होटल की बुकिंग का पैसा डूबने का मोह त्यागना पड़ा। नैनीलाल के बाहर ही बाहर आप अल्मोड़ा के रास्ते पर चले जाते हैं।


सुबह सात बजे हम काशीपुर से निकले। रास्ते में घने धुंध से हमारा जबर्दस्त सामना हुआ। नैनीताल से आगे रास्ता भी बेहद खराब था। रास्ते का मजा लेते लेते हम करीब 2 बजे अल्मोड़ा पहुंचे। वहां से कसार देवी के लिए सीधी चढ़ाई थी। अरुण भाई ने पहाड़ में गाड़ी चलाने में एक्सपर्ट करवा दिया था, इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई। हां मेघा जी इस रास्ते को देखकर जरूर बजरंग बली का जाप करने लगी थीं। पर जैसे-जैसे हम ऊपर की ओर बढ़ते गए आखें खुली की खुली रह गर्इं।
चारों तरफ हरियाली ही हरियाली। न आबादी की चहल पहल, न गाड़ियों का शोर। हर जगह फूलों की खूशबू। चीर और देवदार के घने जंगल। सामने दिख रहा था, बर्फ की सफेद चादर ओढ़े विशाल हिमालयन रेंज। कसार देवी शुरू होते ही दो तीन रिसॉर्ट नजर आए। पर हमने पहले ही मन बना लिया था कि गांव में रुकेंगे। इसलिए ऊपर की ओर बढ़ते गए। करीब पांच-छह किलोमीटर ऊपर चढ़ते ही हमने सड़क किनारे एक सुरक्षित जगह देखकर गाड़ी पार्क की और वादियों को निहारने लगे। खूबसूरती ऐसी थी कि शब्दों में बयां करना मुश्किल है। इस खूबसूरती को सिर्फ वहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है। करीब आधे घंटे वहीं बैठकर थकान उतारी। वहां से कुछ किलोमीटर ऊपर ही कसार देवी का मंदिर था। उसी मंदिर के आसपास आपको कई ऐसे घर मिल जाएंगे जो होम स्टे की सुविधा देते हैं। आप वहां से नीचे गांव की तरफ भी बढ़ जाएंगे तो आपको वहां भी ग्रामीणों द्वारा होम स्टे की सुविधा का प्रबंध मिलेगा। विदेशी सैलानियों का यह फेवरेट स्पॉट है। खासकर ईजराइली पर्यटक यहां होम स्टे में तीन-तीन महीने रूकते हैं। वो अपनी कठिन आर्मी ट्रेनिंग पूरी कर यहां पहुंचते हैं, ताकि मानसिक शांति पा सकें।

इन होम स्टे में आपको बेहद साफ सुथरा घर मिलेगा और उतना ही सात्वीक भोजन भी। पहाड़ के लोगों के व्यवहार का तो कहना ही क्या। ऐसा लगेगा जैसे वर्षों से आपके और उनके पारिवारिक संबंध हों। हमने वहीं एक ठिकाना खोज लिया। वहां गाड़ी पार्क करने की भी अच्छी जगह थी।
मेघा घर की महिलाओं से बात करने लगी और मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया। अभी दो मिनट भी नहीं हुए थे बाहर धमाके की आवाज आने लगी। मैं चौंक गया। जल्दी-जल्दी बाथरूम से बाहर निकला। सभी महिलाएं घर के अंदर चली गर्इं थीं। कुत्ते बेतहाशा भौंके जा रहे थे। मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर हो क्या रहा है।
इतने में घर के रावत जी नजर आए। उन्होंने कहा अरे घबराइए मत। लेपर्ड आ गया था कैंपस में। लालू ने उसे भगा दिया है। हम लोग पटाखे फोड़ रहे हैं ताकि उसे और अधिक दूर भगाया जा सके। वो सब तो ठीक था, लेकिन पहाड़ में इतनी दूर लालू कौन है? मैं ठहरा ठेठ बिहारी। लालू नाम सुनते ही कान खड़े हो गए। पर रावत जी अपने धुन में मगन थे। मैंने सोचा कहीं भालू न कह रहे हों। पर शर्म के मारे दोबारा उनसे नहीं पूछ सका। उधर, रावत जी दे दनादन आलू बम दाग रहे थे। आलू बम में आग लगाकर उसे घुमाकर जंगल में फेंकता देख मुझे हॉलिवुड की थ्रीलर फिल्मों का सीन याद आ रहा था। कैमरा अंदर गाड़ी में था। इसलिए इस अद्भूत नजारे को कैद नहीं कर सका। मेरे सामने करीब दस बारह बम फेंककर वो वहीं मुंडेर पर बैठकर बीड़ी सुलगाने लगे। मुझे भी आॅफर किया। पर शालीनता से मना करने के बाद मैंने उनसे सवाल किया कि ये लालू कौन है?
बोलने लगे लालू को नहीं जानते आप। मैंने कहा भाई लालू को तो जानता हूं, पर यहां जंगल में? हंसने लगे। अरे बिहार वाला लालू नहीं। यहां मेरे घर में लालू है। वो जब आप गाड़ी लगा रहे थे और आपको घूर रहा था। फिर सम्मान के साथ आपको लेकर यहां तक आया था, वही तो लालू है।
यही हैं लालू जी।

मैं हंसने लगा। दरअसल लालू उनके पालतू कुत्ते का नाम था। यह भुटिया प्रजाति का कुत्ता था। पहाड़ों में रहने वाले और भेड़ पालने वाले भुटिया कुत्तों को पालते हैं। यह प्रजाति इतनी खतरनाक होती है कि तेंदुओं से अकेले लोहा ले सकती है। रावत जी को भेड़ पालने वालों ने इसे उपहार में दिया था। रावत जी बताने लगे कि जब वह सात आठ दिन का था, तभी से यहां रह रहा है। लालू नाम क्यों रख दिया? मेरे सवाल का जवाब देते हुए रवात जी पुराने दिनों में खो गए। बताने लगे। दरअसल एक बार पहाड़ से भेड़ पालने वाले नीचे आ रहे थे। यहां से गुजर रहे थे तो मेरे यहां पानी पीने को रूक गए। मैंने उन्हें पानी के साथ-साथ खाना भी खिलाया। उनके पास करीब तीन सौ भेड़ें थी। इनकी रखवाली के लिए दो भुटिया कुत्ते थे। एक मेल और दूसरी फिमेल। हाल ही में उनके चार बच्चे हुए थे। अपने कंधे पर रखकर उन चार बच्चों को लेकर वो नीचे आ रहे थे। इनमें से तीन की रास्ते में ही मौत हो गई। एक बचा था। रावत जी ने बताया कि उन्हें मैंने खाना खिलाया जब वो जाने लगे तो उपहार स्वरूप उस एकलौते बचे बच्चे को मुझे दे गए। मैं मना करता रहा, लेकिन वो नहीं माने। भेड़ पालने वालों ने बताया कि हमें अभी काफी दूर जाना है। पता नहीं यह बचेगा या नहीं। पर इतना विश्वास है कि अगर यहां ठिकाना मिल गया तो जरूर बच जाएगा। जब वो उसे छोड़कर जा रहे थे तो उसके मां और पिता उसे दुलार करके और मेरी तरफ देखकर चले गए। मानो कह रहे हों मेरे बच्चे का ख्याल रखना। भेड़ पालने वालों ने बताया था कि इसके पिता का नाम कालू है। कालू बिल्कुल काले रंग का था। जबकि यह लाल रंग का। मैंने उसी वक्त इसका नाम लालू रख दिया। कालू का बेटा लालू।
रावत जी ने बताया कि लालू पर इसी कैंपस के अंदर एक बार लेपर्ड ने हमला कर दिया था। लालू ने अकेले ही उस लेपर्ड को निपटा दिया। यह जितना हमसे और आपसे फ्रेंडली हो जाएगा उतना ही लेपर्ड या दूसरे जानवरों को देखकर हिंसक हो जाता है। खासकर जब यह अपने ऊपर खतरा देखता है तो इसका रौद्र रूप देखकर अच्छे-अच्छों की हालत खराब हो जाती है।  लालू पुराण के साथ रावत जी बीड़ी का कश भी मार  रहे थे। जबतक बीड़ी खत्म होती तब तक लालू जी भी प्रकट हो गए। बिल्कुल बेदम लग रहे थे। हांफ रहे थे। नीचे जंगल से ऊपर आना कोई साधारण बात नहीं थी। रावत जी ने उसे पानी दिया। पानी पीने के बाद लालू फिर से सामान्य हो गया। मैंने उसे सहलाया तो वहीं मेरे पैर के पास बैठ गया। बातों बातों में शाम घिर आई।

रावत जी और उनके परिवार ने हमारी खूब खातीरदारी की। दो दिन का पूरा प्रोग्राम भी बना दिया। उनके परिवार के साथ खाना खाया। रात में उसी कैंपस में बोन फायर के साथ पहाड़ी गानों का लुत्फ लिया। वहीं नीचे के कमरे को उन्होंने होम स्टे के रूप में बदल रखा था। अटैच बाथरूम के साथ बेहद करीने से सजा हुआ कमरा था। ठंडी हवाओं के बीच बोन फायर और उस पर पहाड़ी संगीत किसी को भी मदहोश कर दे। जो ड्रिंक करते हैं उनके लिए तो यह मदहोशी पूरे शबाब पर रहेगी। रात दस बजे तक हम वहीं रावत जी के परिवार के साथ बैठे रहे। बेड पर जाते ही कब नींद की आगोश में खो गया पता ही नहीं चला।
कसार देवी से दिखता सूर्यादय।

सुबह छह बजे दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। रावत जी की बहू चाय लेकर दरवाजे पर खड़ी थी। बोली बाहर आइए आपलोग। सूर्य देवता का आगमन होने ही वाला है। दरअसल कसार देवी में लोग सन राइज और सन सेट देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं। सूर्य की पहली किरण जब बर्फ से आच्छादित चोटियों तक पहुंचती है तो एक अद्भूत दृश्य उत्पन्न होता है। हमलोगों ने फटाफट चाय पी और लॉन में उस रोमांचकारी दृश्यों को कैद करने के लिए अपने कैमरे के साथ बैठ गए। इस बीच कई और भी पर्यटक कसार देवी टैंपल के पास बने एक होटल की बालकोनी में नजर आने लगे थे।
कसार देवी से दिखता सूर्यादय।
मैंने पहाड़ों में कई जगह से सन राइज देखा है। शिमला, मसूरी, धनौल्टी, नई टिहरी जैसी अनगिनत जगहों से मैंने यह नजारा लिया है। पर सच मानिए कसार देवी से जो सनराइज देखने को मिला वह सच में अद्भूत और अविश्वमरणीय था। सफेद बर्फ की चादरों पर सूर्य की पहली किरण ऐसी प्रतीत हो रहा थी जैसे वहां ज्वालामुखी उत्पन्न हो रही हो। आप भी अगर कसार देवी जाएं तो इस पल को किसी भी कीमत पर मिस न करें।
काफी देर कैंपस की लॉन में बैठे हम प्रकृति का रसास्वादन करते रहे। इसी बीच दूसरी और तीसरी कप चाय भी निपटा ली। लालू जी वहीं लॉन के पास सो रहे थे। रावत जी ने बताया कि लालू रात भर सोता नहीं है। इधर-उधर अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता है। सुबह चार बजे के आस पास सोता है। आठ बजे उठेगा। लालू अपने रूटीन का बड़ा पक्का है।
सुबह दस बजे तक हम भी फ्रेश हो गए। पहाड़ी नाश्ता किया। और कसार देवी मंदिर की तरफ बढ़ गए। पैदल ही रास्ता है। कसार देवी का यह मंदिर दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं है। असीम शक्ति है इस मंदिर में। आपको जानकर हैरानी होगी कि नासा के वैज्ञानिक भी इस मंदिर और इसके आस पास के क्षेत्रों पर अध्ययन कर रहे हैं। यह मंदिर और इसके आसपास का क्षेत्र जबर्दस्त चुंबकीय प्रवाह लिए है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस जगह के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। आपको बता दूं कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं। पर आजतक कोई भी इस भू-चुंबकीय पिंड का पता नहीं लगा सका है। हाल के वर्षों में एक बार फिर से नासा के वैज्ञानिक इस बेल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। मैंने जब गुगल किया था तो पता चला था कि जिस तरह का भू-चुंबकीय पिंड कसार देवी में मौजूद है। ठीक वैसा ही दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में मौजूद है। तीनों जगहों में अद्भुत समानताएं हैं।
पहाड़ की चोटी पर कसार देवी मंदिर।

विश्व के इन तीनों स्थानों पर तमाम वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। इसी भू-चुंबकीय पिंड के कारण कसार देवी को भारत की कई रहस्यमयी मंदिरों में से एक माना गया है। माना जाता है कि कसार देवी एक जागृत देवी हैं। इनसे आप जो भी मन्नत मांगे पूरी होगी। पर मंदिर के रहस्य से आज तक पर्दा उठ नहीं सका है। आज भी देश विदेश के कई वैज्ञानिक कसार देवी सिर्फ इसी चुंबकिय रहस्य का पता लगाने यहां पहुंचते हैं। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि कसार देवी में किसी समय स्वामी विवेकानंद भी मानसिक शांति और साधना के लिए आ चुके हैं। इस जगह के चमत्कारों से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद भी कसारदेवी मंदिर पर 1890 में कुछ महीनों के लिए आये थे। आज भी यहां स्वामी विवेकानंद का छोटा सा आश्रम स्थापित है। कसार मंदिर से थोड़ी दूर पर स्थापित इस आध्यात्मिक केंद्र के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं। आप यहां मेडिटेशन कर सकते हैं और स्वामी विवेकानंद के विचारों को नजदीक से समझ सकते हैं। मैं भी इस केंद्र में करीब चार घंटे रहा। चारों तरफ इतना सन्नाटा था कि सूई गिरने की आवाज भी आपको सुनाई दे। मेघा जीे को यहां मन नहीं लगा। इसलिए वो थोड़ी देर में अपने होम स्टे में चली गर्इं। पर मैं वहां देर शाम तक रूका रहा। जाने का मन नहीं कर रहा था, पर वहां मौजूद आश्रम के एक व्यक्ति ने धीरे से आकर कहा कि अब आप चले जाएं। अंधेरा होने को है। आसपास जंगली जानवरों का खतरा रहता है। मैं वहां से विदा हो गया, दोबारा आने के वादे के साथ।
आध्यात्मिक केंद्र।

स्वामी विवेकानंद की तरह ही बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी। स्वामी विवेकानंद ने इस स्थान के बारे में कहा था कि यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि निस्तब्धता, ध्यान और शांति की प्रधानता होगी। सच मानिए आध्यात्मिक शांति के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा स्थान नहीं हो सकता है। (यह बातें गुगल से प्राप्त हुर्इं)
कसार देवी मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां कौशिकी के रूप में देवी दुर्गा यहां वास करती हैं। उन्होंने ही शुंभ-निशुंभ दानवों का संहार किया था। यह मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है। इसी गुफा में मां कौशिकी मौजूद हैं। यहां पर एक शिव मंदिर भी है, जिसे शायद बाद में बनाया गया है। मंदिर के आसपास कई पाषाण युग के अवशेष और शिलालेख भी आपको देखने को मिलते हैं। आप अगर इस मंदिर में जाना चाहते हैं शाम का वक्त सबसे उपयुक्त होता है। क्योंकि शाम में यहीं की से आपको सनसेट का अद्भूत नजारा देखने को मिलता है। देश विदेश के वैज्ञानिक इस केंद्र पर रिसर्च कर रहे हैं। वर्ष 2012 में नासा के वैज्ञानिकों का एक दल भी इस क्षेत्र का अध्ययन करने पहुंचा था। आज भी यहां देशी विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है।
उत्तराखंड सरकार ने कभी भी इस क्षेत्र को विकसित करने या टूरिस्ट स्पॉट के रूप में चिह्नित का प्रयास नहीं किया। मेरे अनुसार उत्तराखंड सरकार को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए। जिस दिन सरकार ने इसे अत्यधिक प्रचारित और प्रसारित कर दिया उसी दिन से यहां की खूबसूरती पर ग्रहण  लग जाएगा। होटल्स और मॉल खुल जाएंगे। मल्टीनेशनल फूड कॉर्नर के चेन खुल जाएंगे। लोग यहां शांति के लिए नहीं अय्यासी के लिए पहुंचने लगेंगे। हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि उत्तराखंड सरकार का ध्यान इस तरफ नहीं है। उनका ध्यान नैनीताल और भीमताल तक ही रहे तो बेहतर होगा।
कसार गांव से विदाई की बेला।
प्रकृति की गोद में रहने का प्लान तो दो दिन का था। पर रावत जी के परिवार का प्यार और अद्भूत आध्यात्मिक और मानसिक शांति ने हमें वहां तीन दिन रोक लिया। जाते-जाते बुझे मन से यह तस्वीर उतारी जो सुबह सुबह की थी। एक तरफ सूर्य की उगती किरणें हमें अपनी जिंदगी में उल्लास भरने को प्रेरित कर रही थी, दूसरी तरफ मुरझाए फूल हमारे मन की उदासी को भांप रहे थे। हम उदास थे प्रकृति के इस अद्भूत उपहार से दूर जो हो रहे थे। कभी मौका मिले तो नैनीताल, मसूरी, ऊटी और दार्जलिंग को भूलकर कसार जैसे ही किसी छोटे से पहाड़ी गांव में जाकर रह कर आईए। ताउम्र इसकी यादें आपको ताजगी का अहसास कराएगी। मैं आज फिर से खुद को ऊर्जावान पा रहा हूं।
कसार देवी से लौटते वक्त नैनीताल जाने से खुद को रोक नहीं सका। वहीं नाश्ता किया और फिर देहरादून के रास्ते पर निकल पड़े।

Tuesday, May 21, 2019

मोदी की गुफा यात्रा के बहाने एक गुफा यात्रा यह भी


गंगोत्री धाम में गंगा किनारे मैं।
यह कहानी आज से दस साल पहले की है। उन दिनों मैं अक्सर पहाड़ों में निकल जाता था। ट्रैकिंग के बहाने या लांग ड्राइव के बहाने। पहाड़ों पर गाड़ी चलाने में उतना कांफिडेंस नहीं था, इसलिए मेरे साथी होते थे अरुण सिंह। अरुण सिंह उत्तराखंड के सीनियर फोटो जर्नलिस्ट हैं। इन दिनों देहरादून में दैनिक जागरण में हैं। उनकी बदौलत मैंने पहाड़ों पर अच्छी ड्राइविंग सीखी। उत्तराखंड के ही एक वरिष्ठ पत्रकार हैं मनमीत। इन दिनों वो ंिहंदुस्तान देहरादून में हैं। अरुण और मनमीत दोनों में ही पहाड़ बसता है। इन दोनों की बदौलत मुझे भी पहाड़ को नजदीक से जानने और समझने का मौका मिला था।
मनमीत तो अक्सर मुझसे बहाना बना कर छुट्टी लेता था। बाद में पता चलता था कि वो कभी तुंगनाथ की ट्रैकिंग पर है कभी रुद्रप्रयाग की खाक छान रहा है। मैं भी उसकी छुट्टियों के बारे थोड़ा दरियादिल था, क्योंकि इन छुट्टियों से आने के बाद वो वहां की जो रोमांचक यात्रा का वर्णन करता था, उसे मैं सुनने के लिए बेताब रहता था। आते ही वह सारी फोटो मेरे कंप्यूटर में सेव कर देता था और फिर एक एक फोटो के बारे में विस्तार से बताता था। ऐसे ही एक यात्रा पर वह गोमुख गया था। वहां से वह तपोवन होते हुए बेहद ही रोमांचक ट्रैकिंग कर लौटा था। उसकी यात्रा का वर्णन सुन मैं बेहद उत्साहित हो गया। मन ही मन डियाइड कर लिया कि मैं भी यहां जरूर जाऊंगा।

उन दिनों सेल्फी का इनोवेशन नहीं हुआ था, लेकिन कैमरे में टाइमर जरूर था। इसी के सौजन्य से खुद की खींची गई तस्वीर।
अचानक एक दिन मैंने भी मनमीत वाला फॉमुर्ला अपनाया। बैकपैक पैक किया और गढ़वाल जाने वाली रात की गाड़ी में बैठ गया। उत्तराखंड अखबार की दृष्टि से दो भाग में बंटा है। एक गढ़वाल और दूसरा कुमांऊ। गढ़वाल का बेस कैंप देहरादून है और कुमांऊ का हल्दवानी। गढ़वाल के पहाड़ों पर जितने भी अखबार पहुंचते हैं उनका प्रकाशन देहरादून में होता है, जबकि कुमांऊ का बेस कैंप हल्दवानी है।
पहाड़ के दूरस्त क्षेत्रों में जाने के लिए अखबार लेकर जाने वाली गाड़ियों से बेहतर विकल्प कुछ नहीं है। एक तो रात में इनकी ही सर्विस मौजूद होती है, दूसरी बिल्कुल समय से आप अपने गंतव्य पर पहुंच जाते हैं। मैंने भी यही विकल्प चुना, देर रात आॅफिस का काम समाप्त किया और उत्तरकाशी जाने वाली गाड़ी में बैठ गया। जागरण के सर्कुलेशन मैनेजर ने पहले ही गाड़ी वाले को मेरे लिए बोल दिया था, उसने मेरे लिए आगे वाली सीट रिजर्व रखी थी।
मैं इससे पहले कभी इस तरह की गाड़ी में नहीं गया था। पर कसम से इस यात्रा के बाद दूसरी बार इन गाड़ियों में पहाड़ पर कभी नहीं निकला। सांसें थाम देने वाली यात्रा थी। पहाड़ी रास्तों पर अखबार लेकर जाने वाली गाड़ियों के जांबाज ड्राइवर अस्सी नब्बे पर गाड़ी चलाते हैं। चलती गाड़ियों से बंडल भी फेंकते हुए जब आप इन्हें देखते हैं तो ये किसी सुपर हीरो की तरह नजर आते हैं। आप अगर दिलेर हैं तभी इन गाड़ियों की यात्रा कर रिस्क उठाएं। खैर रात 11 बजे से शुरू हुई यात्रा सुबह पांच बजे उत्तरकाशी में जाकर समाप्त हुई। रातभर मैं बजरंगबली की शरण में रहा।
उत्तरकाशी में उस वक्त जागरण के ब्यूरो चीफ थे रावत जी। उन्होंने मेरे लिए वहीं गढ़वाल निगम के गेस्ट हाउस में एक रूम बुक करवा दिया था। वहां थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं गंगोत्री की तरफ निकल गया। उत्तरकाशी में ही पता चल गया था कि कुछ कारणों से गोमुख ट्रैक अभी दो से तीन दिन बंद रहेगा। मैं बेहद निराश हो गया था। पर गंगोत्री जाने का मन में ठान रखा था।
गंगोत्री पहुंचने के बाद मैंने निर्णय लिया कि यहां से ऊपर की ओर रहने वाले साधु सन्यासियों के मिलूंगा। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि जिस तरह केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री धाम साल के छह महीने ही दर्शन के लिए खुले होते हैं। ठीक उसी तरह गंगोत्री धाम की प्रथा है। यहां भी छह महीने मां गंगा की डोली नीचे चली आती है। पूरे छह महीने यह धाम विरान होता है। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ होती है। पर गंगोत्री धाम से ऊपर की ओर करीब दो से तीन किलोमीटर हिमालय की गोद में जाएंगे तो वहां आपको चार पांच साधु मिलेंगे जो अलग-अलग गुफाओं में सालों भर वहीं रहते हैं। ये तपस्वी माइनस 30 डिग्री टैंपरेचर में भी सालों भर वहीं जमे रहते हैं।
मैंने इन साधुओं और तपस्वियों के बारे में सुन रखा था, इसलिए इनसे मिलने की जबर्दस्त इच्छा थी।  मेरे रहने की व्यवस्था गंगोत्री धाम स्थित मुख्य धर्मशाला में थी। पर मैं गंगोत्री धाम में दर्शन करने के बाद सीधे ऊपर की ओर निकल गया। पीठ पर बैकपैक लादे अपना छोटा वाला डिजिटल कैमरा लिए मैं पगडंडियों के सहारे जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ रहा था। चारों तरफ की हसीन वादियों में खोता जा रहा था। एक तरफ कलकल बह रही मां गंगा थीं, दूसरी तरफ हरे भरे वन। दूर से हिमालय की बर्फ से आच्छादित चोटियां एक अलग तरह का रोमांच पैदा कर रही थीं।
मुझे नहीं मालूम था कि कितनी दूर ऊपर तक चढ़ना है। वहां कौन-कौन मिलेगा। किससे क्या बात होगी। वो साधू सन्यासी मुझसे बात भी करेंगे या नहीं। मन में तमाम तरह के विचारों से ओत प्रोत मैं चढ़ता जा रहा था।
मैं पहाड़ का रहने वाला नहीं हूं, इसलिए मेरा कार्डियो सिस्टम उस तरह का नहीं कि बिना थके लगातार चढ़ता जाऊं। मनमीत ने एक बार बेहद वैज्ञानिक तरीके से मुझे पहाड़ी लोगों के कार्डियो सिस्टम पर लेक्चर दिया था। उसने बताया था कि क्यों और कैसे पहाड़ के लोग अपने दिलों की हिफाजत करते हैं। उसी ने बताया था कि मैदान के लोग जब पहाड़ों पर ट्रैकिंग करते हैं तो उन्हें क्या क्या नहीं करना चाहिए। वैसे तो मैंने पहाड़ों में कई बार ट्रैकिंग की है, लेकिन यह रास्ता ट्रैकिंग के लिए बना नहीं था। गोमुख ट्रैकिंग रूट से बिल्कुल उल्टा यह रास्ता था। न तो ठीक से रास्ता समझ में आ रहा था और न यह समझ में आ रहा था कि जाना कहां है। मुझे गंगोत्री धाम के मुख्य पुजारी जी ने इतना जरूर बता दिया था कि उस तरफ से ऊपर चढ़ते जाइए आपको साधू सन्यासियों के दर्शन हो जाएंगे, जो गुफाओं में सालों भर रहते हैं और वहां तप करते हैं।
गंगात्री धाम से ऊपर वीरान पड़ी एक गुफा।
उस वक्त मेरे पास डीएसएलआर कैमरा नहीं था। सोनी का छोटा वाला साइबर शॉट डिजिटल कैमरा था। मैं उसमें टाइमर सेट कर अपनी फोटो भी लेता रहा और वादियों की तस्वीरें भी लेता रहा। बेहद आराम आराम से मैं ऊपर की चढ़ाई कर रहा था। क्योंकि मेरे पास दिनभर का समय था। जल्दबाजी बिल्कुल नहीं थी। मेरे मन में इतना जरूर था कि अगर किस से मुलाकात नहीं हुई तो शाम चार बजे तक नीचे चला आऊंगा। पुजारी जी ने बता दिया था कि गंगा का किनारा नहीं छोड़िएगा। चाहे आप कितने भी ऊपर चले जाएंगे, इसी के सहारे आप लौटते वक्त गंगोत्री मंदिर तक पहुंच जाएंगे। कहीं नहीं भटकेंगे।
करीब एक घंटे की चढ़ाई के बाद मैं एक गुफा के पास पहुंचा। बेहद खूबसूरती से वह सजा हुआ था। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी। मैंने वहां आवाज लगाई। पर कोई नहीं था। बड़ी हिम्मत कर मैं प्रांगण में पहुंचा। चारों तरफ नजर दौड़ाई पर कोई नजर नहीं आया। मां गंगा का किनारा नजर नहीं आ रहा था, इसलिए मैंने निर्णय लिया कि थोड़ा दूसरी तरफ से चलूं। करीब दस मिनट विश्राम कर मैं दूसरी दिशाा की ओर बढ़ गया। मां गंगा का किनारा तुरंत ही नजर आ गया। उसी के सहारे मैं थोड़ा और ऊपर जाने लगा। थोड़ी ही दूर पर मुझे कं्रदण घाट लिखा दिखाई पड़ा।

घाट पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ कि इस विराने में घाट की परिकल्पना किसने की होगी। वहां तक पहुंचने के लिए मुझे अच्छी खासी मशक्त करनी पड़ी। पर वहां पहुंचकर मुझे लगा कि मैं जन्नत में आ गया हूं। चारों तरफ विशाल परिसर। बेहद करीने से सजा हुआ घाट। तरह तरह के पेड़। बिल्कुल मां गंगा के तट पर सजा हुआ प्रांगण मानो ऐसा लग रहा था कि मैं किसी रिसॉर्ट में हूं। बैग उताकर मैंने गंगा जल का सेवन किया और इधर-उधर नजर दौड़ाने लगा। गंगा तट से करीब दो सौ मीटर ऊपर मुझे एक कॉटेज नजर आया। मैं जब ऊपर की ओर आया तो वहां सीढ़ियां मौजूद थी, जो कॉटेज की ओर ले जा रही थीं।
क्रंदण घाट से स्वामी वेदांतानंद की गुफा की ओर जाने वाली सीढ़ी।

बिल्कुल हरे रंग से पेंट की हुई यह सीढ़ियां ऐसी लग रही थी कि मानो आप किसी स्वर्ग के द्वार की ओर बढ़ रहे हैं। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली। मां गंगा के लहरों की आवाज आपके कानों को सुकून दे रही थी। चीड़ियों की चहचहाट मानों आपके रोम-रोम को पुलकित कर रही थीं। यही मई का महीना था, लेकिन वहां का तापमान करीब चार से पांच डिग्री था।
कॉटेज तक पहुंचने में मुझे करीब बीस मीनट लग गए। वहां पहुंचने पर मुझे एक नंग धड़ंग अवस्था में साधु मिले। मैंने उन्हें नमस्कार किया। उन्होंने मुझे बैठने को कहा। मेरा नाम पता जानकर उन्होंने मुझसे बेहद आत्मयिता से बात की। मेरे आने का प्रयोजन पूछा। फिर तो उनसे बातचीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
उस सन्यासी का नाम स्वामी वेदानंतानंद था। वो करीब चौदह साल से यहीं रह रहे थे। जिसे मैं कॉटेज समझ रहा था वो दरअसल क्रिस्टल की एक गुफा थी, जिसे बेहद ही खूबसूरती से सजाया संवारा गया था। सालों भर वो इसी गुफा में निवास करते हैं। जब गंगोत्री सहित पूरा इलाका बर्फ से छिप जाता है और टेंपरेचर माइनस तीस डिग्री से भी नीचे चला जाता है, तब भी स्वामी वेदांतानंद इसी गुफा में रहते हैं। गुफा में रहने खाने से लेकर वो तमाम सुविधाएं मौजूद थीं जिनकी आप कल्पना नहीं कर सकते हैं। आपको हैरानी होगी कि उस वक्त उनकी गुफा में सीसीटीवी कैमरे तक मौजूद थे।
स्वामी वेदांतानंद से मेरी पहली मुलाकात।
मैं आश्चर्यचकित था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं इसे कैसे समझूं। कैसे इसे आत्मसात करूं। एक तरफ वो सन्यासी था जो सालों भर यहां तप करता है। दूसरी तरफ वो संसाधन थे जिसे अत्याधुनिक कहा जा सकता है। पूरी दुनिया से कटे रहने वाले साधु सन्यासी की गुफा के बाहर एक शौचालय भी था। एक बेहद अत्याधुनिक रसोईघर था। जिसमें काजू, किशमिश, गाय के घी से लेकर रसोई गैस तक की सुविधा थी।
खैर, जैसे-तैसे मैंने खुद को संयमित किया। बातचीत तो हो ही रही थी। मैंने स्वामी वेदांतानंद से उनकी गुफा में रात गुजारने की अनुमति ले ली। पहले तो वो आनाकानी करते रहे। पर मेरे हठी स्वभाव ने उन्हें मना लिया। उन्होंने मुझे आज्ञा दे दी। सिर्फ एक रात के लिए।
बातचीत में ही उन्होंने बताया कि उनका एक शिष्य है जो दिल्ली का एक बड़ा बिजनेसमैन है। वह जब गंगोत्री धाम बंद होने वाला रहता है तभी आता और पूरे साल का राशन पानी, गैस आदि की व्यवस्था कर चुपचाप चला जाता है। गुफा के पीछे ही एक छोटा सा रूम बना है, जिसमें सालों भर का राशन पानी आदि इकट्ठा रहता है। जब चारों तरफ बर्फ ही बर्फ होती है तब गैस ही एकमात्र सहारा होता है। इसी पर बर्फ को उबालकर पानी तैयार करते हैं। मां गंगा की धाराएं भी जम जाती हैं। ऊपर बर्फ ही बर्फ रहता है, जबकि धारा नीचे से धीरे-धीरे प्रवाहित होती रहती है। वहां से पानी कोई ले नहीं सकता है।
गुफा पूरी तरह क्रिस्टल की बनी थी। जिसके अंदर अगर आप साधारण कपड़ों में भी रहेंगे तो आपको अत्यधिक ठंड का अहसास नहीं होगा। गुफा के सटे ही एक कृत्रिम गुफा भी बनाई गई है जिसमें स्वामी वेदांतानंद अपना तप करते हैं। धुनी भी वहीं रमाई गई थी। वहां एक छोटी सी खिड़की थी जहां से मांग गंगा का दर्शन होता था।
सीसीटीवी के बारे में स्वामी वेदांतानंद ने बेहद रोमांचक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वो सालों भर पूरी दुनिया से कटे रहते हैं, इसलिए उनके भक्त ने यहां सीसीटीवी इंस्टॉल करवा दिया, ताकि मुझे पता चलता रहे कि उनकी गुफा के बाहर क्या हो रहा है। ठंड के दिनों में जब पूरा क्षेत्र विरान हो जाता है तो कई बार इस सीसीटीवी में उन्हें पोलर बियर से लेकर ऐसे जानवर नजर आते हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। एक बार इस सीसीटीवी में बर्फ में रहने वाला तेंदूआ भी कैद हुआ था। गुफा में सोलर सिस्टम इंस्टॉल था। जो सालों भर जैसे तैसे काम करता रहता है। गर्मियों में तो दिक्कत नहीं होती, लेकिन सर्दियों में कभी कभी यहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं।
गुफा के अंदर की तस्वीर। यहां सीसीटीवी मॉनिटर लगा है
खैर देखते देखते शाम हो गई। उन्होंने भोजन बनाना शुरू किया। मैंने हाथ बंटाने की जिद की, लेकिन इस बार मैं हार गया। उन्होंने मुझे कुछ नहीं करने दिया। पराठे और आलू की सब्जी के साथ हमने करीब आठ बजे भोजन ग्रहण किया। उस सब्जी और पराठे का स्वाद आज तक नहीं भूला हूं। उसके बाद स्वामी वेदांतानंद साधना में लीन हो गए। साधना से पहले उन्होंने मुझे कुछ जरूरी हिदायतें दे दी थी। सारी हिदायतें यहां नहीं लिख सकता, लेकिन इतना बता दूं कि यह सख्त हिदायत थी कि समय पर सो जाएं। उन्होंने मेरे लिए गुफा के अंदर ही बिस्तर लगा दिया था।  मैं बेहद थका था,  कब नींद कब आ गई पता ही नहीं चला। सुबह पांच बजे का अलार्म मैंने अपने नोकिया वाले छोटे मोबाइल में लगा लिया था। सुबह अलार्म भी बजता रहा, लेकिन नींद खुली तो छह बज चुके थे। मैं हड़बड़ाकर उठा तो देखा स्वामी वेदांतानंद वहां नहीं थे। मैंने फटापट अपना ट्रैक सूट डाला, टोपी डाली, गरम चाद ओढी और गंगा किनारे घाट की ओर बढ़ गया। मुझे पता था कि सुबह वो मां गंगा की आराधना करते हैैं।
इतने सारे गर्म कपड़े डाल कर मैं घाट तक पहुंचा था, पर सच मानिए मैं वहां पांच मिनट भी खड़ा रह नहीं सका। और वो संत वहां बेहद कम कपड़ों में कंद्रण घाट पर मां गंगा को अपने आंसू समर्पित कर रहे थे। उनकी मां-मां की पुकार मानोे मां गंगा से साक्षात्कार कर ही थी। अगले कुछ मिनटों बाद मैं वापस गुफा में था। ठंड से मेरे हाथ पांव सुन्न हो गए थे।
सुबह गंगा तट पर जाते वक्त।
करीब आठ बजे स्वामी वेदांतानंद आए। आते ही उन्होंने मुझसे पूछा घाट पर तुम आए थे? मैंने कहा कि हां आया तो था तो पर पांच मिनट भी नहीं रूक सका। जोर से हंसने लगे। कहने लगे मुर्ख, तुम मां के पास जाओगे और उन्हें प्रणाम भी नहीं करोगे, क्या यही संस्कार हैं तुम्हारे। मां गंगा का आचमन कर लेते। तभी तुम वहां उनके सानिध्य में बैठने के काबिल हो पाते। मैं बेहद शर्मिंदा हो गया। पर तत्काल ही मैंने अपनी बात भी कह दी। आपकी इजाजत हो तो मैं कल सुबह मां के पास देर तक बैठना चाहता हूं।  वो हंसने लगे। बोले तुम मुर्ख नहीं हो। बेहद चालाक हो। खैर उन्होंने मेरे अंदर की भावना पढ़ ली और मुझे उनकी गुफा में दूसरे दिन भी रहने की मौन स्वीकृति मिल गई। दूसरे दिन मैं वहीं प्रकृति की गोद में योग और मेडिटेशन करता रहा। ऐसा लग रहा था कि मुझे दोबारा जीवन मिला है। प्रकृति का सानिध्य मुझे जीवंतता प्रदान कर रहा था। मां गंगा का किनारा, ठंडी ठंडी हवा मुझे अमृत के समान लग रही थी।

स्वामी जी की आज्ञा लेकर मैं दोबारा ट्रैकिंग करता हुआ शाम करीब चार बजे नीचे गंगोत्री मंदिर तक पहुंचा। शाम की आरती में शामिल हुआ। मुख्य पुजारी से मिला और उन्हें पूरी बात बताई। वो बेहद आश्चर्यचकित थे। वो इस बात से हैरान थे कि कैसे मैं रात भर स्वामी वेदांतानंद की गुफा में रहा। सबसे ज्यादा हैरानी इस बात से थी कि उन्होंने आज्ञा कैसे दे दी। जब मैंने यह राज खोला कि मैं आज भी उनकी गुफा में ही रहूंगा तो मानो वो पगला गए। कहने लगे यह असंभव है। मैंने कहा, मेरा सारा सामान वहीं है। आरती के बाद मैं वहीं जा रहा हूं।
शाम में गंगोत्री धाम और वहां होने वाली गंगा की आरती।

मैं दोबारा सात बजे गुफा में था। स्वामी वेदांतानंद अपनी समाधी में चले गए थे। मैंने चुपचाप अपना भोजन ग्रहण किया। थोड़ा ध्यान किया। फिर सो गया। सुबह चार बजे मैं काफी सारे गर्म कपड़े पहने क्रंदन घाट पर था। मां गंगा का आचमन किया। पानी इतना ठंडा था कि मानो हाथ की अंगुली महसूस ही नहीं हो रही थी। पर जैसे ही आचमन किया पूरे शरीर में गरमाहट दौड़ गई। यकीन मानिए गर्म चादर मैंने किनारे रख दिया और सिर्फ ट्रैक सूट में करीब तीन घंटे तक वहीं ध्यान लगाता रहा। इस बीच स्वामी वेदांतानंद अपनी साधना में लीन रहे।


अहले सुबह स्वामी वेदांतानंद की आराधना।
जैसे ही उन्होंने अपनी साधना पूरी की मुझे आकर गले लगा लिया। बोले आज तुम्हें अमरत्व की प्राप्ति हो गई। जिसे मां गंगा ने अपनी शरण में रहने का मौका दे दिया वह दुनिया के किसी कोने में अपना जीवन यापन कर सकता है। उस अनुभूति को मैं अपने शब्दों में बयां नहीं कर सकता। बस आप यह समझ लें कि सच में मैं दूसरी दुनिया में था।
इन दो दिनों गुफा में रहना। प्रकृति को नजदीक से महूसस करना। मां गंगा का सानिध्य। मेरे मन के अंदर एक नई ऊर्जा का संचालन कर रहे थे। बहुत सारी यादों को अपने छोटे से कैमरे और मन के अंदर समेटे मैंने उनसे विदा लिया। वादा किया था फिर जल्दी उनसे मिलने आऊंगा। पर वक्त की आपाधापी ने आज तक दोबार वहां जाने का मौका नहीं दिया।


स्वामी वेदांतानंद और मैं। विदाई का वक्त।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया। उनकी केदारनाथ में गुफा में गुजारे पल ने मुझे अपनी उस गुफा यात्रा के बारे में लिखने को प्रेरित किया, जिसे आज तक मैं लिख नहीं सका था। जिन्हें नहीं पता उनके लिए बता दूं कि उत्तराखंड में पर्यटन के तौर पर गुफा में स्टे को डेवलप किया जा रहा है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी सोच का ही नतीजा है कि केदारनाथ घाटी में आज उत्तराखंड पर्यटन निगम ने इस तरह की प्राकृतिक गुफाओं को स्टे के लिए डेवलप किया है। यहां कोई भी व्यक्ति एक निश्चित किराया देकर रह सकता है। मेडिटेशन कर सकता है। इन गुफाओं में हर सुविधाएं प्रदान की गई हैं। सुकून की तलाश में बैंकाक, सिंगापुर, मलेशिया जाने वाले कभी इन गुफाओं में रहकर आएं। जीवन में आनंद का संचार होगा। गुफा में कैमरामैन को ले जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्रोल करने वाले वहां कैमरा लेकर न जाएं। हालांकि लेकर जाएंगे तो मेरी तरह तस्वीरों के जरिए अपनी यादों को सहेज सकते हैं और दूसरों को बता सकते हैं। तस्वीरें चंद लम्हों के लिए खींची जाती हैं। पर मेडिटेशन, ध्यान और योग के लिए आपको पर्याप्त समय मिल जाता है।


 तो जाइए आप भी किसी गुफा यात्रा पर। उत्तराखंड में रहने वाले मेरे मित्रों ने बताया है कि इन गुफाओं का किराया मात्र हजार रुपए के करीब है। फोटो जर्नलिस्ट अरुण सिंह अभी एक सप्ताह पहले ही केदारनाथ की यात्रा से लौट कर आए हैं। बेहद शानदार रिपोर्ट उन्होंने तैयार की है। पर वो गुफा पर स्टोरी बनाने से चूक गए हैं। उनसे जब बात हुई तो उन्होंने कहा कि जल्द ही इस पर एक स्टोरी तैयार करूंगा, ताकि पूरी दुनिया को पता चल सके कि गुफा स्टे क्या होता है। प्रधानमंत्री मोदी का एक बार फिर से शुक्रिया। उन्होंने पूरी दुनिया को इस स्टे से परिचय करवाया।

यात्रा वृतांत थोड़ा लंबा हो गया है, पर आपको अच्छी लगे तो इसे जरूर शेयर करें, ताकि दूसरे लोग भी जान सकें कि गुफा सिर्फ आदिम जाति के लिए नहीं है, वहां हमारे आपके जैसे साधारण लोग भी प्रकृति का सानिध्य पा सकते हैं। सभी तस्वीरें मेरे द्वारा ही ली गई हैं। इसे कहीं प्रकाशित करने से पहले मेरी स्वीकृति बिल्कुल ही आवश्यक नहीं है।  धन्यवाद

Saturday, March 2, 2019

पराक्रम का सबूत मांगना हमारी कायरता ही है

भारतीय लोकतंत्र आपको सवाल करने का हक देता है। भारतीय लोकतंत्र आपको अपनी बात करने का हक देता है। पर यही भारतीय लोकतंत्र हमें यह भी सिखाता है कि जब राष्ट के सम्मान की बात है तो हमें अपनी जुबान को बंद भी रखना चाहिए।



भारतीय में तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक ऐसा गैंग सक्रिय है जिसका एक सूत्रीय काम सरकार के खिलाफ जाकर अपना एजेंडा सेट करना है। सरकार चाहे कांग्रेस की हो या फिर बीजेपी की या फिर किसी और दल की। इन तथाकथित बुद्धिजीवीयों को सरकार की हर एक नीति, हर एक कार्रवाई, हर एक कदम में राजनीति ही नजर आती है। दुश्मनों के खिलाफ कार्रवाई न हो तो इनके लिए सरकार कमजोर और रीढ़ हीन हो जाती है। दुश्मनों के खिलाफ कार्रवाई हो जाए तो इसका बकायदा सबूत मांगना शुरू कर देते हैं। सबूत मिल जाए तो कहेंगे कि राजनीतिक फायदे के लिए सबूत सामने ला दिए गए। सेना का दुरुपयोग किया जा रहा है। सरकार सबूत न दे तो इनके पेट में दर्द रहता है कि सरकार ने जब कुछ किया ही नहीं होगा तो सबूत क्या देंगे। ऐसे में मंथन बेहद जरूरी हो जाता है कि आम लोगों को क्या करना और किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। क्योंकि यह किसी दल, किसी व्यक्ति या किसी संस्था की बात नहीं है। यह देश की बात है। यह राष्टधर्म की बात है।
हमारे भारतीय वायु सेना के जांबाज वायु सैनिकों ने पाकिस्तान में जैश के उन चार ठिकानों को अंदर से नेस्तानाबुत कर दिया है जहां से भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता था। आज जो लोग विंग कमांडर अभिनंदन को हमारे शौर्य का प्रतीक मान रहे हैं, वही लोग भारतीय वायुसेना के हमारे जांबाजों की कार्रवाई को शक की निगाह से देख रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी आंखों से नहीं देखा कि भारतीय वायुसैनिकों ने पाक में घुसकर आतंकियों को सबक सिखाया है। पुलवामा में मारे गए हमारे 40 वीर सैनिकों की शहादत का बदला आतंकियों के गढ़ को तबाह कर लिया है। पाक सेना जो कहती है उसे सच मान ले रहे हैं, लेकिन हमारे जांबाजों ने जो कर दिखाया है उसका सबूत मांगना शुरू कर दिया है। मजाक बनाया जा रहा है कि वहां कितने आतंकवादी मारे गए इसकी संख्या तो बता दें। पाक मीडिया उस क्षेत्र में मरे एक कौआ की तस्वीर को दिखा रहा है। उसे हमारे यहां के चंद सो कॉल्ड बुद्धिजीवी सच मान रहे हैं। पाकिस्तान का हाल तो यह है कि वह अपने एफ-16 के पायलट तक की शहादत की खबरें छुपा रहा है। उस पाकिस्तान से ये लोग उम्मीद कर रहे हैं कि वहां जमींदोज हुए आतंकियों के जनाजे, उनके ट्रेनिंग कैंप के तबाह होने की निशानी दिखा दे। हद है। कुछ तो शर्म करना चाहिए इन्हें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास मत करो। बीजेपी सरकार को खूब भला बुरा कहो। नरेंद्र मोदी को हर बात पर राजनीति न करने की सीख दो। पर हमारे वायु सैनिकों के शौर्य और पराक्रम को तो कठघरे में न खड़ा करो। बेहद गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है।
इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने खुलासा किया है कि हमारी खुफिया एजेंसियों के पास सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) की तस्वीरों के तौर पर सबूत हैं। इसमें चार इमारतें नजर आ रही हैं। इनकी पहचान उन लक्ष्यों के तौर पर हुई है जिन्हें कि वायुसेना के लड़ाकू विमान मिराज-2000 ने पांच एस-2000 प्रिसिजन गाइडेडे म्यूनिशन (पीजीएम) के जरिए निशाना बनाया था। यह इमारतें मदरसे के परिसर में थीं जिसे कि जैश संचालित कर रहा था। यह उसी पहाड़ी की रिज लाइन पर स्थित है जिसे कि वायुसेना ने निशाना बनाया था। पाकिस्तान ने इस बात को स्वीकार किया है कि उस क्षेत्र में भारत ने बमबारी की थी, लेकिन उसने आतंकी ठिकानों को निशाना बनाए जाने या किसी तरह के नुकसान होने की बात को नकारा है।
मंथन करने की जरूरत है कि अगर पाक सरकार इतनी ही पाक साफ है तो वह यह बात क्यों पूरी दुनिया से छिपा रही है कि भारतीय वायु सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद उस पहाड़ी पर मौजूद मदरसों को सील क्यों कर दिया? उसने मदरसे के अंदर पत्रकारों को जाने की इजाजत क्यों नहीं दी? यह कुछ ऐसी बेसिक बातें हैं जिन्हें समझने की जरूरत है। याद करिए उस दिन जब तीनों सेना के अधिकारियों ने संयुक्त प्रेस कॉन्फे्रंस की थी तो क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि हमारे पास तमाम सबूत मौजूद हैं कि हमारे वीर सैनिकों ने पाक में संचालित आतंकी संगठनों के कैंप को नेस्तनाबूत कर दिया है। अब यह टॉप गवर्नमेंट लीडरशिप पर निर्भर है कि वह इन सबूतों को मीडिया या पूरे देश के सामने रखती है नहीं।

मेरी राय में तो बिल्कुल सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए। क्यों भारत सरकार सबूत दे। जो हमारे वीर सैनिकों को करना था उन्होंने कर दिखाया। जो तबाही लानी थी वह ला दी। याद करिए जब फर्स्ट सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी, तब भी हमारे देश में बैठे तथाकथित बुद्धिजीवीयों ने सबूत मांगे थे। सरकार इस कदर दबाव में आ गई थी उसने सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो काफी दिन बाद जारी कर दिए। हुआ क्या? क्या जिनको संतुष्ट करने के लिए सरकार ने सबूत सामने ला दिए थे वो समझ गए? क्या उन्हें संतुष्टि मिल गई कि हमारी सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम से दुश्मनों को उनके घर में घुसकर मारा है? नहीं। वो कल भी सबूत मांग रहे थे, वो आज भी सबूत मांग रहे हैं। और अगर भविष्य में भी ऐसा कोई कदम उठाया गया तो वह उनके भी सबूत मांगेंगे। वे कभी संतुष्ट नहीं होंगे।
किसी भी देश की सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह चंद लोगों को संतुष्ट करने के लिए अपने अति गोपनीय चीजों को पब्लिक डोमेन में न लाए। जो बातें गुप्त होनी चाहिए वह गुप्त ही रहने दिया जाए। यह भी याद करिए कि जब सर्जिकल स्ट्राइक-एक के सबूत देश के सामने लाए गए थे तो क्या हुआ था। उस वक्त राजनीतिक मुद्दा यह बना दिया गया कि सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत लाकर मोदी सरकार इसका राजनीतिक फायदा लेना चाहती है। जो लोग हाय तौबा मचाकर सबूत-सबूत चिल्ला रहे थे, वह तत्काल अपनी बात से पलटी मार गए और इसे राजनीतिक फायदे के तौर पर देखने लगे। नुकसान किसे हुआ? हमारी सेना को। उनकी विश्वसनियता को। ऐसे में मंथन जरूर करना चाहिए कि क्यों किसी सरकार को अपनी गोपनीय चीजों को सामने नहीं लाना चाहिए। अगर मोदी सरकार ने एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक-2 के सबूत देश के सामने ला दिया तो एक बार फिर से वही बात दोहराई जाएगी कि सरकार ने सेना के पराक्रम का उपयोग राजनीतिक फायदे के लिए किया है। किसी भी लोकतांत्रिक देश की सरकार को सेना के बल और पराक्रम का फायदा कभी भी राजनीतिक रूप से लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए। अगर कोई इसका फायदा उठाता भी है तो जनता को यह अधिकार है कि वह उसका करारा जवाब दे। 

हमारी भारतीय सेना पूरे विश्व में एक बेहद प्रोफेशनल विंग के रूप में जानी जाती है। तीनों सेना के हमारे जांबाजों को पता है कि अगर कोई दुश्मन हमारी तरफ आंख उठाकर देखेगा तो उसको कैसे जवाब देना है। विंग कमांडर अभिनंदन ने भारतीय सेनाओं की इसी परंपरा का निवर्हन किया। उन्हें पता था कि उनके मिग-21 के सामने अति अत्याधुनिक एफ-16 मौजूद है। पर इसी वीरता का नाम भारतीय सेना है। अभिनंदन ने इस बात की परवाह नहीं कि सामने किस जेनरेशन और किन क्षमताओं वाला लाड़ाकू विमान है। वह सिर्फ यह जानते थे कि सामने उनका दुश्मन है, जिसने मां भारती की सरजमीं में घुसने की हिमाकत की है। अभिनंदन ने न केवल दुश्मन को मार गिराया, बल्कि एक ऐसी मिसाल कायम कर दी है जिसे सदियों तक दोहराया जाएगा।
ऐसे में जो लोग हमारे वायुसैनिकों द्वारा पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को ठिकाने लगाने का सबूत मांग रहे हैं उन्हें शर्म करने की जरूरत है। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि हम यह दुनिया को क्यों बताएं कि हमने कैसे उन्हें खत्म किया है। हम यह क्यों बताने जाएं कि हमारी स्ट्रेटजी क्या थी। हमारी खुफिया प्लानिंग क्या थी। हमने कैसे उन्हें चिह्नित किया। हमने कैसे उन्हें नेस्तनाबूत किया। हमारी सेना के जांबाजों को जो टास्क मिला उसे उन्होंने पूरा किया। दुनिया भर की सेना अपना गुप्त अभियान करती है। कभी यह गुप्त अभियान किसी दुश्मन देश के खिलाफ होता है, कभी आतंक के खिलाफ। पर कभी किसी देश की सरकार पर अपनी सेना के शौर्य और पराक्रम के सबूत मांगने के लिए दबाव नहीं दिया जाता है।
भारतीय लोकतंत्र आपको सवाल करने का हक देता है। भारतीय लोकतंत्र आपको अपनी बात करने का हक देता है। पर यही भारतीय लोकतंत्र हमें यह भी सिखाता है कि जब राष्टÑ के सम्मान की बात है तो हमें अपनी जुबान को बंद भी रखना चाहिए। भारतीय सेना से सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगने वालों को अपनी गिरेबां में झांकने की जरूरत है। हमारी सेना के पराक्रम का सबूत मांगना कायरता नहीं तो क्या है? आप भी जरूर मंथन करिए।

Saturday, February 23, 2019

खेल के मैदान से जंग के मैदान तक सब जायज


मंथन का वक्त है कि क्या देश की भावना से ऊपर दो अंक हैं? क्या हो जाएगा अगर भारत एक मैच नहीं खेलता है। क्या हो जाएगा अगर भारत एक और विश्व कप नहीं जीतता है। बहुत ऐसे मौके आएंगे। पर यह मौका नहीं आएगा। अब क्रिकेट के मैदान में भी पाक को अलग-थलग करने की जरूरत है।



पुलवामा में पाक प्रायोजित आतंकी घटना के बाद पूरे विश्व में पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोश है। तमाम राष्ट्रों ने भारत के समर्थन में अपनी बात कही है। साथ ही आतंक के खिलाफ किसी भी कार्रवाई में भारत को पूरी तरह समर्थन देने का एलान किया है। अमेरिका हो या रूस या फिर फ्रांस सभी देशों ने पुलवामा अटैक पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस आतंकी घटना के बाद पाकिस्तान भी खुद ही एक्सपोज हो गया। भारत ने बिना पाकिस्तान का नाम लिए आतंक को प्रश्रय देने वाले देशों को संभल जाने की चेतावनी दी, जबकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने खुद ही सामने आकर यह बयान दे दिया कि भारत पाकिस्तान पर बेवजह का आरोप लगा रहा है। यह वैसा ही हुआ जैसा कि चोर की दाढ़ी में तिनका।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान खुद एक बेहतर क्रिकेटर रहे हैं। लंबे समय तक पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को लीड किया है। ऐसे में उन्हें यह बात बखूबी पता होगी कि क्रिकेट का मैदान हो या फिर जंग का मैदान। सभी के कुछ न कुछ नियम कायदे होते हैं। फिर भी दोनों ही मैदान में सब कुछ जायज होता है। अब जबकि पुलवामा अटैक के बाद दोनों देशों के बीच विश्व कप के दौरान होने वाली भिड़ंत पर चर्चा चल रही है तो पाकिस्तान एक बार फिर सहमा हुआ है। वैसे भी पाकिस्तान के साथ कोई भी देश किसी तरह की क्रिकेट सीरीज खेलने में रुचि नहीं दिखाता है। पाकिस्तान में क्रिकेट सीरीज हुए तो लंबा समय गुजर चुका है। पाकिस्तान की टीम ही दूसरे देशों में जाकर क्रिकेट खेलती है। कोई भी देश पाकिस्तान में जाकर क्रिकेट नहीं खेलना चाहता है। वजह साफ है। पाकिस्तान में पनप रही आतंकवाद की फैक्ट्री।
ऐसे में भारत जो कुटनीतिक कदम उठा रहा है उसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद यह बहस लगातार तेज हो रही है कि टीम इंडिया को आगामी वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ अपने मैच का बहिष्कार कर देना चाहिए। भारत के कई दिग्गज क्रिकेटर्स ने भी यह बात दोहराई है कि पाकिस्तान के साथ किसी तरह का खेल संबंध नहीं रखना चाहिए। विश्व कप में नहीं खेलने से एक साफ मैसेज जाएगा कि अब पाक के साथ संबंध सुधारने के दिन गुजर चुके हैं। अब तो बातचीत तब ही शुरू होगी जब पाकिस्तान भारत में अपनी प्रयोजित आतंकवाद की घिनौनी हरकत बंद करे।
बीसीसीआई ने भी स्पष्ट कर दिया है कि विश्व कप में पाक के साथ खेलने का फैसला पूरी तरह केंद्र सरकार को लेना है। टीम इंडिया भारत सरकार के साथ है। टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने भी कहा है कि टीम का वही स्टैंड होगा जो देश का होगा। उन्होंने कहा कि लिया गया फैसला उन्हें और पूरी टीम को मंजूर होगा। विश्व कप में भारत और पाकिस्तान की टीमों का आमना-सामना 16 जून होना है। इससे पहले कोच रवि शास्त्री ने भी सरकार का सपोर्ट करने की बात कही थी। पुलवामा हमले के बाद खिलाड़ियों के साथ-साथ पूर्व क्रिकेटर्स भी इस मसले पर अपनी राय रख रहे हैं। भारत की तरफ से सौरभ गांगुली ने पाक के साथ क्रिकेट ही नहीं, सभी खेलों के रिश्ते खत्म करने को कहा था। वहीं सचिन तेंडुलकर ने पाकिस्तान के साथ खेलने की वकालत करते हुए कहा कि वह व्यक्तिगत तौर पर विश्व कप में बिना खेले पाकिस्तान को 2 अंक देना पसंद नहीं करेंगे। सुनील गावस्कर ने कहा था कि विश्व कप में पाक से न खेलकर भारत का ही नुकसान होगा। वहीं पाकिस्तान की तरफ से शोएब अख्तर ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि भारत को मैच नहीं खेलने का फैसला लेने का हक है।
यह सही है कि पाकिस्तान के साथ मैच न खेलकर भारत मुफ्त में पाकिस्तान को दो अंक दे देगा। निश्चित तौर पर इस दो अंक का फायदा पाकिस्तान को विश्व कप के अगले दौर में लेकर चला जाएगा। इसमें भी दो राय नहीं कि विश्व कप में हमेशा से ही पाक के खिलाफ भारत का पलड़ा काफी भारी रहा है। आज तक विश्व कप में भारत ने पाक के खिलाफ हार का मुंह नहीं देखा है। ऐसे में तेंदुलकर और गावस्कर की बातों को भी नकारा नहीं जा सकता है। इन दिग्गजों का मानना है कि हम मुफ्त में क्यों पाक को अंक दें , जबकि हम उन्हें आसानी से हरा सकते हैं।
पर मंथन का वक्त है कि क्या देश की भावना से ऊपर दो अंक हैं? क्या हो जाएगा अगर भारत एक मैच नहीं खेलता है। क्या हो जाएगा अगर भारत एक और विश्व कप नहीं जीतता है। बहुत ऐसे मौके आएंगे। विश्व में हमारी क्रिकेट टीम की कितनी धाक है यह किसी से छिपी नहीं है। टॉप टेन क्रिकेटर्स में छह नाम इंडियन क्रिकेटर्स के ही हैं। ऐसे में यह बताने की जरूरत नहीं है कि टीम इंडिया कहां है और पाकिस्तान की टीम कहां है। मौके तमाम आएंगे जब पाकिस्तान को पहले जैसा धूल चटाया जाएगा। पर यह मौका नहीं आएगा। जब पूरे विश्व की नजर क्रिकेट वर्ल्ड कप पर होगी और भारत पाक के साथ क्रिकेट खेलने से मना कर देगा, क्योंकि यह देश आतंक को प्रश्रय देता है। भारत के खिलाफ आतंकवादियों का सहारा लेकर प्रॉक्सी वॉर करता है। पुलवामा अटैक के बाद भारत ने अपनी विदेश नीति में पाकिस्तान को लेकर बड़ा परिवर्तन किया है। पाक से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा लेकर भारत ने पहले ही पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ तोड़ने जैसा कदम उठा दिया है। पाकिस्तान को जाने वाली पानी को लेकर भी भारत अब तक जो दरियादिली दिखाता आ रहा था उस पर भी बड़े फैसले लिए जा चुके हैं। अंतरराष्टÑीय स्तर पर पाकिस्तान को आतंकवाद का चेहरा बताने में भारत ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। इसी का परिणाम है कि अमेरिका हो या रूस या फिर अन्य यूरोपियन देश, सभी ने पाकिस्तान को संभलने को कहा है। ऐसे में अगर क्रिकेट के मैदान पर भी पाकिस्तान को अलग थलग कर कड़ा प्रहार करने की जरूरत है।
वैसे भी यह कोई पहली बार नहीं होगा कि विश्व कप में कोई टीम दूसरी टीम के खिलाफ मैच खेलने से मना कर दे। विश्व क्रिकेट इतिहास में इससे पहले भी कई मौकों पर कुछ टीमों ने अपने मैचों का बॉयकाट किया है। 1996 का वर्ल्ड कप भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान में आयोजित किया गया था। इस टूर्नामेंट में आॅस्ट्रेलिया को श्रीलंका के खिलाफ मैच खेलना था। कंगारू टीम ने सुरक्षा का हवाला देते हुए कोलंबो विजिट नहीं किया। वर्ल्ड कप से एक महीना पहले कोलंबो में एक बम विस्फोट हुआ था। इसके बाद आॅस्ट्रेलियाई बोर्ड ने अपनी टीम को वहां भेजना उचित नहीं समझा। आॅस्ट्रेलिया को 2 प्वाइंट गंवाने पड़े। पर इससे क्या फर्क पड़ गया। आॅस्ट्रेलिया की क्रिकेट वर्ल्ड में बादशाहत आज भी कायम है। इस वर्ल्ड कप में वेस्टइंडीज ने भी श्रीलंका में मैच खेलने से मना कर दिया था। वर्ष 2001 में भी इंग्लैंड की टीम ने जिम्बाब्वे का दौरा रद किया था। इंग्लैंड के बाद कीवी टीम ने नैरोबी (केन्या) जाने से मना कर दिया। 

पाकिस्तान में भी कोई भी टीम टूर्नामेंट खेलना पसंद नहीं करती है। लंबे समय से पाकिस्तान में कोई भी अंतरराष्टÑीय स्तर का टूर्नामेंट आयोजित नहीं हो सका है। ऐसे में इस क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ अपने कड़े तेवर बरकरार रखने की जरूरत है। क्योंकि बात सिर्फ दो प्वाइंट गंवाने की नहीं है, बल्कि राष्ट्र के सम्मान की है। पुलवामा में शहीद हुए 40 जवानों को टीम इंडिया की यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी।