Monday, December 18, 2017

हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो...

आज हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा के रिजल्ट आ रहे हैं। जीत और हार की भविष्यवाणी की जा चुकी है। उम्मीद लगाई जा रही है कि रिजल्ट भी इसके आसपास ही होंगे। इसके बाद भी रिजल्ट चाहे जो हो, पर यह चुनाव कई मायनों में एक अलग इबादत लिख कर समाप्त हो रहा है। दोनों दलों ने जिस राजनीतिक लालसा के लिए अपनी पराकाष्ठा को पार किया वह अपने आप में अलग रिसर्च का विषय हो सकता है। आज जब मैं अपना यह साप्ताहिक कॉलम मंथन लिखने बैठा हूं तो बरबस मुझे मशहूर शायर सरशार सैलानी के गजल की ये चंद पंक्तियां याद आ रही हैं। मंथन से पहले सैलानी जी की ये चार पंक्यिां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए..आप भी मजा लें.. 
चमन में इख्तिलात-ए-रंग-ओ -बू से बात बनती है
हम ही हम हैं तो क्या हम हैं तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
अंधेरी रात तूफानी हवा टूटी हुई कश्ती
यही अस्बाब क्या कम थे कि इस पर नाखुदा तुम हो
हमारा प्यार रुस्वा-ए-जमाना हो नहीं सकता
न इतने बा-वफा हम हैं न इतने बा-वफा तुम हो
गुजरात का चुनाव खास इस बात के लिए याद रखा जाएगा कि सभी दलों के नेताओं ने अपनी वाणी की सीमाएं लांघ दीं। आरोप-प्रत्यारोप तो राजनीति का आधार बन चुके हैं पर निजी हमलों ने सभी को चौंकाया। किसका खानदान क्या है और कौन प्रतिदिन लाखों की मशरूम खाकर अपना गाल लाल कर रहा है, इस तरह के हैरान और परेशान कर देने वाले शब्दों ने सभी मर्यादाएं तोड़ कर रख दी। यह वक्त सभी पार्टियों के लिए मंथन का वक्त है कि हम अपनी राजनीति को किस दिशा में लेकर जा रहे हैं।
कांग्रेस के लिए इस चुनाव में बहुत कुछ खोने या पाने के लिए नहीं था। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पहले ही हार मान चुकी थी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद कांग्रेस के दिग्गजों ने हिमाचल के चुनाव को खास तवज्जो नहीं दी। हिमाचल को लेकर कांग्रेस में कोई खास उत्साह नहीं दिखा था। राजनीतिक पंडितों की भाषा में कहा जाए तो कांग्रेस ने यहां बीजेपी को वॉकओवर दे दिया। कारण चाहे जो भी रहे हों, लेकिन कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का इस तरह हिमाचल से मुंह मोड़ना कहीं से भी तर्कपूर्ण नहीं दिखा। उसी कांग्रेस ने अपने नवनियुक्त अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में बीजेपी के गढ़ में अच्छी चुनौती पेश की। जब आप यह मंथन पढ़ रहे होंगे तो टीवी स्क्रीन पर रिजल्ट के अपडेट भी आने शुरू हो गए होंगे। कांग्रेस पार्टी के लिए यह रिजल्ट कई मायनों में ऐतिहासिक होगा। खासकर राहुल गांधी के लिए। गुजरात चुनाव में जीत मिलेगी या हार यह चर्चा का केंद्र बिंदु होगा। पर राहुल गांधी ने जिस तरह गुजरात चुनाव के प्रचार में अपनी नेतृत्व क्षमता को दिखाया है वह प्रशंसनीय है। रिजल्ट आने से दो दिन पहले कांग्रेस की कमान उनके हाथ में सौंपा जाना भी एक स्ट्रैटेजी का हिस्सा हो सकता है। जीत मिली तब भी वाह-वाह और अगर हार मिली तब भी यह दिखाना उद्देश्य है कि जीत या हार मायने नहीं रखती। कांग्रेस को राहुल गांधी के नेतृत्व में भरोसा था और भविष्य में भी रहेगा।
सबसे अधिक अगर किसी को मंथन करना है तो वह भारतीय जनता पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व है। जिस तरह कांग्रेस को हिमाचल में हार का डर सता रहा था तो उसने वहां वॉकओवर ही दे दिया। पर अपने गढ़ में बीजेपी ने ऐसा नहीं होने दिया। कांग्रेस ने निश्चित तौर पर गुजरात में फील्ड वर्क किया, तभी वहां जोरदार तरीके से कैंपेन करने की प्लानिंग की थी। न केवल प्लानिंग की बल्कि उसी तरीके से वहां ताबड़तोड़ बैटिंग भी की। बीजेपी को मंथन इस बात पर करना है कि आखिर इतने साल सत्ता में रहने के बावजूद ऐसी स्थिति क्यों बनी कि कांग्रेस को वहां सेंधमारी करनी पड़ी। सेंधमारी भी ऐसी की अंतिम दौर के चुनाव तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्र सरकार की पूरी कैबिनेट गुजरात में डेरा जमाए रखी। गुजरात का यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। जीत या हार के बाद उनकी भी विभिन्न तरीकों से समीक्षा की जाएगी। पर इस समीक्षा के पहले बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को यह जरूर मंथन करना चाहिए कि आने वाले समय में इस साख को कैसे कायम रखा जाए। हरियाणा और मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद ग्राउंड रियलिटी किसी से छिपी नहीं है। अपने-अपनों की टांग खिंचाई में लगे हैं। गुजरात में पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन और मौजूदा सीएम विजय रुपाणी अपने बलबूते कुछ भी करने में सक्षम नहीं दिखे। 
मैं वर्ष 2016 में गुजरात गया था। वहां मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से रूबरू होने का मौका भी मिला था। करीब बीस मिनट की मुलाकात में उन्होंने गुजरात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों का राज्य बताने में कोई कोर कसर बाकि नहीं रखी थी। आखिरकार मैंने उनसे पूछ ही लिया था कि गुजरात को लेकर नरेंद्र मोदी को जो करना था वो कर गए। एक प्रधानमंत्री दोबारा मुख्यमंत्री बनने आए ऐसा आज तक हुआ नहीं। अब तो जो करना है आपको या आपकी अगली पीढ़ी को करना है। ऐसे में गुजरात के विकास और उस विकास मॉडल को लेकर आपकी अपनी क्या राया है। आपका क्या विजन है। आप कैसे यहां से आगे ले जाएंगे गुजरात को। यकीन मानिए बेहद अफसोस हुआ था मुख्यमंत्री विजय रुपाणी का जवाब सुनकर। उन्होंने कहा, नरेंद्र मोदी ने हमें एक रास्ता दिखाया है हम उसी पर आगे बढ़ेंगे। उनके सपनों के गुजरात को और सजाएंगे संवारेंगे। विजय रुपाणी जब यह जवाब दे रहे थे उस वक्त उनके चेहरे का हाव भाव बता रहा था कि सच में उनके पास गुजरात के लिए अपना कोई विजन नहीं है। शायद यही कारण है कि चंद महीनों बाद ही प्रदेश में राजनीतिक भुचाल आना शुरू हो गया। आग में घी डालने का काम किया पाटीदार आंदोलन ने। धीरे-धीरे स्थितियां ऐसी हो गर्इं कि अपने सपनों के गुजरात को संंभालने में खुद नरेंद्र मोदी के पसीने छुटते दिखे।
आज चुनाव का परिणाम अगर बीजेपी के पक्ष में आ भी गया तो मेरे अनुसार यह बहुत जश्न का विषय नहीं होना चाहिए, बल्कि मंथन का समय होना चाहिए। जो सत्ता विकास के दम पर बहुत आसानी से बीजेपी को मिल जानी चाहिए वह गुजरात में मोदी के बाद नेतृत्व शून्यता के कारण इतनी संघर्ष से मिली। इसलिए भविष्य के लिए तैयारी करनी होगी।
सिर्फ गुजरात ही क्यों तमाम ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी की सरकार है वहां के लिए भी यह चुनाव बहुत कुछ सीख दे जाएगा। आने वाले समय में लोकसभा का चुनाव सामने होगा। ऐसे में कांग्रेस को युवा नेतृत्व के रूप में राहुल गांधी का साथ मिल चुका है। गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने जिस परिपक्वता के साथ फ्रंट फुट पर कमान संभाली है उसने कई संदेश एक साथ दे दिए हैं। राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद का कार्यभार संभालने के बाद अपने पहले भाषण में ही स्पष्ट कर दिया है आने वाले दिनों में उनकी व्यूह रचना क्या होगी।

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