Tuesday, August 17, 2010

हे जुतनारायण महाराज तेरी महिमा अपार!

जूता पहले भी लोगों का स्टेटस सिंबल था, आज इससे थोड़ा ऊपर उठकर स्टेटस स्टार हो गया है. पहले जब चुर्रचुर्र करता था तो लोग कहते थे नया है इसीलिए कर रहा है...अब जब फुर्रफुर्र कर रहा है तो खूब मजा आ रहा है. लोग कहते फिर रहे हैं जिसके ऊपर जुता फुर्रफुर्र कर आकर गिरेगा वह स्टारडम से और ऊपर उठकर सुपर स्टार बन जाएगा. तभी तो जब १५ अगस्त को जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला पर परेड की सलामी लेते हुए जुता फेंका गया तो उनके परम पूज्य पिताश्री ने बयान दिया कि यह तो उनके राजनीतिक कॅरियर में एक सितारा जैसा है. उन्होंने जुतनारायण महाराज की स्वर्णिम यात्रा का बखान भी कर डाला कि कैसे बुश से लेकर जरदारी और चितंबरम तक जूते बरसे और उनका सितारा चमका. वे बेहद खुश नजर आए कि उनके श्रवण कुमार जैसे बेटे पर जुतनारायण महाराज ने कृपा दृष्टि दिखा दी है.न तो उमर और न ही उनके पिताश्री को इस बात की जरा भी चिंता है कि कश्मीर का आम अवाम किन परिस्थितियों से जूझ रहा है. वे इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि कश्मीर की वादियों में जो आग लगी है वह जंगल की आग है. इसे बुझाने के लिए एक दो फायर बिग्रेड की गाडिय़ां काम नहीं आती हैं. इसे बुझाने के लिए व्यापक तैयारी करनी पड़ती है. ये दोनों तो इस बात से खुश हैं कि जुतनारायण महाराज की कृपा दृष्टि उनपर पड़ गई है अब अगली बार फिर कुर्सी उनके ही हाथ में होगी. वे यह समझने की भूल कर रहे हैं. उन्हें इस बात का जरा भी गुमान नहीं है कि जुतनारायण महाराज आम आवाम के प्रतिक हैं. वे जब चुर्रचुर्र करते थे तब भी परेशानी खड़ी कर देते थे अब जब फुर्रफुर्र कर रहे हैं तो भी घोर विपत्ति ही लाएंगे.....जय हो जुतनारायण महाराज की..............

Wednesday, July 14, 2010

धारा के विपरीत बहकर बनाई पहचान

पिछले दिनों देहरादून में सिल्वर स्क्रिन से जुड़ी तीन हस्तियों से मिलने का मौका मिला. तीनों का इंटरव्यू किया. बहुत मजा आया इनसे बात कर. इन तीनों के नाम बताने से पहले आपको बता दूं कि तीनों हस्तियों में कई बातें बहुत कॉमन थीं. इन सभी ने अपने कॅरियर में तमाम उतार चढ़ाव देख. धारा के विपरीत बहकर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया. जमीन से शुरुआत कर आसमान छूने की ख्वाहिश लिए गे बढ़ते रहे. आज एक अच्छी मुकाम हासिल की है.सिल्वर स्क्रिन के ये कलाकार हैं सौरभशुक्ला, विजय राज और निर्माता निर्देशन तिग्मांशु धूलिया. बातचीत के क्रम में इन्होंने अपनी जिंदगी की कई कड़वी और अच्छी यादों को मेरे साथ शेयर किया. वैसे तो बताने को बहुत कुछ है लेकिन मैं यह पोस्ट सिर्फ इसलिए लिख रहा हूं ताकि आपको बता सकूं कि कैसे हताशा और निराशा के दौर में भी लोग अगर हौसला रखें तो न सिर्फ मंजिल हासिल करते हैं, बल्कि एक अलग पहचान भी बनाते हैं.हास्य अभिनेता के रूप में दर्शकों के बीच पहचाने जाने वाले विजयराज ने जब फिल्मों में जाने की सोची तो परिवारवालों ने ही उनके इस फैसले को नकार दिया. तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने मुंबई पहुंचकर अपने दम पर अपनी पहचान कायम की. ठीक इसी तरह तिग्मांशु वैसे तो नब्बे के दशक में ही मुंबई पहुंच गए थे, लेकिन उन्हें सराहा गया उनकी फिल्म हासिल से. हासिल के बारे में वे बताते हैं जब यह फिल्म बनाने की सोची तो इसमें कोई भी पैसा नहीं लगाना चाहता था, लेकिन उनका दृढ़ निश्चय था. फिल्म तो बना के ही रहूंगा. अपना पैसा लगाकर उन्होंने फिल्म की शुरुआत की. बाद में जब प्रोड्‌यूसर्स को लगा कि यह फिल्म बेहतर है, तब इसमें आगे आए. जब फिल्म परदे पर आई तो धमाल कर गई. कई अवार्ड इस फिल्म के नाम रहे. सौरभ ने उस दौर में फिल्मों की ओर रुख किया जब वहां हताशा का दौर था. अपने बेहतरीन काम से उन्होंने न केवल दर्शकों के बीच अपनी अमिट छाप छोड़ी बल्कि सफल भी रहे.

ऐसे पुलिसकर्मियों को सलाम

सलाम करने को जी चाहता है ऐसे पुलिसकर्मियों को। देहरादून के इतिहास में सन्डे की शाम जो कुछ भी हुआ उसने खाकी और कड़ी की जंग में एक नई इब्बारत लिख दी। एक पुलिस इंस्पेक्टर ने अपने फर्ज को निभाते हुए वो कर दिया जिसने प्रदेश के पुरे राजनीतिक तंत्र को हिला कर रख दिया। मामला कुछ इस तरह है।
देहरादून शहर से इंडियन मिलेट्री अकादमी से होकर चंडीगढ़ हाई वे गुजरती है। इसी हाई वे पर सन्डे की शाम एक एक्सिडेंट हो गया। इसी रस्ते में प्रेम नगर चौकी है। चरों तरफ से जाम लग गया। जाम हटाने के लिए पुलिस ने रूट बदल दिया। इसी बिच विधायक राजकुमार अपने लोगों के साथ वहां आ पंहुचे। रोड पर अपनी कार खरी कर मार्केट में चले गए। पुलिस ने जब वहां से कार हटाने के लिए कहा तो विधायक का ड्राईवर उनसे उलझ परा। विधायक भी पंहुचे और अपने खादी का रौब झारने लगे। पुलिस इंस्पेक्टर मनोज नेगी को भी खरी खोटी सुना डाली। जब बात हद से आगे बढ़ गई तो मनोज ने विधायक के साथ वो सुलूक किया जो एक पुलिस को करनी चाहिए। सरकारी काम में बाधा उत्पन्न करने के आरोप में मनोज उन्हें अर्रेस्ट कर थाने ले आया। बाद में विधायक ने वो राजनीती खेली की देहरादून का पूरा पुलिस अमला ही बदल दिया गया। विधायक के साथ मिस बिहेव के मामले में प्रदेश के डीजीपी तक को बदल दिया गया। पुलिस कप्तान को भी हटा दिया गया। पुलिस इंस्पेक्टर मनोज नेगी को अर्रेस्ट कर १४ दिन की न्यान्यीक हिरासत में भेज दिया गया। अब नेता खुश हैं। सिटी पुलिस का मोरल गिरा हुआ है। पब्लिक कह रही है पुलिस के साथ अन्याय हुआ है। उधर प्रदेश के मुखिया धृतरास्ट्र की तरह अंधे बनकर चुप चाप बैठे हैं। मनोज ने जेल जाने से पहले मीडिया से बातचीत में अपना दर्द बंया किया। उसने कहा सम्मान को गिरवी रख कर नौकरी नहीं करनी मुझे।
मैं जब चण्डीगढ़ में था वहां की एक घटना याद आ रही है। एक मामूली सा ट्रेफिक सिपाही राज्यपाल की कार का चालान सिर्फ इससलिए काट देता है क्यूंकि कार में राज्यपाल नहीं थे और कार पर लगे प्लेट पर ऐप्रोउन नहीं लगा था। खूब हंगामा हुआ था। लेकिन आपको जान कर हैरानी होगी की उस सिपाही को तरक्की दे कर हवलदार बनाया गया। उसे विशेष इनाम दिया गया। चण्डीगढ़ शहर में क्या मजाल की कोई नेता या नौकरशाह ट्रेफिक नियम तोरने की जुर्रत करे।
अब आप खुद ही अंदाजा लगा लें देहरादून पुलिस की क्या हालत होगी। जब एक इंस्पेक्टर की गलती जो गलती न होकर अपना फर्ज निभाना है उसका खामियाजा डीजीपी, पुलिस कप्तान और सिटी एसपी तक को भुगतना पर रहा है।
salam karne ko ji

Saturday, March 27, 2010

हाँ मैं नौकरानी हूँ

"ये जिन्दगी आपकी है, ये आपको तय करना है की आप कैसे इसे जीते हैं। कोई भी काम बार या छोटा नहीँ होता। मैंने अपनी कलम के दम पर बहूत नाम कमाया, लेकिन मैं आज भी घरों में नौकरानी का काम करती हूँ, इसमें मुझे जरा भी शर्मिंदगी महसूस नहीं होती। क्यूंकि अगर मैं अपने इस पेशे को छोर दूं तो कुछ लिख नहीं पाऊँगी।"
ये कुछ बातें बेबी हलधर ने कहीं। वो कल देहरादून में थीं। आपने बेबी का नाम तो जरुर सुना होगा। वही बेबी हलधर जिसने घरों में नौकरानी का काम करते करते एक ऐसी कहानी लिख डाली जो कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गई। आज उनके पास नेम है, फेम है, लेकिन वो आज भी उतनी ही सिम्पल हैं जितनी पहले थीं। उनकी पहली किताब " आलो अंधारी " से प्रेरणा पाकर दो और महिला ने किताब लिख डाली। ये सभी किताबें आज बेस्ट सेलर बुक हैं। बेबी इन दिनों दिल्ली में रह रही है। अपने दो बच्चों के साथ। बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे रहें। बेबी आज भी घरों में काम करती हैं। वो फिर एक बुक लिख रही हैं। थीम क्या है ये तो नहीं बताया, लेकिन इतना जरूर कहा। आपकी हमारी जिंदगी पर ही होगी। तो आप भी इंतजार कीजिये बेबी हलधर की नए बुक की और सलाम कीजिये उनके जज्बे और हौसले को।

Thursday, March 25, 2010

पहचान कौन

इन दिनों मोबाइल कंपनी वालों ने आफत कर रखी है। आफत का आरोप आप इन कम्पनिओं पर डिरेक्ट तो नहीं चस्पा कर सकते हैं। लेकिन इनडिरेक्ट तो आफत इन्ही की देन है। जब से मोबाइल कंपनी वालों ने फ्री का सीम बंटाना शुरू किया है हर दुसरे के पास दो चार सीम आपको नजर आ जायेंगे। दो दो फ़ोन तो पहले से ही स्टेटअस सिम्बल बन चूका है। अब जब से फ्री में सीम का कलचर डेवलप हुआ है रोज दो चार कॉल ऐसे आ जाते हैं उधर से बोलने वाला सबसे पहले यही कहेगा ...... हेल्लो.... हाँ हम बोल रहे हैं। नया नंबर देख कर आप पूछेंगे...हम कौन... तपाक से जवाब मिलेगा...पहचान कौन (अबे हम कोई भगवन थोरे ही हैं की नंबर देख कर आपकी पूरी हिस्टरी और जिओग्राफी जान जायेगे ) अब जब आप बताएँगे की भाई साहेब माफ़ कीजियेगा आपको पहचाना नहीं...जवाब मिलेगा...क्यूँ गुरु इतनी जल्दी भूल गए...(अब भूल ही गए हैं तो क्या बात करनी) आप कहेंगे अरे भाई साहेब गलती हो गई...अब आप ही बता दीजिये आप कौन....लेकिन वो जनाब भी नमूना निकलेंगे...कहेंगे...नहीं बताएँगे...आप ही पहचानिए कौन .... तो जनाब आप भी इन कौन पहचान टाइप वाले लोगों से सावधान हो जाइये... जैसे ही कोई नम्बर देख उधर से आवाज आये...पहचान कौन...आप भी तपाक से बोल उठिए...जनाब फ़ोन आपने ही किया है..आप ही फरमाइए...आप कौन.........
pahchn kaun