Wednesday, July 14, 2010

धारा के विपरीत बहकर बनाई पहचान

पिछले दिनों देहरादून में सिल्वर स्क्रिन से जुड़ी तीन हस्तियों से मिलने का मौका मिला. तीनों का इंटरव्यू किया. बहुत मजा आया इनसे बात कर. इन तीनों के नाम बताने से पहले आपको बता दूं कि तीनों हस्तियों में कई बातें बहुत कॉमन थीं. इन सभी ने अपने कॅरियर में तमाम उतार चढ़ाव देख. धारा के विपरीत बहकर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष किया. जमीन से शुरुआत कर आसमान छूने की ख्वाहिश लिए गे बढ़ते रहे. आज एक अच्छी मुकाम हासिल की है.सिल्वर स्क्रिन के ये कलाकार हैं सौरभशुक्ला, विजय राज और निर्माता निर्देशन तिग्मांशु धूलिया. बातचीत के क्रम में इन्होंने अपनी जिंदगी की कई कड़वी और अच्छी यादों को मेरे साथ शेयर किया. वैसे तो बताने को बहुत कुछ है लेकिन मैं यह पोस्ट सिर्फ इसलिए लिख रहा हूं ताकि आपको बता सकूं कि कैसे हताशा और निराशा के दौर में भी लोग अगर हौसला रखें तो न सिर्फ मंजिल हासिल करते हैं, बल्कि एक अलग पहचान भी बनाते हैं.हास्य अभिनेता के रूप में दर्शकों के बीच पहचाने जाने वाले विजयराज ने जब फिल्मों में जाने की सोची तो परिवारवालों ने ही उनके इस फैसले को नकार दिया. तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने मुंबई पहुंचकर अपने दम पर अपनी पहचान कायम की. ठीक इसी तरह तिग्मांशु वैसे तो नब्बे के दशक में ही मुंबई पहुंच गए थे, लेकिन उन्हें सराहा गया उनकी फिल्म हासिल से. हासिल के बारे में वे बताते हैं जब यह फिल्म बनाने की सोची तो इसमें कोई भी पैसा नहीं लगाना चाहता था, लेकिन उनका दृढ़ निश्चय था. फिल्म तो बना के ही रहूंगा. अपना पैसा लगाकर उन्होंने फिल्म की शुरुआत की. बाद में जब प्रोड्‌यूसर्स को लगा कि यह फिल्म बेहतर है, तब इसमें आगे आए. जब फिल्म परदे पर आई तो धमाल कर गई. कई अवार्ड इस फिल्म के नाम रहे. सौरभ ने उस दौर में फिल्मों की ओर रुख किया जब वहां हताशा का दौर था. अपने बेहतरीन काम से उन्होंने न केवल दर्शकों के बीच अपनी अमिट छाप छोड़ी बल्कि सफल भी रहे.

1 comment:

rajiv said...

Badhiya likha hai. Aise hi likhte raho. Meri shubhkamnaye.. Ye Dil ka kya chkkar hai :)