Thursday, January 24, 2019

#दस साल चैलेंज : नवाजुद्दीन को दस साल का चैलेंज दिया था, अभी तो नौ साल ही हुए हैं



सोशल मीडिया पर टेन ईयर चैलेंज चल रहा है। लोग अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं। पहले मैं कैसा अब कैसा हूं। चलिए, मैं भी आपको एक तस्वीर से रूबरू करवाता हूं। पर, इस तस्वीर को समझने के लिए आपको नौ साल पीछे लेकर जाऊंगा। चैलेंज तो दस साल का था, लेकिन नौ साल में ही इस तस्वीर में दिख रहे शख्स ने जो कुछ कर दिखाया है वह किसी के लिए प्रेरणा बन सकती है। आज जब आप मुसाफिर पर इस तस्वीर की कहानी पढ़ रहे होंगे तो इस शख्स ने एक और रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया होगा। तो आईए आपको लेकर चलता हूं नौ साल पहले।

आपने ठीक पहचाना तस्वीर में मेरे साथ दिख रहा शख्स और कोई नहीं आज सफलता की बुलंदियों को छू रहा हर दिल अजीज एक्टर नवाजुद्दीन सिद्की ही है। यह तस्वीर सितंबर 2010 की है। मैं उस वक्त जागरण ग्रुप के बाईलैंगुअल अखबार आई-नेक्स्ट के देहरादून संस्करण का एडिटोरियल हेड था। उस वक्त कलर्स पर आने वाले धारवाहिक बालिका बधु की धूम थी। इसी में सुगना का रोल प्ले करने वाली विभा आनंद ने टीवी की दुनिया में अच्छा नाम कमा लिया था। विभा आनंद देहरादून की रहने वाली हैं। विभा के पापा से दो-तीन बार मुलाकात हुई थी। उन्होंने एक दिन फोन किया। बताया कि विभा बालिका बधु से ब्रेक ले रही हैं। वह देहरादून आई हैं। उन्होंने बताया कि मैंने अपना प्रोडक्शन हाउस यूवी के नाम से खोला है। उसी के बैनर तले में विभा को लेकर शॉर्ट फिल्म बना रहा हूं। उन्होंने उस शॉर्ट फिल्म की शूटिंग मुहूर्त पर मुझे विशेष तौर पर आमंत्रित किया था। तय दिन और समय पर मैं आई-नेक्स्ट की रिपोर्टर कोमल नेगी और फोटोग्राफर अरुण सिंह को लेकर वहां पहुंच गया। शूटिंग देहरादून से करीब तीस किलोमीटर दूर सेलाकुंई के गांव में थी। हमारे अलावा कोई और मीडियाकर्मी वहां नहीं था। गर्मजोशी के साथ विभा और उसके पिता से मुलाकात हुई। मैंने फोटो जर्नलिस्ट अरुण सिंह को कहा कि विभा की कुछ अच्छी फोटो गांव के परिवेश में कर लो। कोमल भी उनके साथ ही खेतों की तरफ चली गई।
मैं वहीं झोपड़ीनुमा कमरे में बैठ गया। वहीं विभा के पिता ने चाय नाश्ते का प्रबंध कर रखा था। वो मेरे साथ बैठे थे। बगल के ही एक खाट पर एक और शख्स बैठा था, जो देखने में बिल्कुल किसी मजदूर की तरह लग रहा था। मैंने उसे सिर्फ एक झलक देखा और विभा के पिता से बात करने लगा। करीब दस मिनट बाद ही यूनिट का ही एक व्यक्ति विभा के पिता को बुलाकर ले गया। अब वहां झोपड़ी में मैं और वह शख्स ही बैठा था। मैंने औपचारिकता के तौर पर उसे भी बिस्कुट आॅफर किया। उसने शालीनता से नकार दिया। फिर उससे बातचीत शुरू हो गई।
मैंने पूछा कि आप भी फिल्म में हैं क्या? तो उसने कहा जी हां। मैं इस फिल्म में हीरो के तौर पर हूं। एक मुस्लिम किरदार है। मैं चौंक गया। विभा के पिता ने उससे परिचय भी नहीं कराया था। मैंने उससे नाम पूछा तो उसने अपना नाम नवाजुद्दीन सिद्दकी बताया। फिर बातचीत का सिलसिला निकल पड़ा। नवाजुद्दीन को उस वक्त तक फिल्म इंडस्ट्री में तो कुछ लोग जरूर पहचानते थे, लेकिन बाहरी दुनिया में जानने वाले कम ही थे। तब तक उन्होंने इस इंडस्ट्री में करीब 11 साल का लंबा संघर्ष कर लिया था।
मैं बहुत व्यग्र हो गया नवाजुद्दीन की कहानी सुनने को। व्यग्र इसलिए था क्योंकि मेरा छोटा भाई शशि वर्मा भी उन दिनों फिल्मी दुनिया में वैसा ही संघर्ष कर रहा था। टैलेंट की कोई कमी नहीं थी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष अच्छे-अच्छों का हौसला डिगा देती है।
नवाजुद्दीन ने बताया कि वैसे तो मैं मुजफ्फरनगर का रहने वाला हूं पर मेरा देहरादून से गहरा नाता है। यहीं मेरे भाई और परिवार के अन्य लोग रहते हैं। मैंने उनकी कहानी को विस्तार से सुनना चाहता था, लेकिन नवाजुद्दीन जैसा शर्मिला और दिलकश व्यक्ति मुझे आज तक नहीं मिला। लाख कुरेदने पर भी नवाजुद्दीन टुकड़ों में अपनी बात कहते और चुप हो जाते थे। शुन्यता में देखने लग जाते थे, ऐसा लग रहा था मानो अपनी अच्छी-बुरी यादों को सहेज रहे हों। पर मेरा मन अलग ही ताना बाना बुनने में लगा था।
मैंने कहा, नवाज भाई प्लीज अपनी बात कहिए। मैं आपका इंटरव्यू छापना चाहता हूं। आपके संंघर्ष को युवाओं को बताना चाहता हूं, ताकि घर बार छोड़कर मुंबई की तरफ भागने वाले युवाओं को भी पता चले कि जिंदगी इतनी भी आसान नहीं है। पर नवाज इंटरव्यू के नाम पर घबरा गए। घबराहट इस बात की नहीं थी कि वो कुछ बताना नहीं चाहते थे, बल्कि इस बात की थी कि जिस विभा आनंद के पिता ने उन्हें काम दिया है वो न नाराज हो जाएं। मैंने उनकी स्थिति भांप ली थी। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि आपको नुकसान नहीं होने दूंगा। विभा के पिता से भी बात कर लूंगा। फिर उन्होंने बड़ी हिम्मत करके मुझे कहा, पूछिए आप क्या जानना चाहते हैं।
फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ। नवाज ने कहा कि भाई आपने हाल ही में आई पिपली लाइव देखी है। मैंने न में सिर हिला दिया। उन्होंने बताया कि मैं इस फिल्म में रिपोर्टर के रोल में था। दो बार पर्दे पर दिखा था। फिर उन्होंने बताया कि मेरे नौ भाई बहन हैं। मैं एक संपन्न किसान परिवार से हूं। पढ़ना-लिखना चाहता था इसीलिए गांव से बाहर निकल आया। हरिद्वार से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। थोड़े दिन एक फॉर्मिस्ट कंपनी में नौकरी की। पर मन नहीं लगा। कुछ अलग करने का मन था। पर, क्या करूं समझ नहीं आ रहा था। फिल्में देखने का शौक तो था ही, एक दिन विचार आया कि फिल्मों ही काम करूंगा। दोस्तों से सलाह ली तो बताया कि इसके लिए पहले एक्टिंग सीखनी होगी। पता किया तो दिल्ली के नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा (एनएसडी) के बारे में जानकारी मिली। पर यहां भी संघर्ष था। तमाम टेस्ट के अलावा यह भी जरूरी था कि आप किसी थियेटर से जुड़े हों। दिल्ली में ही मैंने प्ले ग्रुप ज्वाइन कर लिया। नाम था साक्षी थियेटर ग्रुप। यहीं मनोज वाजपेयी और सौरभ शुक्ला जैसे लोग भी थे। मैं भी इसका हिस्सा बन गया। दिल्ली में गुजारा करने के लिए मैंने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी तक की। तबतक जुनून सवार हो गया था कि एक्टिंग ही मेरी लाइफ है, यही मेरी मंजिल है। 1996 में एनएसडी से पास हुआ। पर, हाथ में कोई काम नहीं था। नाटकों में तो हिस्सा लेता था, लेकिन वहां पैसे नहीं थे। दिल्ली के शहादरा में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के भरोसे जीवन की नांव हिचकोले खाते आगे बढ़ रही थी। एनएसडी की ट्रेनिंग पर तो पूरा भरोसा था, लेकिन इंडस्ट्री में कोई गॉडफादर नहीं था। जो करना था अपने बलबुते करना था। फिर मैंने मुंबई की तरफ रुख किया। बहुत सुना था मुंबई सबको अपना बना लेती है। पर, सच कहूं तो यहीं से मेरी जिंदगी का असली संघर्ष शुरू हुआ। हालात ये थे कि मैं छोटे-मोटे रोल तो छोड़िए भीड़ का हिस्सा बनने को भी तैयार था। रिजेक्शन का ऐसा दौर शुरू हुआ, जिसने मुझे अंदर से हिला कर रख दिया। आज इस इंडस्ट्री में 11 वर्षों के संघर्ष के बाद उपलब्धि के नाम पर कुछ नहीं है।
मैं नि:शब्द था। स्तब्धता के साथ नवाज भाई की बात सुन रहा था। नवाज कह रहे थे, फिल्मों के नाम पर चंद फिल्मों के नाम आपको गिना दूंगा। सरफरोश, शूल, जंगल यहां तक की मुन्ना भाई एमबीबीएएस तक का नाम बता दूंगा। पर मैं वहां कहां हूं यह आपको खोजना होगा।
मुन्ना भाई एमबीबीएस का नाम सुनकर मैं चौंक गया। मैंने दोबारा पूछा। क्या कहा नवाज भाई, आप मुन्ना भाई एमबीबीएस में भी हैं? नवाज ने हल्की मुस्कान दी। पर मैं स्पष्ट तौर पर देख पा रहा था कि उस मुस्कान के पीछे भी बेसुमार दर्द लिपटा था। नवाज ने कहा, देखा... मैंने आपको कहा न कि फिल्मों के नाम तो गिना दूंगा पर आप मुझे नहीं खोज पाओगे। मुन्ना भाई में मैंने पॉकेटमार का रोल किया है। सच कहूं तो नवाज भाई के बताने के बाद भी मैं उस कैरेक्टर को तत्काल खोज नहीं पाया। जबकि मैंने वह फिल्म दो या तीन बार देखी थी।
खैर, बातों का सिलसिला खत्म हुआ। अरुण, कोमल इंटरव्यू और फोटो शूट कर विभा के साथ हमारे पास आ गए। नवाज बिल्कुल खामोश हो गए। खुद को ऐसे समेट लिया, जैसे वो वहां मौजूद ही न हों। चाय-नाश्ते का दौर खत्म हुआ। हम लोग निकलने लगे। मैंने अरुण को कहा कि इनकी भी एक तस्वीर ले लो। अरुण थोड़ा सकुचाए। पर, मेरी गंभीर मुद्रा को देख तुरंत कैमरा निकाल लिया। मैं जबर्दस्ती नवाज को बाहर लेकर आया। वो तस्वीर खींचवाने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। विभा आनंद की उस दिन पचासों तस्वीर खींचने वाले अरुण सिंह ने नवाज की दो या तीन तस्वीर लेने के बाद ही ओके कर लिया। फिर मैंने अपने साथ नवाज भाई की तस्वीर लेने को कहा। जो मैंने यहां लगाई है। आप इस तस्वीर में भी देख सकते हैं उनके चेहरे का हाव भाव। बेहद ही अनमने तरीके से उन्होंने अपनी तस्वीर खिंचवाई। वो खुद को बेहद असहज महसूस कर रहे थे।
मैंने नवाज को थोड़ा सहज करने के लिए अरुण से पूछा कि तुमने पिपली लाइव देखी है। मुझे पता था कि अरुण ने उस फिल्म को कई बार देखा है, क्योंकि अरुण ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कहानी पर आधारित इस फिल्म के बारे में मुझसे कई बार चर्चा की थी। चर्चा क्या की थी सच कहूं तो हर प्रेस कांफ्रेस या कार्यक्रम से लौटने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों को गाली बकते हुए उसने मुझे बुरी तरह पकाया था।
अरुण ने तुरंत हां कहा। कहा सर बिल्कुल देखी है। अब मेरा दूसरा सवाल सुनकर अरुण हैरान हो गए। मैंने कहा इन्हें उस फिल्म में देखा है। अरुण गौर से उन्हें देखने लगे। गौर से देखते ही अरुण सिंह की पारखी नजरों ने उन्हें पहचान लिया। अरे सर हां पहचान गया, ये तो उस फिल्म में रिपोर्टर के रोल में है। नवाज भाई के चेहरे पर पहली बार खुशी वाली हंसी थी। फिर अरुण ने भी उनके साथ तस्वीर खिंचवाई। नवाज खुद को थोड़ा सहज महसूस कर रहे थे।

गले मिलकर जब नवाज हमें विदा कर रहे थे तो मैंने उन्हें दस साल का चैलेंज दिया था। मेरी मां कहती हैं कि दिन में एक बार किसी भी व्यक्ति के मुंह में सरस्वती वास करती है। जो दिल से निकली बात होती है। मैंने नवाज भाई से कहा था आज आपके साथ यह तस्वीर ले रहा हूं, पता नहीं दस साल बाद आप कहां होंगे और मैं कहां रहूंगा। पर, मेरा विश्वास है कि दस सालों में आप सफलता की उस शिखर पर रहोगे कि हम आपको याद करेंगे। दोबारा कस कर गले लगाकर नवाज ने पहले आमीन किया फिर शुक्रिया अदा किया। दूसरे दिन जब इंटरव्यू प्रकाशित हुआ तो सुबह सुबह सबसे पहला फोन नवाज का आया। वो बेहद खुश थे। कहा भाई शुक्रिया। आज जिंदगी में पहली बार मेरा इंटरव्यू छपा है। मैंने कहा आज तो यह जबर्दस्ती लिया गया इंटरव्यू छपा है। मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन आपसे इंटरव्यू लेने वालों की लाइन लगेगी।
आज इस कहानी को नौ साल हो रहे हैं। एक साल और बचा है। पर आज यह कहानी इसलिए बता रहा हूं कि क्योंकि आज ही नवाजुद्दीन की एक ऐसी फिल्म परदे पर आ रही है जो नए रिकॉर्ड कायम करेगी। शुक्रवार सुबह की शुरुआत ही एक ऐसे रिकॉर्ड और सम्मान से होगी जो अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार जैसे कलाकारों को भी नसीब नहीं हुई।
दरअसल, 25 जनवरी को परदे पर आ रही नवाज की फिल्म ठाकरे को महाराष्टÑ के सिनेमाघर में सुबह चार बजे का शो मिला है। हिंदी सिनेमा के इतिहास में यह पहली बार होगा कि किसी फिल्म का ओपनिंग शो सुबह चार बजे होगा। कभी ऐसा क्रेज अमिताभ, दिलीप कुमार, राजेश खन्ना जैसे सुपर स्टार के लिए हुआ करता था। सुबह छह बजे का शो तो इन स्टार के लिए हुआ, लेकिन यह पहली बार होगा जब सुबह चार बजे का ओपनिंग शो होगा।
दिल से बधाई आपको नवाज भाई। मेरा दस साल का आपको दिया चैलेंज नौ साल आते-आते आपकी उपलब्धियों के कारण बहुत फिका हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि दसवें साल में आप आॅस्कर तक का सफर पूरा करके इस चैलेंज को पूरी तरह धुमिल कर दोगे।



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