Sunday, March 18, 2018

तो क्या ईवीएम से तय होगी गठबंधन की राजनीति?

एक बार फिर से ईवीएम की राजनीति चरम पर है। यूपी और बिहार के उपचुनाव में अप्रत्याशित नतीजों के बाद भी विपक्षी पार्टियां ईवीएम की विश्वनियता पर प्रश्न चिन्ह लगा रही हैं। मायावती हो या अखिलेश यादव या बिहार में आरजेडी के नेता। सभी एक सुर में भविष्य का चुनाव ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से करवाने की वकालत कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात शनिवार को शुरू हुए कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन में देखने को मिली। इतने बड़े मंच से कांग्रेस ने भी ईवीएम की विश्वनियता पर सवाल उठाते हुए बैलेट पेपर से चुनाव करवाने की बात कही। आम आदमी पार्टी पहले से ही ईवीएम को कठघरे में पेश कर चुकी है। आप ने तो दो कदम आगे बढ़ते हुए दिल्ली विधानसभा की कार्यवाही के दौरान ईवीएम हैक करने का लाइव डेमो तक दे डाला था। ऐसे में कई बातें मंथन करने पर मजबूर कर देती हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भविष्य की राजनीति जिसे गठबंधन की राजनीति के तौर पर देखा जा रहा है, क्या वह ईवीएम के रास्ते तय होगी?
मंथन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ईवीएम से चुनाव करवाया जाने की शुरुआत ने भारतीय राजनीति की परिभाषा को बदल कर रख दिया था। उस दौर को अभी भुलाया नहीं जा सकता जब बूथ कैपचरिंग की बात सामान्य बात होती थी। चुनाव के दिन अघोषित कर्फ्यू का माहौल होता था। काफी कम संख्या में लोग वोटिंग के लिए बाहर आते थे। एक अनजाना सा भय उन्हें बाहर आने से रोकता था। सबसे खराब स्थिति महिलाओं के लिए थी। पर ईवीएम प्रणाली ने लोगों में लोकतंत्र के प्रति आस्था को मजबूती प्रदान की। बूथ कैपचरिंग की सूचना शायद ही कहीं से आई होगी। तमाम प्रयोगात्मक दौर से बाहर निकलते हुए आज चुनाव आयोग अपने सबसे बेहतर अवस्था में है। पर इसी बेहतर अवस्था में चुनाव आयोग और ईवीएम की विश्वनियता पर गंभीर सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है। तमाम विपक्षी पार्टियों का स्टैंड ईवीएम को लेकर क्लियर है। कांग्रेस, राजद, सपा, आप, बसपा सहित तमाम दक्षिण की विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम को देश की लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। यह बात जानते हुए भी तमाम उपचुनाव के अलावा पंजाब में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। अभी नार्थ ईस्ट में हुए चुनाव के रिजल्ट भी बहुत कुछ कह रही है। सभी चुनाव ईवीएम से ही हुए हैं। यह सारे उदाहरण सामने होने के बावजूद विपक्षी पार्टियों को लगता है कि ईवीएम के सहारे ही बीजेपी की जीत और मोदी नाम के लहर को रोका जा सकता है। जिस तरह मोदी को रोकने के लिए गठबंधन की राजनीति को मजबूती प्रदान की जा रही है, उसमें ईवीएम आने वाले समय में बड़ा रोल अदा कर सकता है। यूपी उपचुनाव में जीत के तुरंत बाद बसपा सुप्रीमो मायावती चंडीगढ़ में थीं। यहां उन्होंने रैली को संबोधित किया। मंच से उन्होंने एक बार फिर से ईवीएम राग को गया। उन्होंने भविष्य के चुनाव ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से करवाने की बात दोहराई। उधर, इंडिया न्यूज के मंच से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ईवीएम की कार्यप्रणाली को कठघरे में खड़ा किया।कांग्रेस के महाधिवेशन से भी ईवीएम के विरोध के स्पष्ट स्वर सुनाई दिया। ऐसे में इस बात को मजबूती मिल रही है कि आने वाले समय में ईवीएम मुद्दे को लेकर विपक्ष की एकता देखने को मिलेगी। शायद यह एक ऐसा मुद्दा होगा जो गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ाने में मददगार साबित होगा। जहां तक गठबंधन का सवाल और मोदी रथ को रोकने की राजनीति है उसमें भले ही ईवीएम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। पर क्या इस बात से कोई इनकार कर सकता है कि कैसे ईवीएम प्रणाली ने देश की स्वतंत्र चुनाव प्रणाली को विकसित करने में अपना योगदान किया है। हम कैसे उस मंजर को भुला सकते हैं जब चुनावी दौर में गोलियों और बमों की दहशत से लोग कांपते थे। चुनाव में सैकड़ों लोगों की जान चली जाती थी। ये हालात सिर्फ इसलिए पैदा किए जाते थे क्योंकि बैलेट पेपर पर टेंपरिंग करना बेहद आसान था। भारतीय लोकतंत्र ने उस दौर को भी देखा है जब नकली बैलेट पेपर से प्रत्याशियों ने अपनी जीत सुनिश्चित करवा ली थी1 अपनी हार निश्चित मानने वाले प्रत्याशियों ने बैलेट बॉक्स में इंक डालकर सभी वोट खराब करवाने तक काम किया। चुनाव आयोग उस दौर में भी निश्पक्षता से चुनाव करवाने के लिए तत्पर रहता  था और आज भी उसी प्रतिबद्धता को दोहरा रहा है। चुनाव और वोटिंग प्रकिया को सुरक्षित करने के लिए ही ईवीएम जैसे उपाय करवाए गए। पर अफसोस है कि आज उसी ईवीएम की विश्वनियता पर सवाल उठाया जाने लगा है।
कई दूसरे देशों ने
भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में ईवीएम प्रणाली पर अपना विश्वास जताते हुए यहां की प्रणाली साझा करने की मांग की है। पर अब हमारे देश में ही हाल जुदा है। विपक्षी दलों का कहना है कि कई यूरोपियन देशों में ईवीएम को बैन कर दिया गया है। पर यह कोई बताने को तैयार नहीं कि आखिर ईवीएम को बैन क्यों किया गया। दरअसल उन देशों में ईवीएम को और आगे ले जाने के लिए इसे इंटरनेट से कनेक्ट करने का प्रयोग किया गया। जो बूरी तरह असफल रहा। क्योंकि इंटरनेट की दुनिया सुरक्षा मामलों में बेहद कमजोर है। ऐसे में यह प्रयोग बूरी तरह असफल रहा। हालांकि उन यूरोपिय देशों में आज भी ईवीएम प्रणाली से ही बेहतर चुनाव करवाने के लिए तमाम रिसर्च हो रहे हैं।
भारतीय लोकतंत्र का इतिहास काफी उथल पुथल भरा रहा है। खासकर चुनावी प्रकिया के मामले में यह इतिहास काफी स्याह रहा है। ऐसे में सिर्फ अपनी राजनीति स्वार्थ के लिए ईवीएम जैसे सुरक्षित प्रणाली को सिरे से खारिज कर देना कहीं से तर्कसंगत नहीं है। हां यह बात चुनाव आयोग ने भी स्वीकारी है कि तमाम प्रयोगों के कारण कुछ विसंगतियां जरूर सामने आई हैं, पर इसे तत्काल दूर भी कर लिया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि चुनाव आयोग जिस तरह पूरी निष्पक्षता से अपना काम कर रही है उसी निष्पक्षता और ईमानदारी से अपनी कमजोरियों को स्वीकारते हुए ईवीएम की विश्वनियता को कायम करने पर मंथन करेगी। आने वाले समय में खासकर 2019 में चुनाव आयोग की सबसे बड़ी परीक्षा है। यह परीक्षा ईवीएम के जरिए ही बेहतर तरीके से हो सकती है इस बात का विश्वास भारतीय जनता को भी दिलाना होगा।