Monday, March 26, 2018

चिदंबरम की तरह आप भी आउटडेटेड तो नहीं?

कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के एक ट्वीट ने एक ऐसे विषय पर मंथन करने पर विवश कर दिया है, जिसे झेलते तो सब हैं, लेकिन चर्चा कम करते हैं। सार्वजनिक मंच से तो ऐसे विषयों पर चर्चा करना इगोस्टिक लगने लगता है। पर अच्छा हुआ कि पूर्व वित्तमंत्री को इतने सालों बाद इस विषय पर कुछ ज्ञान हुआ और इस दिव्य ज्ञान को उन्होंने सार्वजनिक मंच से व्यक्त भी कर दिया। लंबे समय तक भारत के वित्तमंत्री रहे पी. चिदंबरम को चेन्नई एयरपोर्ट पर इस बात का पता चला कि एयरपोर्ट पर साधारण चाय की कीमत भी कितनी अधिक होती है। चिदंबरम को चाय की कीमत इतनी अधिक लगी कि वे डर गए। हम आम लोगों को इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए कि इतने बड़े राजनेता को कीमत से डर लगा, क्योंकि शायद इस डर के बाद लूट का अड्डा बन चुके एयरपोर्ट्स लाउंज के बारे में मंथन करने की जरूरत पड़ेगी।
देश के पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम रविवार को चेन्नई एयरपोर्ट पर थे। चाय की तलब लगने पर उन्होंने आॅर्डर दे दिया। यह तलब राजनीतिक थी या सामाजिकयह तो पी. चिदंबरम ही बता सकेंगे, लेकिन उन्होंने चाय की कीमत को लेकर जो ट्वीट किया उसकी व्याख्या राजनीतिक और सामाजिक दोनों तरीके से अतिमहत्वपूर्ण होगी। चिदंबरम ने अपने ट्वीट में लिखा है कि कॉफी और चाय की एयरपोर्ट पर कीमतें देखकर मैं डर गया हूं। उन्होंने लिखा कि यहां 135 रुपए में एक कप चाय और 180 रुपए में कॉफी, ये कीमतें सुनकर मैं डर गया हूं। फिर उन्होंने सवाल पूछा है कि कहीं वो खुद आउटडेटेड तो नहीं हैं? चिदंबरम की मानें तो उन्होंने चेन्नई एयरपोर्ट पर एक कप चाय मांगी तो उन्हें कप में गर्म पानी और टी-बैग दिया गया और उसकी कीमत 135 रुपए बताई गई, जिसके बाद उन्होंने चाय खरीदने से इनकार कर दिया। उन्होंने पूछा है कि वो सही हैं या गलत?
यह बहुत आश्चर्यजनक तथ्य है कि जो व्यक्ति इतने लंबे समय तक देश के वित्तमंत्री सहित तमाम पदों पर रहा उसे आज विपक्ष में बैठकर एयरपोर्ट पर अधिक कीमतों पर मिलने वाले खाद्य पदार्थों के बारे में ज्ञान प्राप्त हुआ है। दरअसल यह कोई नई बात नहीं है कि एयरपोर्ट पर मिलने वाले खाद्य पदार्थ ऊंची कीमतों पर मिलते हैं। पानी की एक बोतल भी आपको पचास से डेढ़ सौ रुपए तक मिलेगी। साधारण चाय और कॉफी की कीमत भी हैरान करने वाली रहती है। पर यह बेहद अफसोसजनक है कि सभी तथ्यों से रूबरू होने के बावजूद भी हमारी सरकारें इस पर कुछ भी करने में खुद को असमर्थ पाती हैं। लंबे समय तक वित्तमंत्री रहने वाले चिदंबरम भी चाहते तो लूट का अड्डा बन चुके एयरपोर्ट्स पर लगाम कसने के लिए किसी पॉलिसी में अपना योगदान दे सकते थे। पर वे ऐसा नहीं कर सके और आज विपक्ष में बैठकर 135 रुपए की चाय के लिए ट्वीट कर रहे हैं। खुद को आउटडेटेड बता रहे हैं। 

आउटडेटेड होना बेहद रोमांचकारी अनुभव होता है। क्योंकि आपको नई-नई चीजों के बारे में जानकारी होती है। अच्छा है चिदंबरम साहब को नई जानकारी मिली और उन्होंने ट्वीट किया, जिसने एक सार्थक बहस को तो जन्म दे ही दिया है। भारत के तमाम एयरपोर्ट्स से हर रोज लाखों यात्री यात्रा करते हैं। हर दिन उन्हें एयरपोर्ट पर मिलने वाले खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों से रूबरू भी होना पड़ता है। वे सबकुछ जानते समझते हुए भी ऊंची कीमत देकर चूप रह जाते हैं। क्योंकि यह स्टेट्स सिंबल से जुड़ा मामला होता है। वह 135 या दो सौ रुपए के लिए कोई हंगामा खड़ा करना नहीं चाहता। न ही वह सोशल प्लेटफॉर्म पर इस संबंध में चर्चा करना चाहता है। यह तो संयोगवश चाय की राजनीति का प्रश्न था जिसने पूर्व वित्तमंत्री को ट्वीट करने पर मजबूर कर दिया।
दरअसल हाल के दिनों में एयरपोर्ट ही नहीं, तमाम मल्टीप्लेक्स, मॉल, स्टेडियम आदि जगहों पर भी तयशुदा कीमतों से ज्यादा कीमत वसूलना आम बात है। लोग भी बिना किसी हिचकिचाहट के यह कीमत अदा कर देते हैं। पर सवाल यह है कि क्या यह सब सरकार और संबंधित विभागों की निगरानी में हो रहा है? अगर नहीं तो आखिर क्यों नहीं ऐसी जगहों पर कार्रवाई करने की हिम्मत जुटाई जाती है? आखिर संबंधित विभागों को किस बात का भय सताता है कि वह ऐसी तमाम जगहों पर छापेमारी से बचते हैं? केंद्र सरकार के अलावा तमाम राज्य सरकारों के पास भी अपनी पॉलिसी है। जिसमें इस बात का जिक्र होता है कि पैकेट बंद खाद्य पदार्थों के लिए अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी.) से अधिक नहीं वसूला जा सकता है। केंद्र सरकार ने भी दिसंबर 2016 में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक ही शहर, जिले या राज्य में एक ही वस्तु पर अलग-अलग एमआरपी. लेने का चलन बंद करने का निर्देश दिया था। इस निर्देश से पहले भी 2009 में लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट बनाया गया था। 2011 में दो कदम आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार ने पैकेज्ड कमोडिटी रुल्स का भी गठन किया, ताकि एयरपोर्ट, सिनेमाघरों, मॉल आदि पर मिलने वाली खाद्य वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित किया जा सके। पर अफसोस है कि ये सारे नियम-कानून कागजों पर ही हैं। 
  लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट एंड रुल्स में इतने सख्त प्रावधान हैं कि संबंधित विभाग चाहे तो किसी भी दुकान का लाइसेंस तक रद कर सकती है। पर ये सारे नियम कानून प्रभावहिन हो चुके हैं, क्योंकि केंद्र सरकार के अलावा राज्य सरकारों ने भी कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया। शायद यही कारण है कि इतने साल केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बावजूद पी. चिदंबरम जैसे दिग्गज नेताओं को आज यह पता चला कि कैसे एयरपोर्ट लूट का अड्डा बन चुके हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि पूर्व वित्तमंत्री का यह ट्वीट आने वाले समय में केंद्र सरकार की एजेंसियों को मंथन करने पर मजबूर करे कि सार्वजनिक स्थानों पर खाद्य पदार्थों की कीमतों के नियंत्रण को लेकर कोई सख्त कदम उठाया जाए। और हां बिना किसी हिचक और स्टेटस सिंबल के इगो को किनारे रखते हुए आम और खास लोगों को भी इन कीमतों के नियंत्रण के लिए सार्वजनिक मंच पर अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए। मंथन करिए, नहीं तो आप भी पी. चिदंबरम की तरह आउटडेटेड ही रह जाएंगे।

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