Tuesday, February 20, 2018

शहादतों के बदले हम हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन



मैंने अपने इसी मंथन कॉलम में कुछ दिन पहले इस बात की चर्चा की थी कि जब-जब सेना और सैनिकों के साथ राजनीति हुई, बहुत नुकसान हुआ है। सेना को कभी राजनीति का हिस्सा नहीं बनाना चाहिए। पर भारतीय लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी विडंबना है कि हम कभी प्रत्यक्ष तौर पर कभी अप्रत्यक्ष तौर पर सेना का राजनीतिक इस्तेमाल होते देखते हैं। अब एक बार फिर कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। एक तरफ आतंकियों के हमले बढ़ते जा रहे हैं। पाकिस्तान ने तोप और मोर्टार का रुख कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों की ओर कर रखा है। हर रोज पलायन हो रहा है। सैनिक शहादत दे रहे हैं। बॉर्डर पर युद्ध जैसे हालात हैं। और दूसरी तरफ दिल्ली से राष्ट्रीय रक्षा महायज्ञ के लिए रथ यात्रा की शुरुआत हो चुकी है। जो गृहमंत्री पाकिस्तान और आतंकियों को करारा जवाब देने की बात दोहरा रहे हैं, वही राजनाथ सिंह इस महायज्ञ के लिए रथयात्रा को झंडी दिखा रहे हैं। मंथन करना चाहिए कि हवन और यज्ञ करने से हमें क्या हासिल होगा?
पिछले साल जब उड़ी में 17 सैनिकों ने शहादत दी थी, तो सेना जबर्दस्त गुस्से में थी। भारत सरकार ने उन्हें खूली छूट दी कि चाहे तो सेना सीमा पार जा कर शहादत का बदला ले सकती है। हुआ भी ऐसा ही। सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तान को भयभीत कर दिया। सेना ने न केवल सैकड़ों की संख्या में आतंकियों का सफाया किया, बल्कि बॉर्डर एरिया में मौजूद कई आतंकी लॉन्चिंग पैड ध्वस्त किए। ऐसा नहीं है कि सेना ने ऐसा पहले कभी नहीं किया था। ऐसे सैन्य अभियानों को जल्दी बाहर नहीं आने दिया जाता है। पर उड़ी हमले के बाद भारत सरकार पर ‘बदला’ लेने का इस कदर दबाव था कि पूरे विश्व में इस बात का नगाड़ा पीटा गया कि हमने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान में छुपे बैठे आतंकियों को कड़ा जवाब दिया है।
कभी इस तरह के आॅपरेशंस का ढिंढ़ोरा नहीं पीटा गया। पर उस वक्त की राजनीतिक मजबूरियां ही थी कि सेना को सामने आकर पूरे आॅपरेशन की कहानी बयां करनी पड़ी। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो केंद्र की बीजेपी सरकार को जबर्दस्त फायदा मिलता दिखा। जैसे ही यह फायदा अधिक दिखने लगा, तमाम विपक्षी पार्टियों ने सेना के आॅपरेशन को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। शायद यह पहली बार था कि सेना के किसी आॅपरेशन का सबूत तक मांगा जाने लगा। इससे शर्मनाक बात क्या होगी कि हमारी सेना की विश्वसनियता पर प्रश्न चिह्न लगा दिया गया। पाकिस्तानी अखबारों ने तमाम विपक्षी पार्टियों के बयान को बढ़ा चढ़ा कर अपने यहां प्रकाशित किया। उनका मोटिव था भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक को झूठा साबित करना। इस बात की यहां चर्चा इसलिए जरूरी है ताकि इस बात पर मंथन किया जा सके कि जैसे ही सेना के एक आॅपरेशन का राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास किया गया वैसे ही पूरा आॅपरेशन ही राजनीति की भेंट चढ़ गया। अफसोस इस बात का है कि सेना का राजनीतिकरण करते ही सेना की विश्वसनियता पर ही खतरा उत्पन्न हो गया। 
सर्जिकल स्ट्राइक से बीजेपी को कितना लाभ हुआ या अन्य विपक्षी पार्टियों को कितनी हानि हुई यह रिसर्च का विषय है। कालखंड में इसका विश्लेषण भी होगा। पर प्रत्यक्ष तौर पर क्या हुआ? पूरे विश्व में पाकिस्तान की भद पिटते ही वह घायल जानवर की तरह भारत की तरफ झपटने को बेताब हो गया। बॉर्डर पर अचानक से हमलों की बाढ़ आ गई। यहां तक कि सेना के अलावा निहत्थे ग्रामिणों तक को निशाना बनाया गया। बदले की आग में झुलसते हुए पाक प्रयोजित आतंकियों ने सेना के कैंपों और वाहनों पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। पिछले एक साल का आंकड़ा इस बात की गवाही दे रहा है कि हमारे कितने सैनिकों ने देश रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी। आंकड़ों की जुबानी देखा जाए तो हाल के महीनों में बॉर्डर एरिया से सबसे अधिक पलायन हुआ है। सेना की निगरानी में लोगों को सुरक्षित निकाला जा रहा है।
पर अब क्या हो रहा है? जहां पूरे देश में कश्मीर में हो रहे हमलों को लेकर चिंता और रोष का वातवरण कायम हो रहा है, वहीं भारत सरकार का रुख बेहद गैरजिम्मेदाराना सा प्रतीत हो रहा है। दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में 18 से 25 मार्च तक राष्ट्रीय रक्षा महायज्ञ प्रस्तावित है। इस यज्ञ से पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जल मिट्टी रथ यात्रा को झंडी दिखाकर दिल्ली से रवाना किया है। बताया जा रहा है कि इस रथ के जरिए डोकलाम से लेकर कश्मीर के बॉर्डर इलाकों से मिट्टी लाई जाएगी। बद्रीनाथ सहित सभी धामों की मिट्टी और जल को भी यज्ञ से पूर्व एकत्र किया जाएगा। इन्हीं मिट्टी और जल से लाल किले के अंदर हवन कुंड तैयार होंगे, जिसमें 11 हजार पंडितों द्वारा यज्ञ किया जाएगा। प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को इस यज्ञ के लिए आमंत्रित किया गया है। बीजेपी की तरफ से कहा जा रहा है कि देश की सीमाओं पर तैनात हमारे वीर जवानों और उनके त्याग एवं संघर्षों को भावनाओं में रखते हुए ' राष्ट्र रक्षा महायज्ञ' का आयोजन किया जा रहा है।
किसी भी यज्ञ या आयोजन को करवाना हर किसी का लोकतांत्रिक अधिकार है। चाहे वह व्यक्ति विशेष हो या पार्टी विशेष। कोई भी इस तरह का आयोजन करवा सकता है, इसमें दो राय नहीं। भारतीय जनता पार्टी भी अपने इसी अधिकार का उपयोग कर यह आयोजन करवा रही है। पर आपत्ति तब होती है जब इसमें पूरी केंद्र सरकार शामिल हो। जिस सरकार का दायित्व सेना का मनोबल ऊंचा रखना होता है, वही सरकार जब इस तरह के आडंबर को संरक्षित और पल्लिवत करे तो पूरे विश्व को क्या मैसेज जाएगा? इस पर मंथन करना जरूरी है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। ऐसे में किसी यज्ञ या धार्मिक अनुष्ठान में सरकार और सरकारी तंत्र का जुटना क्या संविधान सम्मत है? पूरे देश को पता है कि बीजेपी 2019 के चुनाव में जुटी है। ऐसे में क्या एक बार फिर से सेना को राजनीतिक हवन कुंड में आहूति के लिए तैयार किया जा रहा है।
क्या किसी यज्ञ से राष्ट्र की सुरक्षा हुई है। एक तरफ दुश्मनों को करारा जवाब देने की बात कही जाती है, दूसरी तरह यज्ञ जैसे धार्मिक अनुष्ठान के जरिए राष्ट्र सुरक्षा का आडंबर का आखिर औचित्य क्या है? प्रतिदिन हमारे सैनिकों की शहादत को पूरा राष्ट्र देख रहा है, ऐसे में एक बार फिर से राजनीति हवन में सेना और सैनिकों को झोंकने की तैयारी हो रही है। हो सकता है राष्ट्र प्रेम के नाम पर राष्ट्र रक्षा यज्ञ के बीजेपी के लिए कई मायने हों। पर भारतीयों के लिए सेना का गर्व और गौरव एक अलग मायने रखता है। सैनिकों के त्याग और बलिदान को राजनीतिक हवन यज्ञ में शामिल करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं है। बीजेपी हो या कोई अन्य दल वो स्वतंत्र रूप से इस तरह का यज्ञ कराएं, पर सरकार के अहम पद पर शामिल लोग जब इस तरह के आयोजनों का हिस्सा बनते हैं तो पूरे देश को मंथन जरूर करना चाहिए।
चलते- चलते..
और हां.. इस तरह सैनिकों के नाम पर होने वाले आयोजन तब और भी घेरे में आ जाते हैं जब इसका आयोजन लाल किले जैसे ऐतिहासिक धरोहरों के प्रांगण में होता है। जिस लाल किले ने अपनी प्राचीर से बुलंद भारत के गौरव को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया हो, उसी लाल किले के प्रांगण में राष्ट्र सुरक्षा के नाम पर आडंबर सिर्फ चुनावी स्टंट हो सकता है। और कुछ नहीं।

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