Friday, June 29, 2018

संजू : कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना

 
किसी भी बायोपिक देखने में काफी रिस्क होता है। रिस्क इसलिए क्योंकि आप उस शख्स के बारे पहले से बहुत कुछ जानते होते हैं। खासकर तब जब वो एक सेलेब्रेटी हो। ऐसे में उस जिंदा किरदार को फिल्मी परदे पर देखना आपको और आपके मन मस्तिष्क को अलग ही फील देता है। पर सामने जब राजकुमार हिरानी जैसा मंजा हुआ डायरेक्टर हो और रणबीर कपूर जैसा सुपर टैलेंटेड हीरो तो फिल्म बिना किसी रिस्क के देखी जा सकती है। संजू वैसी ही फिल्म है। संजय दत्त का जीवन जितना उतार चढ़ाव भरा रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। पर तीन घंटे में उस पूरे उतार चढ़ाव को बेहतरीन अंदाज में प्रस्तुत किया गया है।
क्यों देखें इस फिल्म को
  • तीन बड़े कारणों से आपको यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। पहली बात राजकुमार हिरानी जैसे डायरेक्टर, दूसरा रणबीर कपूर जैसा एक्टर और तीसरा संजय दत्त जैसी शख्सियत जो इतना विवादित हो जाने के बावजूद आज भी करोड़ों दिलों पर राज करता है।
  •  यह फिल्म आपको एक ऐसी इमोशनल फिलिंग देगा जो आपकी आंखें नम कर दे। साथ ही गुदगुदाने के कई मौके भी आपको देगा। 
  • सुनील दत्त की भूमिका निभा रहे परेश रावल को उनकी अदाकारी के लिए नब्बे अंक दिए जा सकते हैं। दस अंक इसलिए काट रहा हूं क्योंकि गुजराती स्टाइल में पंजाबी बोलना उनके किरदार को कहीं शोभा नहीं देता। 
  • संजय दत्त का किरदार निभा रहे रणबीर कपूर ने अपने किरदार से पूरा न्याय किया है। उनके एक्सप्रेशन, डायलॉग डिलिवरी, बॉडी लैंग्वेज ने कहीं से यह फील नहीं होने दिया कि सामने संजय दत्त न हों। यहां तक की मुन्नाभाई एमबीबीएस के एक सीन को भी इस फिल्म में दोहराने के दौरान वो बिल्कुल संजू बाबा की तरह ही नजर आए हैं।
  • दोस्त अच्छा मिल जाए तो आपकी जिंदगी सुधर जाए, पर वह गड़बड़ हो तो आपकी जिंदगी नरक कैसे बन जाती है यह भी संजू में आपको देखने को मिलेगा। बेहतर दोस्त के रूप में विक्की कौशल ने महफील लूट ली है। उनके गुजराती कैरेक्टर ने फिल्म में जान डाल दी है, जो फिल्म के अंत तक अपना प्रभाव छोड़ती है। 
क्या मिस करेंगे आप
इस फिल्म को पूरी तरह संजय दत्त की बायोपिक कहना बायोपिक के अर्थ को कम करना होगा। तीन घंटे की इस मूवी में संजय दत्त के दो सबसे बड़े कंट्रोवर्सी को जस्टिफाई करने का ही प्रयास किया गया है।
फिल्म का पहला पार्ट संजय दत्त के ड्रग्स वाली जिंदगी और दूसरा पार्ट मुंबई बम धमाकों के इर्द गिर्द ही चक्कर खाता है। अगर आप संजय दत्त के बचपन से लेकर अब तक के किरदार या उनकी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं को देखने के लिए सिनेमा हॉल में जा रहे हैं तो आपको निराशा होगी।
और क्या-क्या है संजू में
-संजय दत्त की अय्यासी वाली जिंदगी, ड्रग्स वाली जिंदगी, मां नरगिश और पिता सुनील दत्त के साथ उनकी बांडिंग, जिंदगी में दोस्तों की अहमियत, मीडिया के प्रति उनकी नफरत ये कुछ अलग अलग प्वाइंट्स हैं जिसे आप संजू में देखेंगे।
फाइनल कमेंंट
एक दो सीन को अगर इग्नोर कर दें तो परिवार के साथ यह फिल्म जरूर देखी जा सकती है। साल 2018 की यह सबसे बड़ी फिल्म होगी। और हां फिल्म के अंतिम संवाद को अपनी जिंदगी का फलसफा अगर आप भी बना लेंगे तो हंसते खिलखिलाते यह जिंदगानी कटती रहेगी। उसी संवाद के बोल हैं..कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना..

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