Monday, June 25, 2018

रघुवर राज : रेप भी धर्म देखकर होने लगा है

एक तरफ जहां कश्मीर में बीजेपी की सरकार ने तीन सालों तक तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए अपनी इज्जत को तार-तार किया। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी शासित झारखंड की रघुवर सरकार भी कमोबेस इसी तरह की स्ट्रेटजी पर काम कर रही है। कश्मीर में बीजेपी को समझ में आ गया कि हम तुष्टिकरण की नीति पर काम करेंगे तो आने वाले समय में हम लगातार पीछे होते जाएंगे। यह सच्चाई भी है, क्योंकि 2014 में बीजेपी को प्रचंड बहुमत इसलिए मिला था क्योंकि लोगों को विश्वास था कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसी खास वर्ग, समुदाय, धर्म आदि के तुष्टिकरण वाली राजनीति का हिस्सा नहीं बनेगी। पर चार साल बाद आज बीजेपी शासित राज्यों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होगा कि हर एक सरकार वोट सहेजने में तुष्टिकरण की नीति को तव्वजो दे रही है। झारखंड की ताजा गैंगरेप घटना ने मंथन करने पर मजबूर कर दिया है। मंथन इस बात पर कि क्या आदिवासियों और ईसाई समुदाय के प्रति तुष्टिकरण की नीति का ही यह परिणाम है कि पांच युवतियों से दिन दहाड़े रेप उनका धर्म देखकर किया गया। पांच युवतियों के अलावा दो ईसाई समुदाय की महिलाएं भी थीं, उन्हें वहां के फादर ने यह कहकर बचा लिया कि इन्हें छोड़ दो ये हमारे समुदाय की हैं। शेष लड़कियों को दरिंदों के हवाले कर दिया।
झारखंड की रघुवर सरकार के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या होगी कि राजधानी रांची से महज एक घंटे की दूरी पर पांच युवतियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म होता है और राज्य सरकार की मशीनरी को 48 घंटे बाद इसकी जानकारी मिलती है। हद तो यह है कि एक मिशनरी स्कूल में भरी दोपहरी में चल रहे कार्यक्रम के बीच से इन पांचों युवतियों का अपहरण किया जाता है। जिस वक्त अपहरण होता है उस वक्त स्कूल के सारे करीबन सारे शिक्षक, कर्मचारी और साढ़े तीन सौ बच्चे मौजूद होते हैं। दोपहर करीब दो बजे अपहरण होता है। पास के जंगल में ले जाकर पांचों युवतियों से सामूहिक दुष्कर्म होता है। उन्हें प्रताड़ना की पराकाष्ठा तक प्रताड़ित किया जाता है। पर आश्चर्यजनक है कि सरकारी तंत्र इस बात से पूरी तरह अनजान होता है। भरी दोपहरिया के बीच इतनी हृदय विदारक घटना हो जाती है पर सरकार का कोई भी तंत्र इस घटना को रिपोर्ट नहीं करता।
साधुवाद है झारखंड की मीडिया का जिन्होंने सच को सामने लाने में मदद की। रघुवर सरकार के सरकारी तंत्र ने कोई कसर बाकि नहीं रखी इस मामले को दबाने में। पर मीडिया रिपोर्टिंग के आगे वे बेबस हुए। जैसे तैसे पुलिस अधिकारियों ने स्वीकार किया कि हां सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। यह वारदात जितनी बड़ी थी रघुवर सरकार की मशीनरी ने इसे उतने ही हल्के तरीके से लिया। सवाल और मंथन इस बात पर भी है कि इतने हल्के तरीके से लेने की उन्हें हिम्मत किसने दी। क्या रघुवर दास की ईसाइयों और मिशनरी के प्रति तुष्टिकरण पॉलिसी ने यह हिम्मत दी, या फिर सरकारी तंत्र को भी पता है कि इस तरह की घटनाएं सामान्य हैं। इसे सामान्य ही मान लिया जाए। रघुवर सरकार इस बात को स्वीकारने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पा रही है कि ईसाई मिशनरियों की आड़ में घोर अलगाववादी ताकतों ने झारखंड के आदिवासी इलाकों में अपनी पैठ जमा ली है। क्यों नहीं इस बात को स्वीकार किया जा रहा है कि आदिवासियों को बरगला कर उनसे अनैतिक कामों को बढ़ावा देने में विदेशी ताकतें सक्रिय हैं। यह सक्रियता ठीक उसी तरह है जैसे कश्मीर में मुस्लिम समुदाय को बरगलाया जा रहा है।
मैंने अपने मंथन की शुरुआत कश्मीर से की थी और झारखंड की तुलना कश्मीर से करने की हिमाकत की थी। कश्मीर में पत्थरबाज अपने शासन, अपने कानून, अपनी सरकार और अपनी सेना से भीड़ रहे हैं। वहीं झारखंड में पत्थलगड़ी के समर्थकों ने आग सुलगा रखी है। हालात दोनों जगह एक से हैं। कश्मीर में विदेशी फंडिंग से मिल रहे पैसों के बल पर पत्थर फेंक कर आक्रोश जताया जा रहा है, वहीं झारखंड में पत्थर गाड़ कर अपनी हुकूमत का ऐलान किया जा रहा है। आदिवासी इलाकों में जहां पत्थर गाड़ दिया गया वहीं उनकी हुकूमत शुरू हो जाती है। इसके बाद जो खेल हो रहा है वह काफी सोचनीय है। झारखंड में पत्थलगड़ी की परंपरा काफी पुरानी है। यह झारखंडी संस्कृति का एक हिस्सा भी है। पर अचानक ऐसा क्या हुआ है कि झारखंड में रघुवर सरकार के दौर में पत्थलगड़ी ने अपराध का रूप ले लिया है। पांच युवतियों से गैंग रेप ने तो इसका एक ऐसा घिनौना रूप सामने ला दिया है जिसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है।
युवतियों से गैंगरेप सिर्फ इस आक्रोश में हुआ कि उन्होंने पत्थलगड़ी वाले इलाके में ‘अनैतिक घुसपैठ’ की। अभी तक जो बात सामने आई है उसमें स्पष्ट हुआ है कि पत्थलगड़ी के समर्थकों ने ही युवतियों का अपहरण उन्हें सबक सिखाने के लिए किया था। जिस इलाके में यह दल नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत करने गया था वह पत्थलगड़ी का इलाका है। यहां बगैर उनकी इजाजत के कोई आ जा नहीं सकता। यह रघुवर दास सरकार की सबसे कमजोर रणनीति का ही नतीजा है कि पत्थलगड़ी के समर्थकों के हौसले धीरे-धीरे इतने बुलंद होते गए। इंटरनेट पर सर्च करें तो मीडिया रिपोर्ट में पाएंगे कि इससे पहले भी साल 2016 में 25 अगस्त को खूंटी के कांकी में ग्रामीणों ने पुलिस के कई आला अफसरों और जवानों को तेरह घंटे तक बंधक बना लिया था। इस साल 21 फरवरी को अड़की के कुरूंगा गांव में पारंपरिक हथियारों से लैस ग्रामीणों ने कई घंटे तक पुलिस के जवानों को रोके रखा। 28 फरवरी को भी इसी गांव नक्सलियों के खिलाफ सर्च अभियान करने निकले सीआरपीएफ के जवानों को बंधक बनाया गया। इस तरह की घटना क्या संकेत दे रही है? क्या रघुवर दास सरकार इस पर मंथन नहीं कर रही है? क्यों तुष्टिकरण की नीति को स्वीकार कर इनके हौसलों को बढ़ाया जा रहा है? क्या सरकार के पास यह इनपुट नहीं है कि पत्थलगड़ी की आड़ में विदेशी ताकतों ने अलगाववादियों को प्रश्रय देना शुरू कर दिया है। विदेशी फंड की आड़ में जिस तरह कश्मीर के बेरोजगार युवकों को बरगलाया जा रहा है, ठीक उसी तरह की स्थिति झारखंड के ग्रामीण इलाकों में हो चुका है। यहां भी अलगववाद की आग फैल चुकी है। युवतियों के साथ गैंग रेप इसका सबसे घिनौना रूप है।
ऐसा नहीं है कि झारखंड की पत्थलगड़ी की परंपरा कोई नई है। काफी सालों से वहां के ग्रामीण अपने ग्रामीण शासन की मुनादी करने के लिए पत्थर गाड़ते आ रहे हैं। पर अब परिस्थितियां दूसरी है। अब इसकी आड़ में असमाजिक तत्वों ने अपनी पैठ बना ली है। अभी नक्सली समस्याओं से सरकार इतने सालों से जूझ ही रही है कि पिछले तीन चार सालों में पत्थलगड़ी की समस्या ने अपना घिनौना रूप दिखाना शुरू कर दिया है। अब भी मंथन का वक्त है। रघुवर सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी झारखंड की इस नवांकुर समस्या पर वृहत ध्यान देना होगा। अगर मंथन नहीं किया तो आने वाले समय में कश्मीर जैसे हालात बनते देर नहीं होगी। जिस तरह कश्मीर के पत्थर फेंक कर वहां के शरारती तत्वों ने सरकार की नाक में दम कर दिया है। उसी तरह पत्थर गाड़ कर झारखंड में एक नई समस्या का बिजारोपण हो चुका है। पांच युवतियों की इज्जत ने पूरे झारखंड को शर्मशार कर दिया है। पूरे झारखंड में शोक और आक्रोश की लहर है। अगर इस वक्त भी सरकार अपनी तुष्टिकरण वाली रणनीति पर काम करती है तो अधिक वक्त नहीं है अगले चुनाव में। जनता जवाब देना जानती है। कहीं ऐसा न हो कि जिस तरह झारखंड में युवतियों की जाति और धर्म को देखकर बदसलूकी की शुरुआत हुई है, यह रघुवर सरकार की अर्थी की आखिरी कील बन जाए।

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