Tuesday, August 30, 2016

‘सरकार’ प्रवचन से शासन नहीं चलता है

अभूतपूर्व जीत के साथ हरियाणा में शासन की बागडोर संभालने वाली भारतीय
जनता पार्टी की सरकार अपने अभिनव प्रयोगों के लिए चर्चित हो रही है। ताजा चर्चा बटोरी है विधानसभा में प्रवचन के साथ। यह प्रवचन कितना जरूरी और कितना गैर जरूरी था इसकी चर्चा तो लंबे वक्त तक चलती रहेगी। पर ज्वलंत मुद्दा यह है कि लोकतंत्र में प्रदेश का शासन प्रवचनों से नहीं चलता है।
जिस विधानसभा में बैठे जनता के नुमाइंदों को जनता ने इसीलिए चुन कर भेजा
है कि वे उनकी बातों को प्रमुखता से उठाएंगे, उसी विधानसभा का बेहद कीमती
वक्त प्रवचन सुन कर जाया किया गया, इसे जनता कैसे स्वीकार कर सकती है। इस
पर मंथन जरूरी है।
सवाल उठना लाजिमी है कि हरियाणा की मनोहर सरकार के पास आखिर ऐसी क्या
मजबूरी या ऐसी क्या प्लानिंग है कि उन्होंने प्रवचन सुनने के लिए विधानसभा जैसा स्थल चुना। वह सदन जिसे जनता का सबसे बड़ा दरबार कहा जाता है वहां साधु-संतों के प्रवचनों का क्या उद्देश्य है? वोट देने वाली जनता अपने नुमाइंदों को इसलिए सदन तक भेजती है ताकि उनके नुमाइंदे जनता के हितों की बात कर सकें। पर अचानक ऐसा क्या हो गया कि सदन का कीमती समय प्रवचनों में जाने दिया गया। आस्था, धर्म, विश्वास यह हर किसी का निजी मामला होता है। इसे सार्वजनिक तौर पर किसी पर थोपा नहीं जा सकता है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी राज्य का सदन पूरे राज्य के लोगों का केंद्र होता है। ऐसे में लोकतंत्र के इस केंद्र में किसी संत के प्रवचन का प्रचलन क्या जायज है? यह सवाल मनोहर सरकार से लगातार पूछा जाएगा। यह भी पूछा जा रहा है कि क्या अब यहां गुरुबाणी और जुम्मे की नमाज भी अता की जाएगी? या फिर गुड फ्राइडे और क्रिसमस के अवसर पर यहां विशेष प्रार्थना सभा के आयोजन के लिए भी हम तैयार रहें। क्या यह लोकतांत्रिक स्वच्छंता का नतीजा है कि हम इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बन सकें? क्या ऐसे किसी आयोजन के साक्षी हम भविष्य में भी बनते रहेंगे? 
जैन मुनि तरुण सागर के हरियाणा विधानसभा में कड़वे प्रवचन के बाद सोशल मीडिया पर कड़वे बोल ने ट्रेंड करना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया के जरिए जब हरियाणा सरकार की खिंचाई शुरू हुई तो सरकार के नुमाइंदों ने सफाई देना शुरू कर दिया। सरकार के नुमाइंदों ने कहना शुरू किया कि तन और मन की पवित्रता के लिए यह जरूरी है। कभी-कभी ऐसे आयोजन होने चाहिए। पर इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि हरियाणा के मंत्री और विधायक जितना काम कर रहे हैं क्या उससे उनके शरीर पर दबाव बढ़ गया है। ऐसे में क्या आने वाले सत्र में योग गुरु रामदेव भी सदन में योग का पाठ पढ़ाते नजर आएंगे, ताकि जनता के सेवक फील्ड में उत्साह और नई ऊर्जा के साथ काम कर सकें। 

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा उदाहरण शायद ही कहीं देखने को मिला होगा कि सदन में ऐसे किसी धार्मिक आयोजन के लिए वक्त निकाला गया हो। जैन मुनि के कड़वे प्रवचन प्रतिदिन टेलीविजन पर प्रसारित होते हैं। हर महीने कहीं न कहीं इनका कार्यक्रम आयोजित होता है। लाखों लोग इनके प्रवचन सुनने जाते हैं। मंत्रियों से लेकर विधायक और बड़े-बड़े नेता जैन मुनि के प्रवचन सुनने उनके कार्यक्रमों में जाते हैं। ऐसे में यह क्या इतना जरूरी था कि इसका आयोजन सदन के भीतर कराया जाए? प्रदेश इस वक्त घोर असुरक्षा के भय में जी रहा है। सरकारी आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि हरियाणा में अपराध की स्थिति किस कदर लगातार बढ़ रही है। बेरोजगारी की स्थिति, आरक्षण की आग, भर्ती प्रक्रियाओं में अनियमितताओं का आरोप ये कुछ ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिससे हरियाणा का आमजन रू-ब-रू हो रहा है। ऐसे में जब विधानसभा का सत्र आयोजित होता है तो जनता इस इंतजार में रहती है कि उनके राहत से जुड़ी कुछ बातों पर बहस होगी। पिछला सत्र
उठापटक, आरोप-प्रत्यारोप, निष्काषण और बेवजह की बहसबाजी में बीत गया। ऐसे
में मानसून सत्र से बहुत उम्मीदें हैं। पर सत्र की शुरुआत जिस तरह से हुई
है उसने पूरे भारत की नजर हरियाणा की तरफ खींच लिया है। सोशल मीडिया के
अलावा मुख्य धारा की विदेशी मीडिया में इस बात की चर्चा है कि सदन में
प्रवचन हो रहे हैं।हरियाणा विधानसभा में अपने करीब चालीस मिनट के प्रवचन के दौरान जैन मुनि ने बेटी बचाओ से लेकर तमाम ऐसे मुद्दों पर अपनी बात कही जिसकी जितनी
तारीफ की जाए कम है। पर सरकार के नुमाइंदों को कौन समझाए कि सिर्फ
प्रवचनों से बेटी नहीं बचाई जा सकती। इसी सरकार के सरकारी आंकड़े गवाही दे
रहे हैं कि एक तरफ जहां इस प्रदेश में कन्या भू्रण हत्या के मामले लगातार
बढ़ रहे हैं, वहीं उसी अनुपात में बलात्कार के मामले भी बढ़ रहे हैं। इस
वर्ष 31 जुलाई तक प्रदेश में 637 बलात्कार के मुकदमे दर्ज हुए हैं। जो
पिछले वर्ष से 3.24 प्रतिशत अधिक है। जिस दिन सदन में धार्मिक प्रवचन हो
रहे थे उसी रात प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण जिले गुड़गांव के एक कस्बे में
अपराधियों ने परिवार के लोगों के सामने दो बहनों के साथ गैंग रेप किया।
इतना ही नहीं बहनों के मामा-मामी को मौत के घाट उतार दिया। जाट आंदोलन के
समय पूरा प्रदेश करीब दस दिनों तक किस कदर बंधक बन गया था इसे पूरे
विश्व ने देखा था।

संवैधानिक व्यवस्था में किसी लोकतांत्रिक सरकार का काम जनता के हितों की रक्षा करना होता है। उनके कल्याण के लिए योजनाओं की प्लानिंग और उसके
क्रियान्वयन के लिए तत्पर रहना होता है। इन सबके लिए सदन ही एक मात्र ऐसा
स्थान है जहां से पूरे प्रदेश के विकास की रूपरेखा खींची जा सकती है। पर
हरियाणा सरकार ने अपना कीमती चालीस मिनट प्रवचन में बिता दिया। सरकार के
पास तमाम ऐसे बड़े तर्क हो सकते हैं जिससे वह इस आयोजन को जायज ठहरा सकती
है। हो सकता है उसे कई प्लेटफॉर्म पर स्वीकार भी कर लिया जाए। पर मंथन
जरूर करना चाहिए कि जिस प्रदेश में तमाम ज्वलंत मुद्दों पर जनता सरकार के
जवाब और सकारात्मक कदम का इंतजार कर रही है उस प्रदेश की विधानसभा में
प्रवचन क्या इतना जरूरी है?

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