Sunday, January 7, 2018

तो क्या अधर में ही रहेगा हमारा ‘आधार’


एक व्यक्ति एक पहचान की तर्ज पर भारत में आधार ने जन्म लिया। यह कोई नया प्रयोग नहीं था। यूरोपीयन देशों में पहचान के तौर पर एक यूनिक आइडेंटिफिकेशन का प्रचलन वर्षों से चला आ रहा है। और यह बेहद कारगर भी रहा है। भारत में इसे लंबे समय से लागू करवाने के प्रयास चल रहे हैं। पर अफसोस है कि अब तक इसे सौ फिसदी प्रयोग में नहीं लाया जा सका है। इसी बीच कई बार आधार को लेकर आशंकित करने वाली खबरें भी सामने आती हैं। सरकार के पास इन आशंकित करने वाली खबरों को लेकर कोई संतोषजनक जवाब नहीं है। इसी बीच एक अंग्रेजी अखबार ने खबर ब्रेक की है कि कोई भी व्यक्ति पांच सौ रुपए की मामूली रकम देकर करोड़ों लोगों का डाटा बेस हासिल कर सकता है। फिलहाल पुलिस ने अखबार और उसकी रिपोर्टर के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज करवा दिया है। जबकि मंथन करना चाहिए था और जांच करना चाहिए था कि जिस नेक्सेस के बारे में अखबार की रिपोर्ट में दावा किया गया है उसकी सच्चाई क्या है?
अंग्रेजी अखबर दी ट्रीब्यून ने दो दिन पहले यह खबर ब्रेक की थी कि किस तरह आधार नंबर की खरीद फरोख्त हो रही है। अखबार की रिपोर्टर ने दावा किया कि उन्होंने खुद पांच सौ रुपए पेटीएम के जरिए देकर करीब एक करोड़ लोगों का डाटाबेस हासिल किया। साथ ही यह भी बताया कि तीन सौ रुपए अतिरिक्त देकर उन्होंने वह सॉफ्टवेयर हासिल कर लिया जिसके जरिए किसी का भी आधार डाटा प्रिंट किया जा सकता था। यह खबर वाकई चौंकाने वाली है। क्योंकि ऐसी खबरें हमेशा से आती रही है कि हमारा आधार डाटा सुरक्षित नहीं हैं। ऐसे में खबर की सत्यता जांची जानी बेहद जरूरी है। पर अपनी क्रेडिब्लिटी पर हमला होता देख यूनीक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी आॅफ इंडिया (यूआईडीएआई) ने अखबार और उसके रिपोर्टर के खिलाफ ही विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दिया है।
यह कोई पहली बार नहीं है कि किसी अखबार ने सरकारी तंत्र या व्यवस्था में लूप होल्स को अपने स्टिंग के जरिए या रियलिटी चेक करके जनता के सामने लाना का प्रयास किया हो। तमाम बार ऐसी खबरों में खुद ही उलझने की जरूरत पड़ती है, ताकि अंदर की सच्चाई को बाहर लाया जा सके। पर यूआईडीएआई ने जो किया है वह उसकी हड़बड़ाहट को दर्शाता है। आनन फानन में नई दिल्ली में अखबार और उसकी रिपोर्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाकर यूआईडीएआई यह दिखाने की कोशिश में जुटा है कि उसके सिस्टम में कोई लूप होल्स नहीं है। देश के लोगों का आधार डाटा पूरी तरह सुरक्षित है, जबकि अखबार की रिपोर्ट पूरी तरह झूठी है।
चलिए यह मान भी लिया जाए कि यूआईडीएआई और उससे जुड़ा सिस्टम बेहद सुरक्षित और ठोस है। इसमें कोई गड़बड़ी नहीं की जा सकती। पर क्या इससे भी इनकार किया जा सकता है कि आज के इस दौर में हैकर्स कुछ भी कर सकते हैं। जब भारत सरकार के अति संवेदनशील और सुरक्षित माने जाने वाले सरकारी साइट हैक किए जा सकते हैं तो इसकी क्या गारंटी है कि यूआईडीएआई की साइट हैक नहीं हो सकती। या उसका डाटा चोरी नहीं हो सकता। यूआईडीएआई यह क्यों भूल जाता है कि पूरे देश में जहां भी आधार में इनरॉलमेंट की प्रक्रिया हुई है वह सभी आउटसोर्स से ही हुई है। इसकी क्या गारंटी है कि आउटसोर्स करने वाली कंपनियों ने चंद रुपयों की लालच में डाटा चोरी नहीं किया हो। आउटसोर्स एजेंसी के छोटे कर्मचारी जो दिहाड़ी के रूप में काम कर रहे थे, वह किसके प्रति उत्तरदायी थे। क्या गारंटी है कि उन्हें भी इस नेक्सेस में शामिल कर डाटा हासिल नहीं किया गया होगा।
पूरा विश्व इस वक्त हैकर्स के निशाने पर है। भारत जैसे देश सबसे सॉफ्ट टारगेट है। यह हमारे देश के विडंबना ही है कि जहां हम एक तरफ डिजिटल युग की बात कर रहे हैं। हर प्रक्रिया डिजिटिलाइजेशन के दौर से गुजर रही है। बैंकिंग से लेकर राशन तक में आपका आधार जरूरी हो गया है। उस देश का अपना सर्वर ही नहीं है। हम आज भी विदेशी सर्वर पर निर्भर हैं। लंबे समय से करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भारत को अपना सर्वर नसीब नहीं हो सका है। ऐसे में हम पूर्ण सुरक्षा की गारंटी कैसे दे सकते हैं। आए दिन किसी न किसी व्यक्ति का अकाउंट हैक कर लिया जाता है। एनसीआरबी के आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पिछले पांच वर्षों में इंटरनेट फ्रॉड के मामलों में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है। हम जैसे-जैसे डिजिटली सुरक्षित होने का दाव करते हैं, ठीक वैसे-वैसे इंटरनेट फ्रॉड का जाल बढ़ता जा रहा है।
आधार की सुरक्षा को लेकर विभिन्न प्लेटफॉर्म पर हमारे देश के एक्सपर्ट्स चिंता जाहिर कर चुके हैं। ऐसे में भारत सरकार और यूआईडीएआई को एक अखबार पर मामला दर्ज करवाने की जगह लोगों में यह विश्वास दिलाने की जरूरत है कि हमारा आधार सुरक्षित है। एक अखबार का काम सिस्टम के लूप होल्स को अपने तरीके से जनता और सरकार के सामने लाना है। आधार को लेकर की गई स्टोरी भी उसी श्रेणी में आती है। यह आई ओपनर है। इसे पॉजीटिव तरीके से लेकर इसकी सच्चाई जाननी जरूरी है। मंथन करने की जरूरत है कि कैसे इसकी गहराई में जाकर पड़ताल की जाए।
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक यूआईडीएआई ने अखबार के दफ्तर में पत्र भेजकर पूछा था कि क्या आपकी रिपोर्टर ने किसी भी व्यक्ति का फिंगर प्रिंट हासिल किया, क्या किसी की आंखों की पुतलियों को देखा था या हासिल किया था। यूआईडीएआई के ये सवाल वाजिब हो सकते हैं। पर अगर किसी का आधार नंबर और उससे जुड़ा अन्य रिकॉर्ड भी किसी सॉफ्टवेयर से हासिल हो सकते हैं तो यह चिंता का विषय है। मंथन जरूर करना चाहिए कि सिर्फ एफआईआर दर्ज करवाकर हम निश्ंिचत नहीं हो सकते। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत सरकार आधार से जुड़े तमाम आशंकों का निराकरण जल्द कर लेगी। ताकि लोगों में विश्वास कायम किया जा सके। नहीं तो आधार हमेशा ही अधर में ही लटका रह जाएगा।

चलते-चलते
कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आधार कार्ड का इस्तेमाल जासूसी और निगरानी के लिए करने का आरोप लगाया है। कहा कि आधार को इसकी मूल परिकल्पना से हटा दिया गया है। कांग्रेस ने कहा कि मोदी सरकार की जिद के कारण आधार कार्ड अपने मूल उद्देश्यों से हटता जा रहा है। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी आधार कार्ड को सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताते रहे, लेकिन फिलहाल उन्होंने इससे संबंधित खतरों को अनदेखा कर दिया है। गौरतलब है कि सरकार ने स्वयं न्यायालय में आधार कार्ड के आंकड़े चोरी होना स्वीकार किया था।

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