Tuesday, January 2, 2018

साल नया, संकल्प नया, हो आपका ये प्रयास नया

कई सुनहरी यादों और कई न याद करने वाले हादसों के साथ साल 2017 विदा ले चुका है। कई बेहतरीन उपलब्धियों के लिए यह साल याद रखा जाएगा। पर साल 2017 की विदाई बेला में लंदन से जो खबर आई उसने हमें एक बार फिर से गर्व करने का मौका दिया। हर साल ब्रिटेन की महारानी द्वारा नववर्ष पर कई प्रतिभाशाली लोगों को सम्मानित किया जाता है। साल 2017 के लिए जिन लोगों को ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने सम्मानित किया उस सूची में 33 भारतीय मूल के लोगों के नाम थे। यह बेहद खास पल था, क्योंकि जिस देश ने भारत को वर्षों तक गुलामी के जंजिरों में जकड़ा रहा उसी देश में जाकर भारतीयों ने अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़े। हालांकि यह पहली बार नहीं है। इससे पहले भी कई बार भारतीय मूल के लोगों ने विदेशों में अपना परचम लहराया है। पर क्या यह मंथन का वक्त नहीं है कि हमारी प्रतिभा हमारे देश में क्यों नहीं ठहर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन में क्यों इस बात की जगह नहीं मिल रही कि भारत से ब्रेन डेÑन के प्रवाह को कैसे रोका जाए।
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने भारतीय मूल के लोगों को ब्रिटेन को दी गई उनकी सेवाओं को मान्यता देते हुए सम्मानित किया है। यूनिवर्सिटी आॅफ यॉर्क में प्रोफेसर और इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की अध्यक्ष प्रोफेसर प्रतिभा लक्ष्मण गई को रसायन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनकी सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया है। प्रतिभा लक्ष्मण को ब्रिटेन के सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड ‘डेमहुड’ से नवाजा जाएगा। उन्हें एक ऐसा माइक्रोस्कोप तैयार करने का श्रेय है जिसमें परमाण्विक स्तर पर रासायनिक प्रतिक्रियाओं को देखने की क्षमता है। सूची में शामिल अन्य भारतीय मूल के लोगों में नौ को आॅर्डर आॅफ द ब्रिटिश एंपायर (ओबीई), 16 लोगों को मेंबर्स आॅफ द ब्रिटिश एंपायर (एमबीई) और सात को ब्रिटिश एंपायर मेडल से सम्मानित करने का फैसला किया गया है। ओबीई से सम्मानित किए जाने वाले लोगों की सूची में जरनैल सिंह अठवाल, चरनजीत सिंह बौंट्रा, रंजीत लाल धीर और रिलेश कुमार जडेजा शामिल हैं। एमबीई से सम्मानित किए जाने वाले लोगों की सूची में ओमकार दीप सिंह भाटिया, बॉबी गुरभेज सिंह देव, गिल्लियां ढिल्लों, अतुल कुमार भोगीलाल पटेल, मुबीन यूनुस पटेल, गुरमीत सिंह रंधावा, श्यामलाल कांति सेन गुप्ता, प्रोफेसर विकास सागर शाह शामिल हैं।
इस सूची पर अगर गहराई से नजर दौड़ाएंगे तो आपको अहसास होगा कि इनमें से कई लोगों ने भारत में शिक्षा ग्रहण की और विदेश में बस गए। ब्रिटेन ही क्यों अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी सहित तमाम यूरोपियन देशों में भारतीय मूल के युवाओं की भरमार है। सिलिकन वैली में तो हर दूसरा युवा भारतीय मिल जाएगा। आखिर ऐसा क्या है कि भारत में शिक्षा ग्रहण करने के साथ ही भारतीय युवाओं की पहली वरियता विदेश में जॉब की होती है। क्यों ऐसा है कि ऐसे युवाओं में बेहद आसानी से वहां बेहतर नौकरी का आॅफर मिल जाता है। आखिर ऐसा क्यों है कि तमाम विदेशी कंपनियां किसी भी कीमत पर भारतीय प्रतिभाओं को अपने यहां से जाने नहीं देना चाहती हैं। कुछ तो जिस पर भारत सरकार को भी बेहतर तरीके से मंथन करना चाहिए।
केंद्र सरकार जहां एक तरफ मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया को बढ़ावा देने की ओर जोर देती रही है, वहीं दूसरी तरफ प्रतिभा पलायन भारत की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। भारत में तमाम ऐसे प्रीमियर इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज हैं जहां विश्व स्तर की पढ़ाई कम से कम पैसे में कराई जा रही है। एमबीए हो या कोई अन्य प्रोफेशनल डिग्री। तमाम जगह भारत सरकार के सहयोग से युवाओं को बेहतरीन सुविधाओं के साथ पढ़ाई करवाई जा रही है। विडंबना यह है कि पढ़ाई पूरी करते ही विदेशी कंपनियां इन युवाओं पर पैसों का मायाजाल फेंक कर उन्हें अपने यहां प्लेसमेंट दे देती हैं। हमारे यहां ऐसी कोई नीति ही नहीं है कि यहां के ब्रेन ड्रेन को रोकने का प्रयास किया जा सके। तमाम प्रदेशों में अच्छे डॉक्टर की कमी है। पर विडंबना यह है कि पढ़ाई के लिए युवाओं की पहली पसंद सरकारी मेडिकल कॉलेज रहते हैं, और जब सेवा देने की बात आती है तो वे या तो विदेश निकल जाएंगे या फिर किसी बड़े निजी मेडिकल कॉलेज में घुस जाएंगे। हर साल इस बात पर बहस होती है। पर कभी सार्थक रिजल्ट निकल कर सामने नहीं आ सका है। आखिर क्यों नहीं सरकार नियमों या कांट्रेक्ट के बंधनों में यहां की प्रतिभाओं को बांधने का प्रयास करती है। विदेशी युनिवर्सिटी में पहला कांट्रेक्ट ही यही है कि उन्हें कम से कम पांच वर्षों तक अपने देश या स्टेट में सेवाएं देनी होती हैं। तभी वो दूसरी जगह मूव कर सकते हैं। पर भारत में ऐसा कुछ सिस्टम आज तक डेवलप नहीं हो सका है। हमारा देश सबसे बड़ा स्किल्ड मैन पावर देश है। एक अनुमान के मुताबिक चीन के बाद हमारे पास सबसे अधिक 65 हजार वैज्ञानिक हैं। दुनिया के सबसे ज्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज भारत में हैं। अमेरिका से 4-5 गुना ज्यादा इंजिनियरिंग कॉलेज हैं भारत में, अमेरिका से ज्यादा हाई-टेक रिसर्च इंस्टिट्यूट हैं भारत में, अमेरिका से ज्यादा मेडिकल कॉलेज हैं भारत में। हमारे यहां पॉलिटेक्निक कॉलेजज इतने हैं जितने किसी कंट्री में नहीं। 44 से अधिक नेशनल लेब्रोटरिज है। इतना सब होते हुए भी हम क्यों पीछे हैं ? हम क्यों नहीं नोबेल पुरस्कार विजेता पैदा कर पाते?
यह सही है कि एक तरफ प्रतिभा पलायन से भारत आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हुआ है। पर इसमें भी दो राय नहीं कि कुशल प्रतिभाओं के पलायन ने हमारे देश की चिंताएं बढ़ाई हैं। यह भी सही है कि प्रवासी भारतीय समुदाय की तरफ से भारत को लगभग 70 अरब डॉलर रेमिनेंट प्राप्त होते हैं। रेमिनेंट्स प्राप्ति के मामले में भारत विश्व भर में पहले स्थान पर है। यह रेमिनेंट भारत के कुल जीडीपी का करीब 3.8 प्रतिशत है। पर क्या इतना भर काफी है। नए साल में बहुत कुछ बदलेगा। बहुत कुछ नया होगा। पर ब्रेन डेÑन का सिलसिला वही पूराना होगा। नए साल में केंद्र सरकार को जरूर इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि तमाम प्रयासों में यह प्रयास भी शामिल करे कि किस तरह ब्रेन ड्रेन के प्रवाह को रोका जाए। कैसे भारतीय प्रतिभाओं का सदुपयोग अपने देश को आगे बढ़ाने में किया जाए। विदेशों में भारतीय मूल के लोग जब झंडे गाड़ते हैं तो गर्व तो जरूर होता है, पर मंथन करिए अगर यही लोग भारत में रहकर वो कमाल करते तो हमें कितनी खुशी मिलती।

चलते-चलते
भारतीय क्रिकेट टीम साउथ अफ्रिका पहुंच चुकी है। साल 2017 में कई कीर्तिमान स्थापित करने वाली इस टीम से साल 2018 में भी काफी उम्मीदें हैं। शुक्र है क्रिकेट की दुनिया में ब्रेन डेÑन अब तक अधिक नहीं हुआ है। कितना सुखद होगा यह देखना कि हमारी प्रतिभाशाली युवा क्रिकेट टीम विदेशी धरती पर भारतीय झंडा लहराएगी। आमीन।