Saturday, March 25, 2023

तो क्या सच में जोधाबाई कपोल कल्पना है?

इतिहास के गर्भ में कुछ शख्सियत ऐसी हैं जिनके जीते जागते सबूत होने पर भी उनके अस्तित्व पर ही सवाल उठाए जाते रहे हैं। उन्हीं में से एक नाम है महारानी जोधाबाई का। इतिहास का छात्र होने के कारण मैं भी तमाम पाठ्य पुस्तकों, ऐतिहासिक दस्तावेजों और इतिहासकारों के अलग-अलग दावों में इस नाम को लेकर उलझा हुआ महसूस करता था। दावों और प्रतिवादों के बीच जोधाबाई को न मानने के कई कारण भी मौजूद थे। पर पिछले दिनों फतेहपुर सिकरी की यात्रा से लौटने के बाद मन में उठे कई प्रश्नों और जिज्ञासाओं पर मैंने पूर्ण विराम लगाने का फैसला किया। पूरे विश्व में मौजूद ऐतिहासिक धरोहरें उस काल की जीवंतता की कहानी कहते हैं। ये आपको अतीत में झांकने का एक मौका देते हैं। कुछ ऐसी ही थी महारानी जोधाबाई की शख्सियत और उनसे जुड़ा जोधाबाई का किला।
उत्तरप्रदेश के ऐतिहासिक शहर आगरा से करीब चालीस किलोमीटर दूर फतेहपुर सिकरी में महारानी जोधाबाई का किला न केवल स्थापत्य कला का अद्भूत नमूना है, बल्कि अपनी विहंगम विरासत और भव्यता का जीता जागता प्रमाण है। कट्टर मुस्लिम मुगल शासन के बावजूद इस किले में आप हिन्दू धर्म से जुड़ी बारीक से बारीक चीजों को बेहद शान से आज भी देख सकते हैं और करीब चार सौ साल पहले की विरासत एवं विलासिता को करीब से महसूस कर सकते हैं। हालांकि कहते हैं कि असल में जोधाबाई का यह किला मुगल शासक अकबर का मुख्य हरम था। इस किले को मुगलों के ऐतिहासिक दस्तावेजों में शबिस्तान-ए-इकबाल के नाम से चिह्नित किया गया है। जोधाबाई को लेकर सदियों से बहस होती आ रही है, पर हाल के वर्षों में जोधाबाई एक बार और चर्चा में तब आई जब लेखक लुइस डी असिस कोरिआ ने जोधाबाई को एक पुर्तगाली महिला बताकर एक अलग बहस को जन्म दे दिया। अपनी किताब 'पोर्तुगीज इंडिया एंड मुगल रिलेशंस 1510-1735' में उन्होंने दावा किया है कि जोधाबाई नामक कोई महिला अकबर की पत्नी थी ही नहीं। अकबर ने एक पुर्तगाली महिला से शादी की थी। जोधाबाई वास्तव में डोना मारिया मास्करेन्हस नाम की एक पुर्तगाली महिला थीं। उन्होंने तमाम बातें लिखी हैं, हो सकता है इसमें कुछ सच्चाई भी हो पर व्यक्तिगत रूप से मैं उनके दावों से असहमत हूं। हालांकि जोधाबाई के किले में ही मारिया या मरियम की कोठी आपको एक बार फिर दावे प्रतिवादों में उलझने को मजबूर जरूर करता है। कई इतिहासकारों ने जोधाबाई के अस्तित्व को सिर्फ इस आधार पर खारिज कर दिया है कि मुगलों के ऐतिहासिक दस्तावेजों में जोधाबाई का कहीं जिक्र नहीं है। यहां तक कि आइने अकबरी और जहांगीरनामा तक में जोधाबाई कहीं नहीं हैं। हां यह भी सच्चाई है कि उस वक्त के इतिहासकारों ने यह जरूर लिखा कि अकबर ने एक कच्छवा कुल की राजपूत लड़की से शादी की थी, लेकिन उसका नाम जोधाबाई ही था इसका जिक्र कहीं नहीं है। हालांकि कुछ इतिहासकारों ने आमेर की राजकुमारी हीरा कंवर या हरखा बाई को ही जोधाबाई बताया है जो अकबर की चौथी पत्नी थीं। इन्हीं की कोख से अकबर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसे शहजादा सलीम का नाम दिया गया। यही सलीम इतिहास में बादशाह जहांगीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। शहजादा सलीम का नाम प्रसिद्ध सूफी संत सलीम चिश्ती के नाम पर रखा गया था। कहा जाता है कि सूफी संत के आशीर्वाद से ही शहजादा सलीम का जन्म हुआ था। महारानी जोधाबाई के किले से करीब दो सौ मीटर पर ही सलीम चिश्ती की दरगाह है। यहीं बुलंद दरवाजा और बादशाही दरवाजा भी है जहां से दरगाह पर जाने का रास्ता है। कहते हैं महारानी जोधाबाई ने ही सलीम चिश्ती की दरगाह को भव्य रूप दिया और सफेद संगमरमर से इसका निर्माण करवाया। उन्होंने इस दरगाह की दायीं तरफ खुद के प्रवेश के लिए एक छोटा लकड़ी का दरवाजा बनवाया। कहा जाता है कि उन्होंने यह छोटा दरवाजा इसलिए बनवाया ताकि जब भी वो मजार पर सजदा करने के लिए प्रवेश करें तो उनका सिर झुका हुआ रहे। यह एक हिन्दू महारानी का सूफी संत के प्रति आदर और सम्मान का भाव व्यक्त करता है। यह दरवाजा अब बंद रहता है, लेकिन बाहर और दरगाह के अंदर से आप इसे देख सकते हैं।
बात जोधाबाई के किले की... अगर आप आगरा घूमने का कार्यक्रम बना रहे हैं तो एक दिन का समय आपको फतेहपुर सिकरी के लिए भी जरूर निकालना चाहिए। आगरा का ताजमहल अगर आपको प्रेम की जीती जागती निशानी नजर आएगी तो जोधाबाई के किले में आप मुगल काल के दौरान हिन्दू सभ्यता और संस्कृति से रूबरू होंगे। आगरा से करीब एक घंटे की ड्राइव के बाद आप फतेहपुर सिकरी में प्रवेश करते हैं। सरकारी बस सेवा भी यहां आने के लिए सुलभ साधन है। शहर में प्रवेश करते ही आपको अपनी गाड़ी पार्किंग में लगानी होगी। उत्तरप्रदेश पर्यटन विभाग ने यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए काफी बेहतर प्रबंध कर रखे हैं। पार्किंग से ही आपको यूपी सरकार की शटल बस सेवा लेनी होगी। हर पांच मिनट में आपको बस मिल जाएगी। यही बस आपको जोधाबाई के किले तक छोड़ेगी। पार्किंग से महल तक जाने में आपको दस मिनट तक का समय लग सकता है। दूसरा रास्ता पैदल जाने का है। यह पैदल रास्ता बुलंद दरवाजा होकर जाता है। यह रास्ता थोड़ा थकाने वाला है। बुलंद दरवाजा होकर आप जा रहे हैं तो आपको अतिरिक्त सावधान रहने की जरूरत है। टूरिस्ट गाइड के नाम पर स्थानीय युवाओं से खुद को घिरा पाएंगे। पहली बात आपको टूरिस्ट करने की खास जरूरत नहीं है क्योंकि हर जगह आपको जानकारी लिखी मिलेगी। अगर आपको गाइड करना ही है तो यूपी पर्यटन विभाग के ऑफिस से ही गाइड करें। मेरे साथ मेरे परिजन भी थे, इसलिए हमने शटल बस सेवा ली। जोधाबाई महल के पास बस से उतरते ही टिकट काउंटर है। टिकट लेकर ही आपको महल में प्रवेश की इजाजत मिलेगी। लाल पत्थरों से सुसज्जित इस भव्य प्रांगण में प्रवेश करते ही आपको हर तरफ भारतीय सभ्यता और संस्कृति की झलक मिलेगी। जोधाबाई का महल बेहद खूबसूरत दो मंजिला इमारत है। यह महल न केवल भव्य है, बल्कि स्थापत्य कला और विज्ञान का बेजोड़ मिश्रण है। महल का डिजाइन इस तरह बनाया गया है कि गर्मी और सर्दी में रहने के लिए अलग-अलग आरामगाह हैं। इन आरामगाह को शरद विलास और ग्रीष्म विलास कहते हैं। सूर्य के विचरण की गणना और हवाओं के रुख के अनुसार इसका निर्माण किया गया है ताकि एक हिस्सा गर्म और दूसरा हिस्सा शीतलता प्रदान करे।  
महल के अंदर ही आपको दीवान-ए-खास, दीवान-ए-आम, अनूप तालाब, हरमसरा यानि अस्तबल, बीरबल का महल, मरियम का घर, पंचमहल, ज्योतिषी का स्थान, खजाना घर, तुर्की सुल्ताना का मकान, मदरसा, ख्वाबगाह, संग्रहालय, कारखाना और नौबतखाना देखने को मिलेगा। इन स्थानों पर आपको मुगल दरबार की भव्यता और सुनियोजित क्रिया कलापों का नमूना देखने को मिलेगा।  अकबर के जिन नौ रत्नों के बारे में आपने सुना या पढ़ा होगा उनके अस्तित्व से भी यहां आप रूबरू हो सकेंगे। तानसेन जहां बैठकर अपना कार्यक्रम देते थे वह अनूप तालाब भी यहां आप देख सकेंगे। यहीं आपको एक छोटी सी जगह भी देखने को मिलेगी जिसे अब आंख मिचौली कहा जाता है। हालांकि यह असल में खजाना था। तीन कमरों वाला यह भवन जो  गलती से अब आंख मिचौली कहा जाता है वास्तव में सोने और चांदी के सिक्कों का राजकीय कोष था। इस भवन का डिजाइन मूल रूप से पश्चिमी भारत के प्राचीन जैन मंदिर से काफी मिलता है। इसी के बगल में आपको खजाने की छतरी नाम का स्थान मिलेगा। इसे ज्योतिषी की बैठक भी बोला जाता है। कहा जाता है कि अकबर को ज्योतिषी गणना पर काफी विश्वास था। इसकी मेहराबें मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमुना है। दीवान-ए-खास और ख्वाबगाह ....... लाल पत्थरों पर सुंदर नक्काशी से सुसज्जित यह जगह मुगल शासकों का सबसे अहम स्थान था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर यहां अपनी रानियों के साथ क्रिड़ा करते थे। बादशाह के ख्वाबगाह तक जाने का भी आपको मौका मिलेगा। यह इस तरह से और इस ऊंचाई पर बना था कि अगर किसी दुश्मन ने तलवार से हमला किया तो वह बादशाह तक नहीं पहुंच सकता था। पूजा घर और रसोई......
इस महल के अंदर आपको जोधाबाई की रसोई और पूजा घर भी नजर आएगा। कृष्ण भक्त जोधाबाई ने महल के अंदर अपनी नियमित पूजा पाठ के लिए भव्य पूजा घर बनवाया था। पूजाघर में कृष्ण लीलाओं से जुड़े आपको चित्र दीवारों पर उकेरे मिल जाएंगे। वक्त के साथ चित्र धुंधले पड़ गए हैं। अंग्रेजों ने भी इस किले को काफी नुकसान पहुंचाया। यहां लगे बेसकीमती हीरे जवाहरातों को वे निकाल ले गए। पर दीवारों और खंभों पर मौजूद पत्थरकारी आज भी आपका मन मोह लेंगे। इन खंभों पर पुरातन हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के प्रतीक आपको नजर आएंगे। महल के बीचों बीच विशाल प्रांगण में तुलसी का चबूतरा आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि प्रतिदिन महारानी जोधाबाई यहां मां तुलसी की पूजा करती थीं। महल के संपूर्ण डिजाइन में आपको भारत के प्राचीन मंदिरों की प्रतिमूर्ति नजर आएगी। मरीयम की कोठी..... इसी प्रांगण में आपको मरीयम की कोठी भी नजर आएगी। यहीं से एक बार फिर आपको जोधाबाई और मरियम में द्वंद नजर आएगा। जोधाबाई के अस्तित्व को नकारने वाले इतिहासकार इसे पूर्तगाली महिला डोना मारिया मास्करेन्हस से जोड़ते हैं। इसी पुर्तगाली महिला को जोधाबाई और उनके खिताब मरियम उज जमानी से जोड़ते हैं। पर कोठी के बाहर छोटी सी मांसाहारी रसोई इन दावों को दरकिनार करती है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह संभव है कि अकबर के हरम में एक पूर्तगाली महिला रही होगी, जिसका नाम डोना मारिया हो सकता है। अकबर ने सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की अपनी नीति पर अमल किया। बहुत संभव है कि मरियम को भी अकबर ने जोधाबाई की तरह अपना पृथक धर्म अपनाने की छूट दी होगी। इसीलिए उनकी कोठी और रसोई भी अलग रही होगी। लंबे समय से जोधाबाई पर बहस चलती आ रही है और संभव है आने वाले समय में भी उनके अस्तित्व पर बहस होती रहेगी। अगर मैं फतेहपुर सिकरी नहीं आता तो शायद मैं भी इतिहास के भूल भुलैया में भटकता रहता। पर मुगल काल की इस जीवंत निशानी को देखकर अब एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मुगल बादशाह अकबर के जीवन में एक हिन्दू रानी का बहुत प्रभाव था। उस हिन्दू रानी का नाम हीरा कंवर रहा हो या हरखा बाई। इतिहास उसे मरियम उज जमानी के नाम से याद रखे या जोधाबाई या किसी और नाम से। इस बहस में पड़े बगैर मैं यह स्वीकारने पर मजबूर हूं कि हां मुगल सम्राट अकबर की एक हिन्दू धर्म पत्नी थीं, जिन्होंने मुगल काल में अपने धर्म से समझौता किए बगैर न केवल महारानी का सुख पाया, बल्कि उस महान महिला ने मुगल काल में भी हिन्दु धर्म को वही सम्मान दिलाया जो उसकी पौराणिक परंपरा रही है। भारत में कट्टर मुसलमान शासकों के दौर में एक हिन्दू महारानी भी थीं जिन्होंने अपने विचारों और कर्मों से हिन्दुत्व की मसाल जलाये रखी।  

2 comments:

Anonymous said...

Sir, इस बार आगरा जाऊंगी तो जोधाबाई का महल जरूर देखूंगी।

धनंजय शुक्ला said...

सर, नमस्ते। ताजमहल तो गया हूं। पर इस जगह न जा पाया। अगली बार इस खूबसूरत स्थान पर अवश्य जाऊंगा।