Saturday, February 22, 2014

इस बार मोहब्बत का कहा मान लिया जाये

इस बार मोहब्बत का कहा 

मान लिया जाये


''मेरी भी कोई बात सुनी जाये किसी रोज
मेरा भी किसी रोज कहा मान लिया जाये.
नफरत तो हमेशा हुकूमत में रही है
इस बार मोहब्बत का कहा मान लिया जाये.
महबूब को महबूब ही रहने दिया हमने
क्या ये भी जरूरी है खुदा मान लिया जाये.'
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मोहब्बत की दुनिया कितनी रुमानी है इसे शायद बताने की जरूरत नहीं, यह तो एक ऐसी अता है जिसे हमेशा सजदा करने का दिल करे. पर क्या मोहब्बत और महबूब में फर्क नहीं होना चाहिए? क्या यह जरूरी है कि महबूब को ही खुदा मान लेना चाहिए? यह ऐसे सवालात हैं जिससे मोहब्बत का हर एक अकितमंद जद्दोजहद करता रहता है. जो इससे पार पा गया वो ताउम्र हंसते-हंसाते गुजार लेता है और जो इन उलझनों में डूबता है वह अपने लिए घातक कदम उठा लेता है. यह एक कदम अपनों के लिए कितना संताप भरा होता है, यह देखने को वह इस दुनिया में नहीं रहता है. रह जाती है सिर्फ यादें और उन यादों से लिपटकर रोने वाले अपने.
आप कहेंगे प्यार और रुमानियत के इस वेलेंटाइन वीक में आज मोहब्बत और महबूब की बातों के बीच दुख-संताप की बातें क्यों? पर क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि  हमारे देश में हर साल महबूब को खुदा मानकर हजारों युवा अपने सपनों को फांसी के फंदों और जहर की बोतलों में बंद कर देते हैं. उनके लिए जिंदगी ऐसी हो जाती है कि अगर महबूब न मिला तो जिंदगी बेकार.

मोहब्बत के बारे में किसी ने क्या खूब लिखा है कि.....
''उम्र भर दूसरा कोई तुम्हें अच्छा न लगे
कम से कम इतनी तो हम तुमसे मोहब्बत कर जायें'

सच्चे और निश्छल प्यार के लिए क्या ऊपर कि ये चंद पंक्तियां काफी नहीं हैं, जो हम प्यार के नाकामी के नाम पर खुद को इस दुनिया से रुख्सत कर लें. टीनएजर्स के प्यार में सबसे अधिक केमिकल लोचा होता है. एक तो उम्र की ठसक और उस पर आकर्षण का चुंबक. यह दोनों तत्व मिलकर ऐसी दुनिया में पहुंचा देते हैं जहां से निकलने में वक्त लग जाता है. इसी मोड़ पर खासकर दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है. जो इन दुर्घटनाओं से समझदारी भरा सेफ्टी बेल्ट बांधकर निकल गया, वही बाद में समझ पाता है कि जिंदगी कितनी खूबसूरत है.
मोहब्बत की दुनिया इतनी विशाल और अनंत है जिसमें उतरने के बाद ही उसकी गहराई का अंदाजा लगता है. पर क्या यह जरूरी है कि यह मोहब्बत सिर्फ महबूब से ही हो. मोहब्बत तो उस चिडिय़ा का नाम है जो जिस साख पर बैठे उसे ही अपना आशियाना बना ले. सच्ची मोहब्बत तो वह है जो इस खूबसूरत कायनात से की जाए.
मोहब्बत की दुनिया का एक स्याह पक्ष भी है. वह है एकतरफा मोहब्बत. क्या गांव, क्या शहर और क्या मेट्रो सिटी. हर जगह इस एकतरफा मोहब्बत ने न जाने कितने घरों के चिराग बुझा दिए. न जाने कितनी ही लड़कियों को एसिड अटैक से खौफजदा कर दिया. हर साल प्यार के इस इनसाइड स्टोरी में बढ़ोतरी ही होती जा रही है. न्यूज चैनल्स और अखबारों की हेडलाइन से आगे बढ़कर यह सोशल मीडिया तक में वायरल हो चुका है. प्यार के इस खूसनुमा सप्ताह में उन युवाओं के लिए मुनौव्वर राणा की यह चंद पक्तियां........
''मोहब्बत को जबर्दस्ती तो लादा नहीं जा सकता
कहीं खिड़की से मेरी जान अलमारी निकलती है.'

यह जिंदगी बेहद खूबसूरत है, इसे सिर्फ महबूब को खुदा मानकर खत्म करने ही जरूरत नहीं है. प्यार करने से किसी ने रोका नहीं है और न ही इस पर किसी का बस चलता है. पर प्यार और रुमानियत के नाम समर्पित इस वैलेंटाइन वीक में आप और हम मिलकर एक संकल्प तो जरूर कर सकते हैं कि नाकाम मोहब्बत के नाम पर जिंदगी को खत्म करने का प्रयास नहीं करेंगे. इन दो पंक्तियों के साथ हैप्पी वैलेंटाइन वीक.........
''खुदकुशी करने पे आमदा थी नाकामी मेरी
फिर मुझे दीवार पर चढ़ती एक चिंटी मिल गई'