Thursday, April 16, 2015

नेट न्यूट्रैलिटी के भूत को समझिए

नेट न्यूट्रैलिटी के भूत को समझिए
नेट न्यूट्रैलिटी का भूत अभी सिर्फ डराने के लिए है। अगर इसका इलाज नहीं कराया गया तो यह राहू-केतू के रूप में आपके जीवन में प्रवेश कर जाएगा और आपको इस कदर परेशान करेगा कि आप न इसे दूर कर पाएंगे और इसके करीब आना आपकी मजबूरी में शुमार होगा। स्मार्ट फोन के जमाने में आपके मुंह में नेट सर्फिंग और मोबाइल एप्प रूपी खून लग चुका है। इसकी आपको आदत हो गई है। या यूं कहिए कि यह आपकी जरूरत बन गई है। ऐसे में नेट न्यूट्रैलिटी को समझना बेहद जरूरी है। आखिर क्यों इसका हमारा युवा वर्ग विरोध कर रहा है। और क्यों आपको भी इस अभियान से जुड़ने की जरूरत है।
दरअसल नेट न्यूट्रैलिटी को समझने के लिए आपको पहले इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर के संसार को समझना जरूरी है। इस वक्त हमारे पास इंटरनेट एक्सेस के लिए दो विकल्प हैं। पहला है आईएसपी (ISP) यानि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर और दूसरा है टीएसपी (TSP) यानि टेलीकम्यूनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर। डेस्कटॉप कंप्यूटर पर हमें इंटरनेट सुविधा आईएसपी द्वारा प्राप्त होती है। दूसरी तरफ मोबाइल के जरिए जो इंटरनेट हम चलाते हैं उसे टीएसपी हमें प्रदान करता है। सरकार ने आईएसपी और टीएसपी को लाइसेंस दे रखा है कि वे हमें इंटरनेट सुविधा प्रदान करें। इसके एवज में हम इन प्रोवाइडर कंपनियों को अच्छी खासी रकम देते हैं। इन्हीं प्रोवाइडर कंपनियों में मोबाइल कंपनियां भी शामिल हैं।
अब समझते हैं इंटरनेट के खेल को
जब से भारत ने स्मार्ट फोन की दुनिया में कदम रखा है, तब से मोबाइल कंपनियों में इंटरनेट सुविधा देने के लिए होड़ मच चुकी है। हमें एक जीबी डाटा के लिए कम से कम दो सौ रुपए सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों को देने पड़ रहे हैं। इसी की होड़ मची है कि कौन कितनी सस्ती दर पर इंटरनेट सुविधा प्रदान करता है। सस्ती दर के अलावा एक और चीज काफी मायने रखती है और वह स्पीड। टूजी स्पीड, थ्री जी स्पीड और अब फोर जी स्पीड इसी व्यवसायिक प्रतिस्पर्द्धा के दूसरे रूप हैं। आज से एक साल पहले प्रतिस्पर्द्धा थी सस्ती इंटरनेट सुविधा की। अब प्रतिस्पर्द्धा है कम से कम दर में अधिक से अधिक स्पीड में इंटरनेट सुविधा की।
अब बात नई प्रतिस्पर्द्धा की
ऊपर की दोनों प्रतिस्पर्द्धा अपने-अपने स्तर से चलती रहेगी। पर आने वाला वक्त एक अलग तरह की प्रतिस्पर्द्धा का है। यह प्रतिस्पर्द्धा रिफलेक्ट हो रही है नेट न्यूट्रैलिटी के रूप में। दरअसल स्मार्ट फोन के बढ़ते प्रभाव ने मोबाइल एप्प के मार्केट को अचानक से हाईलाइट कर दिया है। लाखों एप्प इस वक्त मौजूद हैं। हम अपनी जरूरतों के हिसाब से इन एप्प को अपने स्मार्ट फोन में डाउनलोड करते हैं और उसका उपयोग करते हैं। पहले जो एप्प आए वे सुविधाओं के मद्देनजर डिजाइन किए गए। जैसे कि आप पता कर सकते थे कि आपके नजदीक कौन सा बेहतर होटल है, कहां मुगलई खाना मिल सकता है। देश में कहां-कहां पिकनिक के हॉट स्पॉट हैं। पर पिछले छह महीने में अचानक से कॉमर्शियल एप्प की बाढ़ आ गई है। जैसे फ्लिपकार्ड, गाना डॉट काम, ओएलएक्स आदि..आदि। इन कॉमर्शियल एप्प के जरिए एप्प कंपनियां करोड़ों रुपए कमा रही हैं। एक अनुमान के मुताबित इन एप्प आधारित सर्विस का मासिक कारोबार करीब साढ़े सात हजार करोड़ रुपए पहुंच गया है।
परेशान हुई सर्विस प्रोवाइड कंपनियां
एप्प और नेट के इस कॉमर्शियल यूज ने मोबाइल कंपनियों को हिला कर रख दिया है। ये सोच रही हैं कि सर्विस हम मुहैया करा रहे हैं और एप्प कंपनियां कमा रही हैं। ऐसे में इन्होंने एक अनोखा रास्ता अख्तियार किया। इन्होंने एप्प कंपनियों से करार शुरू किया है कि आप एक निश्चित राशि हमें पेड करें तो हम आपकी सर्विस को फास्ट कर देंगे और दूसरी सर्विस को स्लो कर देंगे। यही करार ग्राहकों के साथ भी शुरू हो चुका है।
यहीं से शुरू हुआ प्रोटेस्ट
जैसे ही मोबाइल कंपनियों ने इस तरह की बात की, युवा वर्ग एक हो गया। आप भी इस बात को समझें। जब मोबाइल कंपनियां सिर्फ सर्विस प्रोवाइडर हैं तो उन्हें किसने यह हक दे दिया कि वह हमारी सर्विस को स्लो या फास्ट कर दे। यह हमारा अधिकार है कि हमें इंटरनेट की अच्छी सर्विस मिले, क्योंकि इसके एवज में हम इन्हें पेड कर रहे हैं। इंटरनेट इन कंपनियों की बपौती नहीं है। ये सिर्फ सर्विस प्रोवाइडर हैं, जिसे हमारी सरकार ने लाइसेंस दे रखा है कि वे हमें इंटरनेट की सुविधा प्रदान करें।
इसे ऐसे भी समझें
माल लिजिए मेरे पास एयरटेल का मोबाइल कनेक्शन है। जाहिर है एयरटेल से ही मैं इंटरनेट सुविधा अपने मोबाइल पर ले रहा हूं। अब कंपनी कहती है आप फेसबुक की फास्ट सर्विस चाहते हैं तो पचास रुपए अतिरिक्त खर्च करें। जैसे ही मैंने फेसबुक के लिए पेड किया वह फास्ट हो गई, लेकिन उसके एवज में दूसरे सभी एप्प जैसे व्हॉट्सएप, स्काईपी आदि स्लो कर दिए गए। पर हमारा हक है कि हमें सभी सर्विस एक समान मिले। यही है नेट न्यूट्रैलिटी।
आप भी जुड़ें इस अभियान से
इन मोबाइल कंपनियों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने एक संस्था भी बना रखी है, जिसे ट्राई के रूप में आप और हम जानते हैं। ट्राई ने लोगों से भी राय मांग रखी है कि वे नेट न्यूट्रैलिटी के संबंध में अपनी राय जाहिर करें। ट्राई की वेबसाइट पर जाकर आप अपनी बात जरूर रखें या नहीं तो www.savetheinternet.in पर जाएं और अपनी राय जाहिर करें। अगर आज हमने इस अभियान को आगे नहीं बढ़ाया तो आने वाले वक्त में ये मोबाइल कंपनियां और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां हमारा खून जोंक की तरह चूसती रहेंगी।
उम्मीद है मेरा यह आलेख आपको बौद्धिक रूप से कुछ हद तक समृद्ध करने में सक्षम हुआ होगा।

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