Saturday, April 18, 2015

आइए इस शहादत को नमन करें

आइए इस शहादत को नमन करें
जब आप आज यह ‘मंथन’ पढ़ रहे होंगे तब तक भारत माता के एक सपूत का जन्मदिन गुजर चुका होगा। यह भारतीय वीर अपने जन्मदिन में घर पर आने वाला था पर उसकी किस्मत में भारत मां के नाम पर शहीद होना लिखा था। 17 अप्रैल को उसका जन्म दिन था। 11 अप्रैल को नक्सलियों के साथ सीधी लड़ाई में यह सपूत शहीद हो गया। ये वीर सूपत हैं प्लाटून कमांडर शंकर राव जो इसी 13 अप्रैल को अपने घर, अपने परिवार के पास, अपनी जुड़वा बेटियों के पास छुट्टी पर आने वाला था। अप्रैल का महीना बेहद खास होता था इस परिवार के लिए। 17 अप्रैल को शंकर अपना जन्मदिन मनाते थे, 24 अप्रैल को शादी की सालगिरह और 29 अप्रैल को जुड़वा बेटियां चंचल और चांदनी उनके घर आई थीं। किस्मत ने ऐसी व्यूह रचना कर रखी थी कि अप्रैल में ही शंकर ने वीरगति को प्राप्त किया। 
नक्सली इलाकों में जंगल की ड्यूटी को कालापानी से भी भयंकर माना जाता है पर शंकर राव ने खुद वीआईपी ड्यूटी को गुडबाय कर जंगल में नक्सलियों से लोहा लेने की ठानी थी तभी तो चंद महीने ही नेताओं की वीआईपी ड्यूटी में गुजारने के बाद इस जांबाज ने जंगल की ड्यूटी को चुना। खुद आवेदन देकर अपना तबादला करवाया।
11 अप्रैल को सुकमा जिले के पिड़मेल के जंगल में एसटीएफ की एक टुकड़ी और नक्सलियों के बीच सीधी मुठभेड़ में अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे शंकर शहीद हो गए। उनके साथ सात अन्य जवान भी शहीद हुए। इन शहीदों को नमन पूरा देश करता है पर उनका क्या जो शहीदों को नमन तो क्या अपमान करने से भी नहीं चूकते। शंकर राव को ही ले लें। नक्सली मूवमेंट के खिलाफ बेहतरीन काम करने वाले इस जांबाज का नाम वीरता पुरस्कार की अंतिम दो की सूची में था पर अंतिम समय पर यह नाम हटा दिया गया। परिजनों को तो इस बात का बेहद अफसोस है पर जीते जी शंकर ने कभी पुरस्कारों की चाह नहीं की तभी तो हर वक्त अपने साथियों के साथ जंगल की खाक छानते फिरते रहे। पूरे सैन्य सम्मान के साथ शंकर राव का अंतिम संस्कार किया गया। हम सबको दुआ करनी चाहिए कि अंतिम संस्कार में होने वाले खर्च की राशि कहीं शहीद शंकर राव के परिवार से ही न मांग ली जाए। ऐसा हो चुका है। जब रायपुर के गरियाबंद में नक्सलियों से लोहा लेते शहीद हुए एसपीओ किशोर पांडेय के परिजनों को अंतिम संस्कार में हुआ खर्च वापस करने के लिए प्रशासन द्वारा नोटिस भेज दिया गया था। मीडिया ने जब यह खबर हाईलाइट की तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार को होश आया। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली घटना है, जिसमें शहीदों का अपमान किया गया हो।
ऐसे हजारों किस्से हमारे आसपास मौजूद होंगे जहां हम शहीदों के परिजनों को बेबस और लाचार देख सकते हैं। जरा आप भी मंथन करिए इन परिजनों के हाल पर। जब उनके घर का चिराग बुझ गया हो और सरकारी तंत्र उस घर में रोशनी करने की जगह हालात को और खराब करने में जुटा रहता हो। शहीदों के नाम पर बड़े-बड़े वादे होते हैं। तमाम घोषणाएं होती हैं। ऐसा नहीं है कि ये पूरे नहीं होते हैं पर उन आंकड़ों पर भी गौर करना जरूरी है कि क्यों सरकारी तंत्र के सताए लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। आखिर ऐसी क्या जरूरत पड़ गई है कि विभिन्न राज्यों और जिलों में शहीदों के परिजनों को अपना संगठन बनाना पड़ गया। आए दिन शहीदों के परिजन आपको सरकारी दफ्तरों में चक्कर खाते मिल जाएंगे। क्या कभी हमने मंथन किया है कि भारत मां के सपूत कैसे बलिदान की वेदी पर हंसते-हंसते अपनी आहूति दे देते हैं और हम उनके परिजनों के साथ कैसा दोगला व्यवहार करते हैं। मंथन सिर्फ इस बात पर नहीं होना चाहिए कि शहीदों के परिजनों का हम सम्मान करें और  यह भी नहीं कि हम सिर्फ शहीदों के मजार पर हर बरस जाकर मेला लगाएं, बल्कि मंथन तो इस बात पर होना चाहिए कि क्यों नहीं केंद्रीय स्तर पर ऐसी व्यवस्था हो कि शहीदों के परिजनों को विशेष श्रेणी में रखा जाए। उन्हें वह सम्मान दिया जाए जिसके वे हकदार हैं। परिजनों के लिए सिर्फ घोषणाएं कर देने से बात नहीं बनने वाली जमीनी हकीकत को स्वीकार करते हुए उनके लिए कुछ बेहतर करने की जरूरत है। कहीं ऐसा न हो कि हम शहीदों के मजार पर सिर्फ मालाएं ही चढ़ाते रहें और इन जांबाजों को जन्म देने वाले माता-पिता दर-दर की ठोकरें खाएं। पत्नी और बच्चे कहीं हमें रास्ते पर भीख मांगते नजर आ जाएं।
चलते-चलते
एक शहीद की डायरी का पहला पन्ना..
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊं
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊं,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जाएं वीर अनेक।।

जब एक पुष्प की ऐसी अभिलाषा हो सकती है तो हम क्यों पीछे रहें? आप भी प्रण लें, किसी शहीद के परिजन अगर सामने आएं तो उन्हें सम्मान करें और उस शहीद को सैल्यूट करें जिसने हमारे लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।