Saturday, September 19, 2015

एक प्रयोग का मर जाना : मिस यू आई-नेक्स्ट टैब्लॉइड


भारतीय पत्रकारिता के एक टैब्लॉइड यूग का अंत हो गया। अपने प्रकाशन के नौ साल बाद ही भारत का एक मात्र मॉर्निंग डेली टैब्लॉइड न्यूज पेपर ने अपना टैब्लॉइड अस्तित्व खो दिया। आई-नेक्स्ट अब अन्य दूसरे मॉर्निंग डेली न्यूज पेपर्स के साथ ब्रॉड शीट में परिवर्तित हो गया। इस परिवर्तन को भले ही कई अन्य दृष्टिकोणों से देखा जाएगा, पर भविष्य में जब कभी भी भारत में टैब्लॉइड जर्नलिज्म का जिक्र आएगा उसमें आई-नेक्स्ट को भी जरूर याद किया जाएगा।
मुझे आज भी अच्छी तरह याद है जब आई-नेक्स्ट में मेरी इंट्री हुई थी। संपादक आलोक सांवल जी ने मुझसे सीधा सवाल किया था। आप तो ब्रॉड शीट से आ रहे हैं फिर इसमें कैसे एडजस्ट करेंगे। मैंने भी सपाट तौर से कहा था सर भारत में तो यह आपका पहला प्रयोग ही है, फिर आपको टैब्लॉइड कल्चर वाले लोग कहां से मिलेंगे। जो भी आएंगे वो ब्रॉड शीट से ही आएंगे। यह तो परिवर्तन का दौर है, हम भी देखने-समझने आए हैं इस टैब्लॉइड जर्नलिज्म को। इसके बाद उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं पूछा।
दरअसल भारत में टैब्लॉइड जर्नलिज्म की शुरुआत कुछ वैसी ही थी जैसे मिड नाइटीज में टीवी पत्रकारिता की। नए-नए समाचार चैनल आ रहे थे। सीनियर पदों पर प्रिंट मीडिया से आए पत्रकारों की भरमार थी। किसी के पास न तो टीवी जर्नलिज्म का अनुभव था और न कोई इतने अत्याधुनिक संचार तंत्रों से वाकिफ था। हां, बस न्यूज सेंस एक ही था, इसीलिए प्रिंट मीडिया से आए पत्रकारों ने टीवी जर्नलिज्म में सफलता के ऐसे झंडे गाड़े, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है।
ऐसा ही कुछ आई-नेक्स्ट के साथ भी हुआ। ब्रॉड शीट के अच्छे-अच्छे पत्रकारों का जुटान शुरू हुआ। 2006 में इसका प्रकाशन शुरू हुआ। शुरुआती दौर में पवन चावला संपादक बने और प्रोजेक्ट हेड बने आलोक सांवल। दिनेश्वर दीनू, यशवंत सिंह (संप्रति : भड़ास फॉर मीडिया के संपादक), राजीव ओझा (संप्रति : अमर उजला में सीनियर न्यूज एडिटर), मनोरंजन सिंह (संप्रति : हिंदुस्तान हिंदी जमशेदपुर के संपादक), प्रभात सिंह (संप्रति : अमर उजाला गोरखपुर के संपादक),  विजय नारायण सिंह (संप्रति : दैनिक भास्कर), मिथिलेश सिंह (संप्रति : राष्टÑीय सहारा), शर्मिष्ठा शर्मा (संप्रति : डिप्टी एडिटर आई-नेक्स्ट) जैसे ब्रॉड शीट के बड़े नाम अखबार के साथ जुड़े। अपने तरह के अनोखे कांसेप्ट और विजन के साथ शुरू हुआ आई-नेक्स्ट उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ और कानपुर में चंद दिनों में ही पाठकों के बीच अपनी पैठ बनाने में कामयाब रहा। फिर तो इसकी सफलता की कहानी आगे बढ़ते ही गई।
  हां इस बात का जिक्र भी जरूरी हो जाता है कि इसी सफलता की कहानी के बीच ब्रॉड शीट से आए बड़े और नामचीन नामों का आई-नेक्स्ट से पलायन भी जारी रहा। पलायन के तमाम कारण गिनाए जा सकते हैं, पर सभी के मूल में इसका टैब्लॉइड  कांसेप्ट ही था। भारत में अब तक न तो टैब्लॉइड जर्नलिज्म को डेली न्यूज पेपर के रूप में स्वीकार्यता मिली थी और ऊपर से आई-नेक्स्ट का कांसेप्ट भी बाईलैंगूअल था। मतलब साफ था, या तो इस नए प्रयोग को बेहतर तरीके से समझा जाए, या फिर मूल जर्नलिज्म यानि ब्रॉड शीट में चला जाए। अधिकतर लोगों ने पलायन का रास्ता अपनाया। यहां तक की संपादक पवन चावला जी भी रुख्शत हुए। पर प्रोजेक्ट हेड आलोक सांवल जी ने इसे चुनौती के रूप में लिया। प्रोजेक्ट हेड के साथ ही आलोक सांवल जी को संपादक का पद भी दिया गया। उन्हें साथ मिला टाइम्स आॅफ इंडिया से आर्इं शर्मिष्ठा शर्मा का। दोनों ने मिलकर अपने तरह के अनूठे प्रयोग वाले डेली न्यूज पेपर आई-नेक्स्ट को धीरे-धीरे आगे बढ़ाना शुरू किया। उत्तरप्रदेश के टायर टू सिटी से शुरू हुआ यह सफर कई दूसरे राज्यों तक जा पहुंचा। इसमें बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के नाम भी जुड़े।
आई-नेक्स्ट की सफलता ने कई दूसरे राज्यों में न केवल रोजगार के साधन पैदा किए, बल्कि पत्रकारों को एक नए नजरिए से पत्रकारिता करना भी सिखाया। एक से बढ़कर एक प्रयोग हुए। एक ऐसा दिन भी आया जब इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर भी इसे स्वीकारा गया। वैन इफ्रा जैसे अवॉर्ड ने आई-नेक्स्ट के टैब्लॉइड जर्नलिज्म में चार चांद लगा दिया।
पर इन सबके बीच आई-नेक्स्ट अपने आप से ही जूझता रहा। कभी अपने कांसेप्ट को लेकर, कभी अपने प्रयोगों को लेकर। मैंने अपने कॅरियर का सबसे बेहतरीन छह साल आई-नेक्स्ट के साथ गुजारा। पर इन छह सालों में इसके कांसेप्ट को कई बार बदलते हुए देखा। कभी यह न्यूज पैग के रूप में था, कभी शॉफ्ट स्टोरी के रूप में और कभी न्यूज को ही कई दूसरे एंगल से प्रजेंट करने के रूप में। हर छह महीने बाद होने वाले बदलाव ने कभी भी आई-नेक्स्ट को स्थिरता प्रदान नहीं की। कभी यह सिटी का अखबार बना रहा, कभी सर्कुलेशन के प्रेशर ने इसे गांव और कस्बे में भी पहुंचा दिया। कभी इसमें ब्रांडिंग और इन हाउस इवेंट का इनपुट इतना हो जाता था कि न्यूज गायब हो जाता था कभी कोई अपने प्रयोगों से इसे आगे पीछे करता रहा।
प्रकृति का नियम है बदलाव। यह बदलाव जरूरी भी है। पर एक अखबार के रूप में इतना बदलाव न तो पाठकों ने स्वीकार किया और न ही विज्ञापनदाताओं ने। यही कारण रहा कि आई-नेक्स्ट ने अपनी खबरों, अपनी प्रजेंटेशन, अपने इवेंट्स के जरिए लोकप्रियता तो हासिल की,  पर कभी भी न्यूज पेपर   के रूप में पाठकों का यह फर्स्ट च्वाइस नहीं बन सका। सभी शहरों में यह न्यूज के दूसरे विकल्प के रूप में ही मौजूद रहा। पर इसी सब के बीच आई-नेक्स्ट का विस्तार भी होता रहा।
जैसे-जैसे आई-नेक्स्ट के एडिशन बढ़ते गए वैसे-वैसे ब्रॉड शीट के कई दूसरे अच्छे पत्रकार भी इसके हिस्से में आए। विश्वनाथ गोकर्न (संप्रति : बनारस आई-नेक्स्ट के एडिटोरियल हेड), शंभूनाथ चौधरी (संप्रति : रांची और जमशेदपुर आई-नेक्स्ट के एडिटोरियल हेड), रवि प्रकाश (संप्रति : बीबीसी हिंदी), विवेक कुमार (संप्रति : हिंदुस्तान पटना के सीनियर न्यूज एडिटर), मृदुल त्यागी (संप्रति : दैनिक जागरण), मुकेश सिंह (संप्रति : दैनिक जागरण अलिगढ़ के संपादक),  महेश शुक्ला (संप्रति : आई-नेक्स्ट के सेंट्रल इंचार्ज), सुनिल द्विवेदी (संप्रति : हिंदुस्तान गोरखपुर के संपादक) आदि अपने मूल कैडर यानि ब्रॉड शीट छोड़कर आई-नेक्स्ट से जुड़े। कई लोग कई बार इसे छोड़कर भी गए, लेकिन वापस आई-नेक्स्ट में ही लौटकर आए। छोड़कर क्यों गए और फिर लौटकर आई-नेक्स्ट क्यों आए, यह एक अलग मुद्दा है, पर सच्चाई यही है कि कहीं न कहीं इसके टैब्लॉइड जर्नलिज्म के स्थायित्व को स्वीकायर्ता मिलने के कारण ही वे लौटे।
आलोक सांवल और उनकी बेहतरीन टीम ने आई-नेक्स्ट को जागरण समूह का एक प्रॉफिटेबल बिजनेस मॉड्यूल तैयार करके दिया। यही कारण है कि इंदौर से भी आई-नेक्स्ट का प्रकाशन शुरू हुआ।
वर्ष 2012 में रांची यूनिवर्सिटी में हुए एक राष्टÑीय मीडिया सेमिनार में मुझे भी आमंत्रित किया गया था। उस वक्त मैं आई-नेक्स्ट देहरादून का एडिटोरियल हेड था। मुझे सब्जेक्ट दिया गया था भारत में टैब्लॉइड जर्नलिज्म की शुरुआत, विस्तार और भविष्य। बड़े ही उत्साह के साथ मैंने प्रजेंटेशन तैयार किया था। करीब 12 सौ लोगों की उपस्थिति, जिनमें अधिकर मीडिया संस्थान के बच्चे और पत्रकारों के बीच मैंने टैब्लॉइड जर्नलिज्म के कांसेप्ट और उसके भारत में विस्तार को बताया था। मैंने बताया था कि कैसे यूरोपियन कंट्री में द गार्जियन, द सन, द वर्ल्ड जैसे टैब्लॉइड अखबार लीडर की भूमिका में हैं। कैसे उन्होंने अपनी पत्रकारिता के बल पर बड़े से बड़े अखबारों को धूल चटा दी। छोटे साइज में रहते हुए कैसे इन अखबारों ने बड़े मार्केट पर अपना कब्जा जमा लिया। कैसे इन टैब्लॉइड अखबारों ने अपनी सेंसेशनल खबरों और येलो जर्नलिज्म के ठप्पे को धोते हुए मुख्य धारा की पत्रकारिता में अपनी जगह बनाई। और कैसे ये टैब्लॉइड अखबार आज पश्चिमी देशों के दिल की धड़कन बन चुके हैं। न्यूज पेपर के रूप में पाठकों के फर्स्ट च्वाइस बने हैं। भारत में आई-नेक्स्ट के कांसेप्ट, उसके टैब्लॉइड और बाइलैंगूअल कैरेक्टर को मैंने विस्तार से बताया था। बड़े ही उत्साह से लबरेज मैंने बताया था कि आने वाला समय भारत में भी टैब्लॉइड जर्नलिज्म का ही होगा। धीरे-धीरे ही सही इसे भारतीय पाठक स्वीकार कर रहे हैं। कई शहरों और राज्यों में आई-नेक्स्ट का विस्तार इसका जीता जागता उदाहरण है। मैं इस टैब्लॉइड जर्नलिज्म को लेकर इतना उत्साहित था कि यहां तक कह गया कि देखिएगा कई दूसरे अखबार भी इस तरह का प्रयोग करेंगे। प्रयोग की यह बात मैंने अमर उजाला के कांपेक्ट और हिंदुस्तान के युवा के संदर्भ में कही थी। पर यह बातें आखिरकार बातें ही रह गर्इं।
बदलाव के इस दौर में कल से आई-नेक्स्ट भी बदल गया। बदलाव भी ऐसा कि भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में इसे एक टैब्लॉइड युग का अंत ही कहा जाएगा। भारत में सांध्य दैनिक तो काफी हैं जो टैब्लॉइड जर्नलिज्म को जिंदा रखे हैं, पर आई-नेक्स्ट हिंदी का पहला मॉर्निंग डेली था जो अपने आप में अनोखा था। इसके बदलाव के अनेकानेक कारण हो सकते हैं, पर जब भी भारत में पत्रकारिता के इतिहास पर चर्चा होगी आई-नेक्स्ट के नौ साल के सफर को जरूर याद किया जाएगा। आज मैं भी टैब्लॉइड जर्नलिज्म को छोड़कर ब्रॉड शीट में आ चुका हूं। पर टैब्लॉइड जर्नलिज्म के साथ छह साल के सफर में कई अच्छी और बूरी यादें जुड़ी हैं। सुखद यह रहा कि मैंने भी कुछ वर्ष ही सही टैब्लॉइड जर्नलिज्म को शिद्दत के साथ जिया। मिस यू आई-नेक्स्ट टैब्लॉइड। मिस यू।

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