Monday, September 21, 2015

‘इस्लामोफोबिया’ से बचना होगा मुस्लिमों को

पूरा विश्व इस वक्त ‘इस्लामोफोबिया’ से ग्रस्त है। पश्चिमी देशों में तो ‘इस्लामोफोबिया’ ने इस कदर डर पैदा कर रखा है कि कोई भी मुस्लिम खुद को मुस्लिम कहने से डरने लगा है। हाल यहां तक खराब हैं कि लंबी दाढ़ी रखने वाले सिखों को भी मुस्लिम समझ लिया जाता है। आए दिन वहां सिखों और मुस्लिमों पर नस्लीय हमला होने की खबरें आती रहती हैं। आखिर ऐसा क्यों होता जा रहा है कि ‘इस्लामोफोबिया’ धीरे-धीरे और अधिक गहराई से मन के अंदर अपनी जड़ें जमाता जा रहा है। कमोबेस पश्चिमी देशों जैसा ही माहौल भारत में भी बनने लगा है। यह मंथन का वक्त है। खासकर मुस्लिमों को भी इस संबंध में बेहतर तरीके से सोचने की जरूरत है कि वे ऐसा क्या कर रहे हैं जिसने ‘इस्लामोफोबिया’ को इस तरह हौव्वा बना दिया है। अमेरिका के टेक्सास में 14 साल के स्कूली बच्चे अहमद मोहम्मद की गिरफ्तारी ने ‘इस्लामोफोबिया’ पर नई बहस को जन्म दे दिया है।
अमेरिका के स्कूली बच्चे अहमद मोहम्मद को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने अपने हाथों से एक घड़ी बनाई। अति उत्साह में उसे स्कूल के बच्चों और टीचर को दिखाने के लिए स्कूल बैग में लेकर स्कूल आ गया। क्लास के दौरान बैग से आ रही टिक-टिक की आवाज ने टीचर्स का ध्यान खींचा और टीचर्स ने बम की आशंका में पुलिस को कॉल कर दिया। पुलिस ने आनन-फानन में बैग को जब्त कर अहमद मोहम्मद को अरेस्ट कर लिया। संदेह इसलिए भी पुख्ता था क्योंकि जिस दिन अहमद मोहम्मद घड़ी लेकर स्कूल पहुंचा था उस दिन 11 सितंबर था। यह वही दिन था जब वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर अलकायदा ने पूरे विश्व को शोकाकुल कर दिया था और पूरे विश्व में मुसलमानों के प्रति एक अलग सोच को जन्म दे दिया था।
अहमद मोहम्मद सूडान मूल का है। मोहम्मद के पिता ने कहा कि अहमद को तत्काल सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि दुर्भाग्य से उसके नाम के साथ मोहम्मद जुड़ा है। अहमद मोहम्मद को दरअसल ‘इस्लामोफोबिया’ का दंश झेलना पड़ा। हालांकि, चंद घंटों में यह स्पष्ट हो गया कि अहमद मोहम्मद ने सिर्फ एक घड़ी बनाई थी, पर चंद मिनटों में ही ‘इस्लामोफोबिया’ की इस घटना ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर दिया। माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर के टॉप ट्रेंड में अहमद मोहम्मद आ गया। सोशल मीडिया पर इस घटना का इतना जिक्र हुआ कि व्हाइट हाउस को भी सामने आना पड़ गया। अमेरिकी राष्टÑपति बराक ओबामा ने ट्वीट करके कहा ‘कूल क्लॉक अहमद। क्या आप अपनी घड़ी व्हाइट हाउस लाना चाहोगे? हमें आपकी तरह और बच्चों को साइंस के प्रति प्रेरित करना चाहिए। यही चीजें हैं जो अमेरिका को महान बनाती हैं।’ यहां तक कि फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्क ने भी अहमद मोहम्मद का हौसला बढ़ाया। विश्व की कई और नामचीन हस्तियों ने भी इस घटना की पुरजोर निंदा की।
पर सवाल उठता है कि आखिर ऐसी स्थिति पैदा ही क्यों हुई? इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्यों ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि हर एक मुस्लिमों को आशंका और भय की दृष्टि से देखा जाने लगा है। यहां तक कि भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्टÑ में भी मुस्लिमों के प्रति दृष्टिकोण बदलने लगा है। यह कहने में तनिक भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि इसके लिए स्वयं मुस्लिम ही दोषी हैं। किसी भी पश्चिमी राष्टÑ में अगर आपका नाम मुस्लिम कम्युनिटी को प्रदर्शित करता है तो फिर आप हमेशा आशंका की दृष्टि से देखे जाने लगते हैं। धर्म और मजहब के नाम से राजनीति करने वालों ने कभी इस बात पर जोर नहीं दिया कि मुस्लिमों को बेहतर शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर समाज की मुख्यधारा से बेहतर तरीके से जुड़ने के प्रति प्रेरित किया जाए। कुछ प्रोगेसिव मुस्लिमों ने ऐसा करने की ठानी भी तो उन्हें दूसरे धर्मों का हिमायती बताकर अपने ही समाज में अलग-थलग करने का प्रयास किया गया। यह प्रयास आज भी जारी है।
कश्मीर हो या बिहार, यूपी हो या पश्चिम बंगाल। हर जगह इस वक्त का माहौल ‘इस्लामोफोबिया’ में तब्दील होता जा रहा है। हर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद कश्मीर में आईएस और पाकिस्तान के झंडे लहराकर ‘इस्लामोफोबिया’ को बढ़ावा दिया जा रहा है। पर अब मुसलमानों को भी समझना होगा कि कौन उनके नाम को बर्बाद करने पर तुला है। उन्हें समझना होगा कि पूरे विश्व में कितने मुसलमानों ने अपने कर्माें के आधार पर सम्मान पाया है। नाम कमाया है। प्रतिष्ठा कमाई है। इसी मंथन के साथ अमेरिका में अहमद मोहम्मद के साथ हुई घटना का एक दूसरे पहलू पर सोचने की जरूरत है। दूसरा पहलू यही है कि उसी मुसलमान बच्चे के लिए कैसे पूरा विश्व एक हो गया। क्या भारत और क्या दूसरे पश्चिमी देश, सभी ने एकजुटता दिखाते हुए सोशल मीडिया पर एक ऐसा अभियान चलाया जिसने रातों रात अहमद मोहम्मद को सेलिब्रिटी बना दिया।
भले ही ‘इस्लामोफोबिया’ ने लोगों में आशंका पैदा कर रखी है। भले ही ‘इस्लामोफोबिया’ ने मुस्लिमों के प्रति एक अलग माहौल बना दिया है, पर इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है इसी ‘इस्लामोफोबिया’ के दौर में पूरा विश्व कलाम को सलाम कर रहा है और पूरा विश्व अहमद मोहम्मद जैसे टैलेंटेड बच्चे के लिए पूरी शिद्दत के साथ खड़ा हुआ है। मंथन का वक्त है। आप भी मंथन करिए कि हमें ‘इस्लामोफोबिया’ के झूठे दंश को झेलना है   या प्रोगेसिव बनकर विश्व में एक अलग पहचान कायम करनी है। 
चलते-चलते
एक बार फिर जम्मू-कश्मीर में जुम्मे की नमाज के बाद पाकिस्तानी झंडे लहराए गए। यहां तक की पुलिसबल पर पत्थर भी बरसाए गए। कई मौकों पर आईएस के झंडे भी लहराते जाते रहे हैं। भारत विरोधी नारों की गूंज भी सुनाई देती है। यह भी सच्चाई है कि कश्मीर के अधिकतर मुस्लिम इस तरह की सोच नहीं रखते हैं। पर चंद लोगों के कारण कश्मीर में जो माहौल बन रहा है उसे समझने की जरूरत है। ऐसे लोगों को सामने लाने की जरूरत है जो इस्लाम को बदनाम करने पर तुले हुए हैं।