Saturday, October 3, 2015

प्लीज, रेप को धंधा मत बनाइए

अस्सी के दशक से हिंदी सिनेमा में एक ऐसा बदलाव आया जिसने फिल्मी अभिनेत्रियों को बोल्ड रोल करने की इजाजत दे दी। इसी बदलाव के दौर में रेप का सीन भी प्रमुखता से फिल्मों में आने लगा। शबाना आजमी ने तो विनोद खन्ना के साथ एक फिल्म में वह रोल भी किया, जिसने रेप की परिभाषा ही बदल दी। फिल्म में शबाना आजमी ने एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया, जो हाईवे पर लिफ्ट लेकर लोगों को अपने जाल में फंसाती थी और उनसे जबर्दस्ती रुपया वूसलती थी। रुपया नहीं देने पर खुद ही कपड़े फाड़ना शुरू कर देती थी और जोर-जोर से चिल्ला कर लोगों को जमा कर लेती थी। आरोप लगाने लगती थी देखिए, यह मेरा बलात्कार करने का प्रयास कर रहा था। बदनामी के डर से लोग अपना सारा रुपया, सोने की अंगूठी आदि हिरोइन को पकड़ा देते थे। यह एक ऐसा दौर था जब लड़कियां उतनी बोल्ड नहीं होती थी। फिर पिछले पांच से सात वर्षों में इस बोल्डनेस में ऐसा बदलाव आया कि आए दिन-प्रतिदिन रेप और रेप के प्रयास के मामले बढ़ते ही चले गए। आज हालात यह हैं कि अगर कोई लड़की अपने साथ दुष्कर्म का आरोप लगाती है तो सबसे पहले उसे ही शक की दृष्टि से देखा जाने लगता है। मंथन का वक्त है कि आखिर यह स्थिति क्यों और कैसे आ रही है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हर साल जारी होने वाले आकड़ों में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की संख्या में दिनों-दिन बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। इनमें से भी सबसे अधिक मामले रेप और रेप के प्रयासों के होते हैं। निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई नए नियम लाए गए। बदलाव के इस दौर में महिलाओं को और अधिक सबल बनाने का प्रयास किया गया। पर हुआ इसका उल्टा। आए दिन रेप की मिलने वाली शिकायतों में फर्जी केस की संख्या का प्रतिशत बढ़ता गया। यह प्रतिशत आज भी लगातार बढ़ ही रहा है। मेट्रो सिटी में इस तरह के मामले सबसे अधिक हैं। पहले अपनी मर्जी से साथ रह रहे हैं, फिन अनबन हुई तो लड़की सीधे थाने पहुंचती है और अपने साथ दुष्कर्म की शिकायत दर्ज करा देती है। चूंकि, कानून इतने सख्त हैं कि तत्काल आरोपी को अरेस्ट कर लिया जाता है। बाद में कई मामलों में समझौता हो जाता है। ऐसे मामलों में कहने को तो लड़का और लड़की दोनों ही सार्वजनिक रूप से बदनाम होते हैं। पर सबसे बड़ा सवालिया निशान रेप की शिकायतों पर उठता है। शायद इसी कारण हाल के दिनों में रेप की शिकायत करने वाली महिलाओं या लड़कियों को हमेशा ही दूसरी नजर से देखा जाने लगा है। इस तरह के लगातार बढ़ रहे झूठे मामलों के कारण ही सुप्रीम कोर्ट को भी लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी है। 
कोर्ट के सामने कई ऐसे मामले आए जिसमें लड़का और लड़की पांच-सात साल से साथ रह रहे थे। अचानक एक दिन दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों अलग हो गए। फिर लड़की पुलिस के पास पहुंच गई और लगा दिया दुष्कर्म का आरोप। अखबारों की हेडलाइन बनी शादी का झांसा देकर पांच साल तक करता रहा दुष्कर्म। यह बातें समझ से परे है कि कोई शादी का झांसा देकर इतने साल तक रेप कैसे करता रहा। क्या लड़कियों को इतनी भी समझ नहीं है कि कौन उसे धोखा दे रहा है कौन उसका यूज कर रहा है। इसी तरह के बढ़ रहे मामलों पर कोर्ट को कड़ा संज्ञान लेते हुए लिव-इन-रिलेशनशिप के संबंध में अलग से टिप्पणी करनी पड़ी। बावजूद इसके आज भी इस तरह के मामलों में कमी नहीं आई है।
महिलाओं की सुरक्षा और सबल के लिए बने कानूनों का महिलाओं ने ही मजाक बनाना शुरू कर दिया है। किसी से बदला भी लेना है तो छेड़छाड़ का आरोप लगा दो, रेप के प्रयास का आरोप लगा दो। उत्तरप्रदेश के आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने तो अपने आॅफिस के बाहर महिलाओं के लिए अलग नोटिस ही चिपका दिया था। उन पर भी एक महिला ने इसी तरह के झूठे आरोप लगाए थे। इन्हीं सब कारणों से आज के दिन में महिलाओं की ओर रेप और रेप के प्रयास के संबंध में दी गई शिकायतों को काफी संजीदगी से नहीं लिया जाता है। हर एक शिकायतकर्ता को शक की दृष्टि से देखा जाने लगा है। हरियाणा देश का पहला ऐसा राज्य बना है जहां सर्वाधिक महिला थाने खोले गए हैं। यहां के हालिया आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक शिकायत दुष्कर्म और इसके प्रयास के ही आ रहे हैं। यह हैरान करने वाली बात है। हद तो यह है कि कई बार रेप की शिकायत दो-तीन सालों बाद आती है। कोई यह बताने को तैयार नहीं है कि दो साल बाद रेप की याद कैसे आ गई?
इस तरह के झूठे मुकदमों की बढ़ती संख्या का खामियाजा वास्तविक पीड़िता को भी भुगतना पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं के साथ रेप नहीं हो रहे हैं, पर लगातार बढ़ रही झूठी शिकायतों ने सही शिकायतों पर भी ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है। अभी भी वक्त है महिलाओं को इस बात को समझना होगा कि उनके लिए बनाए गए कानून कहीं उनके लिए ही अभिशाप न बन जाएं। अभी तो सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन-रिलेशनशिप और कई साल बाद आने वाले मामलों पर टिप्पणी की है, कहीं ऐसा न हो जाए कि कई कानूनों को समाप्त करने की भी पहल शुरू हो जाए। हालांकि इसकी आवाज तो उठ ही रही है कि सिर्फ शिकायत के आधार पर आरोपी को अरेस्ट न किया जाए।  

चलते-चलते
हरियाणा में दो सीनियर अधिकारियों के बीच तलवारें खिंची हैं। मामला सिर्फ इतना है कि एक लड़की ने आरोप लगाया है कि एक पूर्व आईएएस के लड़के ने उसके साथ लंबे समय तक दुष्कर्म किया है। अब एक पुरुष पुलिस अधिकारी लड़की के पक्ष में खड़ा है, जबकि दूसरी महिला पुलिस अधिकारी लड़के को सही बता रही है। कहा जाता है कि महिलाएं महिलाओं का पक्ष लेती है और पुरुष पुरुषों का। पर हरियाणा में रेप के आरोप को लेकर जो हो रहा है वह अलार्मिंग है। अब भी वक्त है महिलाओं को जरूर मंथन करना चाहिए,  कानून उनके संबल के लिए है या दूसरों को परेशान करने के लिए?

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