Thursday, October 8, 2015

गो हत्या पर महाराजा रणजीत सिंह ने दिखाई थी दिलेरी

 गो-हत्या पर इन तथ्यों को जानकर हैरान हो जाएंगे आप  पार्ट-2

अब तक आपने पढ़ा कैसे भारत में पहली गो हत्या की कहानी सामने आई। कैसे मुस्लिम देशों से आए शासकों ने बलिदान के रूप में भेड़Þ, बकरा और ऊंट के साथ गाय को भी शामिल किया। आज पढ़िए भारतीय इतिहास के उन शासकों के बारे में जिन्होंने गाय को लेकर अपने-अपने निर्णय दिए और नियम बनाए।

मध्यकाल तक भारत में कई मुस्लिम शासकों का प्रवेश हो चुका है। इसी के साथ वहां की सभ्यता और संस्कृति भी भारत में विद्यमान होती गई। सांस्कृतिक आदान प्रदान ने जहां एक तरफ आर्थिक संपन्नता को बढ़ावा दिया वहीं दूसरी तरह कई तरह की विषमताओं को भी सामने लाना शुरू किया। इन्हीं विषमताओं में से एक थी गो-हत्या। चुंकि भारतीय संस्कृति में गाय को पूजनीय माना गया। वह सुख, संपत्ति और समृद्धि के रूप में भारतीय समाज में मौजूद थी, इसीलिए गाय की हत्या पर धीरे-धीरे हिंदु समाज में विरोध के स्वर उत्पन्न होने लगे। इसी दौर में गो-शालाओं की भी नींव पड़ी। ताकि वहां बुढ़ी हो चुकी गायों को रखा जा सके और उनकी सेवा की जा सके। बावजूद इसके गो-हत्या बद्स्तुर जारी रही। मुस्लिम शासकों के साथ-साथ भारत में अंगे्रज शासन की नींव भी पड़ चुकी थी। पश्चिम समाज में गो-मांस बड़े चाव से खाया जाता था। अंग्रेजों ने भारत में भी गो-मांस को खूब बढ़ावा दिया।
इसी दौरान महाराजा रणजीत सिंह का उदय हुआ। शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 1780 में गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। 1801 में रणजीत सिंह ने औपचारिक रूप से महाराजा की पद्वी ग्रहण की। उस वक्त पूरे पंजाब प्रांत में सिखों और अफगानों का मिलाजुला राज था। कुछ क्षेत्र में अफगान शासक काफी मजबूत थे। अफगान शासकों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न के खिलाफ महाराजा रणजीत सिंह ने जोरदार हमला बोला। चंद वर्षों में ही उन्होंने पेशावर समेत पूरे पश्तून क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे उन्होंने जम्मू कश्मीर सहित आनंदपुर तक अपना विस्तार किया। इतने बड़े पंजाब प्रांत में हिंदुओं को एकजूट रखने के लिए उन्होंने सबसे बड़ा फैसला गाय को लेकर किया। दरअसल इस वक्त तक मुस्लिमों और हिंदुओं में गाय को लेकर आपसी मनमुटाव काफी बढ़ने लगा था। इसीलिए महाराजा रणजीत सिंह ने हिंदुओं को एकजूट रखने के लिए गाय का ही सहारा लिया। महाराजा रणजीत सिंह पहले ऐसे शासक हुए जिन्होंने पूरे पंजाब प्रांत में गो-हत्या पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया। रणजीत सिंह ने ‘सिख खालसा सेना’ का गठन किया और इसे असीमित अधिकार दिए। गो-हत्या रोकने में भी खालसा सेना ने अहम भूमिका निभाई।
 
महाराजा रणजीत सिंह का दरबार

अफगानों को दूर तक खदेड़ा
पंजाब में गो-हत्या पर प्रतिबंध ऐसे ही नहीं लग गया था, इसके पीछे भी एक दर्दनाक कहानी इतिहास में दर्ज है। दरअसल इस कहानी की नींव पड़ी 1748 में। अफगानिस्तान के शासक नादिरशाह की मौत के बाद शासक बना अहमद शाह दुर्रानी, जिसे भारतीय इतिहास में अहमद शाह अब्दाली के नाम से भी जाना जाता है। 1748 से 1758 तक उसने कई बार भारत पर हमला किया। सबसे बड़ी सफलता मिली 1757 में, जब अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने आगरा, मथूरा, वृंदावन को निशाना बनाया।  (जान लें यह वह क्षेत्र था जहां सबसे अधिक गाय पालक थे। यदुवंशियों का यह क्षेत्र गो-पालकों के लिए स्वर्ग था। यदुवंश में अंधक, वृष्णि, माधव, यादव आदि वंश चला, जो आज भी गो-पालकों में सर्वोपरि हैं।) 
हरमिंदर साहिब (गोल्डन टेंपल)
 अब्दाली का मुख्य उद्देश्य इन क्षेत्रों से सबसे अधिक गायों को हांककर अपने देश लेकर जाना था। काफी हद तक उसे सफलता भी मिली। पंजाब के रास्ते अपने देश लौटने के क्रम में उसकी सेना में हैजा फैल गया, जिसके कारण वह कमजोर पड़ गया। यह दौर था जब हिंदुओं और मुसलमानों में बैर और दुश्मनी के बीज अंकुरित हो चुके थे। इसी में खाद डालने का काम किया अहमद शाह अब्दाली ने। अफगानिस्तान लौटने के
 क्रम में उसने सिखों से सबसे पवित्र तीर्थ स्थान अमृतसर के हरमंदिर साहिब (गोल्डन टेंपल) में उसने वह हकरत की, जिससे पूरे पंजाब प्रांत में मुस्लिमों के प्रति जबर्दस्त उबाल आया। अहमद शाह अब्दाली ने हजारों गायों को काटकर गोल्डल टेंबल के सरोवर में डाल दिया। इतना ही नहीं उसने हरमंदिर साहिब को भी काफी नुकसान पहुंचाया। उसका उद्देश्य हिंदुओं को नीचा दिखाना और उनकी भावना को ठेस पहुंचाना था, लेकिन हुआ इसका उल्टा। इससे पूरे पंजाब प्रांत में वह उबाल आया, जो हिंदुओं को एकजूट करने में कामयाब रहा। यह रोष काफी समय तक पंजाब प्रांत में रहा, जिसका लाभ महाराजा रणजीत सिंह ने बखूबी उठाया। उन्होंने अफगान शासन के खिलाफ जमकर युद्ध लड़े और पहले शासक बने, जिन्होंने पूरे पंजाब प्रांत में गो-हत्या पर आधिकारिक रूप से पूर्ण प्रतिबंध लगाया। महाराजा रणजीत सिंह का यह कदम भारत में हिंदू एकता की नजीर बन गई। महाराजा रणजीत सिंह ने न केवल हरमंदिर साहिब का दोबारा कायाकल्प किया, बल्कि पूरे मंदिर को सोने की परत से सजा दिया। इसके बाद से ही हरमंदिर साहिब को स्वर्ण मंदिर या गोल्डन टेंपल के नाम से भी जाना जाने लगा।


मुस्लिम शासकों का गौ प्रेम
ऐसा नहीं था कि मुस्लिम शासकों में गाय के प्रति प्रेम नहीं था। दरअसल मुगल काल में लंबे वक्त तक   गो-हत्या पर तमाम तरह के प्रतिबंध थे। मुगलों के पहले जो भी मुस्लिम शासक भारत आए उनका प्रमुख उद्देश्य भारत में लूट-पाट मचाना था। पर मुगलों ने भारत में राज्य स्थापित करने की ठानी। दूसरी तरफ भारतीय हिंदु मुगलों को भी लुटेरे के तौर पर देखते थे। अपनी इस लुटेरे वाली छवि को धोने के लिए भी मुगलों ने गाय का ही सहारा लिया। बाबर (1526 ई.) ने जब मुगल वंश की नींव भारत में रखी तो उसने हिंदुओं का विश्वास पाने के लिए सबसे पहले गो-हत्या को वर्जित कर दिया।
पुत्र हूमायंू  को लिखी वसिहत जिसे नमाद-ए-मज्जजिफी  भी कहा जता है, में बाबर ने लिखा कि
‘‘ भारत में हिंदुओं पर शासन करने के लिए तुम्हें उनके धर्म, आस्था और भगवान का सम्मान करना होगा। यह भारत में मुगल वंश के स्थायित्व के लिए जरूरी है कि तुम हिंदु धर्म में पूजनीय गाय का भी सम्मान करो। हिंदुओं के दिल में बसने के लिए तुम्हें गाय का सम्मान करना ही होगा। तभी भारतीय हिंदु तुम्हें दिल से अपना शासक स्वीकार कर सकेंगे।’’
 हिंदुओं के साथ लंगर खाते मुगल सम्राट अकबर।
 हूमायंू के बाद अकबर, जहांगीर और अहमद शाह ने भी अपने शासन काल के दौरान गाय को सम्मानित स्थान दिया। बहुत हद तक यही कारण रहा कि मुगलों का लंबा राज भारत पर रहा। कालांतर में हिंदुओं ने भी मुस्लिम शासकों को दिल से स्वीकार किया। पर मुगल शासक औरंगजेब के समय एक बार फिर गाय को लेकर उबाल आना शुरू हुआ। औरंगजेब को जब उसके पिता शाहजहां ने गुजरात प्रांत का प्रभार सौंपा तो औरंगजेब ने वहां गो-हत्या पर प्रतिबंध पूरी तरह हटा दिया। उसकी बर्बरता की कहानी यहीं समाप्त नहीं हुई, उसने गुजरात के सारसपुर स्थित चिंतामणी पार्श्वनाथ मंदिर को मस्जिद में तब्दील करवा दिया। और पहली बार पवित्र स्थान पर भी गाय को मारने की इजाजत दे दी। इसका जबर्दस्त विरोध हुआ। पर औरंगजेब के पिता और उस वक्त के हिंदुस्तान के शासक शाहजहां ने औरंगजेब की हरकत को गंभीरता से लेते हुए हिंदुओं को उनका सम्मान वापस दिलाया। मंदिर को फिर से स्थापित किया गया और एक बार फिर से गो-हत्या वर्जित कर दिया गया। शाहजहां और औरंगजेब के बीच गो-हत्या विवाद के बाद तलवारें खींच गई, जो शाहजहां के मौत तक जारी रही।

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कल पढ़िए कैसे औरंगजेब कार्यकाल के दौरान गो-मांस के कारण मुगल शासन का पतन होता गया। और जब अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने एक बार फिर गो हत्या पर प्रतिबंध लगाया तब तक कैसे देर हो चुकी थी। कैसे गो-मांस को लेकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला आंदोलन शुरू हुआ और कैसे बंगाल के हिंदु बंगाली भी गाय का मांस खाने लगे। कैसे ये बंगाली हिंदू आज भी गाय का मांस बड़े चाव से खाते हैं। यह सब बातें अगली किस्त में।