Tuesday, February 23, 2016

हम शर्मिंदा हैं भारतीय सेना के जांबाजों


राजनीति कुछ भी करा सकती है। जान की बाजी लगाकर सरहदों की सुरक्षा कर रहे भारतीय सेना के जवान अपने देश के अंदर ही अपनों को ही नहीं बचा सकी। उनके सामने ही हरियाणा में आरक्षण की आड़ में हिंसा होती रही। महिलाओं और लड़कियों कीइज्जत तार-तार होती रही। घरों और दुकानों को चुन-चुन कर फूंका गया। कैबिनेट मंत्री का घर स्वाहा हो गया। पर भारतीय जवान चुपचाप इंतजार करते रहे। हरियाणा के ही जिंद का ही जांबाज कैप्टन पवन कश्मीर के पंपोर में बाहरी आतंकियों से लोहा लेते शहीद हो गया। पर भारतीय फौज घर के अंदर के ‘आतंकियों’ का आतंक चुपचाप सहती रही।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही भारतीय फौज की गौरवगाथा को बड़े ही आन बान और शान को अपने सीने से लगाए रखते हैं। पर हरियाणा में पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी उसने भारतीय फौज की गौरवशाली परंपरा को शर्मशार कर दिया। एक तरफ जहां घर के आतंकी कर्फ्यू के दौरान सामने से गोलियां और पत्थर चला रहे थे हमारे जांबाज जवानों को हाथों में सफेद बैनर पर इंडियन आर्मी लिखकर शांति मार्च निकालने का आदेश था। हद है इस थोथली राजनीति पर। थू है इस वोट बैंक पर।
अपने होशो हवाश में आज तक मैंने कई बार जातीय हिंसा, दंगा, कर्फ्यू देखा। पर ऐसे दृश्य की कभी कल्पना नहीं की थी। जब भी घर के भीतर संकट आया तो आर्मी को भेजा गया। आर्मी पहुंचने का सीधा मतलब था सबकुछ अब सामान्य हो जाएगा। यह पहली बार था जब वोट की राजनीति ने आर्मी के जवानों को ही संकट में डाल दिया। सामने से गालियां और गोलियों की बरसात के बीच हमारे जवान कुछ नहीं कर सके। क्योंकि हरियाणा में वोट की रोटी सेंकी जा रही थी।

घर के भीतर यानि किसी राज्य के अंदरुनी संकट में अगर आर्मी या पारा मिलिट्री फोर्स को तैनात किया जाता है तो आर्मी की पूरी यूनिट उस क्षेत्र के ड्यूटी मजिस्ट्रेट के अंडर हो जाती है। ड्यूटी मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही आर्मी कोई कदम उठाती है। ड्यूटी मजिस्ट्रेट का सीधा संबंध सरकार से होता है। सरकार जो आदेश ड्यूटी मजिस्ट्रेट को देगी उसी के अनुसार वह काम करेगा। हरियाणा में कर्फ्यू तो लगा दिया गया, आर्मी को शांति बहाली के लिए लगा तो दिया गया, लेकिन कुछ करने का आदेश ही नहीं दिया गया। मतलब हाथ में बंदूक थमा दी गई और ट्रीगर सरकार ने अपने पास रख लिया।
परिणाम सामने है। घर के आतंकी अराजक हो गए। उन्हें पुलिस का भय तो पहले से ही नहीं था। आर्मी के जवानों की खामोशी ने भी इन अराजक तत्वों को खुली छूट दे दी। दुकानों को पहले लूटा गया फिर उसे जलाया गया। सरकारी आंकड़े तो अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अकेले रोहतक में ही करीब पांच सौ दुकानों को पूरी तरह जला दिया गया। घर के आतंकियों ने ट्रैक्टर और ट्रॉली में दुकानों से सामानों की लूट की। सब कुछ खुले आम, पुलिस और सेना के सामने।
हम शर्मिंदा हैं देश के जवानों तुम्हें ऐसे दिन देखने को मिले। आर्मी के मुखिया जनरल दलबीर सिंह सुहाग भी हरियाणा से ही हैं। वह भी उस क्षेत्र से जहां सबसे ज्यादा हिंसा हुई। पर वह भी विवश थे। भारत के रक्षा राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी हरियाणा से हैं, लेकिन वह भी हरियाणा को जलता हुआ देख रहे थे। भारतीय प्रधानमंत्री भी यह सबकुछ जरूर देख रहे होंगे, पर खामोश थे। यह हरियाणा में वोट की राजनीति की विवशता की पराकाष्ठा नहीं तो क्या है। क्या यही दिन देखने के लिए हरियाणावासियों ने पूर्ण बहुमत से मोदी के हाथों में हरियाणा की बागडोर सौंपी थी। विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा को अपना दूसरा घर बताने वाले मोदी अपने दूसरे घर को खामोशी से जलता हुआ देख रहे थे।
हरियाणा की जातीय हिंसा ने हरियाणा वासियों को सबसे अधिक तो शार्मिंदा तो किया ही है, पर सबसे गहरे घाव भारतीय जवानों के दिलों पर दिया है। जिंदगी भर यह टीस उनका पीछा नहीं छोड़ेगी कि सरहदों पर बेखौफ पहरेदारी करने वाले ये वीर घर के आतंकियों के सामने कैसे विवश कर दिए गए।

कुत्तों को घर के अंदर बेहद आत्मीयता से पाला जाता है। लेकिन जब वह हिंसक हो जाए और अपनों को ही काटने के लिए दौड़े तो उस वक्त उन्हें मारने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बच जाता है। उस कुत्ते को यह दुहाई नहीं दी जा सकती है कि अरे तुम तो अपने रोटी खिलाने वाले का ही नुकसान कर रहे हो। तुम तो अपनों को ही काट रहे हो। शर्म करो हरियाणा की सरकार। क्योंकि तुमने कुछ ऐसा ही किया है। घर के लोगों को काटने दौड़े कुत्तों को खुली छूट दे दी कि और काटो।
पता नहीं कितने लोग अपने देश के जवानों से क्षमा मांगेंगे कि हम शर्मिंदा हैं तुम्हें ऐसा विवश देखकर। पर मैं इन जवानों को कोटी कोटी नमन करते हुए क्षमा याचना करता हूं कि तुम्हें ऐसे दिन भी देखने पड़ें। हमें माफ कर देना भारत मां के वीर सपूतों।

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