Monday, June 20, 2016

जी हां, इसी दिन का कब से था इंतजार


भारतीय वायुसेना में तीन महिला फाइटर पायलट के शामिल होने के जश्न में पूरा देश डूबा है। अखबारों और टीवी चैनल्स पर इन मातृ शक्ति की खबरों ने पूरे देश को गौरवांवित होने का जो मौका दिया है वह हमेशा स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। पर बहुत कम लोग जानते होंगे भारतीय सेना के इतिहास में महिला अधिकारियों को अपने सशक्तिकरण और अपने हक के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है। हमारी खुशियों में थोड़ा खलल इस बात से भी पड़ सकता है जब हम इस सच्चाई से रूबरू होंगे कि घोर इस्लामिक देश होने के बावजूद पाकिस्तान की सेना में महिलाएं वर्ष 2006 से ही फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं। आज का यह दिन निश्चित तौर पर नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल का भी सबसे बड़ी उपलब्धि का दिन माना जा सकता है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि जब नब्बे के दशक में पश्चिमी देशों की सेना में महिलाओं का वर्चस्व था और वहां की महिलाएं फाइटर प्लेन पर सवार थीं, तब भारत में महिला अधिकारियों को सेना में शामिल करने की कवायद शुरू हुई थी। यह शुरुआत भी शॉर्ट सर्विस कमिशन के तौर पर थी। यानि सिर्फ पांच साल के लिए उन्हें कमिशन मिलता था, बाद में इसे बढ़ाकर वह 14 साल करवा सकती थीं। 14 साल बाद महिलाओं को भारतीय सेना से अलविदा होना पड़ता था। इतना ही नहीं इन महिला अधिकारियों को सिर्फ नॉन कॉम्बेट रोल के लिए नियुक्त किया जाता था। बताते चलूं कि सेना में कॉम्बेट और नॉन कॉम्बेट दो तरह के काम होते हैं। कॉम्बेट रोल से मतलब युद्ध क्षेत्र में तैनाती से है, जबकि नॉन कॉम्बेट रोल युद्ध क्षेत्र से इतर तमाम काम होता है। यानि ये महिला अधिकारी युद्ध क्षेत्र में सीधे तौर पर शामिल नहीं हो सकती  थीं। भारतीय महिला सैन्य अधिकारियों की नियुक्ति प्रशासन, शिक्षा, सिग्नल्स, इंटेलीजेंस, इंजीनियरिंग, एटीसी आदि में ही होती थी। यहां तक की वायुसेना में शामिल महिला पायलट सिर्फ सामान्य एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर ही उड़ा सकती थीं, लड़ाकू विमान उड़ाने का उन्हें अधिकार नहीं था। जबकि पाकिस्तान जैसे इस्लामिक मुल्क में महिलाएं 2006 से ही फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं।
भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन देने के अलावा कॉम्बेट रोल के लिए भी काफी लंबा विवाद चला है। पहले तो परमानेंट कमिशन देने के लिए महिला अधिकारियों ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। वर्ष 2010 में मेरठ की महिला अधिकारी की अगुआई में वायुसेना में महिला अधिकारियों की परमानेंट कमिशन की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। लंबी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने का आदेश जारी किया। यह भारतीय सेना में महिला सशक्तिकरण की सबसे बड़ी जीत थी। इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नौ-सेना में भी महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन देने की राह खोली। अब भी भारतीय थलेसना की महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। जबकि थलसेना में भी परमानेंट कमिशन पर सहमति बन चुकी है। अभी अमल किया जाना बांकि है।
पहले महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन की लड़ाई लड़नी पड़ी इसके बाद कॉम्बेट रोल के लिए भी संघर्ष का रास्ता अख्तियार करना पड़ा। युद्ध क्षेत्र को सिर्फ पुरुष ही लीड करते रहे हैं, इस सोच के कारण कभी भी भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को कॉम्बेट रोल देने पर सहमति नहीं बन सकी। तर्क यहां तक दिया गया कि युद्ध बंदियों में अगर महिलाएं घिर गई तो उनके साथ बहुत बुरा हो सकता है। पर सलाम भारतीय महिलाओं के उस जज्बे को। इन वीरांगनाओं ने युद्ध क्षेत्र की तमाम कठिन परिस्थितियों को जानते और समझते हुए भी कॉम्बेट रोल के लिए अपनी लड़ाई जारी रखी।
साल 2011 में वह दिन भी इन महिला अधिकारियों ने देखा जब रक्षा मंत्रालय और तीनों सेनाओं ने महिलाओं को कॉम्बेट रोल के लिए साफ मना कर दिया। इससे पहले भी वर्ष 2006 में रक्षा मंत्रालय और तीनों सेनाओं की हाई लेवल कमेटी ने सेना में महिलाओं के कॉम्बेट रोल देने पर पूरी तरह असहमति जता दी दी थी। तीन साल के बाद जब 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आई तो इन महिला अधिकारियों की हक की लड़ाई मुकाम की तरफ अग्रसर हुई। भारतीय प्रधानमंत्री ने पद संभालने के चंद महीनों बाद ही घोषणा कर दी कि 2015 के गणतंत्र दिवस में भारतीय वीरांगनाएं ही भारत की आन बान और शान की अगुवाई करेंगी। पूरे विश्व ने उस वक्त भारत की महिला शक्ति को सलाम किया जब राजपथ पर भारतीय महिलाओं ने भारत की सशस्त्र सेना का नेतृत्व किया। यह परेड इसलिए भी बेहद खास था, क्योंकि विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिकी के राष्टÑपति बराक ओबामा मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद थे।

राजपथ से हुई इस शुरुआत ने भारतीय सेना में मौजूद महिला अधिकारियों को एक ऐसा संबल दिया जिसने नई इबारत लिख दी। पिछले साल ही वायुसेना दिवस पर वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरुप राहा ने भी दो कदम आगे बढ़ते हुए घोषणा कर दी थी कि भारतीय वायुसेना में शामिल महिला पायलट्स को फाइटर स्ट्रीम में शामिल किया जाएगा। भावना कंठ, मोहना सिंह और अवनि चतुर्वेदी ने भारतीय महिलाओं के लिए कुछ ऐसा कर दिखाया है जो अब इतिहास बन चुका है। वह इतिहास जिसे हमेशा गर्व के साथ याद किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भले ही भारतीय रक्षा मंत्रालय ने सराहणीय कदम उठाया है, पर भारत सरकार को अब भी इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा कि दूसरे देशों की अपेक्षा भारतीय सेना में महिला अधिकारियों की संख्या काफी कम है। 13 लाख की भारतीय थल सेना में महिलाओं की संख्या मात्र 1450 है। एयरफोर्स में 1300, जबकि नौ सेना में मात्र 400 महिला अधिकारी मौजूद हैं। ऐसे में सरकार के पास चुनौती इस बात की भी है कि कैसे सेना में महिलाओं को और अधिक सशक्त किया जाए। परमानेंट कमिशन नहीं मिलने के कारण भी भारतीय युवतियों का इस क्षेत्र से बहुत लगाव नहीं था, पर अब यह बंदिश खत्म होने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी सेना में महिलाओं की भुमिका और बढ़गी। फिलहाल भावना, मोहना और अवनि के दम पर यह कहने में कोई हिचक नहीं कि इन्हीं ‘अच्छे दिनों’ का भारतीय महिला सैन्य अधिकारी कब से इंतजार कर रही थीं।


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