Saturday, December 24, 2016

भारतीय बनकर रहने में किन्हें शर्म आती है?


भारत एक ऐसे देश के रूप में विकसित होता जा रहा है जहां सभी रहना तो चाहते हैं, लेकिन यहां के राष्ट्रगान में खड़ा होना कुछ लोगों के लिए अपमान के समान है। उनके स्वतंत्रता का हनन है। फ्रीडम आॅफ एक्सप्रेशन और नैतिकता के अधिकारों पर कुठाराघात के समान है। खुद को शो-कॉल्ड प्रोग्रेसिव अप्रोच और प्रोगे्रसिव सोच की दुआई देने वाले ऐसे लोगों की दलीलें सुनकर कभी-कभी ऐसा महसूस होने लगता है कि इन्हें दूसरे देशों में भारतीय कहलाने में कितनी शर्म महसूस होती होगी। हालांकि ऐसे लोगों को जरूर मंथन करना चाहिए कि आखिर सर्वोच्य न्यायालय क्यों मजबूर हो रही है कि राष्ट्रगान  के समय खड़ा होकर सम्मान देने को कानून का रूप देना पड़ रहा है।
विडंबनाओं से भरे इस देश में इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि सर्वोच्य न्यायालय को तथाकथित कुछ प्रोगेसिव लोगों के लिए यह नियम बनाना पड़ गया है कि राष्ट्रगान के समय आपको सम्मान देना ही पड़ेगा। एक सामान्य भारतीय से अगर पूछा जाए कि क्या आपके मन में राष्ट्रगान के प्रति सम्मान नहीं है? क्या आपको भी कहना पड़ता है कि आप राष्ट्रगान के समय उठिए? तो यकीन मानिए नब्बे प्रतिशत लोगों जवाब ना में होगा। क्योंकि ये वो भारतीय हैं जिन्हें कभी भारतीय बनने में जरा संकोच नहीं है। अपने राष्टÑ, अपने राष्ट्र ध्वज, अपने राष्ट्रगान  के प्रति कौन ऐसा भारतीय होगा जो सम्मान नहीं रखता हो। फिर मंथन करने की जरूरत है कि वो दस प्रतिशत लोग कौन हैं जो सर्वोच्य न्यायालय के फैसले पर टिका टिप्पणी कर रहे हैं। वो कौन लोग हैं जिन्हें इस बात पर आपत्ति है कि राष्ट्रगान के समय उन्हें जबर्दस्ती खड़ा किया जाना मानवाधिकार का उल्लंघन है। वो दस प्रतिशत कौन लोग हैं जो अपनी उल जलूल दलीलों से यह स्थापित करने में लगे हैं कि ‘मोदी सरकार’ और कोर्ट उनका नैतिक अधिकार छीन रही है। ऐसे लोगों को मंथन जरूर करना चाहिए कि कहीं उनके लिए ही तो कोर्ट को ऐसे कड़े कानून तो नहीं बनाने पड़े हैं।
आपके अंदर देशभक्ति कितनी कूट-कूट कर भरी पड़ी है, इसे नापने का कोई पैमाना नहीं है। न ही किसी के दिल के अंदर झांक कर देखा जा सकता है कि आप भारत को कितना प्यार करते हैं। और न ही इससे प्रमाणित होगा कि आप राष्टÑगान के समय खड़े हो गए तो सबसे बड़े राष्टÑभक्त की श्रेणी में आ गए। पर हां इतना जरूर है कि अपने देश के प्रति सम्मान दिखाने के लिए इससे बेहतर भी कुछ नहीं हो सकता। अगर 52 सेंकेंड के लिए आप खड़े हो गए तो न तो आपका नैतिक अधिकार छिन जाएगा और न आपकी टांगें दर्द करने लगेंगी। फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि तथाकथित कुछ लोग अपने राष्ट्रगान के नियम का माखौल उड़ाने में लगे हैं।
 हर देश की तरह भारत का भी अपना झंडा संविधान है। भारतीय तिरंगे की आन बान और शान को बनाए रखने के लिए संविधान ने कुछ नियम कायदे तय कर रखे हैं। हम सभी के लिए इस संविधान का सम्मान करना अनिवार्य है। तो इसका मलतब भी यही होना चाहिए कि जिस वक्त भारत सरकार ने झंडा संविधान बनाया उस वक्त भी वह हमें राष्टÑभक्ति का पाठ पढ़ा रही थी। हां पढ़ा रही थी, क्योंकि हमें उस वक्त इसकी जरूरत थी। एक सामान्य भारतीय अपने झंडे का अपमान सहन नहीं कर सकता था। पर उस वक्त के भी तथाकथित लोग भारतीय तिरंगे को ही अपने विरोध का साधन मान चुके थे। लोगों में टीस उभरती थी कि कानून के आभाव में वे कुछ नहीं कर पाते थे। जब कानून का साथ मिल गया तो कितनी जगह आपने तिरंगे का अपमान देखा। अगर देखा भी तो आपके अंदर इतनी हिम्मत तो जरूर आई कि आप इसकी शिकायत कानूनी रूप में कर सकते हैं।
अब अगर राष्ट्रगान के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें लगाई गई हैं तो इसमें दिक्कत क्यों और किसे है। क्या किसी को भारतीय कहलाने में शर्म है? अगर शर्म है तो फिर आप भारत में क्यों हैं? यहां की नागरिकता, पासपोर्ट, आधार, यहां से मिली शैक्षणिक डिग्री सभी कुछ लौटा दीजिए। अगर ऐसा नहीं कर सकते तो भारतीय बनने और कहलाने में शर्म और गुस्से को छोड़ दीजिए।
 राष्टÑ-ध्वज और राष्टÑगान जैसे प्रतीकों का संबंध किसी भी राष्टÑ की अस्मिता से है। इसीलिए वर्ष 1976 में जब नागरिकों के कर्तव्य से जुड़ा भाग भारतीय संविधान में जोड़ा गया, तो सभी भारतवासियों से इनका सम्मान करने की अपेक्षा उसमें शामिल की गई। यह कोई नया आदेश नहीं है। सर्वोच्य न्यायलय ने अपने ताजा आदेश के जरिए इसका विस्तार किया है। जहां तक सिनेमाघरों में राष्टÑगान बजाने की बात है यह परंपरा काफी पुरानी है। पिछले कुछ सालों से इसे रोक दिया गया था। या यूं कहा जाए कि कुछ सिनेमाघरों ने खुद ही इसे चलाने और न चलाने का निर्णय ले लिया था। कई बार यह विवाद सामने आया कि कुछ लोगों ने इसे नैतिक अधिकार का हनन मानकर राष्टÑगान के समय खड़ा होने से इनकार कर दिया था। अब जबकि इस संबंध में सर्वोच्य न्यायालय ने निर्णय दे दिया है तो इसमें किसी विवाद की संभावना शुन्य हो गई है। सर्वोच्य न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि राष्टÑगान हमारी राष्टÑीय पहचान, राष्टÑीय एकता और संवैधानिक देशभक्ति से जुड़ा है। इस बात से किसे असहमति होगी?
 सर्वोच्य न्यायालय का यह निर्णय भारत की एकता और अखंडता के लिए बेहद जरूरी कदम है। एक आम भारतीय   नागरीक के तौर पर हमारा भी कर्तव्य है कि जिस तरह हम राष्टÑीय ध्वज का अपमान होता नहीं देख सकते वैसे ही अगर कहीं हमें राष्ट्रगान का अपमान दिखे तो कानूनी मदद लें। सर्वोच्य न्यायालय ने राष्टÑगान के संबंध में कई और भी नियम बनाए हैं। पर विडंबना इस बात की है कि तमाम चर्चा सिर्फ सिनेमाघरों तक ही सीमित हो गई है। न्यायालय ने इस बात को भी इंगित किया है कि राष्टÑगान का हम कॉमर्शियल यूज भी नहीं कर सकते हैं। किसी भी तरह की गतिविधि में नाटकीयता लाने के लिए और वैरायटी सॉन्ग के तौर पर कोई व्यक्ति राष्टÑगान का उपयोग नहीं कर सकता है। ऐसे में हर एक भारतीय को जागरूक बनने की जरूरत है, ताकि हमारे राष्ट्रगान का सम्मान सुनिश्चित हो सके। ऐसे लोगों को भी एक्सपोज करने की जरूरत है जो फ्रीडम आॅफ एक्सप्रेशन की आड़ में एक अलग तरह का प्रदूषण फैलाने में इन दिनों लगे हैं।