Friday, December 23, 2016

तैमूर के बहाने : एक है हिटलर

Hitler 

ऐसा नहीं है कि भारतीय इतिहास के सबसे कु्र शासकों में से एक तैमूर लंग के बाद भारत में किसी बच्चे का नाम तैमूर नहीं रखा गया हो। कल ही दिल्ली से राजीव भाई ने बताया कि बिहार में उनके गांव आरा में एक तैमूर है जो कच्छा बनियान बेचता है। अगर भारत के विभिन्न राज्यों खासकर मुस्लिम बहुल वाले राज्यों की वोटर लिस्ट चेक की जाए तो सैकड़ों तैमूर मिल जाएंगे। पर करिना-सैफ ने अपने बेटे का नाम तैमूर क्या रख लिया है हर तरफ बवाल मचा है। इन्हीं सबके बीच व्हॉट्स ऐप पर मैसेज आया कि ..नाम में क्या रखा है निर्भया कांड के दरिंदे के नाम के साथ राम जुड़ा है।
सही बात है नाम में क्या रखा है। अब भला किसी का नाम हिटलर रख देने से कोई हिटलर थोड़े ही हो जाता है। तैमूर के बहाने मुझे हिटलर की याद आ गई। याद आई तो फेसबुक पर उसकी चर्चा कर दी। लीजिए हाजीर है ‘एक है हिटलर’... यह उस ‘विद्रोही’ हिटलर की कहानी है जिसका जन्म पश्चिम चंपारण की उस धरती पर हुआ, जहां से गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था। अद्भूत है गांधी और हिटलर का संयोग।

जब मैंने कच्छा ठीक से पहनना शुरू किया था उसी वक्त हिटलर से मुलाकात हुई थी। कहने का मतलब है वह ‘अंडरवियर फ्रेंड लिस्ट’ में है। मेरे ख्याल से वह 1983-84 का साल था, जब हम लोग मुजफ्फरपुर के मझौलिया रोड स्थित वर्मा कैंपस में शिफ्ट हुए थे। हमारे घर से ठीक बगल वाला घर संस्कृत के टीचर ‘माट साहब’ का था। ‘माट साहब’ मास्टर साहब का अपभ्रंश था। हम लोग उन्हें चाचा जी कहते है। गारंटी के साथ कह सकता हूं कि चाचा जी का ओरिजनल नाम (अचलेश्चर त्रिपाठी) चुनिंदा लोग ही जानते थे। पूरे शहर में वे ‘संस्कृत वाले माट साहब’ के नाम से ही जाने जाते थे। पूरे मुजफ्फरपुर में उनके जैसा संस्कृत पढ़ाने वाला कोई शिक्षक नहीं था। यही कारण था कि हर साल हजारों की संख्या में उनके यहां संस्कृत पढ़ने के लिए स्टूडेंट्स पहुंचते थे।
हम लोग जब उस घर में शिफ्ट हुए थे, तब पहली बार हिटलर नाम सुना था। हम छोटे बच्चे थे, इसलिए इतिहास वाले हिटलर के बारे में पता नहीं था। हां पापा मेरे हिस्ट्री के प्रोफेसर थे तो उन्हें इस बात से जरूर आश्चर्य हुआ था कि इतना छोटा बच्चा हिटलर कैसे हो सकता है। खैर वक्त के साथ-साथ हम थोड़े बड़े हुए। जब स्कूल पहुंचे तो इतिहास वाले हिटलर से सामना हुआ। इतिहास में हिटलर को पढ़ने के बाद जिज्ञासा हुई कि आखिर हमारे बचपन के मित्र का नाम हिटलर कैसे रखा गया।
यह तो वह हिटलर था, जो हमारे साथ गली क्रिकेट खेलते बड़ा हो रहा। यह तो वह हिटलर है जिसे हम जब चाहें तब गले में हाथ डालकर पटक दें। यह तो वह हिटलर है जो क्रिकेट में आउट होते ही अपनी बैट का दम दिखाते घर चल दे। क्योंकि मोहल्ले का एकलौता बैट उसी के पास था। इसी के दम पर वह दो बार आउट होता था। मुथैय्या मुरलीधरन की तरह थ्रो के एक्शन में स्पीन बॉल फेंककर यह हिटलर खुद को अनिल कुंबले से कम नहीं समझता था। यह तो वह हिटलर है जिसे पिताजी की तेज आवाज से सूसू आ जाए। वह हिटलर तानाशाह था, जिसके नाम से दुनियां कांपती थी और यह हिटलर ....
एक किस्सा सुनाता हूं। मुझे अच्छी तरह याद है हमलोग उस वक्त सातवीं क्लास में पढ़ते थे। हिटलर के घर में ही हम कैरम खेल रहे थे। कैरम खेलने में हम इतने मशगुल थे कि हमें पता ही नहीं चल सका था कि चाचा जी स्कूल से घर आ गए हैं और ड्राइंग रूम में विराजमान हैं। चाची ने हिटलर को खाने के लिए बोला और हिटलर का जवाब आया ‘अरे यार’ खा लेंगे। हिटलर का इतना बोलना था कि घर में भूचाल आ गया। चाचा जी अचानक से प्रकट हुए। आव देखा न ताव हिटलर को दोनों हाथों से दबोच कर कैरम पर पटक मारा। बोले तय कर लो कि यह तुम्हारी मां है या यार। कसम खाकर बोलता हूं, आज भी जब किसी को यार बोलता हूं चाचा जी का वह गुस्सा याद आ जाता है। और दावे से कह सकता हूं कि हिटलर भी जब यह यार शब्द बोलता होगा उसे पिता जी की पटखनी याद आती होगी। 
तो यह हिटलर किताबों और इतिहास वाले हिटलर से बिल्कुल जुदा था। फिर भी यह जिज्ञासा बनी रही कि आखिर किसी बच्चे का नाम हिटलर कैसे हो सकता है। चाचा जी से पूछने की तो हमारी हिम्मत थी नहीं। दिन बीतते गए हम लोग हाईस्कूल पहुंच गए। तब शायद पहली बार हमें हिटलर का असली नाम पता चल सका रुद्रेश्वर त्रिपाठी। कहां शिव जी का साक्षात नाम और कहां हिटलर। फिर हिटलर के चाचा जी जो उनके साथ ही रहते थे (अब इस दुनिया में नहीं रहे) उन्होंने इस नाम का खुलासा किया। उन्होंने बताया था कि जब हिटलर छोटा था (हम लोगों से मिलने से पहले की बात) तब बात-बात में गुस्सा हो जाता था। हर बात में रूठना तो जैसे उसकी आदत बन गई थी। एक दिन बातों ही बातों में उन्होंने उसे हिटलर नाम दे दिया। फिर यह नाम रुद्रेश्वर के साथ ऐसा जुड़ा कि आज तक उसके असली नाम से लोग उसे कम और हिटलर के नाम से ज्यादा जानते हैं।

संयोगवश कॉलेज में मैंने इतिहास सब्जेक्ट ले लिया। हिटलर नाम में दिलचस्पी भी बढ़ी। इसी दौरान हिटलर की आत्मकथा मीनकैम्फ भी पढ़ने का मौका मिला। यह आत्मकथा खुद हिटलर ने लिखी थी, मीनकैम्फ का मतलब था ‘मेरा संघर्ष’। इस आत्मकथा को   पढ़ने का बाद जब मेरी मां हिटलर की मां को आवाज देती थीं और कहती थीं कि ...हिटलर की मम्मी सुनती हैं..सच कहता हूं बड़ा मजा आता था। फिर तो हर एक शब्द पर गौर करने लगा।
हिटलर की मम्मी, हिटलर के पापा, हिटलर के भैया, हिटलर के चाचा, हिटलर के दादा, हिटलर की दादी, हिटलर की चाची कहने का मतलब है मुझे हिटलर के पूरे खानदान से मिलने का मौका मिला। कई बार हिटलर के पुस्तैनी घर भी गया। हिटलर मेरी दीदी बॉबी दीदी को ही अपनी बहन मानता था। जब राखी के लिए वह हिटलर को राखी बांधती थी तो हमलोग कहते थे, तुम विश्व इतिहास के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर को राखी बांध रही हो। न जाने ऐसी ही कितनी अनगिनत यादें हिटलर और उसके नाम से जुड़ी हैं।
पर अभी भी सवाल मौजूं है कि आखिर क्या नाम का प्रभाव किसी के स्वभाव पर पड़ता है?
इन सबके बीच हिटलर के दादा जी की चर्चा जरूरी है। महात्मा गांधी के परम भक्त हिटलर के दादा सही में सभी के दादा थे। वक्त के ऐसे पाबंद कि मुर्गा बांग देना भूल जाए, लेकिन दादाजी का सुबह चार बजे उठना जरूरी था। नियम कायदे के जबर्दस्त पक्के। खान पान के उतने ही शौकिन। पान उनकी जान थी। एक शब्द में कहा जाए तो कंप्लीट दादा जी थे। हिटलर की अपने पिताजी के नाम से भले ही सूसू निकल जाए पर हिटलर की उनके दादा जी से जबर्दस्त पटती थी। दूसरी तरफ हिटलर के पिताजी सहित पूरा खानदान दादा जी के नाम से थर थर कांपता था। चाची की स्थिति तो यह थी कि अगर दादा जी ड्राइंग रूम में बैठे हों तो वह उस रूम से भी नहीं गुजरती थीं। वो तो उनके ससुर जी थे, पर मेरी मां भी हिटलर के दादा जी के रौब से कांपती थीं। दादा जी का यह रुतबा कहें या खौफ, ताउम्र उनके सामने किसी ने ऊंची आवाज में बात करने की हिम्मत नहीं दिखाई। पूरे घर के असली तानाशाह वही थे। घर को बांध कर कैसे रखा जा सकता है यह उन्हें पता था। मजाल नहीं था कि उनकी मर्जी के बिना घर का पत्ता भी हिल सके। कई बार दबी जुबान में दादाजी की तानाशाही चर्चा की विषय भी बनी थी।
हिटलर तो एक प्रतीक बन गया। जिद्दीपने का। लड़ाई का। बात बात में गुस्सा होने का। मजाक-मजाक में रखा गया हिटलर नाम रुद्रेश्वर की जिंदगी के साथ जुड़ गया। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी रुद्रेश्वर अपने असली नाम से कभी नहीं जाना गया। यह नाम उसपर इतना हावी हुआ कि बाद में किसी ने नोटिस भी नहीं लिया कि आखिर पश्चिमी चंपारण के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ गोरा चिट्टा बालक हिटलर कैसे बन गया। आज भी सभी उसे हिटलर ही पुकारते हैं। मुझे पता नहीं हिटलर की बेगम प्रियंवदा उसे क्या बुलाती है। पर सोच कर गुदगुदी हो रही है कि जब हिटलर गुस्सा करता होगा तो उसे भी हंसी जरूर आती होगी कि किस ‘हिटलर’ से पाला पड़ गया। बड़ा होकर हिटलर का बेटा भी उसके नाम पर क्या रिएक्ट करेगा, यह देखना और सूनना मजेदार होगा। पर यह सब बचपने की बात है। हिटलर आज एक सफल बैंकर है। अपने शहर मुजफ्फरपुर में ही सरकारी बैंक में ऊंचे पद पर है। उसका एक बेहद सुंदर परिवार है। नाम में कुछ रखा नहीं होता, कर्म प्रधान होता है।
सैफ और करीना से प्यार करने वाला मैं एक फैन बेहद प्यार से रखा गया तैैमूर नाम दिल से स्वीकारता हूं। ऊपर वाले से दुआ है कि तैमूर अपने मां और पिता जी की तरह सफल बने। अंत में उस तैमूर का शुक्रिया जिसके बहाने आपको हिटलर की कहानी सुनने को मिली।

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