Saturday, June 24, 2017

हां, हम सब ‘ट्यूबलाइट’ ही तो हैं


सलमान खान और कबीर खान की जोड़ी को एक बार फिर बधाई, एक बेहतरीन सब्जेक्ट पर बेहद सार्थक फिल्म बनाने के लिए। नाम को सार्थक करते हुए इस फिल्म ने जितना भी कहा है बेहतर कहा है। ‘यकीन’ मानिए एक ट्यूबलाइट के जरिए कबीर खान और सलमान खान ने हमें अपने दिमाग की बत्ती जलाने के लिए विवश कर दिया है। संदर्भ भले ही भारत चीन की सन 62 की लड़ाई का लिया है, लेकिन जो वो कहना चाहते हैं बड़ी ही साफगोई के साथ कह दिया है। ट्यूबलाइट को दो सब्जेक्ट या संदर्भ में देखें।
पहला ::
दिल्ली में नार्थ-ईस्ट के लोगों को जब चिंकी कहकर बुलाया जाता है तो क्या आप सोंच सकते हैं उन्हें कैसा महसूस होता होगा। फिल्म में भी जब एक चीनी महिला अपने बच्चे को बचाने के लिए जब यह कहती है कि भारत से हमें भी उतना ही प्रेम है जितना तुम्हें, लेकिन हमें सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। उसी महिला का बेटा जिसे लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘गू’ कहकर बुलाता है लक्ष्मण से ऊंची आवाज में भारत माता की जय कहता तो यकीन मानिए आज के सारे संदर्भों की परतें अपने आप ही खुल जाती है। क्या बेहतरीन अंदाज में कबीर खान ने एक छोटे से बच्चे से भारत माता की जय कहवाकर वो सबकुछ कह दिया जो वह कहना चाह रहे थे।
हम सच में आज ट््यूबलाइट ही हो चुके हैं। कश्मीर में मस्जीद के सामने डीएसपी को मार दे रहे हैं, दिल्ली से सटे बल्लभगढ़ में एक युवा की हत्या कर दे रहे हैं। दिल्ली में चिंकी कहकर नॉर्थ इस्ट के लोगों को दूसरे देश के होने का बोध करवा रहे हैं। फेसबुक, ट्यूटर और व्हॉट्सएप पर बहकते हुए न जाने क्या क्या कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि न जी हम तो आज एलईडी लाइड हैं। भक्क से जल जाएंगे और खूब रोशनी कर देंगे। भक्क से देशभक्त बन जाएंगे और भक्क से बड़े विचारक। अरे हम ट्यूबलाइट हैं। एलईडी लाइट बनने में वक्त लग गया, लगता है हमें भी एलईडी लाइट बनने में अभी वक्त लगने वाला है।

फिल्म का दूसरा सब्जेक्ट एक कम बुद्धि वाले लक्ष्मण सिंह बिष्ट से जुड़ा है। जो बात तो सभी समझता है, लेकिन थोड़ी देर से समझता है, जिसके कारण उसे सभी ट्यूबलाइट कहते हैं। फिल्म इसी ट्यूबलाइट और उसके छोटे भाई भरत सिंह बिष्ट के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म की कहानी को बहुत दमदार नहीं कहा जा सकता है। दर्शक इसे खुद से कोरिलेट करने में थोड़ा झिझक सकते हैं। फिल्म के लोकेशन बेहद खूबसूरत हैं। यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि हमारे अपने ही देश में इतने खूबसूरत लोकेशन मौजूद हैं फिर भी फिल्मकार विदेशों की तरफ भटकते रहते हैं। हां यह जरूर है कि उत्तराखंड के स्वर्ग कहे जाने वाले कुमांऊ को फिल्म में पूरी तरह से इग्नोर किया गया है। सिर्फ कुमांऊ के नाम का इस्तेमाल कर फिल्म को देश की सबसे पुरानी सैन्य यूनिट कुमांऊ रेजिमेंट से जोड़ा गया है। थोड़ी बहुत बोली जिसमें ‘भूला’ (स्थानीय भाषा में भाई) शब्द को अच्छे अंदाज से प्रस्तुत किया गया है।
ओवरआॅल फिल्म एक अच्छी पारिवारिक फिल्म है। पारिवारिक इसलिए कि हर उम्र के लोग अपने बड़ों-छोटों-हमउम्र आदि..आदि के साथ देख सकते हैं। कहीं आपको शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप अगर थोड़ा भी इमोशनल हैं तो रुमाल जरूर साथ लेकर जाएं, क्योंकि फिल्म के कई हास्य दृश्यों में भी आपकी आंखें नम हो जाएंगी। अक्सर फिल्मों में बड़े भाई को छोटे के लिए लड़ते हुए आप देखते आए होंगे। पर जब ट्यूबलाइट यानि लक्ष्मण बिष्ट के लिए उसका छोटा भाई भरत सिंह बिष्ट स्कुल वाली थर्मस से क्लसमेट का मूंह सूजा देता है तब भी आप की आंखें नम हो जाएंगी। फिल्म के गाने तो आप सुन ही चुके हैं, कुछ बताने की जरूरत नहीं है। हां एक गाना सबसे बेहतरीन है जो आप थियेटर में ही सुन सकेंगे।
कुल मिलाकर आप यह फिल्म जरूर देखें। हर एंगल से महसूस करें। हां, अपने अंदर के भी ट्यूबलाइट को देखने का प्रयास करें।
और अंत में .. नाच मेरी जान हो के मगन तूं, छोड़ के सारे किंतु परंतु।


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