Tuesday, April 10, 2018

ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ चलते चलते

एक दूसरे के सुख दुख के साथी बने थे। अपनों के बीच दोस्ती का नया नजरिया मिला था। पुराने बिछड़े दोस्त मिलने लगे थे। कितना अच्छा लगता था जब वर्षों पुराना कोई दोस्त इंटरनेट पर मिल जा रहा था। इसी रोमांचकारी अनुभव का नाम था सोशल मीडिया। आप कहेंगे कि सोशल मीडिया को मैं ‘था’ से क्यों संबोधित कर रहा हूं। भला क्यों न करूं। आप मंथन करके देखिए। इसमें ‘है’ नामक कौन सा रोमांच बचा है। जिन चीजों के लिए सोशल मीडिया ने इतनी जल्दी लोकप्रियता पाई क्या आज वह रोमांच, वह प्यार, वह अपनापन, वह बेहतरीन अनुभव अब है? क्या आपको नहीं लगता वह सारी चीजें कहीं खो सी गई हैं। अब सोशल मीडिया सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे को नीचा दिखाने, राजनीति का अखाड़ा और नफरत फैलाने का जरिया नहीं बन गया है।
अभी कुछ दिन पहले ही एसटी-एसटी एक्ट के संबंध में जिस विरोध का ज्वार उत्पन्न हुआ। उस ज्वार ने किस तरह पूरे भारत को प्रभावित किया। वह अपने आप में सोचनीय है। इंटेलिजेंस ब्यूरो ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यह विरोध, हंगामा, प्रदर्शन, आगजनी सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया द्वारा फैलाए गए एक अफवाह की बदौलत थी। हंगामा और आगजनी कर रहे हजारों युवाओं को यह पता ही नहीं था कि केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट एससी एसटी एक्ट को लेकर क्या बदलाव कर रही है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह था कि अधिकतर इस बात से अंजान थे कि उन्हें आरक्षण के लिए लड़ाई लड़नी है या फिर किसी अन्य कारण से वे सड़कों पर हैं। यह कैसी विडंबना है। यह कैसा दौर है कि हम सिर्फ एक वायरल मैसेज की बदौलत इतने व्यथित हो गए कि पूरा भारत भयग्रस्त हो गया। आईबी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि सिर्फ एक व्यक्ति के दिमागी फितुर ने भारत बंद का आह्वान किया। सोशल मीडिया के जरिए भारत बंद के इस दिमागी फितुर का मैसेज इतना वायरल हुआ कि पूरा भारत इसकी चपेट में आ गया।
इस घटना को ऐतिहासिक कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। क्योंकि आज से पहले कभी इस तरह भारत बंद का आह्वान नहीं हुआ था। भारत बंद इससे पहले भी हुआ है। पर उसके पीछे कोई राजनीतिक दल होता था। दलों की जिम्मेदारी होती थी। पर इस बार बंद के पीछे सोशल मीडिया थी। विभिन्न राजनीति दलों के नेताओं ने भी भारत बंद के मैसेज को वायरल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वोट की राजनीति ने इन राजनीतिक दलों को इतना अंधा बना दिया है कि उनकी सोचने समझने की शक्ति भी कम हो गई है। भारत बंद के पीछे किसी राजनीति दल का सपोर्ट न होने के बावजूद बंद के दौरान जो कुछ भी हुआ उससे आप सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा लगा सकते हैं।
भारत बंद के चंद दिनों बाद ही देवभूमि उत्तराखंड का सुदूर पर्वतीय इलाका भी एक सोशल मीडिया के अफवाह से जल उठा। बेहद शांत और सौम्य माने जाने वाले अगस्तयमुनी का पूरा इलाका हिंसा और आगजनी में जल गया। सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हुआ कि किसी समूदाय विशेष के युवकों ने दूसरे समूदाय विशेष की लड़की का रेप किया। न केवल रेप किया है बल्कि उसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी डाल दिया है। यह मैसेज इतना तेजी से वायरल हुआ कि दूसरे ही दिन पूरा अगस्तयमुनी संप्रदायिक हिंसा की आग में जल उठा। वर्षों से कायम भाईचारा, ईद और होली की मिठाई की मिठास खटास में बदल गई। एक दूसरे के सुख-दुख के साथी बने लोग एक दूसरे के जान के प्यासे बन गए।
इन दो उदाहरणों से आप समझ गए होंगे क्यों मैंने ऊपर सोशल मीडिया को ‘था’ से संबोधित किया है। आज सोशल मीडिया अपने सभी उद्देश्यों को दरकिनार कर चुका है। तमाम तरह की विसंगतियों ने सोशल मीडिया को इतना प्रदूषित कर दिया है कि आपके सामने सच क्या और झूठ क्या है इसे समझने की शक्ति छीन ली गई है। आने वाले दिनों में यह प्रदूषण और अधिक फैलता ही जाएगा। क्योंकि टेक्नोलॉजी के इस युग में इतने तरह के प्रयोग हो रहे हैं कि आपके सामने तमाम चुनौतियां का पहाड़ खड़ा होगा।
मंथन करने का वक्त है कि हम सोशल मीडिया पर आ रहे तमाम मैसेज को किस रूप में और किस संदर्भ में लें। किस मैसेज को सिरियसली लें, किस मैसेज को फॉरवर्ड करें और किसे डिलीट करें। तमाम सोशल मीडिया गैंग सिर्फ इसलिए ही बैठे हैं और इस बात पर काम कर रहे हैं कि कैसे समाज के लोगों का आपसी भाईचारा समाप्त कर दिया जाए। हो सकता है यह वोट की राजनीति का भी एक हिस्सा हो। पर हमें संभलना है। जब हमने ही सोशल मीडिया को आत्मसात किया है तो यह हमारा ही फर्ज है कि हम इसके प्रदूषण से खुद को कैसे बचाएं और दूसरों को भी बचाएं। हमारी आने वाली पीढ़ी क्या हमें इस बात के लिए कभी माफ कर पाएगी कि हम सोसाइटी के रूप में एक अनसोशल मीडिया उनके लिए छोड़ कर जाएंगे। जहां सिर्फ और सिर्फ हिंसा है, नफरत है, अफवाह है और कुछ नहीं।
अब भी वक्त है हमें ही संभलना होगा। 
संभलने के लिए मंथन जरूर करें। खासकर ऐसे लोगों को एक्सपोज करने की जरूरत है जो इस तरह सोशल मीडिया को यूज कर रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिए हमारा आपसी भाईचारा खत्म कर रहे हैं। इसी सोशल मीडिया में हजारों उदाहरण आपको मिल जाएंगे जिनके जरिए जरूरतमंदों को मदद पहुंचाई गई है। सोशल मीडिया के जरिए ही अपनों को मिलने और उनकी खुशियों को भी हमने देखा है। छिपी हुई प्रतिभाओं को भी हमने इसी सोशल मीडिया के जरिए अंतराष्ट्रीय फलक पर चमकते हुए देखा है। हजारों पॉजीटिव मैसेज भी इसी सोशल मीडिया में आपको मिल जाएंगे। फिर क्यों न हम एक छोटा सा प्रण लें कि नफरतों से भरे, राजनीतिक स्वार्थ से भरे, हिंसा से भरे मैसेज फॉरवर्ड करने की जगह पॉजीटिव मैसेज पढ़ें और फॉरवार्ड करें। यकीन मानिए जिस दिन आप उल जुलूल और बिना सिर पैर के मैसेज फॉरवार्ड करना छोड़ देंगे सोशल मीडिया फिर से अपने पुराने दौर में लौट आएगा। मंथन करिए ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ चलते चलते..।

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