Friday, September 4, 2015

साहब! सड़क पर कलाम का नाम बदनाम ना करो

बहुत पहले गैंगटोक गया था। वहां का सबसे मुख्य मार्ग, जहां लग्जरी होटल्स की बहार है, सबसे अधिक इटिंग ज्वाइंट्स हैं, उसका नाम महात्मा गांधी मार्ग था। पर यह नाम सिर्फ कागजों और वहां लगे एक शिलापट पर ही दिखता था। पूरे गैंगटोक में किसी से भी पूछ लें कि महात्मा गांधी मार्ग जाना है, वहां जाने का रास्ता बता दें। सब यही पूछेंगे महात्मा गांधी मार्ग? यह कहां है? पर जैसे ही आप पूछेंगे माल रोड जाना है, लोग वहां गलियों से पहुंचने तक का आसान रास्ता बता देंगे। बात सिर्फ इतनी है कि क्या हम किसी सड़क का नाम किसी महापुरुष के नाम पर रखकर उन्हें सम्मान के उच्चतम शिखर पर पहुंचा देते हैं या हमें मंथन करने की जरूरत है कि सड़कों के नाम पर राजनीति न कर उन महापुरुषों के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के प्रति कृतसंकल्पता दिखानी होगी। साथ ही, क्या हमें भारतीय ऐतिहासिकता से जबर्दस्ती छेड़छाड़ करनी चाहिए?
दिल्ली के सबसे ऐतिहासिक औरंगजेब मार्ग का नाम परिवर्तित कर डॉ. अब्दुल कमाल के नाम पर कर दिया गया है। यह फैसला दिल्ली की आप सरकार और उसके अंडर काम करने वाली एनडीएमसी (नई दिल्ली नगर निगम पालिका परिषद) ने इतनी जल्दबाजी में लिया जिसका कोई अर्थ समझ से परे है। स्पष्ट कर दूं कि भाजपा सांसद महेश गिरि, मीनाक्षी लेखी व आप के ट्रेड विंग सचिव ने एनडीएमसी से गत 28 अगस्त को नाम बदलने की सिफारिश की थी और एक सप्ताह के अंदर-अंदर यह हो भी गया। लुटियंस दिल्ली के तकरीबन सारे मार्ग या तो मध्यकालीन मुगल शासकों के नाम पर हैं, या उनके नाम पर हैं जिनके नाम मुगलकालीन शासकों ने रखे थे। ऐतिहासिक तथ्य है कि इन्हीं नामों में सम्राट अशोक के नाम पर भी मार्ग स्थापित है और पृथ्वीराज चौहान के नाम पर भी मार्ग है। बात सिर्फ हिंदु या मुसलमान शासकों या राजाओं की नहीं है, बात यह है कि हम क्यों ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने पर तुले हैं। क्या यह इतना जरूरी था कि एक मुगलकालीन बादशाह के नाम पर जिस सड़क का नाम था वहां एक सर्वकालिक महान व्यक्ति का नाम चिपकाकर उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त कर दें।
मुगल शासक औरंगजेब के चरित्र, उसकी राजकाज की क्षमता के आधार पर लंबी बहस हो सकती है। डॉ. कलाम के नाम का समर्थन करने वाले औरंगजेब को एक निरंकुश शासक तक बताने में नहीं चूक रहे हैं, पर क्या इस ऐतिहासिक तथ्य से भी इनकार किया जा सकता है कि वह हमारे देश का ही शासक था? क्या हम भविष्य में इतिहास के किताबों से भी औरंगजेब का नाम हटाने की सिफारिश कर सकते हैं? क्या इतिहास के प्रश्नपत्रों और यूपीएससी की परीक्षाओं में भी औरंगजेब के नाम से प्रश्न पूछने पर मनाही की घोषणा की जा सकती है? अगर ऐसा नहीं है तो दिल्ली सरकार को इसका जवाब भी देना चाहिए कि औरंगजेब मार्ग का नाम परिवर्तित करने के पीछे क्या और कैसा तर्क था।
इस वक्त सीरिया में आईएस के लड़ाकू एकसूत्रीय काम में लगे हैं, वह काम है वहां मौजूद सैकड़ों साल पूराने ऐतिहासिक इमारतों का ध्वस्त करने का। विध्वंसक बारूद लगाकर ऐतिहासिक इमारतों और खंडहरों को जमींदोज किया जा रहा है। आईएस लड़ाकों की मंशा को आसानी से समझा जा सकता है कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। तो क्या हमारे देश में भी उसी प्रवृति की एक झलक मिली है। अभी एक मार्ग का नाम परिवर्तित किया गया है, उसके बाद क्या लाल किले और आगरे के किले और ताजमहल की भी बारी आएगी?
सरकार के कदम की सराहना करने वाले अब इस बात की भी मांग करने लगे हैं कि औरंगजेब रोड की तरह ही हुमायंू रोड, अकबर रोड आदि का नाम भी बदल कर नए युग निर्माताओं के नाम पर रखना चाहिए। हो सकता है आने वाले दिनों में ऐसा कर भी दिया जाए। पर इस पर भी मंथन जरूर किया जाना चाहिए कि इन्हीं मुगलशासकों द्वारा लालकिला भी बनाया गया था। इसी लालकिले की प्राचीर से हर साल स्वतंत्रता दिवस की हुंकार भरी जाती है। यही प्राचीर भारत की भव्यता और विराटता के प्रतीक के रूप में पूरे विश्व में नुमांया होती है।
भारतीय स्वतंत्रता में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों, नए भारत का निर्माण करने वालों युगपुरुषों और बड़े राजनेताओं के नाम पर सड़कों का नामकरण करने में कोई बुराई नहीं है। पर यह भी मंथन करने वाली बात है कि ऐतिहासिक तथ्यों या नामों से छेड़छाड़ कर हम कौन सा संदेश देना चाहते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि डॉ. कलाम का सम्मान हर एक भारतीय दिल से करता है, पर क्या हम ऐतिहासिक नामों को बदलकर उनका नाम वहां चस्पा कर डॉ. कलाम के आदर्शों का उचित सम्मान कर रहे हैं। क्या हम औरंगजेब की तुलना डॉ. कलाम से कर रहे हैं। इसे भारत सरकार के राणनीतिकारों की ऐतिहासिक भूल के रूप में देखा जाना चाहिए।
हर साल दिल्ली में सैकड़ों नए मार्ग बनाए जाते हैं। दिल्ली और नई दिल्ली में लगातार विकास हो रहा है। सैकड़ों फ्लाईओवर और नए मार्ग इस तरह बन रहे हैं कि दिल्ली के लोग भी हर तीसरे महीने कन्फ्यूज रहते हैं कि किस रास्ते से जाना है। क्या हम ऐतिहासिकता से छेड़छाड़ किए बगैर इन्हीं मार्गों में से किसी एक का नाम डॉ. कलाम के नाम पर नहीं रख सकते थे? क्या यह जरूरी था कि एक ऐतिहासिक मार्ग   के नाम के साथ ही छेड़छाड़ कर हम डॉ. कलाम के प्रति सच्ची श्रद्धा दिखा सकते हैं? अब तो जो होना था वह हो गया। पर मंथन जरूर किया जाना चाहिए कि भविष्य में हम इस ऐतिहासिक भूल को नहीं दोहराएं, क्योंकि बहुत जोर-शोर से मांग हो रही है कि तमाम अन्य वैज्ञानिकों, शहीदों और बड़े हिंदू राजनेताओं के नाम पर सड़कों का नामकरण किया जाए। कहीं ऐसा न हो जाए कि हम भी सड़कों के नाम के खेल में आईएस लड़ाकों जैसा ही कदम नहीं उठाते रहें। ऐतिहासिकता को नष्ट करते रहें।


चलते-चलते
नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) द्वारा नाम बदलने के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने एनडीएमसी से पूछा है कि उसने किस आधार पर औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे कलाम रोड किया है? सुनवाई 22 सितंबर को होनी है, पर एनडीएमसी ने तर्क दिया है कि इससे पहले भी वह कई सड़कों का नाम बदल चुका है। एनडीएमसी द्वारा दी गई जानकारी पर आप भी गौर फरमाएं...
1.हुमायुं लेन को बरदुकिल लेन
2.स्टिंग रोड को कृष्णा मेनन मार्ग
3.वेलेसले रोड को जाकिर हुसैन मार्ग
3.कनाट सर्कस को इंदिरा चौक
4.कनाट प्लेस को राजीव चौक
5.कनिंग लेन को माधव राव सिंधिया लेन
6.विलिंगटन क्रिसेंड रोड को मदर टेरेसा रोड

Saturday, August 22, 2015

लात का भूत बात से नहीं मानता


बहुत पुरानी कहावत है कि लात का भूत बात से नहीं मानता है। कुछ ऐसा ही है पाकिस्तान और भारत के बीच औपचारिक संवादों का रिश्ता। एक साल पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था। जब दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय वार्ता को रद कर दिया गया था, क्योंकि पाक ने हुर्रियत नेताओं को न्योता देकर पैंतरेबाजी की थी। पर अब देश की जनता बीजेपी सरकार से यह सवाल पूछ रही है कि आखिर एक साल में ऐसा क्या बदलाव आ गया कि सरकार पाकिस्तान के साथ आमने-सामने बैठकर बातचीत करने पर राजी हो गई है। अगर 23-24 अगस्त को नई दिल्ली में दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बैठक होती है तो निश्चित तौर पर कई प्रमुख मुद्दों को उठाया जाएगा। पर मंथन का वक्त है कि क्या इस तरह की बैठक से कोई रिजल्ट भी निकल सकेगा। बताने की जरूरत नहीं कि इस तरह कितनी और बैठकों को दौर पहले भी चल चुका है, रिजल्ट आज तक सामने नहीं आ सका है।
दरअसल पाकिस्तान ने हुर्रियत नेताओं को न्योता भेजकर शतरंज की एक ऐसी चाल चली है जिसमें भारत सरकार उलझ कर रह गई है। पिछले दिनों जब विदेशी धरती पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई थी उसी समय इस बात पर मुहर लग गई थी कि दोनों देशों के सुरक्षा सलाहाकार आपस में बातचीत करेंगे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह संदेश साफ तौर पर गया कि दोनों देश इस दिशा में सकारात्मक रवैया अपना रहे हैं। इसी बीच पाकिस्तान ने कई पैंतरे चले। पहले जम्मू-कश्मीर की अंतराष्टÑीय सीमा पर जमकर सीजफायर का उल्लंघन किया। सीमावर्ती गांवों में सिविलियंस पर गोलियां दागीं। आतंकियों को सीमापार भेजा। गुरदासपुर में हमला हुआ। बीएसएफ के काफिले को निशाना बनाया गया। सभी का एकमात्र उद्देश्य था कि किसी तरह भारत एक बार फिर इस वार्ता को अपने स्तर पर रद कर दे। ताकि पाकिस्तान अंतरराष्टÑीय स्तर पर यह स्थापित करने में कामयाब रहे कि भारत बातचीत करना ही नहीं चाहता है।
मोदी सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। अगर वह बातचीत अपने स्तर पर रद कर देती है तो पाकिस्तान अपने प्रोपगेंडा में कामयाब हो जाएगा। अगर बातचीत होती है तो पूरा देश सवाल कर रहा है कि मोदी सरकार इतना क्यों झुक रही है। चुनाव के पहले जो नरेंद्र मोदी पाकिस्तान को र्इंट का जवाब पत्थर से देने की बात करते थे आज वे इतने खामोश क्यों हैं। पर सच्चाई यही है कि पाकिस्तान कभी इस तरह की बातचीत होेने ही नहीं देना चाहता है। पूरे विश्व को यह बात पता है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार होने के बावजूद वहां सेना का सरकार में कितना प्रत्यक्ष हस्तक्षेप है। साथ ही आईएसआई की भूमिका कितनी गहरी है इसे भी बताने की जरूरत नहीं। ऐसे में सेना और आईएसआई यह बात आसानी से कैसे स्वीकार कर लेगी कि इस तरह की बैठक में आतंकवाद का मुद्दा टारगेट नहीं होगा। हाल ही में जिंदा पकड़ाए आतंकी नावेद ने जितने खुलासे किए हैं वह यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि किस तरह पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई भारत को नुकसान पहुंचाने का प्रयास कर रही है। ऐसे में एनएसए स्तर पर होने वाली बैठक में यह मुद्दा जरूर उठेगा। भारत की तरफ से तो एक लंबा चौड़ा डॉजियर भी तैयार कराया जा रहा है ताकि पाकिस्तान को सौंपा जा सके। ऐसे में पाकिस्तान द्वारा भारत के अलगाववादी नेताओं को न्योता देने पर आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।
भारत ने इससे पहले पिछले साल जुलाई में होने वाली बैठक में अपने विदेश सचिव को इसीलिए नहीं भेजा था क्योंकि उस वक्त भी पाकिस्तान ने अलगवादी नेताओं को न्योता भेजा था। पाकिस्तान ने अब इसी फिराक में अंतिम पैंतरा चला है। ऐसे में मंथन जरूर करना चाहिए कि ऐसी बैठकों का क्या नतीजा निकलेगा। पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार में सबसे गहरी पैठ रखने वाली सेना और आईएसआई कभी भी भारत के साथ दोस्ताना संबंधों को तवज्जो नहीं देगी, क्योंकि इससे उनके अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो जाता है। भारत विरोधी अभियान और विद्वेश के आधार पर ही पाकिस्तानी फौज मुस्लिम राष्टÑ को एकजुट रखती है। खुद पाकिस्तान आतंक से लंबे समय से जूझ रहा है, पर इस बात को पूरा विश्व जानता है कि आतंक का सबसे बड़ा गढ़ भी पाकिस्तान ही है।
भारत ने बेशक एक अच्छी पहल की है और पाकिस्तान के तमाम पैंतरेबाजी के बावजूद अब तक बातचीत रद नहीं की है। पर यह भी समझने की जरूरत है कि लातों के भूत बातों से कभी नहीं मानते। हम युद्ध के जरिए कोई हल भले ही नहीं निकाल सकते, लेकिन पाकिस्तान को काबू में रखने के लिए उस पर कड़ा अंतरराष्टÑीय  दबाव बनाना होगा। भारत को मजबूत तथ्यों और तर्कों के आधार पर पाकिस्तान को बेनकाब करना होगा। अंतरराष्टÑीय स्तर पर पाकिस्तानी झूठ को मजबूती से रखना होगा, तभी पाकिस्तान को काबू में रखा जा सकता है। पाकिस्तान को बेशक सैन्य कार्रवाई से नहीं, पर आक्रामक कूटनीति के जरिए तो दबाया ही जा सकता है। कई मौकों पर भारत ने ऐसा किया भी है। भारत ने फिलहाल पाकिस्तान के राष्टÑीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज के साथ होने वाली वार्ता को रद नहीं किया है। यह वार्ता रद भी नहीं होनी चाहिए, ताकि विश्व में संदेश साफ जाए कि   भारत हर तरफ से शांति चाहता है। पर साथ ही इस बात की भी तैयारी करनी चाहिए कि पाकिस्तान पर अंतरराष्टÑीय दबाव कैसे बनाया जाए।

चलते-चलते
पाकिस्तान की तरफ से हुर्रियत नेताओं को न्योता भेजने के बाद भारत ने जिस तरह से अलगाववादी नेताओं को चंद घंटों के लिए नजरबंद कर दिया यह कई मायनों में महत्वपूर्ण है। अब समय आ गया है कि ऐसे नेताओं को किसी भी तरह से छूट न मिले। बहुत हो चुकी है इनकी मनमानी। अब समय आ गया है कि भारत सरकार कड़े कदम उठाए।

Saturday, August 8, 2015

कहा भी न जाए, रहा भी न जाए


वेंसन बोर्न फॉर ब्लू कोट नामक शोध संस्थान ने हाल ही अपनी रिपोर्ट पेश की है। संस्था ने 11 देशों में एक सर्वे कराया। इसमें पाया कि साइबर सुरक्षा संबंधी खतरों के बावजूद इन 11 देशों में सबसे अधिक पोर्न साइट देखी जाती है। इस मामले में पाकिस्तान जहां सबसे टॉप पर है, वहीं भारत का नंबर छठा है। चीन में 19 फीसदी कर्मचारी आॅफिस के अंदर सबसे अधिक पोर्न देखते हैं, वहीं ब्रिटेन इस मामले में तीसरे नंबर पर है। यह हाल तब है जब चीन की सरकार ने सोशल मीडिया और पोर्न साइट्स पर जबर्दस्त लगाम लगा रखा है। पोर्न को लेकर इतना जबर्दस्त उफान क्यों है? यह मंथन इस वक्त इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत सरकार ने पहले 857 पोर्न साइट्स पर पाबंदी लगाई, फिर 72 घंटे के अंदर करीब 700 साइट्स को ओपन कर दिया। मंथन इस बात पर भी होना चाहिए कि क्या पोर्न साइट्स को बैन कर देना ही एक मात्र सॉल्युशन है? या कुछ और भी उपाय किए जा सकते हैं जिससे भारत में लगातार बढ़ रही यौन हिंसाओं पर लगाम लगाई जा सके।
दरअसल पोर्नोग्राफी के विषय में काफी पुरानी फ्रेज है कि ‘पोनोग्राफी इज द बीस्ट, व्हिच थ्राइव आॅन द रिप्रेशन’। कहने का अर्थ है पोनोग्राफी एक ऐसे राक्षस के समान है, जिसे जितना दबाया जाएगा, वह उतना ही ताकतवर बन जाएगा। आप कितने वेबसाइट्स बंद कर देंगे, एक बंद करेंगे दस और खुल जाएंगे। भारत सरकार ने एक अच्छे उद्देश्य के साथ एक साथ इतने वेबसाइट्स को बंद करने का दु:साहस दिखाया। दु:साहस इसलिए क्योंकि पिछले महीने ही आठ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पोर्न साइट्स संबंधी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि हमारा लोकतंत्र व्यक्तिगत आजादी का मौलिक अधिकार देता है। इस वजह से इस पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। हालांकि, इसका एक दूसरा पहलू यह भी था कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना था कि यह एक गंभीर मसला है, क्योंकि दिनों-दिन भारत में यौन हिंसा का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। भारत में पोर्नोग्राफी की स्वतंत्रता ने अंडर एज बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। बच्चों से संबंधी पोर्नोग्राफी भी बढ़ती जा रही है। फिलहाल सरकार ने भारी विरोध के बाद अधिकांश साइट्स से प्रतिबंध तो हटा दिया है पर यह प्रतिबंध उन साइट्स पर लागू रहेगा जो चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट का प्रकाशन करती हैं।
बात सिर्फ इतनी ही नहीं है कि कौन सी साइट्स बंद की जाए और कौन सी नहीं, बात इससे भी बड़ी है। एक तरफ जहां भारतीय लोकतंत्र द्वारा प्रत्येक भारतीय को दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रश्न है, तो दूसरी तरफ समाज में जहर की तरह फैल चुके विकृत मानसिकता का प्रश्न। भारत में सबसे पहले मोबाइल क्रांति और उसके बाद हाल के वर्षों में आए इंटरनेट क्रांति ने इस विकृत हो चुकी मानसिकता को बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है। पहले छिप-छिप कर देखी जाने वाली पोर्न फिल्में अब एक क्लिक पर किसी भी साधारण मोबाइल पर भी उपलब्ध हैं। करीब चालीस हजार वेबसाइट्स बिना किसी तरह की चार्ज किए आसानी से पोर्न कंटेंट आपको उपलब्ध कराती हैं। यही कारण है कि एक स्कूल बस का ड्राइवर अपने खाली समय में अपने मोबाइल पर पोर्न फिल्में देखने के बाद जब छोटी-छोटी बच्चियों को बस में बैठाता है तो उसकी नजरों में हैवानियत नजर आती है। इस वक्त भारत का शायद ही कोई ऐसा शहर बचा होगा जहां छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा नहीं हुई होगी। जिस दिन पोर्न साइट्स के बैन पर बहस हो रही थी, उसी दिन बंगलुरू में एक स्कूल बस के ड्राइवर ने स्कूल गोइंग मासूम बच्ची के साथ जो किया वह समाज को आइना दिखाने के लिए काफी है। हम यह भी क्यों भूल जाते हैं कि इसी तरह के कंटेंट ने बच्चों को समय से पहले ही जवान करना शुरू कर दिया है। नाबालिग बच्चों का सेक्सुअल क्राइम का ग्राफ भी दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। वे इसलिए इस तरह के क्राइम में इनवॉल्व हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें आसानी से अपने मोबाइल पर पोर्न सामग्री मिल जाती है। इसके बाद उनमें अच्छे और बुरे की समझ खत्म हो जाती है। अपनी शरीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वे कुछ ऐसा कदम उठा लेते हैं, जो बहुत ही घातक होता है।
दरअसल, पोर्नोग्राफी के हिमायती अपनी बात तो करते हैं पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी को नजरअंदाज कर देते हैं। भारत में डिजिटल पोर्नोग्राफी का बाजार करीब सात सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर रहा है। कई वेबसाइट्स इस माध्यम से कमाई के साधन भी उपलब्ध कराती हैं। प्रोवोक करती हैं कि आप कंटेंट बेचें। अब इन हिमायतियों को कौन समझाए कि यह कंटेंट आपके और हमारे बीच से ही जेनरेट किया जाता है। चाहे वह होटल, चेंजिंग रूम, लेडीज बाथरूम में फिट किया गया गुप्त कैमरा हो या नशीला पदार्थ खिलाकर अपनों से धोखा। आप अपनी वयस्कता का हवाला देकर पोर्न स्वच्छंदता की मांग तो कर सकते हैं पर एक जिम्मेदार व्यक्ति के तौर पर आपको चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बैन करने के लिए भी आवाज उठानी होगी। पर अफसोस इस बात का है कि पोर्नोग्राफी के हिमायती इस तरफ एक बार भी अपनी आवाज नहीं उठाते।
अच्छा हुआ कि भारत सरकार ने पोर्न साइट्स बंद करने की शुरुआत कर एक नए बहस को जन्म दिया है। इस पर और अधिक बहस की जरूरत है, ताकि अच्छी और बुरी बातों के बीच   तारतम्य बैठाया जा सके और एक निश्चित हल की तरफ कदम बढ़ाया जा सके। दुनिया के अधिकांश देशों ने अपने यहां चाइल्ड पोर्नोग्राफी और इंटरनेट को और अधिक सुरक्षित बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। भारत सरकार को भी इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है।
वर्ष 2013-14 में पड़ोसी देश चीन में ‘क्लीनिंग द वेब’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के काफी बेहतर रिजल्ट सामने आए। कई अश्लील साइट्स को पूरी तरह बंद कर दिया गया। फ्रांस ने ‘किंडर सर्वर’ शुरू करके बच्चों को प्रोटेक्ट करने का अभियान शुरू किया है। पर अफसोस इस बात का है कि भारत में इस संबंध में अब तक कानून का कोई प्रावधान ही नहीं है। भारत सरकार ने एक दु:साहसी कदम तो उठाया पर इस कदम को कानून के दायरे में बांधने की भी जरूरत है। अभी तो हिमायती लोग सुप्रीम कोर्ट का हवाला दे रहे हैं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तो कहा है कि गंभीरता से सोचें। यह गंभीरता बेहतर तरीके से सोच-समझकर कानून बनाने की ओर इशारा है। इस पर मंथन किया जाना बेहद जरूरी है।

चलते-चलते
शुक्रवार को ही लोकसभा में महिला एवं विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक लिखित प्रश्न के जवाब में बताया है कि पिछले कुछ साल में भारत में नाबालिगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया है कि 2012, 2013 और 2014 में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के क्रमश: 8,541, 12,363 और 13,766 मामले दर्ज किए गए हैं। अब आप भी मंथन करिए क्या इस मुद्दे पर सार्थक बहस नहीं होनी चाहिए।

Tuesday, August 4, 2015

लो जी शुरू हो चुका है पाकिस्तान में मौजूद गीता पर ड्रामा


पिछले दो-तीन दिनों से तमाम न्यूज पेपर्स और न्यूज चैनल्स में सबसे बड़ी स्टोरी बनी है पाकिस्तान की गीता। 13 साल पहले भटककर पाकिस्तान पहुंची इस गूंगी बहरी लड़की की कहानी को ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे हम उसे उसके घर पहुंचा के ही रहेंगे। पता नहीं क्यों मुझे चीढ हो रही है ऐसी स्टोरी से। ऐसा लग रहा है पूरा ड्रामा क्रिएट किया गया। सलमान खान की फिल्म बजरंगी भाईजान का यह मुझे मार्केटिंग कैंपेन जैसा लग रहा है। नहीं तो अचानक क्यों यह स्टोरी इतनी हाईलाइट होती। वह भी मास लेवल पर इसे प्रचारित और प्रसारित किया जाता।
दरअसल हम मनुष्यों की यह जेनेटिक प्रॉब्लम है कि हम चीजों को बहुत जल्दी भूल जाते हैं। बता दूं कि यह वही लड़की गीता है जिसकी कहानी ने मीडिया की सुर्खियां बटोरी थी वर्ष 2011-2012 में। उस वक्त सोशल मीडिया इतने उफान पर नहीं थी। और न ही बजरंगी भाईजान जैसी फिल्मी कहानी परदे पर अवतरित हुई थी।
2011-12 में सबसे पहले पाकिस्तानी मीडिया ने गीता की स्टोरी को दुनिया को बताया था। 'अमन की आशा' के नाम से उस वक्त यह खबर सुर्खियां बनी थी। उस वक्त भारतीय मीडिया में भी यह खबर साधारण तरीके से कैरी की गई थी, जबकि पाकिस्तानी मीडिया ने इसे प्रमुखता से उठाया था। उस वक्त भारतीय मीडिया को यह स्टोरी बेहद औसत लगी थी, अचानक बजरंगी भाईजान की कृपा से यह स्टोरी हॉट इश्यू बन गया है।
गीता की कहानी दूसरी बार मीडिया के जरिए आम लोगों के सामने है। मीडिया में आ रही खबरों के बाद मोदी सरकार ने जिस तरह संज्ञान लिया है ठीक उसी तरह उस वक्त भी विदेश मंत्रालय तक बात पहुंची थी। विदेश मंत्रालय की पहल पर पाकिस्तान में मौजूद भारतीय दूतावास भी हरकत में आया था। पाकिस्तानी अखबार द डॉन के अनुसार तत्कालीन एंबेसडर ने एथी फाउंडेशन में रह रही गीता का हाल चाल लिया था। पर कोई सार्थक रिजल्ट सामने नहीं आया। बात आई और गई। 
अब एक बार जब सलमान खान जैसा स्टार शाहिदा नाम की लड़की को सिल्वर स्क्रीन पर लेकर आया है तो अचानक गीता भी छोटे परदे पर छा गई है। भारतीय अखबारों के पन्ने रंगे जा रहे हैं, टीवी स्क्रीन पर स्पेशल इंटरव्यू दिखाए जा रहे हैं। हर किसी को सिर्फ बजरंगी भाईजान ही नजर आ रहे हैं। किसी खबर में यह नहीं बताया जा रहा है कि यह वही गीता है जो तीन साल पहले भी अपने घर की तलाश कर रही थी। हर स्टोरी को बजरंगी भाईजान से जोड़ कर ही दिखाया जा रहा है।
क्या इसे महज संयोग मान लिया जाए, या फिर एक सार्थक मार्केटिंग कैंपेन। जिसमें पता नहीं गीता का कितना भला होगा, पर भाईजान का तो भला हो ही रहा है। बजरंगी भाईजान चंद दिनों में ही तीन सौ करोड़ का आंकड़ा छूने लगी है, अब तो लगता है जिस तरह मीडिया में गीता को बजरंगी भाईजान का अघोषित भाई बनाया जा रहा है उससे कम से कम भाईजान पांच सौ करोड़ तो जरूर कमा लेंगे। क्या कहते हैं आप?
फिलहाल सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान में मौजूद भारतीय दूतावास को गीता की खोजखबर लेने को कहा है। देखते हैं यह खोजखबर 2011-12 की तरह सिर्फ खानापूर्ति होगी या सच में गीता को भारत में खोया उसका परिवार मिल जाएगा। हालांकि भाईजान ने अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया है।