Saturday, August 8, 2015

कहा भी न जाए, रहा भी न जाए


वेंसन बोर्न फॉर ब्लू कोट नामक शोध संस्थान ने हाल ही अपनी रिपोर्ट पेश की है। संस्था ने 11 देशों में एक सर्वे कराया। इसमें पाया कि साइबर सुरक्षा संबंधी खतरों के बावजूद इन 11 देशों में सबसे अधिक पोर्न साइट देखी जाती है। इस मामले में पाकिस्तान जहां सबसे टॉप पर है, वहीं भारत का नंबर छठा है। चीन में 19 फीसदी कर्मचारी आॅफिस के अंदर सबसे अधिक पोर्न देखते हैं, वहीं ब्रिटेन इस मामले में तीसरे नंबर पर है। यह हाल तब है जब चीन की सरकार ने सोशल मीडिया और पोर्न साइट्स पर जबर्दस्त लगाम लगा रखा है। पोर्न को लेकर इतना जबर्दस्त उफान क्यों है? यह मंथन इस वक्त इसलिए जरूरी है क्योंकि भारत सरकार ने पहले 857 पोर्न साइट्स पर पाबंदी लगाई, फिर 72 घंटे के अंदर करीब 700 साइट्स को ओपन कर दिया। मंथन इस बात पर भी होना चाहिए कि क्या पोर्न साइट्स को बैन कर देना ही एक मात्र सॉल्युशन है? या कुछ और भी उपाय किए जा सकते हैं जिससे भारत में लगातार बढ़ रही यौन हिंसाओं पर लगाम लगाई जा सके।
दरअसल पोर्नोग्राफी के विषय में काफी पुरानी फ्रेज है कि ‘पोनोग्राफी इज द बीस्ट, व्हिच थ्राइव आॅन द रिप्रेशन’। कहने का अर्थ है पोनोग्राफी एक ऐसे राक्षस के समान है, जिसे जितना दबाया जाएगा, वह उतना ही ताकतवर बन जाएगा। आप कितने वेबसाइट्स बंद कर देंगे, एक बंद करेंगे दस और खुल जाएंगे। भारत सरकार ने एक अच्छे उद्देश्य के साथ एक साथ इतने वेबसाइट्स को बंद करने का दु:साहस दिखाया। दु:साहस इसलिए क्योंकि पिछले महीने ही आठ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने पोर्न साइट्स संबंधी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि हमारा लोकतंत्र व्यक्तिगत आजादी का मौलिक अधिकार देता है। इस वजह से इस पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। हालांकि, इसका एक दूसरा पहलू यह भी था कि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना था कि यह एक गंभीर मसला है, क्योंकि दिनों-दिन भारत में यौन हिंसा का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। भारत में पोर्नोग्राफी की स्वतंत्रता ने अंडर एज बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। बच्चों से संबंधी पोर्नोग्राफी भी बढ़ती जा रही है। फिलहाल सरकार ने भारी विरोध के बाद अधिकांश साइट्स से प्रतिबंध तो हटा दिया है पर यह प्रतिबंध उन साइट्स पर लागू रहेगा जो चाइल्ड पोर्नोग्राफी कंटेंट का प्रकाशन करती हैं।
बात सिर्फ इतनी ही नहीं है कि कौन सी साइट्स बंद की जाए और कौन सी नहीं, बात इससे भी बड़ी है। एक तरफ जहां भारतीय लोकतंत्र द्वारा प्रत्येक भारतीय को दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रश्न है, तो दूसरी तरफ समाज में जहर की तरह फैल चुके विकृत मानसिकता का प्रश्न। भारत में सबसे पहले मोबाइल क्रांति और उसके बाद हाल के वर्षों में आए इंटरनेट क्रांति ने इस विकृत हो चुकी मानसिकता को बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया है। पहले छिप-छिप कर देखी जाने वाली पोर्न फिल्में अब एक क्लिक पर किसी भी साधारण मोबाइल पर भी उपलब्ध हैं। करीब चालीस हजार वेबसाइट्स बिना किसी तरह की चार्ज किए आसानी से पोर्न कंटेंट आपको उपलब्ध कराती हैं। यही कारण है कि एक स्कूल बस का ड्राइवर अपने खाली समय में अपने मोबाइल पर पोर्न फिल्में देखने के बाद जब छोटी-छोटी बच्चियों को बस में बैठाता है तो उसकी नजरों में हैवानियत नजर आती है। इस वक्त भारत का शायद ही कोई ऐसा शहर बचा होगा जहां छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा नहीं हुई होगी। जिस दिन पोर्न साइट्स के बैन पर बहस हो रही थी, उसी दिन बंगलुरू में एक स्कूल बस के ड्राइवर ने स्कूल गोइंग मासूम बच्ची के साथ जो किया वह समाज को आइना दिखाने के लिए काफी है। हम यह भी क्यों भूल जाते हैं कि इसी तरह के कंटेंट ने बच्चों को समय से पहले ही जवान करना शुरू कर दिया है। नाबालिग बच्चों का सेक्सुअल क्राइम का ग्राफ भी दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। वे इसलिए इस तरह के क्राइम में इनवॉल्व हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें आसानी से अपने मोबाइल पर पोर्न सामग्री मिल जाती है। इसके बाद उनमें अच्छे और बुरे की समझ खत्म हो जाती है। अपनी शरीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वे कुछ ऐसा कदम उठा लेते हैं, जो बहुत ही घातक होता है।
दरअसल, पोर्नोग्राफी के हिमायती अपनी बात तो करते हैं पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी को नजरअंदाज कर देते हैं। भारत में डिजिटल पोर्नोग्राफी का बाजार करीब सात सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर रहा है। कई वेबसाइट्स इस माध्यम से कमाई के साधन भी उपलब्ध कराती हैं। प्रोवोक करती हैं कि आप कंटेंट बेचें। अब इन हिमायतियों को कौन समझाए कि यह कंटेंट आपके और हमारे बीच से ही जेनरेट किया जाता है। चाहे वह होटल, चेंजिंग रूम, लेडीज बाथरूम में फिट किया गया गुप्त कैमरा हो या नशीला पदार्थ खिलाकर अपनों से धोखा। आप अपनी वयस्कता का हवाला देकर पोर्न स्वच्छंदता की मांग तो कर सकते हैं पर एक जिम्मेदार व्यक्ति के तौर पर आपको चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बैन करने के लिए भी आवाज उठानी होगी। पर अफसोस इस बात का है कि पोर्नोग्राफी के हिमायती इस तरफ एक बार भी अपनी आवाज नहीं उठाते।
अच्छा हुआ कि भारत सरकार ने पोर्न साइट्स बंद करने की शुरुआत कर एक नए बहस को जन्म दिया है। इस पर और अधिक बहस की जरूरत है, ताकि अच्छी और बुरी बातों के बीच   तारतम्य बैठाया जा सके और एक निश्चित हल की तरफ कदम बढ़ाया जा सके। दुनिया के अधिकांश देशों ने अपने यहां चाइल्ड पोर्नोग्राफी और इंटरनेट को और अधिक सुरक्षित बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। भारत सरकार को भी इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है।
वर्ष 2013-14 में पड़ोसी देश चीन में ‘क्लीनिंग द वेब’ अभियान शुरू किया गया था। इस अभियान के काफी बेहतर रिजल्ट सामने आए। कई अश्लील साइट्स को पूरी तरह बंद कर दिया गया। फ्रांस ने ‘किंडर सर्वर’ शुरू करके बच्चों को प्रोटेक्ट करने का अभियान शुरू किया है। पर अफसोस इस बात का है कि भारत में इस संबंध में अब तक कानून का कोई प्रावधान ही नहीं है। भारत सरकार ने एक दु:साहसी कदम तो उठाया पर इस कदम को कानून के दायरे में बांधने की भी जरूरत है। अभी तो हिमायती लोग सुप्रीम कोर्ट का हवाला दे रहे हैं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह भी तो कहा है कि गंभीरता से सोचें। यह गंभीरता बेहतर तरीके से सोच-समझकर कानून बनाने की ओर इशारा है। इस पर मंथन किया जाना बेहद जरूरी है।

चलते-चलते
शुक्रवार को ही लोकसभा में महिला एवं विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक लिखित प्रश्न के जवाब में बताया है कि पिछले कुछ साल में भारत में नाबालिगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया है कि 2012, 2013 और 2014 में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के क्रमश: 8,541, 12,363 और 13,766 मामले दर्ज किए गए हैं। अब आप भी मंथन करिए क्या इस मुद्दे पर सार्थक बहस नहीं होनी चाहिए।

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