Monday, August 3, 2015

हर बात में पाकिस्तान की मां-बहन तो मत करो

कश्मीर या देश के किसी कोने में छोटी आतंकी घटना भी होती है तो हम सौ प्रतिशत दोषारोपण पाकिस्तान पर कर देते हैं। न कोई तथ्य न कोई आधार सिर्फ मुस्लिम दाढ़ी और खतना किए गए अंग के आधार पर हम प्रथम दृष्टया में आतंकियों को पाकिस्तानी करार दे देते हैं। जांच रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं होती कि आखिर हम किस-किस आधार पर उन्हें पाकिस्तान या वहां मौजूद आतंकी संगठन से जुड़ा हुआ बता रहे हैं। समझौता एक्सप्रेस से एक पाकिस्तानी महिला तमाम अज्ञात कारणों से भारत में आ जाती है और हम उसे बिना कुछ सोचे समझे पाकिस्तानी जासूस करार दे देते हैं। भले ही वह अपने बजरंगी भाईजान से मिलने आने की कहानी बताती हो। अगर बॉर्डर पर बैठकर कोई बच्चा पोट्टी करते हुए पकड़ा गया तो उसे भी पाकिस्तान की साजिश करार देते हुए हम कहेंगे कि पाकिस्तान अब भारत में प्रदूषण फैला रहा है। पोट्टी बम का इजात कर लिया गया है। हद है।
इसमें दो राय नहीं कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से भारत लंबे समय से लड़ रहा है। पर हमें यह सच्चाई भी स्वीकारनी होगी कि भारत से अधिक आतंकी घटनाएं पाकिस्तान में हो रही हैं। तो क्या हम मान लें कि पाकिस्तान में यह आतंकी घटनाएं भारत करवा रहा है। पाकिस्तान के अखबार और न्यूज चैनल तो ऐसा ही मानते हैं। कहते हैं भारतीय खुफिया एजेंसियां इन घटनाओं को करा रहा है। हम पाकिस्तानी पर दोष मढ़ते आए हैं और पाकिस्तान भारत पर दोषारोपण करता है। हल कुछ नहीं निकलता है।
जबकि सच्चाई यह है कि भारत से अधिक पाकिस्तान में आतंकियों को फांसी पर लटकाया जाता है। हर साल यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। वहां से तो कभी किसी आतंकी की फांसी पर कोई बवाल की खबर आज तक नहीं आई। भारत में तो पिछले दस सालों में सिर्फ चार दोषियों को फांसी की सजा मिली है। इसमें से सिर्फ एक आतंकी था। जबकि दो आतंकी साजिश में शामिल होने का आरोपी और एक को अन्य आरोप में फांसी पर चढ़ाया गया। जबकि पाकिस्तान में हर साल सैकड़ों आतंकी फांसी के तख्ते पर लटका दिए जा रहे हैं।
तो हम कैसे सौ प्रतिशत रूप में भारत में होने वाले हर एक आतंकी घटना के पीछे पाकिस्तान को दोष दे दें। यह भी तो हो सकता है कि पाकिस्तान की आड़ में कोई दूसरा देश अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहा हो। चीन को हम कैसे भूल सकते हैं। इसके अलावा पश्चिमी देश क्या कभी भारत की प्रगति से खुश हुए हैं? वो तो भारत को एक बाजार के रूप में ही देखती आई है।
कहा जाता है कि पाकिस्तान में कई आतंकी संगठन काम कर रहे हैं। उन्हीं के जरिए भारत में आतंक का खेल रचा जाता है। हो सकता है यह सच है। कई मौंकों पर इसके पुख्ता प्रमाण भी मिले हैं। पर यह भी तो हो सकता है कि इन आतंकी संगठनों को पाकिस्तान के अलावा कहीं और से फंडिंग हो रही हो और इन्हें भारत में दहशत फैलाने का कांट्रैक्ट दिया जाता हो। भारत में भी तो कई ऐसे संगठन हैं जिन्होंने भारत के भीतर ही देश के खिलाफ जंग छेड़ रखा है। देश के किसी कोने में चले जाएं, बिहार, झारखंड, नार्थ ईस्ट हर तरफ आपको कोई न कोई संगठन ऐसा मिल जाएगा जो भारत में रहकर ही भारतीय व्यवस्था के खिलाफ जंग लड़ रहा है। अघोषित गृह युद्ध छेड़ रखा है इन्होंने।
बात सिर्फ एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है, बल्कि उन कारणों की खोज करने का है जिसकी आग में दोनों देश परस्पर जल रहे हैं। भारत से अधिक पाकिस्तान में हर साल लोग आतंकी घटनाओं में मारे जा रहे हैं।
इसमें भी दो राय नहीं कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए। पाकिस्तान ने अपने शुरुआती दिनों में आतंक को इतना बढ़ावा दिया कि आज उसका वही बोया हुआ बीज बड़ा हो गया है। पर यह भी सच है कि आज वहां भी हमारे जैसे ही आम लोग हैं, जो आतंक के साए में जी रहे हैं। उन्हें इस बात से मतलब नहीं है कि दोनों देश में क्या राजनीतिक षडयंत्र रचे जा रहे हैं, वे तो सिर्फ सुकून की जिंदगी जीना चाहते हैं।
पाकिस्तान में जब भी आतंकी घटनाएं होती हैं उसमें अफगानिस्तान, ब्लुचिस्तान से आए आतंकियों का हाथ होने की बात सामने आती हैं। जिस तरह हम आंख मूंदकर यह रिपोर्ट कर देते हैं कि पाकिस्तान से आए हिजबुल या लश्कर या अन्य किसी संगठन के आतंकियों ने हमला किया है। ठीक उसी तरह पाकिस्तान में रिपोर्ट छपती है कि भारत समर्थित आतंकी संगठनों ने हमला किया है। भारत पर हमेशा यह आरोप पाकिस्तान द्वारा लगाया जाता है कि ब्लुचिस्तान और अफगानिस्तान या कश्मीर के विवादित इलाकों में कई आतंकी संगठन मौजूद हैं जिन्हें भारत का समर्थन मिला हुआ है।
हां एक और आरोप पाकिस्तान पर लगाया जाता है कि पाकिस्तान दाउद इब्राहिम, लखवी, हाफिज सईद जैसे आतंकियों को पनाह देता है। पाकिस्तान के संरक्षण में इन्हें रखा गया है। वहां कि अदालत ने हाफिज और लखवी को रिहा कर दिया तो भारत ने आपत्ती जताई। पर कौन समझाए कि वहां भी हमारी जैसी ही न्याय व्यवस्था है। जब हमारे यहां अबू आजमी जैसा आदमी सभी आरोपों से बरी हो जाता है, फूलन देवी जैसी डकैत विधायक बन जाती है, तो पाकिस्तान में होनी वाली न्यायिक प्रक्रियाएं भी तो सामान्य ही हैं। हर साल भारत में सबूतों के आभाव में हजारों हार्ड कोर क्रिमिनल बरी   हो जाते हैं, इनमें से तो कई हमारी आम जनता के सहयोग से संसद की गरिमा बढ़ाने भी पहुंच जाते हैं। ऐसे में अगर वहां लखवी और हाफिज जैसे लोग खुले आम घूम रहे हैं तो इसमें आश्चर्य की  क्या बात है। उन्हें अगर पाकिस्तान की जनता का समर्थन मिला हुआ है तो इसमें पाकिस्तान की क्या गलती है। हमारे यहां भी कई बाहूबलियों और हार्डकोन क्रिमिनल्स को जनता सिर आंखों पर बैठाए रखती है।

सवाल यह उठता है कि क्या भारत और पाकिस्तान आजीवन इसी तरह का दंश झेलते रहेंगे। बात साफ है, आग इधर भी लगी है और उधर भी। ऐसे में हमें यह देखना और समझना जरूरी है कि आखिर वो कौन लोग हैं जो इस आग को ठंडा होने नहीं देना चाहते हैं। जब-जब भारत और पाक के बीच कुछ बात बनती नजर आती है गुरदासपुर जैसी आतंकी घटनाएं सामने आ जाती हैं। भारत भी दो टूक जवाब दे देता है जबतक ऐसी घटनाएं होंगी हम बातचीत नहीं करेंगे। पर इस बात को समझना जरूरी है कि आखिर कुछ लोग तो जरूर हैं जो यह बातचीत नहीं होने देना चाहते हैं। ऐसे में हर बात पर हमें पाकिस्तान की मां-बहन करना छोड़ना होगा। दूसरी निगाहों से भी हमें भारत पाक के संबंधों को देखना जरूरी है।

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