Friday, January 16, 2015

‘शराफत गई तेल लेने’

बाबा जी एक्टर बन गए। डायरेक्टर, कोरियोग्राफर, सिंगर और न जाने क्या-क्या बन गए। गॉड के मैसेंजर भी बन गए। जिस दिन बाबा की फिल्म रिलीज होने वाली थी उस दिन रिलीज हो गई फिल्म ‘शराफत गई तेल लेने’। शायद इसी शराफत गई तेल लेने का डायलॉग मारकर सेंसर बोर्ड की चेयरपर्सन लीला सैमसन ने इस्तीफा दे दिया है। अब शराफत रखकर क्या करेंगे? नेता जब अभिनेता बन सकता है। अभिनेता जब नेता बन कर खादी धारण कर सकता है। खुद को संत घोषित कर लोगों में ‘आशा’ जगाकर ‘राम’ बनने वाला तिहाड़ जेल की रोटी खा सकता है। ‘राम’ का ‘देव’ बनकर 2000 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाकर कोई बिजनेस टाइकून बन सकता है। कोई ‘राम’ का ‘पालक’ बन कर अपनी सेना बना सकता है या सत्ता को चुनौती दे सकता है। तो कोई ‘राम’ या  ‘रहीम’ बनकर फिल्मी परदे पर आ गया तो इसमें बुराई क्या है?
      ज्ञान की किस आधुनिक किताब में लिखा है कि कोई बाबा एक्टर नहीं बन सकता है? कहां लिखा है कि धर्म का व्यापार नहीं किया जा सकता? सब कुछ तो हो रहा है। शराफत तो तेल लेने जा ही चुकी है, तो मंथन करिए न कि कोई व्यक्ति राम या रहीम का मैसेंजर क्यों नहीं बन सकता है? हां, यह अलग बात है कि इसी व्यक्ति पर मर्डर और साधुओं के नपंसुक बनाने के गंभीर आरोप हैं पर हम भारतीय संविधान के दायरे में हैं। अभी दोष सिद्ध नहीं हुआ है। मुकदमा चल रहा है। सजा नहीं हुई है। फिर क्या दिक्कत है कि कोई बाबा अपने स्वप्रचार के लिए फिल्म बना ले। देश भर में हर वर्ष हजारों फिल्म रिलीज होती हैं। क्या आप हर फिल्म देखने जाते हैं?
क्या आपको पता भी है कि नई फिल्म शराफत गई तेल लेने में कौन-कौन से एक्टर हैं? शराफत क्यों तेल लेने चली गई है, क्या आपको पता है? इसकी कहानी क्या है चंद लोगों को ही पता होगी। कई लोग तो इस फिल्म का नाम तक नहीं जानते होंगे क्योंकि इस फिल्म की मार्केटिंग उस तरीके से नहीं हो सकी है, जिस तरह से पीके या मैसेंजर आॅफ गॉड की हो रही है। फिल्म से जुड़ा कोई विवाद भी सामने नहीं आया है, जो फिल्म को देखने के लिए लोगों को प्रेरित कर सके। फिल्म का कोई ऐसा निगेटिव एलिमेंट सामने नहीं आया है, जो मीडिया द्वारा मुफ्त की पब्लिसिटी का जरिया बन सके। पीके के साथ विवाद जुड़ते ही इसे न देखने वाले इसे देखने पहुंचे। बॉक्स आॅफिस का ग्राफ गवाह है कि विवाद के बाद इस फिल्म ने अचानक फिर से रफ्तार पकड़ी। आज ग्लोबल मार्केट की रिपोर्ट है कि इस फिल्म ने करीब 620 करोड़ रुपए का कारोबार कर लिया है।
विश्व भर में रिलीज होने वाली हजारों फिल्मों में आप अपनी च्वाइस, अपनी सुविधा, अपने विवेक के आधार पर फिल्म देखने जाते हैं। कोई जबर्दस्ती तो नहीं है कि आप फिल्म देखें ही। चाहे उस फिल्म में कोई नेता अभिनेता बना हो या कोई बाबा। वह फिल्म कोई बायोपिक हो या एक्शन से भरपूर। वो ज्ञान बांटती हो या मनोरंजन। वह अश्लीलता परोसती हो या प्यार। सभी की अपनी च्वाइस है। तो फिर अपनी पसंद से देखने जाइए न। मैसेंजर आॅफ गॉड को लेकर विवाद इतना बढ़ चुका है कि सेंसर बोर्ड की चेयरपर्सन लीला सैमसन ने अपना इस्तीफा भी सौंप दिया है। आवाज उठाई है कि सरकार का सीधा हस्तक्षेप फिल्मों के सर्टिफिकेशन में होता है। शायद उन्होंने जब बोर्ड चेयरपर्सन का पद संभाला तो मंथन नहीं किया था।
        लीला सैमसन अगर उसी वक्त मंथन कर लेतीं तो आज यह बयान न देना पड़ता। मंथन इस बात पर करना था कि जब हरियाणा में सरकार बनती है तो सत्ता पक्ष के करीब चालीस नवनिर्वाचित विधायक राम रहीम के दरबार में मत्था टेकने पहुंचते हैं। चुनाव से पहले सत्ता की चाहत में बड़े-बड़े नेता दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं। ऐसे में अगर इसी दरबार के स्वामी को फिल्मी परदे पर दिखाने की बारी आएगी तो वे क्या कर लेंगी? सैमसन के तर्क थे, फिल्म से सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ेगा, फिल्म रुढ़ीवादिता को प्रमोट करती है आदि..आदि...। ये सभी तर्क तब कुतर्क बन जाते हैं जब फिल्म को सत्ता के गलियारे से हरी झंडी मिल चुकी होती है।
    

एक अनुमान के मुताबिक धर्म गुरु से एक्टर बने बाबा के जितने समर्थक हरियाणा सहित अन्य राज्यों में मौजूद हैं, अगर उन सभी ने फिल्म सिनेमा हॉल या मल्टी प्लेक्स में जाकर देख ली तो क्या पीके और क्या शोले, सभी के रिकॉर्ड टूट जाएंगे। ऐसे में अगर विवादों का तड़का लग चुका है तो आप भी मेरे साथ गाना गुनगुनाइए... अल्लाह जाने क्या होगा आगे, मौला जाने क्या होगा आगे...।

1 comment:

Unknown said...

Very well written sir, aapne sab kuch bol diya iske upper may kya comment karu..bus aapki tarah 1 gaana mujhe b yaad aagaya..kabhi khud par kabhi haalat par ronaa aayaa..sare desh ki hi buri haalat hai..
Anyways great article sir.apko newspaper may nikalna chahiye..