Thursday, May 30, 2019

चुंबकीय आकर्षण की गोद में कसार देवी की अद्भुत यात्रा

कसार देवी का अद्भूत नजारा। 
पत्रकारिता से सन्यास लेकर ययावरी लेखन कर रहे विश्वनाथ गोकर्ण भैय्या का दो दिन पहले फोन आया। उन्होंने मुसाफिर पर मेरी गंगोत्री यात्रा और गुफा स्टे के बारे में पढ़ने के बाद फोन किया था। कहने लगे, तुम तो ऐसी यात्रा के बारे में बता दिए जहां जाने का मन कर रहा है। फिर चर्चा चलने लगी कि कुछ और ऐसी ही यात्रा के बारे में। पूछने लगे कि कुछ दिन के लिए पहाड़ में समय व्यतीत करना चाहता हूं। कुछ ऐसी ही जगह बताओ जहां सुकून के दो पल मिले। मैंने उन्हें उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कसार देवी जाने की सलाह दी। आइए आपको भी लेकर चलता हूं कसार देवी की यात्रा पर।
कसार देवी तक पहुंचने का एक मात्र जरिया सड़क मार्ग है। आप अगर उत्तराखंड के बाहर के हैं तो ट्रेन से आप हल्दवानी तक पहुंच सकते हैं। यहां से टैक्सी के जरिए आप पहले अल्मोड़ा फिर वहां से करीब 10-12 किलोमीटर ऊपर कसार गांव तक पहुंच सकते हैं। यहीं कसारदेवी का मंदिर स्थित है। जो विश्व भर के वैज्ञानिकों के लिए आज भी एक रहस्य के समान है।


अल्मोड़ा का खतरनाक रास्ता और मेघा जी की डर वाली मुस्कुराहट।
फरवरी का महीना था। अचानक एक दिन आॅफिस के तनाव के बीच मैंने दो दिन ब्रेक लेने का मन बनाया। पहले नैनीताल जाने का प्लान था। हम लोग वहां के लिए निकल भी गए। देहरादून से मैं और मेघा अपनी कार से नैनिताल के लिए निकले। शाम का स्टे काशीपुर में था। गर्मी की आहट के बीच सर्दी का मजा कुछ और ही होता है। गेस्ट हाउस की लॉन में शाम की चाय पीते-पीते और वहां के केयर टेकर से बात करते हमने कसार देवी के बारे में जाना। नैनीताल पहले भी दो बार जा चुके थे। इसलिए चाय और नाश्ता खत्म करते करते हमने कसार देवी का प्लान कर लिया। चुंकि रास्ता वही था, इसलिए प्लान में कोई विशेष तब्दीली नहीं करनी पड़ी। हां, इतना जरूर था कि नैनीताल में होटल की बुकिंग का पैसा डूबने का मोह त्यागना पड़ा। नैनीलाल के बाहर ही बाहर आप अल्मोड़ा के रास्ते पर चले जाते हैं।


सुबह सात बजे हम काशीपुर से निकले। रास्ते में घने धुंध से हमारा जबर्दस्त सामना हुआ। नैनीताल से आगे रास्ता भी बेहद खराब था। रास्ते का मजा लेते लेते हम करीब 2 बजे अल्मोड़ा पहुंचे। वहां से कसार देवी के लिए सीधी चढ़ाई थी। अरुण भाई ने पहाड़ में गाड़ी चलाने में एक्सपर्ट करवा दिया था, इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई। हां मेघा जी इस रास्ते को देखकर जरूर बजरंग बली का जाप करने लगी थीं। पर जैसे-जैसे हम ऊपर की ओर बढ़ते गए आखें खुली की खुली रह गर्इं।
चारों तरफ हरियाली ही हरियाली। न आबादी की चहल पहल, न गाड़ियों का शोर। हर जगह फूलों की खूशबू। चीर और देवदार के घने जंगल। सामने दिख रहा था, बर्फ की सफेद चादर ओढ़े विशाल हिमालयन रेंज। कसार देवी शुरू होते ही दो तीन रिसॉर्ट नजर आए। पर हमने पहले ही मन बना लिया था कि गांव में रुकेंगे। इसलिए ऊपर की ओर बढ़ते गए। करीब पांच-छह किलोमीटर ऊपर चढ़ते ही हमने सड़क किनारे एक सुरक्षित जगह देखकर गाड़ी पार्क की और वादियों को निहारने लगे। खूबसूरती ऐसी थी कि शब्दों में बयां करना मुश्किल है। इस खूबसूरती को सिर्फ वहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है। करीब आधे घंटे वहीं बैठकर थकान उतारी। वहां से कुछ किलोमीटर ऊपर ही कसार देवी का मंदिर था। उसी मंदिर के आसपास आपको कई ऐसे घर मिल जाएंगे जो होम स्टे की सुविधा देते हैं। आप वहां से नीचे गांव की तरफ भी बढ़ जाएंगे तो आपको वहां भी ग्रामीणों द्वारा होम स्टे की सुविधा का प्रबंध मिलेगा। विदेशी सैलानियों का यह फेवरेट स्पॉट है। खासकर ईजराइली पर्यटक यहां होम स्टे में तीन-तीन महीने रूकते हैं। वो अपनी कठिन आर्मी ट्रेनिंग पूरी कर यहां पहुंचते हैं, ताकि मानसिक शांति पा सकें।

इन होम स्टे में आपको बेहद साफ सुथरा घर मिलेगा और उतना ही सात्वीक भोजन भी। पहाड़ के लोगों के व्यवहार का तो कहना ही क्या। ऐसा लगेगा जैसे वर्षों से आपके और उनके पारिवारिक संबंध हों। हमने वहीं एक ठिकाना खोज लिया। वहां गाड़ी पार्क करने की भी अच्छी जगह थी।
मेघा घर की महिलाओं से बात करने लगी और मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया। अभी दो मिनट भी नहीं हुए थे बाहर धमाके की आवाज आने लगी। मैं चौंक गया। जल्दी-जल्दी बाथरूम से बाहर निकला। सभी महिलाएं घर के अंदर चली गर्इं थीं। कुत्ते बेतहाशा भौंके जा रहे थे। मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर हो क्या रहा है।
इतने में घर के रावत जी नजर आए। उन्होंने कहा अरे घबराइए मत। लेपर्ड आ गया था कैंपस में। लालू ने उसे भगा दिया है। हम लोग पटाखे फोड़ रहे हैं ताकि उसे और अधिक दूर भगाया जा सके। वो सब तो ठीक था, लेकिन पहाड़ में इतनी दूर लालू कौन है? मैं ठहरा ठेठ बिहारी। लालू नाम सुनते ही कान खड़े हो गए। पर रावत जी अपने धुन में मगन थे। मैंने सोचा कहीं भालू न कह रहे हों। पर शर्म के मारे दोबारा उनसे नहीं पूछ सका। उधर, रावत जी दे दनादन आलू बम दाग रहे थे। आलू बम में आग लगाकर उसे घुमाकर जंगल में फेंकता देख मुझे हॉलिवुड की थ्रीलर फिल्मों का सीन याद आ रहा था। कैमरा अंदर गाड़ी में था। इसलिए इस अद्भूत नजारे को कैद नहीं कर सका। मेरे सामने करीब दस बारह बम फेंककर वो वहीं मुंडेर पर बैठकर बीड़ी सुलगाने लगे। मुझे भी आॅफर किया। पर शालीनता से मना करने के बाद मैंने उनसे सवाल किया कि ये लालू कौन है?
बोलने लगे लालू को नहीं जानते आप। मैंने कहा भाई लालू को तो जानता हूं, पर यहां जंगल में? हंसने लगे। अरे बिहार वाला लालू नहीं। यहां मेरे घर में लालू है। वो जब आप गाड़ी लगा रहे थे और आपको घूर रहा था। फिर सम्मान के साथ आपको लेकर यहां तक आया था, वही तो लालू है।
यही हैं लालू जी।

मैं हंसने लगा। दरअसल लालू उनके पालतू कुत्ते का नाम था। यह भुटिया प्रजाति का कुत्ता था। पहाड़ों में रहने वाले और भेड़ पालने वाले भुटिया कुत्तों को पालते हैं। यह प्रजाति इतनी खतरनाक होती है कि तेंदुओं से अकेले लोहा ले सकती है। रावत जी को भेड़ पालने वालों ने इसे उपहार में दिया था। रावत जी बताने लगे कि जब वह सात आठ दिन का था, तभी से यहां रह रहा है। लालू नाम क्यों रख दिया? मेरे सवाल का जवाब देते हुए रवात जी पुराने दिनों में खो गए। बताने लगे। दरअसल एक बार पहाड़ से भेड़ पालने वाले नीचे आ रहे थे। यहां से गुजर रहे थे तो मेरे यहां पानी पीने को रूक गए। मैंने उन्हें पानी के साथ-साथ खाना भी खिलाया। उनके पास करीब तीन सौ भेड़ें थी। इनकी रखवाली के लिए दो भुटिया कुत्ते थे। एक मेल और दूसरी फिमेल। हाल ही में उनके चार बच्चे हुए थे। अपने कंधे पर रखकर उन चार बच्चों को लेकर वो नीचे आ रहे थे। इनमें से तीन की रास्ते में ही मौत हो गई। एक बचा था। रावत जी ने बताया कि उन्हें मैंने खाना खिलाया जब वो जाने लगे तो उपहार स्वरूप उस एकलौते बचे बच्चे को मुझे दे गए। मैं मना करता रहा, लेकिन वो नहीं माने। भेड़ पालने वालों ने बताया कि हमें अभी काफी दूर जाना है। पता नहीं यह बचेगा या नहीं। पर इतना विश्वास है कि अगर यहां ठिकाना मिल गया तो जरूर बच जाएगा। जब वो उसे छोड़कर जा रहे थे तो उसके मां और पिता उसे दुलार करके और मेरी तरफ देखकर चले गए। मानो कह रहे हों मेरे बच्चे का ख्याल रखना। भेड़ पालने वालों ने बताया था कि इसके पिता का नाम कालू है। कालू बिल्कुल काले रंग का था। जबकि यह लाल रंग का। मैंने उसी वक्त इसका नाम लालू रख दिया। कालू का बेटा लालू।
रावत जी ने बताया कि लालू पर इसी कैंपस के अंदर एक बार लेपर्ड ने हमला कर दिया था। लालू ने अकेले ही उस लेपर्ड को निपटा दिया। यह जितना हमसे और आपसे फ्रेंडली हो जाएगा उतना ही लेपर्ड या दूसरे जानवरों को देखकर हिंसक हो जाता है। खासकर जब यह अपने ऊपर खतरा देखता है तो इसका रौद्र रूप देखकर अच्छे-अच्छों की हालत खराब हो जाती है।  लालू पुराण के साथ रावत जी बीड़ी का कश भी मार  रहे थे। जबतक बीड़ी खत्म होती तब तक लालू जी भी प्रकट हो गए। बिल्कुल बेदम लग रहे थे। हांफ रहे थे। नीचे जंगल से ऊपर आना कोई साधारण बात नहीं थी। रावत जी ने उसे पानी दिया। पानी पीने के बाद लालू फिर से सामान्य हो गया। मैंने उसे सहलाया तो वहीं मेरे पैर के पास बैठ गया। बातों बातों में शाम घिर आई।

रावत जी और उनके परिवार ने हमारी खूब खातीरदारी की। दो दिन का पूरा प्रोग्राम भी बना दिया। उनके परिवार के साथ खाना खाया। रात में उसी कैंपस में बोन फायर के साथ पहाड़ी गानों का लुत्फ लिया। वहीं नीचे के कमरे को उन्होंने होम स्टे के रूप में बदल रखा था। अटैच बाथरूम के साथ बेहद करीने से सजा हुआ कमरा था। ठंडी हवाओं के बीच बोन फायर और उस पर पहाड़ी संगीत किसी को भी मदहोश कर दे। जो ड्रिंक करते हैं उनके लिए तो यह मदहोशी पूरे शबाब पर रहेगी। रात दस बजे तक हम वहीं रावत जी के परिवार के साथ बैठे रहे। बेड पर जाते ही कब नींद की आगोश में खो गया पता ही नहीं चला।
कसार देवी से दिखता सूर्यादय।

सुबह छह बजे दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। रावत जी की बहू चाय लेकर दरवाजे पर खड़ी थी। बोली बाहर आइए आपलोग। सूर्य देवता का आगमन होने ही वाला है। दरअसल कसार देवी में लोग सन राइज और सन सेट देखने दूर-दूर से पहुंचते हैं। सूर्य की पहली किरण जब बर्फ से आच्छादित चोटियों तक पहुंचती है तो एक अद्भूत दृश्य उत्पन्न होता है। हमलोगों ने फटाफट चाय पी और लॉन में उस रोमांचकारी दृश्यों को कैद करने के लिए अपने कैमरे के साथ बैठ गए। इस बीच कई और भी पर्यटक कसार देवी टैंपल के पास बने एक होटल की बालकोनी में नजर आने लगे थे।
कसार देवी से दिखता सूर्यादय।
मैंने पहाड़ों में कई जगह से सन राइज देखा है। शिमला, मसूरी, धनौल्टी, नई टिहरी जैसी अनगिनत जगहों से मैंने यह नजारा लिया है। पर सच मानिए कसार देवी से जो सनराइज देखने को मिला वह सच में अद्भूत और अविश्वमरणीय था। सफेद बर्फ की चादरों पर सूर्य की पहली किरण ऐसी प्रतीत हो रहा थी जैसे वहां ज्वालामुखी उत्पन्न हो रही हो। आप भी अगर कसार देवी जाएं तो इस पल को किसी भी कीमत पर मिस न करें।
काफी देर कैंपस की लॉन में बैठे हम प्रकृति का रसास्वादन करते रहे। इसी बीच दूसरी और तीसरी कप चाय भी निपटा ली। लालू जी वहीं लॉन के पास सो रहे थे। रावत जी ने बताया कि लालू रात भर सोता नहीं है। इधर-उधर अपने दोस्तों के साथ घूमता रहता है। सुबह चार बजे के आस पास सोता है। आठ बजे उठेगा। लालू अपने रूटीन का बड़ा पक्का है।
सुबह दस बजे तक हम भी फ्रेश हो गए। पहाड़ी नाश्ता किया। और कसार देवी मंदिर की तरफ बढ़ गए। पैदल ही रास्ता है। कसार देवी का यह मंदिर दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए किसी रहस्य से कम नहीं है। असीम शक्ति है इस मंदिर में। आपको जानकर हैरानी होगी कि नासा के वैज्ञानिक भी इस मंदिर और इसके आस पास के क्षेत्रों पर अध्ययन कर रहे हैं। यह मंदिर और इसके आसपास का क्षेत्र जबर्दस्त चुंबकीय प्रवाह लिए है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस जगह के चार्ज होने के कारणों और प्रभावों पर शोध कर रहे हैं। आपको बता दूं कि कसारदेवी मंदिर के आसपास वाला पूरा क्षेत्र वैन एलेन बेल्ट है, जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुंबकीय पिंड है। इस पिंड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत होती है जिसे रेडिएशन भी कह सकते हैं। पर आजतक कोई भी इस भू-चुंबकीय पिंड का पता नहीं लगा सका है। हाल के वर्षों में एक बार फिर से नासा के वैज्ञानिक इस बेल्ट के बनने के कारणों को जानने में जुटे हैं। इस वैज्ञानिक अध्ययन में यह भी पता लगाया जा रहा है कि मानव मस्तिष्क या प्रकृति पर इस चुंबकीय पिंड का क्या असर पड़ता है। मैंने जब गुगल किया था तो पता चला था कि जिस तरह का भू-चुंबकीय पिंड कसार देवी में मौजूद है। ठीक वैसा ही दक्षिण अमेरिका के पेरू स्थित माचू-पिच्चू व इंग्लैंड के स्टोन हेंग में मौजूद है। तीनों जगहों में अद्भुत समानताएं हैं।
पहाड़ की चोटी पर कसार देवी मंदिर।

विश्व के इन तीनों स्थानों पर तमाम वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं। इसी भू-चुंबकीय पिंड के कारण कसार देवी को भारत की कई रहस्यमयी मंदिरों में से एक माना गया है। माना जाता है कि कसार देवी एक जागृत देवी हैं। इनसे आप जो भी मन्नत मांगे पूरी होगी। पर मंदिर के रहस्य से आज तक पर्दा उठ नहीं सका है। आज भी देश विदेश के कई वैज्ञानिक कसार देवी सिर्फ इसी चुंबकिय रहस्य का पता लगाने यहां पहुंचते हैं। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि कसार देवी में किसी समय स्वामी विवेकानंद भी मानसिक शांति और साधना के लिए आ चुके हैं। इस जगह के चमत्कारों से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानंद भी कसारदेवी मंदिर पर 1890 में कुछ महीनों के लिए आये थे। आज भी यहां स्वामी विवेकानंद का छोटा सा आश्रम स्थापित है। कसार मंदिर से थोड़ी दूर पर स्थापित इस आध्यात्मिक केंद्र के दरवाजे सभी के लिए खुले हैं। आप यहां मेडिटेशन कर सकते हैं और स्वामी विवेकानंद के विचारों को नजदीक से समझ सकते हैं। मैं भी इस केंद्र में करीब चार घंटे रहा। चारों तरफ इतना सन्नाटा था कि सूई गिरने की आवाज भी आपको सुनाई दे। मेघा जीे को यहां मन नहीं लगा। इसलिए वो थोड़ी देर में अपने होम स्टे में चली गर्इं। पर मैं वहां देर शाम तक रूका रहा। जाने का मन नहीं कर रहा था, पर वहां मौजूद आश्रम के एक व्यक्ति ने धीरे से आकर कहा कि अब आप चले जाएं। अंधेरा होने को है। आसपास जंगली जानवरों का खतरा रहता है। मैं वहां से विदा हो गया, दोबारा आने के वादे के साथ।
आध्यात्मिक केंद्र।

स्वामी विवेकानंद की तरह ही बौद्ध गुरु लामा अंगरिका गोविंदा ने गुफा में रहकर विशेष साधना की थी। स्वामी विवेकानंद ने इस स्थान के बारे में कहा था कि यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि निस्तब्धता, ध्यान और शांति की प्रधानता होगी। सच मानिए आध्यात्मिक शांति के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा स्थान नहीं हो सकता है। (यह बातें गुगल से प्राप्त हुर्इं)
कसार देवी मंदिर के बारे में मान्यता है कि मां कौशिकी के रूप में देवी दुर्गा यहां वास करती हैं। उन्होंने ही शुंभ-निशुंभ दानवों का संहार किया था। यह मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफानुमा जगह पर बना हुआ है। इसी गुफा में मां कौशिकी मौजूद हैं। यहां पर एक शिव मंदिर भी है, जिसे शायद बाद में बनाया गया है। मंदिर के आसपास कई पाषाण युग के अवशेष और शिलालेख भी आपको देखने को मिलते हैं। आप अगर इस मंदिर में जाना चाहते हैं शाम का वक्त सबसे उपयुक्त होता है। क्योंकि शाम में यहीं की से आपको सनसेट का अद्भूत नजारा देखने को मिलता है। देश विदेश के वैज्ञानिक इस केंद्र पर रिसर्च कर रहे हैं। वर्ष 2012 में नासा के वैज्ञानिकों का एक दल भी इस क्षेत्र का अध्ययन करने पहुंचा था। आज भी यहां देशी विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है।
उत्तराखंड सरकार ने कभी भी इस क्षेत्र को विकसित करने या टूरिस्ट स्पॉट के रूप में चिह्नित का प्रयास नहीं किया। मेरे अनुसार उत्तराखंड सरकार को इस बात के लिए धन्यवाद देना चाहिए। जिस दिन सरकार ने इसे अत्यधिक प्रचारित और प्रसारित कर दिया उसी दिन से यहां की खूबसूरती पर ग्रहण  लग जाएगा। होटल्स और मॉल खुल जाएंगे। मल्टीनेशनल फूड कॉर्नर के चेन खुल जाएंगे। लोग यहां शांति के लिए नहीं अय्यासी के लिए पहुंचने लगेंगे। हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि उत्तराखंड सरकार का ध्यान इस तरफ नहीं है। उनका ध्यान नैनीताल और भीमताल तक ही रहे तो बेहतर होगा।
कसार गांव से विदाई की बेला।
प्रकृति की गोद में रहने का प्लान तो दो दिन का था। पर रावत जी के परिवार का प्यार और अद्भूत आध्यात्मिक और मानसिक शांति ने हमें वहां तीन दिन रोक लिया। जाते-जाते बुझे मन से यह तस्वीर उतारी जो सुबह सुबह की थी। एक तरफ सूर्य की उगती किरणें हमें अपनी जिंदगी में उल्लास भरने को प्रेरित कर रही थी, दूसरी तरफ मुरझाए फूल हमारे मन की उदासी को भांप रहे थे। हम उदास थे प्रकृति के इस अद्भूत उपहार से दूर जो हो रहे थे। कभी मौका मिले तो नैनीताल, मसूरी, ऊटी और दार्जलिंग को भूलकर कसार जैसे ही किसी छोटे से पहाड़ी गांव में जाकर रह कर आईए। ताउम्र इसकी यादें आपको ताजगी का अहसास कराएगी। मैं आज फिर से खुद को ऊर्जावान पा रहा हूं।
कसार देवी से लौटते वक्त नैनीताल जाने से खुद को रोक नहीं सका। वहीं नाश्ता किया और फिर देहरादून के रास्ते पर निकल पड़े।

4 comments:

अनुराग शुक्ला / Anurag Shukla said...

शानदार सर। अब अल्मोड़ा गया तो कसारा जरूर जाऊंगा।

Unknown said...

Aab to plan karna parega Kasar Devi Temple.

mrinal said...

अद्बुत। इस जगह के बारे में तो सुना ही नही था

Unknown said...

Great