Saturday, August 18, 2018

गुरू ! वो कॉमेडी का मंच नहीं था कि उठे और लिपट लिए


अपने इसी कॉलम ‘मंथन’ में मैंने पिछली बार सिद्धू के पाकिस्तान जाने का समर्थन किया था। मैंने लिखा था यह दोस्ती से ज्यादा एक राजनीतिक मंच है। वह भी ऐसे देशों के बीच जहां दोस्ती को भी शक की निगाह से देखा जाता है। ऐसे में इमरान खान की तरफ से बढ़े दोस्ती के हाथ को भी संभल कर मिलाने में ही भलाई होगी। सिद्धू को पाकिस्तान जाने से पहले मंथन जरूर करना चाहिए था। पर शायद अति उत्साह में वह जो कर बैठे हैं वह लंबे समय तक भारतीयों को सालता रहेगा।
नवजोत सिंह सिद्धू एक क्रिकेटर, एक कमेंटेटर, एक हास्य कलाकार, एक होस्ट के अलावा कांग्रेस के बड़े नेता हैं। पर अब वो भारतीयों के नजर में एक खलनायक की भूमिका में भी नजर आएंगे। पाकिस्तान में उनके क्रिकेटर दोस्त के साथ दोस्ती निभाते निभाते उन्होंने अपने देश में एक झटके में कई दुश्मन बना लिए। हाल यह हुआ है कि उनकी अपनी ही पार्टी उनसे किनारा करने में भलाई समझ रही है। सिद्धू का पाकिस्तान जाना शुरू से ही विवादों को जन्म दे रहा था। तमाम तर्क और वितर्क के बीच उन्होंने वीजा के लिए अप्लाई किया। सिद्धू के अलावा कई अन्य भारतीय क्रिकेटर्स के साथ भी इमरान खान के अच्छे रिश्ते हैं। इन्हीं रिश्तों को और मजबूती देने के लिए उन भारतीय क्रिकेटर्स को भी इमरान ने न्योता भेजा था। पर सिद्धू के अलावा सभी ने शुरूआती दौर से ही इस न्योते को नकार दिया था।
सिद्धू ने सभी आलोचनाओं को दरकिनार कर न्योता कबूल किया। कई प्लेटफार्म पर इसकी तरीफ भी की गई। मैंने खुद इस कॉलम में सिद्धू की प्रशंसा करते हुए लिखा था कि खेल के मैदान में जिस तरह खेल की भावना दिखती है वैसी ही भावना यहां दिखनी चाहिए। यह राजनीतिक मंच नहीं बनना चाहिए। यह स्पोर्ट्स स्प्रीट के साथ की जाने वाली डिप्लोमेसी है। इसी स्प्रीट के साथ इसे अंजाम तक पहुंचाना चाहिए। शायद मैं गलत था। मैं सिद्धू की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को भांप नहीं सका। क्योंकि सिद्धू शुरू से ही इस मामले का राजनीतिकरण करना चाहते थे। वे शायद यह दिखाना चाहते थे कि कांग्रेस कितनी उदारवादी नीति का अनुसरण कर रही है।
यही कारण है कि उन्होंने वीजा अप्लाई करते ही मीडिया में यह बात उछाल दी कि अब केंद्र सरकार के ऊपर है कि वह उन्हें जाने की परमिशन देती है की नहीं। सिद्धू की मंशा उसी वक्त जाहिर हो गई थी जब उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार को बीच में घसीट लिया था। भला केंद्र को क्या आपत्ती होगी। क्या मोदी सरकार के रणनीतिकार इतने कमजोर हैं जो बैठे बिठाए विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा दे देंगे। तत्काल सिद्धू को ग्रीन सिग्नल मिल गया। अब सिद्धू के पास वो बहाना भी नहीं था कि वे नहीं जा सकते। जबकि फिर दोहरा दूं कि उनके हमराही रहे दोस्तों ने इमरान के न्योते को बिना किसी हिचक के साथ अस्वीकार कर दिया था।
इसी बीच अटल बिहारी वाजपेयी जैसे सर्वमान्य नेता के देहांत ने पूरे देश को शोकाकुल कर दिया। सिद्धू के ही पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी सहित तमाम दिग्गज कांग्रेसी नेता न केवल एम्स में अटल जी का हाल पूछने गए, बल्कि उनके देहावसान से लेकर उनके अंतिम संस्कार तक पूरे समय मौजूद रहे। क्या सिद्धू को अपनी दोस्ती इतनी प्यारी थी कि वे एक बड़े नेता को श्रद्धांजलि देने तक का समय नहीं निकाल पाए। बताता चलूं कि अमृतसर होते हुए बाघा बॉर्डर पहुंचे सिद्धू ने अमृतसर में समय निकालकर वहां आयोजित कार्यक्रम में भी भाग लिया था। एक तरफ जहां पूरा देश शोकाकूल था, अटल जी को याद कर रहा था। सिद्धू के मूंह से उनके लिए दुख के एक शब्द नहीं निकले। सिद्धू को अपने यहां बुलाकर इमरान ने भले ही दोस्ती का पैगाम भेजा हो। पर इससे कौन इनकार कर सकता है कि पाकिस्तान में कमान पूरी तरह सेना के हाथ में होती है। पाक सेना ने सिद्धू के आने पर अपनी पूरी स्ट्रेटजी तैयार की और इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में जो कुछ भी हुआ उसे पूरे विश्व ने देखा।
डिप्लोमेटिक स्ट्रेटजी में पाकिस्तान ने सिद्धू को ऐसी बुरी तरह घेर कर रख दिया कि अब सिद्धू को न इसे निगलते बनेगा न उगलते। पाक सेनाध्यक्ष को गले लगाने पर भारतीयों का गुस्सा सोशल मीडिया पर साफ तौर पर नजर आया। आम लोगों के गुस्से को देखते हुए कांग्रेस ने भी सिद्धू की इस हरकत से खुद को अलग रखना ही बेहतर समझा। इमरान खान के शपथ ग्रहण की तस्वीर और वीडियो के वायरल होते ही लोगों की टिप्पणियों की झड़ी लग गई। तस्वीरों और वीडियो में सिद्धू को साफ तौर पर पाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के गले लगते देखा जा सकता है। जिस आत्मीयता से सिद्धू ने उन्हें लगाया वह अपने आप में कई सवालों और शंकाओं को जन्म दे गया। सवाल उठने लगे कि यह पाक सेना प्रमुख की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था या सिद्धू की बचकानी हरकत। यह महज संयोग नहीं हो सकता कि जिस वक्त इमरान खान शपथ ले रहे थे पाकिस्तानी सेना द्वारा जम्मू कश्मीर बॉर्डर पर भारत की तरफ गोले दागे जा रहे थे और इधर गले लगाने का कार्यक्रम चल रहा था। गले लगने के बाद एक और वीडियो सामने आया जिसमें सिद्धू को पाक अधिकृत कश्मीर के राष्टÑपति मसूद खान के साथ बैठा देखा जा सकता है। क्या सिद्धू की राजनीतिक समझ इतनी कमजोर है कि वह पाकिस्तान की इस डिप्लोमेटिक स्ट्रेटजी को भांप नहीं सके। क्रिकेट की पिच पर अपने प्रतिद्वंदियों का सामना करने के लिए जितनी स्ट्रेटजी और प्लानिंग करनी पड़ती है, उससे भी कहीं ज्यादा सियासत की जमीन पर तैयारी करनी पड़ती है। वह भी जब सामने पाकिस्तान जैसा देश हो। तो क्या मान लिया जाए कि सिद्धू जैसा क्रिकेट का बड़ा खिलाड़ी और सियासत का दलबदलू खिलाड़ी पाकिस्तान के लिए किसी तैयारी के साथ नहीं गया था। शपथ ग्रहण समारोह में अन्य देशों के प्रतिनिधि भी पहुंचे थे। वे डिप्लोमेट्स के लिए निर्धारित स्थान पर बैठे थे। फिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि सिद्धू पीओके राष्टÑपति के ठीक बगल में बैठ गए। यह मान भी लिया जाए कि पाकिस्तान ने सिद्धू के लिए वहां स्थान निर्धारित किया था, लेकिन क्या सिद्धू इस बात को भांप नहीं सके कि आखिर उनको ही यह स्थान क्यों दिया जा रहा है? 

सिद्धू को यह नहीं भूलना चाहिए था कि वह एक दोस्त से ज्यादा करोड़ों भारतवासियों का वहां प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उनकी हर एक हरकत पर भारतीयों की नजर होगी। आज भारत का हर एक व्यक्ति आशंकित है कि सिद्धू की तस्वीरों का पाकिस्तान किस प्लेटफॉर्म पर कैसे इस्तेमाल करेगा। एक दोस्त के नाते सिद्धू ने जरूर दोस्ती निभाई, लेकिन एक भारतीय होने के नाते सिद्धू ने क्या किया इसे पूरे विश्व ने देख लिया। सिद्धू ने इमरान खान के शपथ समारोह की सराहना करते हुए कहा है कि उनके लिए यह एक बहुत भावुक अवसर है। वह अत्यंत भाग्यशाली हैं कि उन्हें इमरान खान को देखने का मौका मिला। उन्होंने कहा, मेरा यार दिलदार, वजीर-ए-आजम पाकिस्तान। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका यार पीठ पर वार न करे। क्योंकि जब-जब ऐसी दोस्ती का पैगाम सरहद पार से आया है पीठ पर वार ही हुआ है।

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