Friday, May 8, 2015

सलमान... यह खत तुम्हारे नाम

अच्छा हुआ सलमान खान तुम अदालत में पेश हुए। अच्छा हुआ कि तुम्हारे चेहरे से दबंगता का परदा हट गया। अच्छा हुआ कि तुम्हारे बहाने हमें यह अहसास हुआ कि तुम्हारे जैसे सेलिब्रेटी और हमारे जैसी आम पब्लिक में आदमी और कुत्ते का फर्क है। हालांकि जहां तक दुनिया जानती है तुमने भी अपने घर में कुत्तों को पाल रखा है। जरूर वे वफादार होंगे, इसीलिए वह तुम्हारे बेडरूम तक जाने की हनक रखते हैं। आम आदमी भी वफादार होता है, यह तुम्हारे अदालती प्रकरण ने स्थापित कर दिया। पर तुम्हारी हनक, तुम्हारी दबंगई, तुम्हारी सेलिब्रेटी इमेज एक पल में हवा हो गई थी। यह तो तुमने भी देखा उस दिन, जब तुम अदालत के कटघरे में बेबस और लाचार खड़े थे। चलो तुम्हें अहसास तो हुआ कि तुम भी एक आम इंसान ही हो। हां, यह अलग बात है कि तुम्हारी औकात कुछ अधिक है, कम से कम फुटपाथ पर सोने वालों से। पर सलमान शायद तुम यह भूल बैठे थे कि बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है।
सलमान तुम्हें भले ही हाईकोर्ट से राहत मिल गई है पर शायद अब तुम भी इस बात से इत्तेफाक रखोगे कि कानून का दायरा बहुत बड़ा है। तुम्हारी रिहाई या बेल पर बहस करना बेमानी है क्योंकि हमारी न्यायिक व्यवस्था में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे सार्वजनिक तौर पर लिखा नहीं जा सकता, सिर्फ कहा और सुना जा सकता है। इसी न्यायिक व्यवस्था को तुमने अपनी फिल्मों में बहुत खूबसूरती से बयां भी किया है। पर तुमने शायद यह कभी मंथन नहीं किया होगा कि असल जिंदगी और फिल्मी जिंदगी में क्या-क्या समानताएं और क्या-क्या असमानताएं हैं? फिल्मों के जरिए तुम करोड़ों दिलों पर राज करते हो। तुम्हारी हर इक अदा पर तालियां बजती हैं। पर कभी तुमने मंथन किया है कि क्यों तुम्हारी छवि बैड ब्वॉयज के रूप में बनती रही है? क्या यह तुम्हारा अहंकार है? या फिर तुमने अपने आपको सभी से ऊपर मान लिया है?
सलमान तुम्हारी रॉबिन हुड वाली छवि का भी इन दिनों खूब प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। पर कोई यह बताने की जहमत नहीं उठाता कि ऐसा क्या परिवर्तन तुम्हारे अंदर आया कि वर्ष 2002 के बाद तुम सोशल वेलफेयर के कार्यों में काफी सक्रिय हो गए। क्या महान सम्राट अशोक के जीवन ने तुम्हें प्रेरित कर दिया था? कलिंग के युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने जब रक्तरंजित तलवार देखी, अपनों के साथ गैरों को भी मरते देखा। मैदान में लाशों के ढेर के बीच खुद को नितांत अकेला पाया। तब उन्हें इस बात का अहसास हुआ था कि युद्ध  कितना भयावह होता है। इसके बाद उन्होंने जिस तरह अपने आप को परिवर्तित किया वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। रक्तरंजित तलवार हो या फिर रक्त रंजित गाड़ी का टायर, दोनों कष्ट तो देता ही है। क्या तुम उसी रक्तरंजित गाड़ी के टायर से द्रवित हो गए? क्या सच में तुम्हें ‘कुत्तों’ की मौत पर अफसोस हुआ? क्या सच में तुम्हारा भी हृदय परिवर्तित हो गया और तुमने एक ऐसे संगठन की स्थापना की जो ‘हृयूमन’ के लिए है। या यह सब भी तुमने इसलिए किया ताकि तुम
भविष्य में अपने बचाव में कुछ तर्क स्थापित कर सको। तुम्हारे बेल पिटिसन में भी इस बात को प्रमुखता से बताया गया था और यह छवि कहीं न कहीं न्याय के मंदिर में तुम्हारे लिए सार्थक भी बनी।
वर्ष 2002 की घटना के बाद से अचानक तुमने सोशल वेलफेयर के इतने काम किए जिसका वर्णन करने को शब्द नहीं। पर हर एक सोशल वेलफेयर के बाद इसकी पब्लिसिटी का काम भी बड़े ही प्लांड वे में करवाना किस रणनीति का हिस्सा थी? क्या तुम्हें न्याय के देवताओं ने समझा दिया था कि अपना बचाव करना है तो अपनी छवि को सुधारो। सलमान अगर तुम सच में कुछ करना चाहते तो कर सकते थे, उस व्यक्ति के लिए जो तुम्हारा बॉडीगार्ड था। पर शायद तुमने यह सोचा होगा कि उसने तुम्हारे खिलाफ बयान दिया तो उसे क्यों पूछा जाए? यहीं तुम्हारे द्रवित हो रहे हृदय ने तुम्हें धोखा दे दिया। अशोक ने जब अपनी रक्तरंजित तलवार को खुद से अलग किया, उसके बाद उसने कभी यह नहीं सोचा कि कौन अपना और कौन पराया? पर तुमने अपने रक्तरंजित गाड़ी के टायर देखने के बाद जो हृदय परिवर्तन किया उसमें अपने और परायों का खास ख्याल रखा।
सलमान मैं तुम्हें उतना करीब से नहीं जानता हूं। तुम्हें उतना ही जानता हूं जितना तुमने हमें बताया है, या मेरे जैसे पेशे के लोगों ने तुमसे जितना पूछा है। यह भी सच है कि इतना भर जान लेना काफी नहीं है। तुम्हारी अपनी निजी जिंदगी में बहुत कुछ तुम अच्छा कर रहे होगे, इसमें हमें संदेह नहीं पर   तुमने कभी मंथन किया है कि सड़क पर सोने वाला व्यक्ति क्यों वहां सोने पर मजबूर होता है। समय मिले तो मंथन जरूर करना और अगर सही में तुम अपने दिल में दया का भाव रखते हो तो सड़क के इन ‘वफादार कुत्तों’ को अपने घर में पल रहे कुत्तों जैसा ही प्यार और सम्मान देने की कोशिश करना। हो सके तो इनके लिए भी ‘बीइंग हृयूमन’ बनना। थैंक्स!
तुम्हारा एक ‘कुत्ता’ फैन


चलते-चलते
मुनव्वर राणा की यह चंद पंक्तियां तुम्हारे और हम जैसे लोगों के लिए-

भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में,
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है।
अमीरे-शहर का रिश्ते में कोई कुछ नहीं लगता,
गरीबी चांद को भी अपना मामा मान लेती है।।


3 comments:

Unknown said...

कानून मेरी जेब मे है यही सोच तो रखते हैं ये बिगड़ैल उच्च श्रेणी के लोग शायद यही कारण है की समाज मे कानून उच्च श्रेणी और आम (कुता) श्रेणी मे विभाजित नजर आता है

musaffir said...

well said prachi

Unknown said...

वाह सर आपने तो सलमान को आईना दिखा दिया