Friday, May 1, 2015

अच्छा हुआ गब्बर, जो तुम आ गए


अच्छा हुआ गब्बर, जो तुम आ गए
रमेश सिप्पी ने 1975 में जब एक गब्बर की परिकल्पना की थी तो पूरा विश्व एक ऐसे किरदार से मुखातिब हुआ, जिसने खलनायकी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। एक खलनायक भी कितना सफल हो सकता है यह गब्बर ने बताया। क्रुर, बदमिजाज, रोबिला या कुछ और, आप जैसे भी उसे परिभाषित कर सकते थे, आपने किया। उस वक्त के गब्बर ने एक ऐसे किरदार की रचना की, जिसमें खलनायकी के अलावा दबंगता का भी मिश्रण था। गब्बर का नाम ऐसा चल पड़ा कि इस नाम से मुहावरे तक बन गए। हर एक दबंग में गब्बर की झलक मिलने लगी। फिर नब्बे के दशक का एक ऐसा दौर आया जब यही गब्बर इंसानियत की नसीहत देने और शान के साथ जीने का सलीका सिखाने लगा। बिना किसी डर और निर्भयता से समाज में रहने की बात करने लगा। भारतीयों की जुबान पर वह गाना रच और बस गया कि... गब्बर सिंह ये कह कर गया, जो डर गया वो मर गया। धीरे-धीरे गब्बर ने कई रूप बदले। पर अपने नाम को हर दौर में प्रासंगिक बनाए रखा। क्रिकेटर शिखर धवन ने तो गब्बर के नाम को इतना सार्थक रूप दिया है कि मैदान में उतरते ही हर तरफ गब्बर-गब्बर का शोर मच जाता है। अब एक बार फिर फिल्मी परदे पर ‘गब्बर इज बैक’ के जरिए गब्बर लौट आया है। एक नए अंदाज में।
क्या आपने कभी मंथन किया है कि एक वक्त का सबसे खतरनाक खलनायक कैसे समय के साथ-साथ समाज का नायक बनता चला जाता है। क्या यह परिवर्तित होते समाज का आईना है या फिर हमने यह स्वीकार कर लिया है कि समाज में जीना है तो गब्बर बनकर ही रहना होगा। दरअसल गब्बर बुराई के प्रतीक से बहुत आगे निकल चुका है। अस्सी के दशक के गब्बर और इस दशक के गब्बर में जमीन आसमान का फर्क आ चुका है। फिलहाल जिस नए गब्बर का फिल्मी परदे पर अवतरण हुआ है वह भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए आया है। जब लोकसभा चुनाव के दौरान भ्रष्टाचार सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनकर उभरा था, तब हर किसी के जहन में एक सवाल था आखिर इस मुद्दे से लड़ने के लिए कौन सा मॉड्यूल अपनाया जाएगा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी और भ्रष्टचार का मुद्दा इस सरकार का प्राइम असाइनमेंट बना। हर तरफ भ्रष्टचार से निपटने की शपथ दिलाई जाने लगी। गली मोहल्लों में भी लोगों ने हर एक कदम पर भ्रष्टचार को खत्म करने की जिम्मेदारी उठाई। पर अफसोस चंद दिनों बाद ही स्थितियां वही ढाक के तीन पात ही है। सरकारी दफ्तरों में आज भी सेवा शुल्क प्राथमिकता में शामिल है। प्राइवेट सेक्टर में इस सेवा शुल्क ने अपना नया नामकरण करवा लिया है। आजकल लोग इसे कॉरपोरेट एसाइनमेंट बताने लगे हैं। शिक्षा के बाजारीकरण में भी यह कल्चर खूब फल फूल रहा है।
कहते हैं फिल्में हमारे समाज का आईना होती हैं। शायद यही कारण है कि एक बार फिर गब्बर लौट आया है। नए अंदाज, नए तेवर, नए कलेवर में। यह वह गब्बर है जो आम आदमी का मुखौटा बन कर हमारे सामने आया है। इस गब्बर ने भ्रष्टचार से लड़ने के लिए दबंगता का मॉड्यूल अपनाया है। अस्सी के दसक वाले गब्बर के नाम से पचास कोस दूर तक का बच्चा जब रोता था तो मां उसे गब्बर के नाम पर सुला देती थी। आज वाला गब्बर भी उसी दबंगता के साथ समाज में मौजूद है। इस गब्बर के डर से पचास कोस दूर तक कोई रिश्वत लेने की सोचता भी नहीं है। अगर किसी ने ऐसा किया तो गब्बर आता है और उसे ऐसा सबक सिखाता है कि वह सपने में भी रिश्वत की बात नहीं सोचे।
तो क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि भ्रष्टचार से लड़ने के लिए हमें भी गब्बर बनना होगा? मंथन करिए। क्यों हम भ्रष्टचार से लड़ने में कामयाब नहीं हो रहे हैं। दरअसल कमी हमारे अंदर है। हम अपने भय पर काबू पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। हमें डर है कि अगर हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई तो तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। पर इसी डर से पार पाने को हमें गब्बर बनना होगा। जब तक गब्बर नहीं बनेंगे तब तक हम डरे सहमे रहेंगे। जिस दिन हमने अपने अंदर गब्बर जैसा जिगर पा लिया, उस दिन हम उस लड़ाई को लड़ने में सफल होंगे, जो हमें हर वक्त परेशान करता रहता है। क्रिकेटर शिखर धवन ने जब खुद को गब्बर के रूप में परिभाषित करने का मौका दिया तो पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे उसने उछाल भरी पिच पर 150 किलोमीटर की रफ्तार से आ रही बॉल को बाउंड्री का रास्ता दिखाया। हर एक व्यक्ति के भीतर एक गब्बर छिपा है, पर जरूरत है उस गब्बर को बाहरी दुनिया से रूबरू करवाने की। ऐसे में अच्छा हुआ कि गब्बर एक बार फिर लौट आया है। हमें और हमारे समाज को आईना दिखाने के लिए।

चलते-चलते

‘गब्बर इज बैक’ सिनेमाघर में तालियां बटोर रही हैं। हालांकि यह तमिल फिल्म रमन्ना की रिमेक है। पर हिंदी सिनेमाप्रेमियों को इसके दबंगई वाले संवाद रोमांचित जरूर कर रहे हैं। फिलहाल एक मित्र ने बताया कि सिनेमा हॉल में काफी लंबे समय बाद किसी संवाद पर तालियों की गड़गड़ाहट सुनने को मिली है। रजत अरोड़ा ने गब्बर की दबंगता को जीवंत कर दिया है। और हां यह मत भुलिएगा गब्बर इज बैक का मूल है ‘नाम विलेन का, काम हीरो का’।

4 comments:

musaffir said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

Superb sir.
Wakai hume is gabbr ki jarurat.

musaffir said...

thanks sunil

Unknown said...

Nice sir aaj hume iss cruption valy systam se fight krne ke liy gabar jaise logo ki jaurat hai