Wednesday, May 20, 2015

कदम मिलकर चलना होगा

अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने जन्मदिन पर हर साल एक कविता लिखते थे और पाठकों को समर्पित करते थे। ऐसे ही किसी जन्मदिन पर उन्होंने एक कविता लिखी। शीर्षक दिया ... कदम मिलकर चलना होगा। शायद वे उस वक्त प्रधानमंत्री बन चुके थे। वे अच्छी तरह जानते थे बिना सभी का साथ लिए दो कदम चलना भी मुश्किल होगा। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जो हाल है उसमें अटल जी यह कविता काफी अर्थपूर्ण लगेगी। दोनों ही नए विजन, ईमानदार राजनीति और दूरगामी सोच के साथ पूर्ण समर्थन के साथ सत्ता में आए हैं। ऐसे में इस कविता के भाव का आप भी रसास्वादन कर सकते हैं।

कदम मिलकर चलना होगा
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

-
अटल बिहारी वाजपेयी

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