Tuesday, May 5, 2015

‘सरस्वती’ का सिर्फ नाम सुना है, अब देखेंगे भी

एक ऐसी नदी जो न जाने कितने सालों से एक रहस्य बनी हुई है। जिस सरस्वती का हम सिर्फ नाम ही सुनते आए हैं, पर आज तक किसी ने देखा नहीं है। एक ऐसी नदी जिसके नाम पर कितने तीर्थ स्थल बने हैं, संगम बने हैं, फिल्मी गाने बने हैं, पर दिखी आज तक नहीं है। उस नदी को अब हम साक्षात देख सकते हैं। वैज्ञानिकों ने वैसे तो कई तार्किक आधार पर इस नदी के अस्तित्व की बातें कही और लिखी हैं, पर ऐसा पहली बार हुआ है कि इस नदी को वास्तविकता प्रदान की
गई है। पिछले दिनों हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने केंद्र सरकार की मदद से बड़े स्तर पर इस नदी को खोजने के अभियान की शुरुआत की थी। मंगलवार को इस अभियान को बड़ी सफलता मिली है। यमुनानगर जिले के मुगलवाली में सरस्वती नदी का पानी मिल गया है। विशेषज्ञों की टीम ने पाया है कि गंगा व यमुना नदी के पानी की धारा के साथ जिस प्रकार के खनिज मिलते हैं, वैसे ही खनिज पदार्थ सरस्वती नदी के पानी के साथ भी मिले हैं। 
धार्मिक मान्यताओं में सरस्वती का उद्गम स्थल हरियाणा के यमुनागर जिले के आदिबद्री को माना जाता है। इसकी पुष्टि इसरो और नासा के भी रिपोर्ट में भी हुई है। वैज्ञानिक तथ्यों के सामने आने के बाद अटल बिहारी सरकार के कार्यकाल में भी इस नदी को खोजने का काम शुरू हुआ था, पर सरकार बदली तो प्लान भी बदल गया। एक बार फिर जब नरेंद्र मोदी शासित बीजेपी की सरकार अस्तित्व में आई तो इस पर काम शुरू हुआ। केंद्र सरकार ने इसके लिए करीब पचास करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया। हरियाणा की खट्टर सरकार ने भी इस काम को अंजाम तक पहुंचाने में अपनी ताकत झोंक दी। पिछले महीने 21 अप्रैल को पूरे विधि विधान और अत्याधुनिक साजो सामान के साथ सरस्वती की खोज शुरू हुई।
विज्ञान और धार्मिक मान्यताओं के संगम ने एक पौराणिक नदी के अस्तित्व को फिर से जीवंत कर दिया है। यमुनागर के डीसी डॉ. एसएस फूलिया की मानें तो मंगलवार को मुगलवाली गांव में अलग-अलग स्थानों पर नौ से 10 फूट की खुदाई की गई। सैटेलाइट चित्रों का भरपूर सहयोग मिला। कई जगह नदी की धारा बहती हुई मिली है। कई जगहों पर सतह से छह फूट नीचे ही इसका प्रवाह मिला है। अब प्रयास किया जा रहा है कि दस फूट तक इसका श्रोत निकाला जाए, जिससे इसके प्रवाह में कोई रुकावट नहीं आ सके। इस गांव के आगे छलौर गांव में बांध बनाकर इस नदी के संपूर्ण अस्तित्व को पूरी दुनिया के सामने लाने की प्लानिंग शुरू हो गई है।
ये तो हुई आज के संदर्भ में बात। अब मैं आपको बताने का प्रयास कर रहा हूं कि आखिर सरस्वती नदी से जुड़ा रहस्य क्या है? क्यों यह नदी इतने दिनों तक एक पहेली बनी हुई थी।
नदियों के जरिए अगर आप भारत को मोटे तौर पर समझें तो पाएंगे कि भारत में तीन स्तर पर नदियां बहती थी। भारत के एक ओर सिन्धु और उसकी सहायक नदियां बहती थी। जबकि दूसरी ओर ब्रह्पुत्र और उसकी सहायक नदियों का राज था। इसी तरह भारत के बीच में गंगा, यमुना और सरस्वती अपनी सहायक नदियों के साथ प्रवाहित होती थी। इन्हीं नदियों के तटों पर मुख्यत: सभी सभ्यताओं का विकास हुआ। अब इनमें से सभी नदियों का अस्तित्व तो है पर सरस्वती नदी बीच में से विलुप्त हो गई। इलाहाबाद में संगम तट पर हर साल करोड़ों लोग पहुंचते हैं। बड़ी श्रद्धा के साथ वहां पूजा भी करते हैं। पर गंगा और यमुना के अलावा तीसरी नदी आज तक किसी को नहीं दिखी। धार्मिक मान्यताएं स्थापित कर दी गर्इं कि वह इसके नीचे से बहती है। ऊपर नहीं दिखती। सरस्वती कभी गंगा नदी से मिली या नहीं मिली, इस पर अब भी शोध किया जा रहा है। 
हालांकि वैदिक काल में एक और नदी द्षद्वती का वर्णन भी आया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह सरस्वती की सहायक नदी के तौर पर मौजूद थी। इस नदी का प्रवाह भी हरियाणा से होकर था। माना गया कि कालांतर में भीषण भूंकप के बाद पहाड़ों के ऊपर उठने के कारण इन नदियों ने भी अपना प्रवाह बदल दिया। दिशा बदलने के कारण जहां एक ओर सरस्वती विलुप्त हो गई, वहीं द्षद्वती ने यमुना का रूप ले लिया। यह भी मान्यता है कि यमुना और सरस्वती एक दूसरे के साथ ही बहने लगी। यही यमुना जब प्रयाग में गंगा के साथ मिली तो सरस्वती का संगम अपने आप स्थापित हो गया। धार्मिक ग्रंथों ने इस तथ्य को वैज्ञानिक आधार भी दिया। इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती नदी का संगम माना गया है।
महाभारत में भी सरस्वती नदी का कई प्रसंगों में विस्तार से वर्णन किया गया है। महाभारत के अनुसार सरस्वती नदी का उद्गम स्थल आज के यमुनागर के आदिबद्री नामक स्थान पर है। आज यह आदिबद्री नामक स्थल हिंदुओं का बड़ा तीर्थस्थल है। हर साल यहां लाखों लोग पहुंचते हैं। इसी क्षेत्र के मुगलवाली में इस वक्त खुदाई के दौरान वैज्ञानिकों को नदी के अस्तित्व को खोजने में सफलता मिली है। 
विलुप्त होने का वैज्ञानिक आधार
फ्रेंच प्रोटो हिस्टोरियन माइकल डैनिनो ने अपने शोध ग्रंथ में सरस्वती नदी के विलुप्त होने के कारणों पर विस्तार से चर्चा की है। उनके शोध गं्रथ का नाम ‘द लॉस्ट रिवर’ है। करीब पांच हजार साल पहले यमुना और सतलुत का पानी सरस्वती के साथ मिलता था। अत्याधुनिक संसाधनों की मदद से इन हिमालयी नदियों का मार्ग पता लगाया   गया। इसके अनुसार संभवत: सरस्वती का पथ पश्चिम गढ़वाल के बंदरपंच गिरि पिंड से निकला होगा। यमुना भी इसके साथ-साथ बहा करती थी। कुछ दूर साथ-साथ चलने के बाद इनका प्रवाह एक हो गया होगा। यमुना ने अपने प्रचंड प्रवाह में सरस्वती को समाहित कर लिया।

3 comments:

Unknown said...

सही है प्रकृति के रंग निराले हैं प्रकृति रूपी माँ हमेशा ही अपनी संतानो को नायाब तोहफे देती है लेकिन बस एक इंसान ही इन्हें सहेज़ कर नही रख पाता

musaffir said...

well said prachi.

musaffir said...

well said prachi.