Friday, September 30, 2016

धोनी तुम दिल में बसे थे..अब दिमाग में हो


स्टेडियम में सचिन के बाद अगर किसी का इतना नाम अब तक गूंजा है तो वह धोनी ही है। बस यही एक गूंज है जो आपको धोनी के इतने करीब लेकर जाती है। धोनी द अनटोल्ड स्टोरी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे धोनी के चाहने वाले न जानते हों। पर जब आप उसे परदे पर जीवंत रूप में देखते हैं तो यकीन मानिए हमारे और आपके दिल में बसने वाला धोनी दिमाग में बस जाएगा।
महेंद्र सिंह धोनी भारतीय इतिहास का सबसे अनप्रेडिक्टबल कप्तान क्यों बना, यह उसके जन्म के समय ही पता चल जाता है। वानखेड़े स्टेडियम स फिल्म की कहानी शुरू होती है। इसके चंद मिनट बाद फ्लैश बैक में जैसे ही धोनी का जन्म दिखाया जाता है उसी वक्त यह अहसास हो जाता है कि जिस धोनी के जन्म के समय जब डॉक्टर ही कंफ्यूज हो जाता है उस धोनी को विरोधी कैसे पढ़ सकते थे। तभी तो धोनी टी-20 वर्ल्ड कप में जोगिंदर सिंह जैसे युवा बॉलर से फाइनल ओवर करवता है और 2011 वर्ल्ड कप फाइनल में अपनी बल्लेबाजी का क्रम अचानक से ऊपर करके हम विश्व विजेता बनाता है। इसी अनप्रेडिक्टबल कप्तानी की बदौलत धोनी ने भारतीय क्रिकेट की इतनी ऊर्जा दी है जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है।

क्यों देखने जाएं यह फिल्म?
वैसे तो धोनी का नाम ही इतना बड़ा है कि फिल्म देखने का वह पर्याप्त कारण है। फिर भी आपको दो कारण से यह फिल्म जरूर देखना चाहिए। पहला कारण.. सुशांत सिंह राजपूत ने धोनी के कैरेक्टर को जो जीवंतता प्रदान की है वह सदियों में कभी दोबारा देखने को नहीं मिलेगी और दूसरा माही को एमएस धोनी बनते देखने की इच्छा। एक छोटे से शहर का माही, पंप आॅपरेटर को बेटा माही, फुटबॉल में अपना कॅरियर बनाने की चाहत रखने वाला माही कैसे एमएस बनता है इसे बेहद खूबसूरत अंदाज में फिल्मी परदे पर दिखाया गया है।
धोनी को चाहने वालों को उम्र की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है, लेकिन खासकर युवाओं को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए। धोनी जैसे शख्स की कहानी को तीन घंटे पांच मिनट के फ्रेम में बांधना किसी चुनौती से कम नहीं। इसीलिए धोनी की चुनौती और उसके संघर्ष को थोड़ा लंबा किया गया है। खासकर उस भाग को जिसमें धोनी सबकुछ हासिल करने के बावजूद कैसे टीम इंडिया की जर्सी और ट्रेन के टिकट कलेक्टर की वर्दी के बीच झूलता रहता है। यह एक युवा की मनोदशा को दर्शाता है जिसमें कई बार हम अपना सबकुछ गंवा देते हैं। पर धोनी को देखने के बाद आपको अहसास होगा कि जिंदगी हमें किसी खास मकसद के लिए मिली है, सिर्फ जरूरत हमें अपनी क्षमता को पहचानने की है।
क्यों न जाएं फिल्म देखने
जो लोग इसे एक क्रिकेट की पृष्ठभुमि वाली फिल्म मानकर देखने जाएंगे उन्हें निराशा हाथ लगेगी, क्योंकि इसमें वैसा कुछ भी नहीं है। न ही यह स्पोर्ट्स ओरिएंटेड फिल्म है। सिर्फ धोनी के खेल को देखना चाहते हैं तो यू-ट्यूब पर हजारों क्लीपिंग मौजूद है। जो लोग धोनी के जीवन के और भी अंदरुनी राज, टीम ड्रेसिंग रूम की अनटोल्ड स्टोरी, कई सीनियर क्रिकेटर्स से उनके विवाद की गॉसिप जानना चाहते हैं उन्हें भी इस फिल्म में कुछ नहीं मिलेगा। फिल्म सिर्फ धोनी के 2011 वर्ल्ड कप विनर बनने तक की कहानी बयां करती है। धोनी से जुड़ी कई कंट्रोवर्सी से भी फिल्म का कुछ खास लेना देना नहीं।

निर्देशन और एक्टिंग
धोनी के कैरेक्टर को इस तरह जीवंत करने के लिए सुशांत सिंह राजपूत के नौ महीने की मेहनत सार्थक है। फिल्म की पहली झलक देखते ही आपको अहसास हो जाएगा कि सुशांत के अलावा यह रोल कोई और नहीं कर सकता है। धोनी के पिता पान सिंह धोनी को अगर आपने कभी देखा है तो आपको अनुपम खेर को पान सिंह के रूप में देखना काफी अच्छा लगेगा। इसके अलावा भूमिका चावला, किआरा अडवाणी, दिशा पटानी, हैरी टंगड़ी, श्रेयस तलपड़े, राजेश शर्मा, ब्रिजेन्द्र काला, कुमुद मिश्रा ने भी फिल्म के साथ न्याय किया है। निर्देशक नीरज पांडे वाकई बधाई के पात्र हैं जिन्होंने हमारे रीयल हीरो को 72एमएम के परदे पर सदा के लिए अमर बना दिया है। युवा संगीतकार अमान मलिक, रोचक कोहली और गीतकार मनोज मुंतशिर ने फिल्म को वह सबकुछ दिया है जो एक दर्शक के रूप में हमें चाहिए।

धोनी का वेलेंटाइन डे 
कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धोनी का वेलेंटाइन डे से कुछ खास रिश्ता रहा है। शायद यह वह अनटोल्ड स्टोरी है जिसे दर्शक देखकर जरूर रोमांचित होंगे। फिल्म आपको कई जगह रुलाती है और हंसाती भी है। धोनी के अपने दोस्तों के साथ मस्ती का अंदाज भी पहली बार दर्शकों के सामने आएगा। फिल्म में धोनी के रियल मैच और फिल्मी परदे के मैच को बेहतरीन और टेक्निनिकल अंदाज से मिक्स और एडिट किया गया है। और फिल्म का अंत भी हेलिकॉप्टर शॉट और धोनी की सदाबहार मुस्कान से करना भी जरूर आपको धोनी..धोनी..धोनी कहने पर मजबूर कर देगा।

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