Saturday, June 13, 2015

इस हमाम में सभी नंगे हैं

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी मंत्री को उसके पद पर रहते हुए इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि उसने फर्जी डिग्री ली है। मंत्रियों और नेताओं पर लगने वाले तमाम तरह के आरोपों, उन पर दर्ज मुकदमों में एक और नई कड़ी जुड़ चुकी है। यह मामला एक नजीर बन चुका है। भारतीय राजनीति के इतिहास और राजनेताओं पर अध्ययन करने के लिए एक नया चैप्टर मिल चुका है। इस चैप्टर पर काफी कुछ लिखा जा चुका है और बहुत कुछ आगे भी लिखा जाता रहेगा। कैसे एक आम आदमी से कोई नेता बनता है। कैसे चुनाव जीत कर वह मंत्री बनता है। और एक दिन फर्जीवाड़े पुलिस कस्टडी में ले लिया जाता है। हर जगह उसका जुलूस निकल रहा है। कई जगह उसके ऊपर अंडे और टमाटर फेंके जा रहे हैं। पर सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक व्यक्ति का मामला है। क्या सिर्फ इस एक शख्स ने ऐसा कांड किया है या इस हमाम में सभी कहीं न कहीं नंगे ही हैं।
दिल्ली के कानून मंत्री जितेंद्र तोमर पर फर्जी डिग्री मामले में कानूनी शिकंजा कसता ही जा रहा है। तोमर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस देश की जनता और कानून उसे कानून मंत्री बना सकता है, उसी देश का कानून उसका जुलूस भी निकलवा सकता है। उसके कानून और ग्रेजुएशन की दोनों डिग्री अभी तक के पुलिस इंवेस्टिगेशन में फर्जी पाई गई है। तोमर के भाग्य का फैसला चाहे जो आए पर इस एक ऐतिहासिक कांड ने नई सिरे से बहस छेड़ दी है। हालांकि बहस का मुद्दा सिर्फ और सिर्फ फर्जी डिग्रियां बन कर रह गई हैं। पर मंथन इस बात भी होना चाहिए कि आखिर इस तरह की डिग्री कैसे लाइसेंसी बन जाती है। कैसे इन डिग्रियों को मान्यता मिल जाती है। कुछ साल पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ही एडवाइजरी जारी करके सभी राज्यों को सचेत किया था कि भारत में फर्जी डिग्रियों को बनाने वालों का बड़ा नेटवर्क काम रहा है। इसके बावजूद भी आज भी भारत में प्राइवेट संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों में काम करने वाले करीब पचास प्रतिशत लोग फर्जी डिग्री के माध्यम से ही नौकरी कर रहे हैं। इस तरह की डिग्रियों पर नजर रखने वाली संस्था फर्स्ट एडवांटेज ने भी अपने सर्वे रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया था कि भारत में करीब पचास प्रतिशत लोग फर्जी डिग्रियों के माध्यम से नौकरी के लिए आवेदन करते हैं। यह फर्जी डिग्री कई तरह की होती है। चाहे अनुभव प्रमाण पत्र की बात हो, जाति प्रमाण पत्र हो या कोई अन्य प्रमाण पत्र। अधिकतर फर्जी बनाए गए होते हैं। हाल के वर्षों में एमबीए की डिग्री हो या पीएचडी की डिग्री सभी सुलभ हैं। ऐसे में तो यही कहा जा सकता है कि इस हमाम में सभी नंगे हैं। जो पकड़ा गया वो चोर और जो नहीं पकड़ा गया वह साधू।
मंथन इस बात पर होना चाहिए कि आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आई है कि भारत में फर्जी डिग्रियों का मायाजाल इस कदर बिछ गया है। क्यों हर साल यूजीसी को देश भर के फर्जी विश्वविद्यालयों का लंबी लिस्ट जारी करनी पड़ती है। क्यों हर साल देश भर में डेढ़ से दो हजार कॉलेज खोले जा रहे हैं। क्यों नहीं सरकार इस पर नियंत्रण का प्रयास करती है। क्यों नहीं इस तरह की पॉलिसी बनाई जाती है कि राज्य सरकार के समन्यवय के साथ ऐसे फर्जी कॉलेज और यूनिवर्सिटी पर नकेल कसी जा सके। हर साल यूजीसी फर्जी कॉलेजों और यूनिवर्सिटी की लिस्ट जारी कर निश्चिंत हो जाती है। आज तक एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है कि भारत सरकार की किसी एजेंसी ने ऐसे फर्जी इंस्टीट्यूट पर कड़ी कार्रवाई की हो। न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार इसमें रुचि दिखाती है। सिर्फ लिस्ट जारी कर अपने दायित्व का निवर्हन कर लिया जाता है। लिस्ट भी वेबसाइट पर जारी करने की प्रथा है। पर इसे समझने को कोई तैयार नहीं है कि ग्रामीण और मध्यमवर्गीय परिवेश से आने वाले छात्र इतने वेबसाइट और इंटरनेट फ्रेंडली नहीं हैं कि वे गहराई से छानबीन कर सकें। वे सिर्फ मनमोहक विज्ञापनों को देखकर आकर्षित होते हैं और इंस्टीट्यूट्स के मायाजाल में फंस जाते हैं।
इसके अलावा ऐसे गैंग भी सर्किय हैं जो पैसे खर्च कर घर बैठे डिग्री दे जाते हैं। ये डिग्री या तो किसी बड़ी यूनिवर्सिटी या कॉलेज के सर्टिफिकेट और नकली पेपर की हूबहू नकल होती है या किसी फर्जी संस्थान से जारी होने वाले डॉक्यूमेंट्स। बिहार हो या यूपी, साउथ का मामला हो या जम्मू कश्मीर का मामला। हर जगह ऐसे फर्जी लोगों की बहार है। लॉर्ड मैकाले ने जब भारत में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति की नींव डाली थी, तब उन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि भारत में एक समय ऐसा आएगा जब इस तरह की शिक्षा पद्धति की बातें बेमानी हो जाएंगी। घर बैठे ही डिग्रियां मिल जाएंगी और लोग आसानी से इन डिग्रियों के माध्यम से नौकरी भी पा लेंगे। अब भी वक्त है, वह भी ऐसे समय में जब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के ऊपर ही फर्जी डिग्री के आरोप लगते रहे हों, एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जिसमें फर्जीवाड़े की कोई जगह ही न हो।

चलते-चलते
बैंकिंग सेक्टर में एक टर्म है ‘सिविल’। बैंकों की इस एकीकृत प्रणाली ने बैंकिंग सेक्टर के फर्जीवाड़े को काफी हद तक नियंत्रित कर दिया है। आपका किसी भी बैंक में एकाउंट हो सिविल के माध्यम से पल भर में अपके   जीवनभर के बैंकिंग लेन-देन का सारा ब्योरा कंप्यूटर स्क्रीन पर आ जाता है। तो क्या ऐसी व्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में नहीं हो सकती? मानव संसाधन मंत्रालय को एक पॉलिसी ही तो बनानी है। पूरे देश भर के शिक्षण संस्थानों को एकीकृत प्रणाली में बांधना बेहद जरूरी है।

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