Wednesday, June 10, 2015

कुत्ते - कमीने... एक-एक को चुन-चुन कर मारूंगा

हिंदी सिनेमा के परदे पर अपने वक्त के सुपरमैन धर्मेंद्र जब इस डॉयलॉग को बोलते थे तो युवाओं की रगों में बहता जवानी का खून  उफान मारने लगता था। चाहे शोले में जय के मरने के बाद उनका बोला गया इस तरह का डायलॉग हो या धरम वीर में अपनी मां की हत्या का बदला लेने के लिए धर्मेंद का विद्रोही रूप। खून में उबाल लाने के लिए यह डायलॉग आज भी काफी है। जिस दिन मणिपुर में भारतीय सेना के काफिले पर हमला हुआ था, उस दिन शहीद सैनिकों के दोस्तों का और भारतीय सेना में मौजूद हर एक जवान का दिल शायद यही डायलॉग दोहरा रहा होगा। ऐसा नहीं है कि इस तरह का उबाल पहले नहीं आया होगा। जब-जब आतंकियों और बॉर्डर पार के नापाक हरकतों के कारण भारत मां का कोई जांबाज शहीद होता होगा, तब-तब हर एक देशभक्त का खून इसी तरह खौलता होगा। मन में आता होगा, चुन-चुन कर मारने का विचार। अफसोस ऐसा हो नहीं पाता था।
पर यह पहली बार है कि 18 सैनिकों के बुरे तरह जले हुए शव देखकर खून खौला और कुत्ते कमीनों को एक-एक कर चुन-चुन कर मारा गया। भारतीय सेना के वीर जांबाजों को दिल से सलाम। म्यांमार की धरती की कोख में जा छिपे आतंकियों को जिस तरह हाईटेक संसाधनों जरिए खोजा गया और मार गिराया वह तारीफ-ए-काबिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने साफ संदेश दे दिया है कि सॉफ्ट कंट्री की छवि को अब भूल जाने का वक्त है। बॉर्डर पार बैठे लोग यह समझने की भूल न करें कि अब हम चुप बैठ जाएंगे। अब तो समय आ गया है कि छेड़ो मत, छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं।
लंबे समय से इसी तरह के काउंटर अटैक की डिमांड होती आ रही थी। ऐसा नहीं है कि इससे पहले बॉर्डर पार जाकर कोई कार्रवाई भारतीय सेना ने नहीं की है। वर्ष 1995 ने भारतीय सेना ने आॅपरेशन गोल्डन बर्ड नाम से उस वक्त के वर्मा और अब के म्यांमार में बड़ा आॅपरेशन चलाया था। पूर्वोत्तर के कई आतंकी संगठनों की रीढ़ तोड़ कर रख दी थी। इसके बाद वर्ष 2003-2004 में इंडियन आर्मी ने रॉयल भूटान आर्मी के साथ आॅपरेशन आॅल क्लीयर चलाया था। असम के सबसे बड़े आतंकी समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम के करीब दो सौ उग्रवादियों को ढेर कर दिया गया था। साथ ही 40 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया गया था।
पर यह भारतीय इतिहास का पहला वाक्या है जब भारतीय सेना के हमलावरों को तत्काल जवाब दिया गया है। इससे साफ संदेश गया है कि अब भारतीय सेना चुप नहीं रहेगी। कुछ दिन पहले रक्षा मंत्री पारिकर और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस तरह की घटनाओं की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि अगर वे एक गोली चलाएंगे तो हम गोलियों की बारिश कर देंगे। अगर वे एक मारेंगे तो हमारे जवान दस को मारने में सक्षम हैं। अब मौन रहने की नीति नहीं अपनाई जाएगी।
भारतीय राजनीति का यह एक बड़ा बदलाव है। एक तरफ जहां भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने एक साल के कार्यकाल में अनेक विदेश यात्राओं के जरिए दूसरे देशों और पड़ोसी मुल्कों के साथ बेहतर संबंध बनाने पर जोर दिया है, वहीं म्यांमार में त्वरीत कार्रवाई करके बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस कार्रवाई से भारतीय सेना का मनोबल बढ़ना स्वाभाविक है।
इन्हीं हालातों को बयां करते हुए किसी ने लिखा है कि ... ..झुको इतना की अदब के लिए काफी हो, इतना मत झुको कि कमर ही टूट जाए।
अदब तो हमारी संस्कृति में है, इसमें झुकने में कोई बुराई नहीं, पर अब झुकने के साथ-साथ अकड़ कर रहना भी जरूरी हो चुका है। बधाई उन जांबाजों को जिन्होंने उन मणिपुर के उन 18 शहीदों का न केवल बदला लिया, बल्कि भारतीय सेना की ताकत से पूरी दुनिया को रूबरू भी करवा दिया। खासकर उन पड़ोसियों को जो यह सोच कर बैठे हैं कि भारतीय राजनीति में वह दम नहीं कि हमला कर सके। 
इंडियन आर्मी को ग्रैंड सैल्यूट।

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